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अमित शाह के निशाने पर गैर-बीजेपी शासित राज्य, दो-दो हाथ की शुरुआत ममता बनर्जी से

अमित शाह गैरबीजेपी शासित राज्यों पर फोकस मिशन-2024 की शुरुआत पश्चिम बंगाल से कर रहे हैं. ममता बनर्जी की टीएमसी के चार के बदले बीजेपी के आठ नेताओं की गिरफ्तारी की धमकी को लगता है चुनौती के रूप में अमित शाह ने स्वीकार कर लिया है, और खुद ही मोर्चा भी संभाल लिया है.

अमित शाह की कोलकाता रैली में ममता बनर्जी का अड़ंगा, 2024 के टकराव का पहला नमूना है! अमित शाह की कोलकाता रैली में ममता बनर्जी का अड़ंगा, 2024 के टकराव का पहला नमूना है!
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 29 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 2:32 PM IST

देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के पहले ही 2024 के लोक सभा चुनाव की हलचल तेज हो चुकी है. बीजेपी के लिए तो विधानसभा चुनाव आने वाले आम चुनाव के लिए रिहर्सल जैसा ही रहा, विपक्षी खेमे में भी हरकत शुरू हो चुकी है. 

विपक्षी खेमे से केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी की मोदी सरकार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरफ से चुनौती पहले ही मिल चुकी है. विपक्षी गठबंधन INDIA खड़ा होने से पहले भले ही सहयोगी दलों में आपसी टकराव से जूझ रहा हो, ममता बनर्जी के तेवर पहले से ही देखे जाने लगे हैं. साथी नेताओं और कार्यकर्ताओं की मीटिंग बुलाकर ममता बनर्जी ने ऐलान किया था कि अगर मोदी सरकार के दबाव में केंद्रीय जांच एजेंसियां तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं को जेल भेजेंगी, तो बीजेपी के आठ नेताओं को बंगाल पुलिस जेल भेज देगी. 

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लगता है ममता बनर्जी के इरादे भांप चुके हैं. तभी तो विधानसभा चुनाव में तेलंगाना के लिए प्रचार की सीमा खत्म होते ही कोलकाता में रैली का प्लान बना लिया था. अमित शाह गैरबीजेपी शासित राज्यों पर फोकस मिशन-2024 की शुरुआत पश्चिम बंगाल से कर रहे हैं. 

रैली से ठीक पहले अमित शाह को ममता बनर्जी का नया संदेश भी मिल चुका है. पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को स्पीकर बिमान बनर्जी के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देने के मामले में पूरे शीतकालीन सत्र के लिए सस्पेंड कर दिया गया है. 

अमित शाह की रैली के लिए भी पश्चिम बंगाल बीजेपी को हाई कोर्ट से परमिशन लेनी पड़ी है, क्योंकि बंगाल पुलिस ने रैली की अनुमति देने से साफ इनकार कर दिया था - बीजेपी को रैली की अनुमति न दिये जाने के पीछे बंगाल पुलिस की तरफ से जो दलील पेश की गयी है, वो तो और भी दिलचस्प है. 

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बंगाल में केंद्र और राज्य के टकराव का बेहतरीन नमूना दिखा

टीएमसी नेताओं की मीटिंग में ममता बनर्जी ने ये भी कहा था कि दिसंबर में वो दिल्ली पहुंच कर केंद्र सरकार के खिलाफ मुहिम चलाएंगी. मीटिंग से आयी जानकारी के मुताबिक, ममता बनर्जी ने दिल्ली दौरे का कार्यक्रम उस वक्त बनाया है जब संसद के शीतकालीन सत्र चल रहा होगा. शीतकालीन सत्र 4 दिसंबर से शुरू होकर 22 दिसंबर तक चलेगा. 

अमित शाह ने ममता बनर्जी के दिल्ली कार्यक्रम से पहले ही पश्चिम बंगाल पर धावा बोल दिया है. ममता बनर्जी ने कह रखा है कि वो पश्चिम बंगाल के बकाया पैसों की मांग के लिए दिल्ली में मुहिम चलाएंगी. ममता बनर्जी ने कहा था, 'हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का समय मांगेंगे... वो समय दे रहे हैं तो ठीक है, नहीं तो सड़क हमारी होगी... देखते हैं कितनों को मार सकते हैं.'

ममता बनर्जी के आरोपों पर केंद्र सरकार ने भी अपना स्टैंड साफ कर दिया है. केंद्र का कहना है कि मनरेगा और PMAY-G यानी प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत फंड तभी रिलीज करेगा, जब उसे पक्का यकीन हो जाएगा कि पैसे पारदर्शी तरीके से खर्च किये जा रहे हैं. बीजेपी नेताओं का आरोप है कि टीएमसी फंड का गलत तरीके से इस्तेमाल कर रही है, और खर्च का हिसाब भी नहीं दे रही है. 

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मान कर चलना चाहिये कि गैरबीजेपी शासित बाकी राज्यों से भी बीजेपी की शिकायतों में ये मामला कॉमन होगा. तभी तो अमित शाह ने गैरबीजेपी शासित राज्यों के लिए मिशन 2024 के लिए अलग से प्लान बनाया हुआ है - और ममता बनर्जी की ललकार के बाद सबसे पहले पश्चिम बंगाल का ही रुख किया है. पहले से तो इस लिस्ट में पश्चिम बंगाल के साथ साथ बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना जैसे राज्य भी होंगे - मुमकिन है 3 दिसंबर को विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद अमित शाह को अपनी सूची में बदलाव भी करना पड़े.  

बंगाल जैसे टकराव बाकी राज्यों में भी होंगे ही!

बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच 2021 के विधानसभा चुनाव की लड़ाई पूरा देश देख चुका है. जिस तरह से ममता बनर्जी ने लड़ाई लड़ी और जीत भी ली, अपनेआप में मिसाल है. नंदीग्राम में तो ममता बनर्जी ने खुद को ही दांव पर लगा दिया था, लेकिन उसका जबर्दस्त फायदा भी मिला. ममता बनर्जी अपने ही साथी रहे शुभेंदु अधिकारी से चुनाव हार गयीं, लेकिन टीएमसी ने चुनाव जीत लिया था. 

2024 की लड़ाई और भी खतरनाक रूप लेने जा रही है, उसकी एक झलक हाईकोर्ट में बंगाल सरकार की दलील में देख सकते हैं. जब ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल पुलिस ने बीजेपी को रैली के लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया, तो मामला कलकत्ता हाई कोर्ट पहुंचा.

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ध्यान देने वाली बात ये है कि बीजेपी ने भी रैली के लिए ऐसे मैदान का चुनाव किया जिस पर टकराव निश्चित रूप से होनी ही थी - धर्मतला ग्राउंड पर. 

जब पुलिस ने रैली की इजाजत नहीं दी, तो बीजेपी ने कलकत्ता हाई कोर्ट में गुहार लगायी. बीजेपी को रैली की अनुमति मिल गयी तो, तृणमूल कांग्रेस सरकार सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ बड़ी बेंच के सामने याचिका देकर रैली की अनुमति न देने की अपील की. हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस टीएस सिवागनानम और जस्टिस हिरण्मय भट्टाचार्य की डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश को बरकरार रखते हुए पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका खारिज कर दी. 

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा माना कि मामले को लेकर बेवजह तूल दिया जा रहा है. कोलकाता में कई ऐसी पब्लिक मीटिंग और रैलियां हुई हैं जिनकी इजाजत नहीं थी - और उनकी वजह से शहर की ट्रैफिक व्यवस्था चरमरा गई थी, और पुलिस भी काबू नहीं कर पाई थी. 

सुनवाई के दौरान ममता बनर्जी सरकार की तरफ से बीजेपी को रैली की अनुमति न देने के पीछे बड़ी ही दिलचस्प दलील सुनने को मिली. अदालत ने बीजेपी को रैली के लिए अनुमति न देने की वजह पूछी तो पश्चिम बंगाल सरकार के वकील ने बताया कि अगर वहां रैली की अनुमति दी गयी तो सारा शहर ठप हो जाएगा. 

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ममता बनर्जी सरकार के वकील ने बताया कि विक्टोरिया हाउस शहर का मुख्य केंद्र है, और उसके सामने 21 जुलाई को छोड़ कर कोई सार्वजनिक सभा नहीं होती - ये दलील तो कोर्ट को और भी अजीब लगी. 

असल में, 21 जुलाई को धर्मतला मैदान में हर साल शहीद दिवस की रैली होती है, जिसे शुरू से ममता बनर्जी संबोधित करती हैं. ये रैली युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं की याद में मनायी जाती है. ये तभी की बात है जब ममता बनर्जी कांग्रेस की नेता हुआ करती थीं. तब पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा की सरकार थी. 21 जुलाई, 1993 को ममता बनर्जी सचिवालय मार्च का नेतृत्व कर रही थीं. मार्च के दौरान पुलिस फायरिंग में 13 कार्यकर्ताओं की मौत हो गयी, तभी से हर साल ये कार्यक्रम होता है. 


मतलब ये हुआ कि धर्मतला मैदान पर अगर कोई रैली कर सकता है, तो वो हैं ममता बनर्जी. अगर किसी राजनीतिक दल की रैली हो सकती है, तो वो है तृणमूल कांग्रेस क्योंकि पश्चिम बंगाल में उसकी सरकार है. कलकत्ता हाई कोर्ट में हुई बहस से मालूम हुआ कि धर्मतला ग्राउंड पर तृणमूल कांग्रेस की वैसी ही दावेदारी है, जैसी राहुल गांधी के लिए कांग्रेस की विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर.

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