
अरविंद केजरीवाल की राजनीति में जितनी आक्रामकता देखी गई है, नाटकीयता भी उतनी ही नजर आती है. पैंतरेबाजी तो हद से भी ज्यादा है - बीजेपी से ज्यादा तो ये चीजें राहुल गांधी के लिए मुसीबत का सबब रही हैं.
देश से भ्रष्टाचार खत्म करने के नाम पर राजनीति में आने वाले अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के विरोध से शुरुआत की थी. शीला दीक्षित को शिकस्त देकर कांग्रेस को दिल्ली से ऐसा उखाड़ फेंका कि खाता खोलना तक मुश्किल हो गया है. चाहे वो विधानसभा हो, चाहे लोकसभा चुनाव.
और विडंबना देखिये कि अरविंद केजरीवाल ने पहली सरकार भी कांग्रेस की मदद से ही बनाई थी. शीला दीक्षित के होते 2019 में तो कांग्रेस के साथ समझौता नहीं हो सका, लेकिन 2024 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने चुनावी गठबंधन कर ही लिया.
लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के कुछ ही दिन बाद अरविंद केजरीवाल के साथियों ने कांग्रेस के साथ दिल्ली विधानसभा चुनाव में गठबंधन न करने की घोषणा कर दी.
फिर भी राहुल गांधी चाहते थे कि हरियाणा में दोनो मिल कर बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ें. एकबारगी आप नेता संजय सिंह ने तो राहुल गांधी के प्रस्ताव का स्वागत भी किया था, लेकिन फिर आम आदमी पार्टी हरियाणा में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा करने लगी - और अब तो हरियाणा की सभी सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ रही है.
न दिल्ली में गठबंधन, न हरियाणा में
हरियाणा में बीजेपी की सरकार है, लेकिन कांग्रेस भी काफी मजबूत स्थिति में मानी जा रही है. कांग्रेस का चुनावी प्रदर्शिन तो 2019 में भी अच्छा ही रहा. लोकसभा चुनाव में भी दोनो को बराबर सीटें मिली थीं.
कांग्रेस का चुनाव कैंपेन भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में चल रहा है, और देखा जाये तो पिछली बार के मुकाबले तैयारी का पूरा मौका भी मिला है - लेकिन ताजा मुश्किल ये है कि अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर आ गये हैं, और अब हरियाणा में कैंपेन शुरू करने जा रहे हैं.
जिस तरह से बीजेपी और कांग्रेस में कड़ा मुकाबला हो रहा है, आम आदमी पार्टी की भूमिका तो दोनो के लिए ही नुकसान देह है - देखना है ज्यादा नुकसान किसका होता है.
पिछली बार तो बीजेपी भी अपने बूते बहुमत नहीं हासिल कर पाई थी, लेकिन जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला को साथ लेकर सरकार बनाने में सफल रही - अगर नतीजे इस बार भी वैसे ही रहे तो क्या होगा?
अगर बीजेपी सत्ता में वापसी कर लेती है तो अलग बात है, लेकिन अगर कांग्रेस बहुमत के करीब होती है तो अरविंद केजरीवाल का क्या रुख होगा - वो कांग्रेस को सपोर्ट करना पसंद करेंगे या उसी का समर्थन लेकर अपनी सरकार बनाना चाहेंगे - अरविंद केजरीवाल का ट्रैक रिकॉर्ड तो यही कहता है कि वो अपनी ही सरकार बनाना चाहेंगे
अगर आप साथ होती तो कांग्रेस मिलकर बीजेपी से मुकाबला करती, लेकिन अब तो दोनो से दो-दो हाथ करने पड़ेंगे - और आम आदमी पार्टी तो शुरू से ही कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हो रही है.
राहुल गांधी के रास्ते का रोड़ा बनेंगे केजरीवाल
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार को बाहर से सपोर्ट देने के बाद से गांधी परिवार अरविंद केजरीवाल से लगातार दूरी बनाकर चलता रहा. कोशिशें तो गठबंधन की अरविंद केजरीवाल की तरफ से 2019 में भी हुई थी, लेकिन चुनावी गठबंधन 2024 में ही हो सका - वो पंजाब में नहीं.
तब कांग्रेस ने हरियाणा और गुजरात में एक-एक लोकसभा सीट आम आदमी पार्टी के लिए छोड़ी थी, लेकिन अब तो हरियाणा के साथ साथ दिल्ली में भी अरविंद केजरीवाल कांग्रेस से भिड़ने की तैयारी कर चुके हैं.
INDIA ब्लॉक में कहने को तो अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी दिल्ली में साथ चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन किसी भी कदम पर ऐसा नहीं लगा कि दोनो दल साथ हैं. रोड शो और रैलियां तो भूल जाये, दोनो दलों के नेताओं ने एक साथ कोई प्रेस कांफ्रेंस तक नही की.
अब तक तो यही देखने में आया है कि अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, एमके स्टालिन और ममता बनर्जी जैसी नेता भी राहुल गांधी के साथ खड़े रहे हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल को लेकर ऐसा बिलकुल नहीं लगा.
जब अरविंद केजरीवाल जेल में थे तो संजय सिंह ने इंडिया ब्लॉक में उनके लिए लड़ाई लड़ने की अपील की, और जंतर मंतर पर आप के विरोध प्रदर्शन में भी कांग्रेस नेता पहुंचे थे.
लेकिन जेल से निकलते ही अरविंद केजरीवाल ने जो पैंतरा दिखाया है, ऐसा लगता है बीजेपी की ही तरह वो कांग्रेस के खिलाफ भी अपने मिशन में जुट गये हैं.
लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी पहले के मुकाबले थोड़ा ताकतवर बनकर उभरे जरूर हैं, लेकिन अब उनको समझ लेना चाहिये कि् अरविंद केजरीवाल के निशाने पर बीजेपी से पहले वो ही हैं.