
अशोक गहलोत पेशेवर जादूगर रहे हैं. जादूगर अपनी कला को चमत्कार नहीं बल्कि हाथ की सफाई बताते हैं - और अशोक गहलोत ने इस बार ऐसा जादू दिखाया कि आलाकमान लंबे अर्से तक 'हाथ' की सफाई देखता रहेगा.
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जब भी जयपुर से दिल्ली निकलते हैं, पहले ही पूरा बंदोबस्त कर लेते हैं. रणनीति ऐसी सधी होती है कि सारी चीजें वैसे ही होती हैं, जैसा वो तय कर चुके होते हैं. गांधी परिवार के दरबार में हाजिरी लगाने से लेकर मीडिया के सामने आकर बयान देने तक.
सबसे बड़ी बात कि ये बात भी वो अच्छी तरह जानते हैं कि अपनी बात कैसे मनवानी है. ऐसे तौर तरीके अपनाते हैं कि उनकी बात कोई इनकार ही न कर सके. अपनी इसी कला के माध्यम से वो सचिन पायलट को नकारा, गद्दार और पीठ में छुरा भोंकने वाला साबित करते रहे हैं. अशोक गहलोत के खिलाफ लड़ाई में सचिन पायलट ने राहुल गांधी से जमानत तो मंजूर करा ली, लेकिन अशोक गहलोत ने उनके लिए राजस्थान में जो सियासी जेल बना रखा है, वहां से रिहाई होने ही नहीं दी.
अब तो अशोक गहलोत ने ऐसी बाड़बंदी कर रखी है कि राजस्थान कांग्रेस में उनकी मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिल सकता. कहने को तो वो प्रेस कांफ्रेंस में कहते हैं कि सचिन पायलट ने जितने भी टिकट मांगे थे, सब क्लियर कर दिया है - लेकिन ये तो तब मालूम होगा जब कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची सामने आएगी.
'मैं हूं मुख्यमंत्री, मैं ही रहूंगा मुख्यमंत्री!'
अशोक गहलोत ने ये सवाल भी पूरी तरह खत्म कर दिया है कि चुनाव बाद अगर कांग्रेस की सत्ता में वापसी होती है, तो कौन बनेगा मुख्यमंत्री?
आम तौर पर विधानसभा चुनाव के दौरान किसी भी पार्टी में कोई बड़ा नेता किसी सार्वजनिक सभा या रैली में लोगों के बीच पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा करता है. जैसे 2017 और 2022 के पंजाब विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी ने कांग्रेस के मुख्यमंत्री चेहरों की घोषणा की थी. 2017 में काफी दबाव के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह को, और 2022 में नवजोत सिंह सिद्धू के दबाव से निकल कर चरणजीत सिंह चन्नी को.
2022 के ही आखिर में हुए हिमाचल प्रदेश चुनाव में पहले ही इतना झगड़ा था कि कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में किसी का भी नाम नहीं बताया गया था. दावेदार तो तब पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी और बेटे भी थे, लेकिन चुनाव जीत जाने के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू का नाम फाइनल हुआ.
हुआ तो ऐसे ही 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में भी था. चुनाव से पहले तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते हर कोई मान कर चल रहा था कि सचिन पायलट ही मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन ऐन वक्त अशोक गहलोत ने गांधी परिवार पर ऐसा जादू चलाया कि एक झटके में ही दिल्ली से जयपुर पहुंच कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गये. उससे पहले अशोक गहलोत कांग्रेस में संगठन महामंत्री हुआ करते थे.
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के समानांतर ही कांग्रेस अध्यक्ष की भी चुनाव प्रक्रिया चल रही थी. सोनिया गांधी की पहली पसंद होने के कारण हर कोई मान कर चल रहा था कि अशोक गहलोत ही कांग्रेस के अध्यक्ष की कुर्सी संभालेंगे, लेकिन राजनीति की ऐसी बिसात बिछायी कि किसी के पास कोई चाल चल पाने की गुंजाइश ही नहीं रही.
राजस्थान का मुख्यमंत्री बने रहने के लिए अशोक गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष पद को बड़े ही खास अंदाज में ठुकरा दिया - और राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की तमाम कोशिशों के बावजूद सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी के पास तक नहीं फटकने दिया.
अब जो नया जादू दिखाया है, उसका तो कोई भी कायल हो सकता है. वो जयपुर से दिल्ली आते हैं. दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस करके बोलते हैं कि सचिन पायलट के साथ सब ठीक ठाक हो गया है. कहीं कोई मतभेद नहीं रहा. सब साथ साथ हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के मुद्दे पर वो अपना जादू दिखा देते हैं.
प्रेस कांफ्रेंस में अशोक गहलोत अपनी अगली पारी को लेकर राजस्थान में सरकारी योजना से हार्ट ट्रांसप्लांट कराने वाली एक महिला का खास तौर पर जिक्र करते हैं, लेकिन उससे पहले ये बताना नहीं भूलते कि गांधी परिवार उन पर कितना भरोसा करता है. कहते हैं, 'मुझ पर इतना भरोसा किया है हाईकमान ने... कुछ कारण रहा होगा... सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी मुझ पर इतना भरोसा करते हैं.'
फिर अशोक गहलोत पहली बार राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने का किस्सा सुनाते हैं, 'मुझे सोनिया गांधी ने पहली बार चुना... सोनिया गांधी ने अध्यक्ष बनने के बाद पहला फैसला लिया कि अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बनें... उन्होंने सोच समझ कर, कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में प्रदर्शन देख कर ये फैसला किया... मैं उम्मीदवार नहीं था.'
बताते हैं, 'कांग्रेस में उम्मीदवार न बनना ही बेहतर रहता है,' - और फिर हंसते हंसते कहते हैं, 'जो उम्मीदवार होता है वो कभी मुख्यमंत्री बनता ही नहीं.' हंसी की वजह सबको समझ में आसानी से आ सकती है. 2018 में तो सचिन पायलट ही मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे.
बातों बातों में राजस्थान में 2018 की कांग्रेस की हार की जिम्मेदारी से भी पल्ला झाड़ लेते हैं, '...फिर सीएम बनाया, फिर चुनाव हार गये बुरी तरह से... 21 पर आ गये... जब मोदी को बीजेपी ने चेहरा बनाया तब माहौल ऐसा बना कि हम दिल्ली में चुनाव हार गये, वैसे ही राजस्थान में हार गये... तीसरी बार फिर मैं मुख्यमंत्री बन गया.'
और फिर राजस्थान की उस महिला की बात का विशेष रूप से उल्लेख करते हैं, जो सरकारी योजना से अपना हार्ट ट्रांसप्लांट कराने के बाद कहा था, 'उसने कहा कि भगवान करे कि आप चौधी बार मुख्यमंत्री बनें.
अशोक गहलोत ये भी बताते हैं कि महिला से क्या कहा था, 'मैंने कहा सुनो माताजी... मैं मुख्यमंत्री पद छोड़ना चाहता हूं, पद नहीं छोड़ रहा मुझे... शायद छोड़ेगा भी नहीं!'
और इस तरह आलाकमान की तरफ से घोषणा की परवाह किये बगैर, राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा खुद ही कर देते हैं. ये जादू नहीं तो क्या है?