
कल्पना कीजिये. कांग्रेस नये सिरे से पहल करते हुए अशोक गहलोत और सचिन पायलट केस खोलने का फैसला करती है. परंपरागत एंटनी कमेटी मॉडल से अलग जांच के लिए कोई कोर ग्रुप बनाती है. उस कोर ग्रुप को ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों की तरह जांच-पड़ताल करने और प्रॉसिक्यूशन का अधिकार दे डाले - तो अप्रूवर बनने के लिए सबसे पहले जो आवेदक होगा उसका नाम लोकेश शर्मा हो सकता है.
और, फर्ज कीजिये. अगर कांग्रेस में ऐसा कुछ नहीं होता है, तो दिल्ली पुलिस के पास भी ऐसा मौका है. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच लोकेश शर्मा से राजस्थान से जुड़े फोन टैपिंग केस में कई बार पूछताछ कर चुकी है. दिल्ली पुलिस के खिलाफ इस मामले को लेकर लोकेश शर्मा दिल्ली हाई कोर्ट में गुहार लगा चुके हैं.
लोकेश शर्मा कौन हैं? अशोक गहलोत के OSD रहे लोकेश शर्मा को राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के वॉर रूम का सह-अध्यक्ष बनाया गया था. वो लंबे समय तक अशोक गहलोत के सहयोगी के तौर पर काम कर चुके हैं.
जब चुनाव आयोग देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की तारीख बता रहा था, कुछ ही देर बाद 9 अक्टूबर, 2023 को ही लोकेश शर्मा को दिल्ली पुलिस का नोटिस मिला था. जिस फोन टैपिंग केस की दिल्ली पुलिस जांच कर रही है, उसकी शिकायत केंद्रीय मंत्री और जोधपुर से बीजेपी सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत ने दर्ज करायी है. दिल्ली पुलिस ने 25 मार्च, 2021 को एफआईआर दर्ज किया था.
सवाल है कि लोकेश शर्मा जब अशोक गहलोत पर मुख्यमंत्री रहते सचिन पायलट के फोन टैप करने और उनकी गतिविधियों पर नजर रखने का इल्जाम लगा रहे हैं, तो गजेंद्र सिंह शेखावत की शिकायत पर क्या बयान दर्ज करा रहे होंगे. अब ये तो दिल्ली पुलिस ही बताएगी कि लोकेश शर्मा के पहले और अब के बयानों में कोई फर्क आया है क्या?
जब तक सच्चाई निकल कर सामने नहीं आती, तब तक तो लोकेश शर्मा और गैंगस्टर रोहित गोदारा के दावों में बहुत ज्यादा फर्क नहीं लगता. दोनों ही मामलों में राजनीति की अच्छी खासी घुसपैठ और प्रभाव है. जिस तरह से लोकेश शर्मा अब अशोक गहलोत को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं, लॉरेंस बिश्नोई गैंग का सदस्य रोहित गोदारा भी उनके बेटे वैभव गहलोत पर उगाही करने का इल्जाम लगा रहा है.
ये लोकेश शर्मा ही हैं, जो कैप्टन अमरिंदर सिंह पर कार्रवाई के लिए कांग्रेस आलाकमान की नाराजगी के शिकार हो चुके हैं, और दबाव इतना रहा कि अशोक गहलोत ने आधी रात को लोकेश शर्मा से इस्तीफा ले लिया था. लोकेश शर्मा तब अशोक गहलोत के ओएसडी हुआ करते थे.
लोकेश शर्मा ने अपने एक ट्वीट (अब X पोस्ट) में लिखा था, ''मजबूत को मजबूर, मामूली को मगरूर किया जाए, बाड़ ही खेत को खाए, उस फसल को कौन बचाए.'' लोकेश शर्मा ने तब इस पोस्ट के जरिये पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को इस्तीफा देने के लिए कांग्रेस आलाकमान की तरफ से मजबूर करने पर सवाल उठाया था. देखा जाये तो ये पोस्ट भी लोकेश शर्मा ने तब अशोक गहलोत के पक्ष में ही लिखी थी, क्योंकि सचिन पायलट की बगावत के बाद अशोक गहलोत भी करीब करीब वैसा ही दबाव महसूस कर रहे थे.
सवाल ये है कि आखिर लोकेश शर्मा जो ताबड़तोड़ बयान दे रहे हैं, उसका मकसद क्या है? क्या खुद को नये समीकरणों में फिट करने की कोशिश है या फिर विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने को लेकर नाराजगी का नतीजा है?
अशोक गहलोत पर लोकेश शर्मा के इल्जामों की फेहरिस्त
1. कांग्रेस के छात्र संगठन NSUI से राजनीति शुरू करने वाले लोकेश शर्मा ने खुद ही बताया है कि वो राजस्थान विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे. ये भी बताया है कि वो बीकानेर से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन अशोक गहलोत के कहने पर भीलवाड़ा से भी तैयार थे, लेकिन उनको टिकट नहीं मिला. लोकेश शर्मा का कहना है कि वो उस सीट से चुनाव लड़ने को तैयार थे जो कांग्रेस 20 साल से हार रही है.
अशोक गहलोत ने अपने कैबिनेट साथी रहे बीडी कल्ला को बीकानेर पश्चिम से टिकट दिया था, लेकिन वो चुनाव हार गये. लोकेश शर्मा का दावा है कि वो छह महीने पहले ही बता चुके थे कि बीडी कल्ला 20 हजार वोटों से हारेंगे, और हुआ भी वही.
2. लोकेश शर्मा का कहना है कि वो राजस्थान चुनाव के नतीजों से आहत हैं, लेकिन अचंभित नहीं हैं. सोशल मीडिया पर लिखते हैं, 'कांग्रेस राजस्थान में निःसंदेह रिवाज बदल सकती थी... लेकिन, अशोक गहलोत कभी कोई बदलाव नहीं चाहते थे... यह कांग्रेस की नहीं बल्कि अशोक गहलोत की शिकस्त है.'
3. लोकेश शर्मा ने अशोक गहलोत पर मनमाने तरीके से काम करने का आरोप लगाया है, 'मैं छह महीने लगातार घूम-घूम कर राजस्थान के कस्बों-गांव-ढाणी में गया, लोगों से मिला, हजारों युवाओं के साथ संवाद कार्यक्रम आयोजित किए... 127 विधानसभा क्षेत्रों को कवर करते हुए ग्राउंड रिपोर्ट सीएम को लाकर दी... ताकि, समय पर सुधारात्मक कदम उठाते हुए फैसले किए जा सकें, जिससे पार्टी की वापसी सुनिश्चित हो.'
4. लोकेश शर्मा के मुताबिक, तमाम फीडबैक और सर्वे को दरकिनार कर अपनी मनमर्जी और अपने पसंदीदा प्रत्याशियों को उनकी स्पष्ट हार को देखते हुए भी टिकट दिलवाने की जिद हार का कारण रही... ये नतीजे तय थे... कई बार आगाह कर चुका था... लेकिन, उन्हें कोई ऐसी सलाह या ऐसा व्यक्ति अपने साथ नहीं चाहिए था जो सच बताए.'
बेशक लोकेश शर्मा के अंदर टिकट न मिलने को लेकर बदले की आग धधक रही है, लेकिन कई ऐसी बातें हैं जो सुन कर लगता नहीं कि अशोक गहलोत के खिलाफ लगाये जा रहे आरोप बिलकुल निराधारा हैं.
कांग्रेस आलाकमान ने चुनावों के लिए रणनीतिकार सुनील कानुगोलू को कैंपेन की जिम्मेदारी दी थी. सुनील कानुगोलू को ही अभी तेलंगाना, और पहले कर्नाटक में कांग्रेस की जीत पक्की करने का श्रेय दिया जा रहा है. कर्नाटक में सिद्धरमैया सरकार ने तो सुनील कानुगोलू को सलाहकार भी बना रखा है.
राजस्थान में सुनील कानुगोलू की टीम ने जिन नेताओं को टिकट न देने की सिफारिश की थी, अशोक गहलोत सबको टिकट दिलाने पर आमादा था. अशोक गहलोत को इसके लिए गांधी परिवार की नाराजगी भी झेलनी पड़ी, लेकिन कुछ ही सिफारिशें नामंजूर हो पाईं. अशोक गहलोत का दावा रहा कि जितना राजस्थान को वो जानते हैं, कोई पेशेवर रणनीतिकार नहीं समझ सकता.
कांग्रेस चुनाव जीत गई होती तो ऐसी बातें बकवास मानी जातीं, लेकिन नाकामी तो हर किसी को बोलने का मौका दे ही देती है.
लोकेश शर्मा की धुआंधार बयानबाजी का नफा नुकसान क्या है?
लोकेश शर्मा को अच्छी तरह मालूम है कि कांग्रेस नेतृत्व अशोक गहलोत से बुरी तरह खफा है, और सचिन पायलट के प्रति गहरी सहानुभूति है. अशोक गहलोत से लंबे समय से जुड़े होने के कारण लोकेश शर्मा को भी उनके गुट का ही माना जाएगा, भले कांग्रेस नेता ने केंद्रीय चुनाव समिति के सामने उनको टिकट दिये जाने की पैरवी न की हो.
अशोक गहलोत और कमलनाथ दोनों ही संगठन में नये सिरे से फिट होने के लिए नये सिरे से जी जान से जुट गये हैं. ये भी देखा गया है कि चुनाव हारने के बाद भी गांधी परिवार के करीबी नेताओं को ओहदे और जिम्मेदारी दी गयी, अशोक गहलोत और कमलनाथ दोनों ही अपने अपने मिशन में जुट गये हैं.
जिस तरह से लोकेश शर्मा ने सचिन पायलट के साथ हुई नाइंसाफी पर प्रकाश डाला है, ज्यादातर बातें उनके फेवर में जाती हैं. उनका फोन टैप किये जाने और गतिविधियों की निगरानी जैसी बातें, उनके खिलाफ हुई नाइंसाफी की याद दिलाती हैं.
लोकेश शर्मा के आरोपों पर सचिन पायलट की प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण है, 'मैंने लोकेश शर्मा का बयान देखा है... ये अजीब है, क्योंकि वो मुख्यमंत्री के ओएसडी थे... इसलिए ये चिंता का विषय है... मेरा मानना है पार्टी इस बात पर गौर करेगी कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा? कितनी सच्चाई है इसकी भी जांच होनी चाहिए.'
लोकेश शर्मा को ये भी पहले से ही मालूम है कि अगर सचिन पायलट की अहमियत बढ़ती है, और अशोक गहलोत का कद घट जाता है, तो वो कहीं के नहीं होंगे. ऐसे में निश्चित तौर पर लोकेश शर्मा की कोशिश होगी कि वो नये समीकरणों में जैसे भी संभव हो फिट हो जायें - लेकिन क्या सचिन पायलट अपने खिलाफ की उन बातों को भुला सकेंगे जिनमें लोकेश शर्मा भी हिस्सेदार और राजदार रहे?
ध्यान से समझें तो लोकेश शर्मा ने 25 सितंबर, 2023 की उस घटना का भी जिक्र किया है, जब राजस्थान कांग्रेस के विधायकों ने बगावत कर दी थी, और अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह हटाना नहीं जा सका था. तब ऑब्जर्वर बन कर जयपुर गये मल्लिकार्जुन खड़गे अब कांग्रेस अध्यक्ष बन चुके हैं. तब भी न तो अशोक गहलोत के खिलाफ कोई एक्शन हुआ, न ही विधायकों को भड़काने के लिए जिम्मेदार माने गये कांग्रेस नेताओं के खिलाफ.
लोकेश शर्मा की मानें तो सचिन पायलट नहीं, बल्कि अशोक गहलोत ही असली 'नकारा और निकम्मा' हैं. ऐसी बातें अब तक अशोक गहलोत, सचिन पायलट के लिए ही कहते रहे हैं. लोकेश शर्मा की बातों से ऐसा लगता है कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के बाद उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया होता तो राजस्थान का रिवाज बदल सकता था - और कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो सकती थी.
सवाल ये है कि क्या लोकेश शर्मा के बयान के बाद भी कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट के लिए कुछ करेगा या फिर से जादूगर अशोक गहलोत के मोहपाश में बंध कर रह जाएगा?