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भारत लिखने पर हंगामा है क्यूं बरपा? ये 5 कारण जो करते हैं देश की ब्रांडिंग

'भारत बनाम इंडिया' शब्द पर देश की राजनीति में हलचल है. सदियों से देश को भारत के नाम से जाना जाता रहा है. अगर देश के तीन मुख्य शहरों के नाम बदले जा सकते हैं तो फिर भारत कहने का विरोध क्यों? India that is Bharat तो संविधान में पहले से ही लिखा हुआ है.

भारत बनाम इंडिया पर राजनीतिक बयानबाजी तेज हुई भारत बनाम इंडिया पर राजनीतिक बयानबाजी तेज हुई
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 05 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 6:33 PM IST

देश में हालिया राजनीतिक घटनाक्रमों से लग रहा था कि इंडिया की जगह भारत की ताजपोशी के लिए सरकार कुछ करने वाली है. लेकिन मंगलवार को जी-20 के इन्विटेशन कार्ड पर प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की जगह 'प्रेसिडेंट ऑफ भारत' लिखा वायरल होते ही इसका विरोध भी शुरू हो गया. जाहिर है विरोध है, तो समर्थन भी होगा. साथ ही विरोध और समर्थन के बीज से ही शुरू होगा राजनीतिक शह-मात का खेल. लेकिन अगर हम अपने राजनीतिक मानदंडों को अलग रख कर सोचें तो 'भारत' में बुराई क्या है? अगर दुनियाभर में लोग हमें भारतीय के रूप में जाने तो इसकी आलोचना क्यों?

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वैसे यह भी सच है कि देश का नाम संवैधानिक रूप से चाहे जो हो जनता के बीच तो पॉपुलर तो हिंदुस्तान ही है. सनी पाजी की मूवी गदर 2 के सुपर डुपर हिट होने का कारण ही है कि हिंदुस्तान जिंदाबाद था, जिंदाबाद है और जिंदाबाद रहेगा. इसलिए इंडिया कहने वाले लोगों या इंडिया को प्यार करने लोगों को मायूस होने की जरूरत नहीं है. जिस तरह आज भी हिंदुस्तान शब्द लोकप्रिय है, उसी तरह भविष्य में इंडिया शब्द भी लोगों की जुबान पर होगा. किसी भी भाषा या शब्द को लोकप्रिय बनाने के लिए उसे डॉक्युमेंटेड करना ही एक रास्ता नहीं होता है. देश में उर्दू की लोकप्रियता किसी संवैधानिक उपबंधों की मोहताज नहीं रही है. पर कुछ चीजों का प्रतीकात्मक महत्व है. भारत शब्द से हमारी अस्मिता जुड़ी हुई है. उसे अगर संवैधानिक रूप दिया जाए तो इसमें बुराई क्या है. इसलिए अपनी प्राचीन संस्कृत और सभ्यता से आए शब्द को अगर संवैधानिक रूप से थोड़ी अधिक महत्ता मिल जाए तो इसका विरोध क्यों?

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1- भारत देसी, हिंदुस्तान और इंडिया विदेशी

देश का नाम संवैधानिक रूप से चाहे जो हो जनता के बीच तो पॉपुलर तो हिंदुस्तान ही है. इसी तरह इंडिया शब्द भी जज्बात पैदा करता रहा है. इंडिया जिंदाबाद था, जिंदाबाद है और जिंदाबाद रहेगा.पर इसमें कोई दो राय नहीं होना चाहिए कि हिंदुस्तान और इंडिया शब्द दोनों विदेशी भाषाओं से आए हैं और विदेशियों ने इन्हें गढ़ा है. 

भारतवर्ष नाम हमारे प्राचीन एतिहासिक किताबों और धर्मग्रंथों में मिलता है. कहा जाता है कि राजा ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा है. पुराणों के अनुसार नाभिराज के पुत्र थे भगवान ऋषभदेव और उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा. स्कन्द पुराण (अध्याय 37) विष्णुपुराण (2,1,31), वायुपुराण (33,52), ब्रह्माण्डपुराण (14,5,62), अग्निपुराण (107,11–12) और मार्कण्डेय पुराण (50,41), में भी ऐसी बातें कहीं गईं हैं.

पुराणों से पहले ऋग्वेद में भी इस तरह का वर्णन मिलता है. दस राजाओं के युद्ध में भारत नामक जनसमूह के राजा सुदास का नाम आया है. इस जनसमूह से भी भारतवर्ष का नाम आया है. एक भौगोलिक इकाई के रूप में भारतवर्ष शब्द उल्लेख हाथीगुम्फा शिलालेख में मिलता है. इंडिया नाम संस्कृत के शब्द सिंधु से लिया गया है, जो सिंधु नदी के नाम से निकला है. सिंधु नदी भारत की सबसे लंबी नदी हुआ करती थी. यह भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरपश्चिमी भाग से होकर बहती है और अरब सागर में मिल जाती है. सिंधु घाटी सभ्यता दुनिया की सबसे प्रारंभिक सभ्यताओं में से एक थी. 

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'सिंधु' को फारसियों ने 'हिंदू' कहा. यूनानियों ने भी इसे अपनाया, पर उन्होंने इसका उच्चारण 'इंडस' किया. इसी तरह भारत का सबसे लोकप्रिय नाम 'हिन्दुस्तान' है, जो एक फारसी शब्द है, जिसका अर्थ हिन्दुओं की भूमि के लिए किया गया.

2- मुंबई-कोलकाता और चेन्नई का नाम बदल सकता है तो देश का क्यों नहीं?

देश के तीनों हिस्सों में स्थित तीन बड़े शहर मद्रास, बंबई और कलकत्ता को जिस भावना के चलते चेंन्नई, मुंबई और कोलकाता किया गया उसी जज्बात और भावना के चलते अगर इंडिया को भारत किया जाए तो विरोध की बात कहां से आती है. इन तीनों शहरों के नाम बदलने के पीछे प्राचीन भारत की भाषा, संस्कृति और पहचान का संकट ही रहा है. नहीं तो सुनने में आज भी बॉम्बे या बंबई, कलकत्ता और मद्रास ही अच्छे लगते हैं. इन शहरों के नाम बदलने के पीछे सबसे बड़ा कारण उनका औपनिवेशिक पहचान ही था. अगर हम शहरों को उनको औपनिवेशिक पहचान से मुक्त करना चाहते हैं तो फिर देश को भारत के नाम से जानने में विरोध की आंच क्यों आ रही है.

3- विदेशों में इसका आशय मूल निवासियों से लगाया जाता है

दरअसल इंडिया नाम के चलते एक और कारण रहा जो व्यवहारिक दिक्कतें पैदा करता रहा है. इंडियन लोगों को दुनियाभर में इंडिजेनस लोगों का तात्पर्य निकलता रहा है. अमेरिका के प्राचीन लोगों को रेड इंडियन के तौर पर जाना जाता है. इंडियाना जोन्स सीरीज की फिल्मों का संबंध कहीं से भी इंडिया से नहीं है. कहा जाता है कि कोलंबस भारत की खोज में निकला था और पहुंच गया अमेरिका. वहां उसे ब्राउन लोगों के बजाय रेड लोग मिले. उसने उन्हें रेड इंडियन पुकारा. तबसे अमेरिका के मूल निवासियों को रेड इंडियन कहा जाता है. रेड इंडियन या दुनिया में कहीं भी इंडिजेनस लोग अति पिछड़े हैं और समय के साथ उनका विकास नहीं हो सका है. जबकि भारत आज दुनिया में अपना डंका बजा रहा है. अमेरिका में भारतीय लोगों की प्रति व्यक्ति आय अमेरिका के नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय से करीब डेढ़ गुना अधिक है.

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4- बंटवारे के बाद ओरिजिनल भारत लगे इसलिए ऐक्सेप्ट हुआ इंडिया 

संविधान सभा में बहस के दौरान इस बात पर चर्चा हुई कि देश का नाम क्या रखा जाए. ब्रिटिश लोग हमारे देश के लिए हमेशा इंडिया शब्द का इस्तेमाल करते थे. ब्रिटिश चाहते थे इंडिया को दो हिस्से में बांट कर हिंदुस्तान और पाकिस्तान बना दें. इसका जबरदस्त विरोध हुआ. कहा गया कि जिन्ना अपने देश को पाकिस्तान बोलें या जो चाहें वो नाम रख लें पर हमारा देश इंडिया या भारत ही था और भारत ही रहेगा. स्वतंत्रता सेनानी चाहते थे कि हमारी ओरिजिनलिटी की पहचान बनी रहे. अगर हम हिंदुस्तान नाम रख लेंगे और पाकिस्तान बन जाएगा तो हम अपने आपको ओरिजिनल नहीं कह सकेंगे. संविधान सभा में इंडिया के बदले भारत के सबसे बड़े पैरोकार थे, हरी विष्णु कामथ. कामथ का यह भी तर्क था कि सिर्फ इंग्लिश देशों में ही भारत को इंडिया बोला जाता है जबकि इटली, फिनलैंड, तुर्की, रोमानिया, फ्रांस जैसे कई गैर-अंग्रेजी देश हमारे देश को हिंदुस्तान बोलते थे. संविधान सभा में इसके लिए वोटिंग हुई 51 के मुकाबले मात्र 38 वोट ही भारत के समर्थन में मिले और संशोधन नहीं हो सका. 

5- दुनिया में प्राचीन भारत की ब्रांडिंग

दुनिया भर में रोम , इजिप्ट, येरुशलम और चीन के लिए जो आकर्षण है वह उसकी प्राचीनता में ही है. भारत में काशी को देखने की जितनी उत्सुकुता विदेशी टूरिस्टों में होती है उतनी उसके नजदीक स्थित प्रयागराज में नहीं. क्योंकि काशी को दुनिया में सबसे प्राचीनतम शहर के रूप में ब्रैंडिंग है. भारत दुनियाभर में प्राचीन काल से ही ज्ञान विज्ञान का केंद्र रहा है. भारत के पैरलल ही रोम और इजिप्ट और चीन ने भी दुनियाभर में अपनी प्राचीनता की ब्रैंडिंग की है. दुनिया में ऐसे देशों की कमी नहीं है जिन्होंने अपने औपनिवेशिक काल के नाम को बदलकर नए नाम रखे हैं. ये नए नाम अधिकतर उनकी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता से मिलते जुलते हैं.

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