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अशोक गहलोत से कांग्रेस को इतनी मोहब्बत क्यों? हरियाणा गंवाने के बाद महाराष्ट्र में जिम्मेदारी | Opinion

कांग्रेस ने कहा था कि वह अपनी गलतियों से सीखेगी. पर आगामी महाराष्ट्र और झारखंड चुनावों के लिए पर्यवेक्षकों की सूची देखकर यही लगता है कि पार्टी को पिछली गलतियों से कोई मतलब नहीं है.

राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 18 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 12:35 PM IST

कांग्रेस ने कहा था कि वह हरियाणा की हार के बाद आत्ममंथन करेगी.पर महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों के लिए जिस तरह का काम पार्टी कर रही है उसे देखकर नहीं लगता है कि हरियााणा की हार से पार्टी ने कोई सबक लिया है. मंगलवार को, AICC ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षकों और वरिष्ठ समन्वयकों की विस्तृत सूची प्रकाशित की. इस सूची में तीन पूर्व मुख्यमंत्री शामिल हैं और इसमें नौ वरिष्ठ पर्यवेक्षक और दो वरिष्ठ समन्वयक थे. हरियाणा में जिन लोगों जीती हुई बाजी को हार में बदल दिया उन्हें ही फिर से पार्टी ने कमान सौंप कर यह साबित कर दिया है कि पार्टी अपनी गलतियों से कोई सबक नहीं सीखती है.इसके पहले भी पार्टी में हार के कारणों के जानने के लिए कई कमेटियां बनीं पर उनकी दी हुई रिपोर्ट के पन्ने आज भी धूल फांक रहे हैं.

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1- अशोक गहलोत जैसे थके हुए लोगों पर पार्टी क्यों कर रही है भरोसा?

हरियाणा में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को विधानसभा चुनावों के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किया था. उनका काम काफी सरल लग रहा था, भारतीय जनता पार्टी (BJP), जो दो बार की सत्ता-विरोधी लहर का सामना कर रही थी. इसके साथ ही राज्य में जाटों की नाराजगी , किसानों की नाराजगी आदि के चलते ऐसा माहौल था कि थोड़ी भी मेहनत से पार्टी भारतीय जनता पार्टी को हरियाणा में सत्ता से बाहर किया जा सकता था. पर अशोक गहलोत ने हरियाणा में ज्यादातर समय अपने आवास के आराम में किया. उन्होंने हरियाणा में कुछ ही रैलियों और प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया, जैसा कि पूर्व राजस्थान सीएम के X (ट्विटर) की फीड से पता चलता है कि वो किस तरह निश्चिंत थे.

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कांग्रेस महासचिव संगठन केसी वेणुगोपाल ने कहा, पार्टी इस बड़े झटके पर आगे चलकर उचित कदम उठाएगी. पर जब हाईकमान खुद नहीं चाहता कि कोई बदलाव हो तो वेणुगोपाल जैसे लोग क्या कर लेंगे? राजनीतिक विश्लेषक सौरभ दूबे कहते हैं कांग्रेस में जानबूझकर ऐसे लोगों को महत्व दिया जाता है जो किसी काम के नहीं हैं. क्योंकि सरकार बनाने से ज्यादे जरूरी है कि कांग्रेस पर राहुल गांधी का एकछत्र साम्राज्य बना रहे. हरियाणा में सचिन पायलट को प्रभारी बनाना चाहिए था. पर वो मेहनत करते और उनकी मेहनत से पार्टी हरियाणा जीत जाती तो राहुल गांधी की बजाए सचिन पायलट का नाम होता. बस पार्टी यही नहीं चाहती है. पार्टी को कोई ऐसा ही शख्स चाहिए जिससे राहुल की छवि पर आंच नहीं आए. 

कांग्रेस ने कहा था कि वह अपनी गलतियों से सीखेगी. पर आगामी महाराष्ट्र और झारखंड चुनावों के लिए पर्यवेक्षकों की सूची देखकर यही लगता है कि पार्टी को पिछली गलतियों से कोई मतलब नहीं है. हरियाणा में प्रभारी होने के बाद भी कुछ नहीं कर सकने वाले अशोक गहलोत जैसे नामों को आगामी विधानसभा चुनावों के लिए एक बार फिर से काम सौंपा गया है. 

2- पार्टी को अपने पुराने दरबारियों पर ही भरोसा रहता है

हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस के चुनाव प्रभारी और पर्यवेक्षकों पर एक नज़र डालने से पता चलता है कि पार्टी लगातार उन्हीं नेताओं पर भरोसा कर रही है, जिनका हाल के चुनावों में प्रदर्शन खराब रहा है.

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अशोक गहलोत से लेकर चरणजीत सिंह चन्नी, अधीर रंजन चौधरी से लेकर भूपेश बघेल तक, हाई कमान की इन महत्वपूर्ण भूमिकाओं के लिए चयन ज्यादातर वही पुरानी टीम है. इन नेताओं ने या तो चुनाव हारे हैं, राजनीतिक परिदृश्य से दूर हो गए हैं, जमीनी अपील की कमी है, या उन्हें कुछ समय के लिए राज्यसभा में सुरक्षित रूप से समायोजित किया गया है. इनमें से कई नेताओं के पास न केवल जन अपील की कमी है, बल्कि वे प्रभावी संगठनात्मक क्षमता में भी विफल होते हैं, जिनका काम मतदाताओं और स्थानीय पार्टी नेताओं दोनों से जुड़ना है.

कांग्रेस ने कहा था कि वह हरियाणा की हार के बाद आत्ममंथन करेगी। मंगलवार को, AICC ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षकों और वरिष्ठ समन्वयकों की विस्तृत सूची प्रकाशित की.इस सूची में तीन पूर्व मुख्यमंत्री शामिल थे और इसमें नौ वरिष्ठ पर्यवेक्षक और दो वरिष्ठ समन्वयक थे. गहलोत इस सूची में शामिल एकमात्र सत्ता से बाहर हुए नेता नहीं थे. पूर्व पंजाब मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी इसमें शामिल थे. कांग्रेस ने पंजाब और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में चन्नी और बघेल को मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में उतारा था, लेकिन दोनों ही चुनाव हार गए थे.

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सिर्फ बघेल ही नहीं, उनके डिप्टी टीएस सिंहदेव, जिन्होंने छत्तीसगढ़ से कांग्रेस की हार देखी थी, भी पर्यवेक्षकों में शामिल हैं. हाल ही में जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव में चन्नी ने कांग्रेस के वरिष्ठ पर्यवेक्षक के रूप में खुद को साबित नहीं कर पाए थे.

3- जब भरोसा ही नहीं करेगे तो क्यों टिकेंगे युवा नेता?

राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को मराठवाड़ा क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपी गई है.जबकि वो इससे अधिक के हकदार थे. अगर हरियाणा में भी उनको ज्यादे जिम्मेदारी दी गई होती तो रिजल्ट कुछ और ही होता. जातिगत समीकरणों में भी वो फिट बैठते और युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता भी काम आती.  सचिन पायलट युवा हैं और मेहनती भी हैं. अगर कांग्रेस को उनपर भरोसा करके ज्यादा जिम्मेदारी देनी चाहिए. डिलिवर कर सकते हैं पर ज्यादा चमकने वाली हर वस्तु से हाईकमान को खतरा है. शायद यही कारण है कि हर चमकदार युवा चेहरा अपनी उपेक्षा के चलते पार्टी को छोड़ता गया. ज्योतिरादित्य सिंधिया , मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, जयवीर शेरगिल, रवनीत बिट्टू आदि के साथ यही हुआ. 

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