
अरविंद केजरीवाल ने 2013 में दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ शानदार चुनावी जीत के साथ अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को चुनावों में तो हराया ही, उसी की मदद से दिल्ली में पहली सरकार भी बनाई - तभी तो आज भी दिल्ली कांग्रेस के नेता अरविंद केजरीवाल के साथ चुनावी गठबंधन के लिए खुले दिल से तैयार नहीं हो पाते.
2019 के आम चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन की खूब कोशिशें की, लेकिन तब फैसले का अधिकार फिर से शीला दीक्षित के हाथों में ही आ गया था. शीला दीक्षित अपने रुख पर कायम रहीं, और आम आदमी पार्टी के साथ चुनावी समझौता नहीं ही किया. नतीजे आये तो शीला दीक्षित का फैसला भी सही साबित हुआ. कांग्रेस ने दिल्ली की सभी सात सीटों पर AAP को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था.
दिल्ली की ही तरह पंजाब में भी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को ही बेदखल कर सत्ता हासिल की है, फिर भी दिल्ली और पंजाब की परिस्थितियां अलग देखने को मिली थीं. देखा जाये तो दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस से सत्ता छीन ली थी, लेकिन 2022 के चुनाव में पंजाब में तो ऐसा लगा जैसे कांग्रेस ने थाली में सजा कर सत्ता सौंप दी हो. तरीका भले ही अलग रहा हो, लेकिन दोनों ही राज्यों में फायदे में तो आम आदमी पार्टी ही रही, और कांग्रेस को ही नुकसान उठाना पड़ा.
लेकिन सिर्फ दिल्ली और पंजाब ही क्यों, 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भी तो आम आदमी पार्टी ने जो पांच सीटें जीती थी, वे कांग्रेस को ही मिलतीं. एक विधायक के इस्तीफा दे देने के बाद तो अब आम आदमी पार्टी के पास चार ही विधायक बचे हैं - ऐसे ही गोवा में भी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को ही डैमेज करने की कोशिश की है.
अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस से दूर रखने की सोनिया गांधी और राहुल गांधी की पॉलिसी के पीछे बड़ी वजह भी यही हुआ करती थी, लेकिन बदले हालात में दोनों को साथ आना पड़ा है. अब तो दोनों राजनीतिक दल INDIA ब्लॉक में सीटों के बंटवारे पर भी बातचीत कर रहे हैं. फाइनल तो कुछ नहीं हुआ है, लेकिन तकरीबन सब कुछ तय ही बताया जा रहा है.
विधानसभा चुनाव नतीजों ने आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों ही को एक दूसरे से हाथ मिलाने को बाध्य किया है, कांग्रेस को तो पूरे देश में क्षेत्रीय दलों के साथ चुनाव से पहले ही समझौते करने पड़ रहे हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल के लिए तो कांग्रेस के साथ लगता है चुनावी गठबंधन करना अब मजबूरी हो गई है.
AAP और कांग्रेस के बीच कैसे हो रहा है सीटों का बंटवारा
पंजाब और दिल्ली के साथ ही आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गोवा, गुजरात और हरियाणा में भी सीट शेयरिंग की संभावन जताई जा रही है. सीट शेयरिंग को लेकर हुई बैठक में आम आदमी पार्टी की तरफ से संदीप पाठक, आतिशी और सौरभ भारद्वाज शामिल हुए, जबकि कांग्रेस की ओर से मुकुल वासनिक, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, सलमान खुर्शीद, मोहन प्रकाश, दीपक बाबरिया और अरविंदर सिंह लवली मौजूद रहे.
बैठक के बाद सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों दलों में से किसी की तरफ कोई आधिकारिक जानकारी तो नहीं दी गई है, लेकिन बताते हैं कि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के सामने दिल्ली की 7 लोक सभा सीटों में से 3, और पंजाब में 13 में 6 संसदीय सीटों पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा है.
2019 के लोक सभा चुनाव के दौरान पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी, और तब पार्टी के हिस्से में 8 सीटें आई थीं, जबकि आम आदमी पार्टी के टिकट पर सिर्फ भगवंत मान ही अपनी सीट दोबारा जीत पाये थे, जो फिलहाल पंजाब के मुख्यमंत्री हैं. आपको याद होगा, 2014 के आम चुनाव में पहली बार आम आदमी पार्टी लोक सभा की चार सीटों पर जीत हासिल की थी, जिनमें एक सीट भगवंत मान ने ही जीती थी.
भगवंत मान के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद जब संगरूर सीट पर उपचुनाव हुए तो सूबे की सत्ता में होने के बावजूद हार का मुंह देखना पड़ा. उपचुनाव में अकाली नेता सिमरनजीत सिंह मान को जीत मिली और वो फिर से संसद पहुंच गये हैं.
सुनने में आ रहा है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच दिल्ली और पंजाब सहित देश के 5 राज्यों में चुनावी गठबंधन होना है. वस्तुस्थिति भी यही है, क्योंकि बाकी राज्यों में अब तक आम आदमी पार्टी का न तो संगठन खड़ा हो सका है, न ही कोई जनाधार बन पाया है.
चुनावी राजनीति में आम आदमी पार्टी की ताकत की बात करें तो 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में उसके 62 विधायक हैं, 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा में AAP के 92 विधायक हैं, लेकिन 182 की संख्या वाली गुजरात विधानसभा में उसके पास अभी सिर्फ 4 और 40 सीटों वाली गोवा विधानसभा में केवल दो विधायक हैं.
AAP और कांग्रेस की बैठक से जो खबर निकल कर आ रही है, बताते हैं कि गुजरात और गोवा में एक-एक सीट पर और हरियाणा में आम आदमी पार्टी तीन लोक सभा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. हालांकि, दोनों दलों के बीच अभी कई पेच उलझे हुए हैं, जिन्हें सुलझाया जाना बाकी है.
दिलचस्प बात तो ये है कि हरियाणा में कुछ भी न होने के बाद भी आम आदमी पार्टी ने तीन सीटों से चुनाव लड़ने का दावा पेश किया है, शायद इसलिए क्योंकि अरविंद केजरीवाल हरियाणा से ही आते हैं. आम आदमी पार्टी हरियाणा में शुरू से ही चुनाव लड़ती आई है, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व पूरी जिम्मेदारी स्थानीय नेताओं के हवाले ही कर देता है.
वैसे सितंबर, 2022 में अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा के हिसार से ही अपना 'मेक इंडिया नंबर 1' अभियान शुरू किया था. ये तभी की बात है जब राहुल गांधी तमिलनाडु के कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा शुरू कर रहे थे.
क्या एक दूजे के हो चुके हैं AAP और कांग्रेस
भारत जोड़ो यात्रा के समापन तक राहुल गांधी को अरविंद केजरीवाल पसंद नहीं आ रहे थे. यहां तक कि समापन समारोह के लिए जब विपक्ष के कई नेताओं को न्योता भेजा गया, तो भी अरविंद केजरीवाल को नहीं बुलाया गया.
बाद के दिनों में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों के साथ कई वाकये ऐसे हुए जिनकी बदौलत दोनों करीब आते गये. दोनों के करीब में मल्लिकार्जुन खरगे का कांग्रेस अध्यक्ष होना तो काम आया ही, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भी भूमिका मानी जाने लगी है. बताते हैं कि अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी दोनों के कांग्रेस से हाथ मिलाने में नीतीश कुमार की ही महत्वपूर्ण भूमिका रही.
आम आदमी पार्टी ने एमसीडी का चुनाव तो जीत लिया, लेकिन गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनावों में कुछ नहीं कर पाई. आम आदमी पार्टी का हालिया चुनावी प्रदर्शन भी तो घटिया ही रहा. उन्हीं दिनों संसद में बीजेपी की नरेंद्र मोदी सरकार ने दिल्ली सेवा बिल लाया था, और जाने माने कारोबारी गौतम अडानी के कारोबार को लेकर राहुल गांधी संसद से लेकर सड़क तक जोरदार कैंपेन चला रहे थे - तभी कुछ कुछ चीजें ऐसी होती गईं कि कुछ अरविंद केजरीवाल भी झुके और कुछ हद तक कांग्रेस नेतृत्व ने भी जिद छोड़ दी. अब तो खैर, दोनों तकरीबन साथ ही नजर आ रहे हैं.
लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर अब भी गाड़ी अटकी हुई है. सूत्रों के हवाले से आ रही खबर के मुताबिक, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की बैठक में मुकुल वासनिक ने साफ साफ बता दिया था कि उनके पास सिर्फ दिल्ली को लेकर बातचीत का मैंडेट मिला हुआ है, पंजाब का नहीं - क्योंकि पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के साथ किसी भी तरह के चुनावी समझौते न करने की गुजारिश की है. ध्यान रहे, राज्यों के नेताओं का हवाला देते हुए ही 2019 में राहुल गांधी ने दिल्ली सहित कई राज्यों में चुनावी गठबंधन से इनकार कर दिया था.
चुनावों में न तो अरविंद केजरीवाल का जय श्रीराम का नारा लगाना लोगों को भा रहा है, न ही नोटों पर लक्ष्मी और गणेश की तस्वीरें लगाने के प्रस्ताव जैसा हिंदुत्व का एजेंडा, थक हार कर आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के साथ ही कुछ वक्त गुजारने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, और कांग्रेस के लिए भी कहीं भी अकेले खड़ा होना संभव नहीं हो पा रहा है - ऐसे में दोनों को मजबूर एक-दूजे के लिए होकर चलना पड़ रहा है.