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गुजरात में बीजेपी को रूपाला के आगे राजपूतों की नाराजगी मंजूर, ऐसा क्यों?

मोदी तुझसे बैर नहीं, पर रुपाला तेरी खैर नहीं कहने वाले राजपूत अब और आगे बढ़ चुके हैं. रविवार को बारदोली के क्षत्रिय सम्मेलन में एक बार फिर बीजेपी को हराने के लिए कसमें खाईं गईं हैं. आखिर पार्टी पुरुषोत्तम रुपाला पर एक्शन लेने से क्यों बच रही है जबकि गुजरात से लेकर राजस्थान और यूपी तक नुकसान उठाना पड़ रहा है.

केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला पर एक्शन क्यों नहीं लेती बीजेपी केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला पर एक्शन क्यों नहीं लेती बीजेपी
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 30 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 4:17 PM IST

कभी बीजेपी के हार्ड कोर वोटर्स रहे राजपूत आज गुजरात से लेकर यूपी तक नाराज चल रहे हैं. पार्टी कुछ समझ नहीं पा रही है कि आखिर उन्हें कैसे मनाया जाए.गुजरात की स्थानीय राजनीति में केंद्रीय मंत्री और राजकोट से भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी पुरुषोत्तम रूपाला की जबान क्या फिसली देश की राजनीति में बीजेपी के लिए बैठे बिठाए एक नई समस्या खड़ी हो गई. 

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गुजरात के राजपूत बार-बार कहते रहे हैं कि मोदी तुझसे बैर नहीं, पर रुपाला तेरी खैर नहीं . पर मामला अब इससे आगे की ओर बढ़ गया है. गुजरात बीजेपी इकाई की ओर से रुपाला पर एक्शन न होने के चलते ये नाराजगी अब बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से होती जा रही है.यही कारण है कि गुजरात के बारदोली में रविवार को हुए क्षत्रियों के सम्मेलन में बीजेपी को हराने का आह्वान किया गया है.क्षत्रिय अस्मिता सम्मेलन को संबोधित करते हुए राजपूतों के नेता करन सिंह चावड़ा कहते हैं कि अश्वमेध का घोड़ा जो सुरेंद्रनगर से चला था वो बारदोली तक पहुंच चुका है. अगर किसी में हिम्मत है तो इसे रोक ले या सरेंडर कर दे. खुद को हिंदुत्व का सबसे बड़ा पैरोकार समझने वाले क्षत्रिय भाजपा से बैर लेने के मूड में नही रहे हैं. शायद यही वजह है कि वो भाजपा के खिलाफ प्रदर्शन के लिए काले नहीं बल्कि भगवा झंडे का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन पहले दो चरणों में बीजेपी को जो नुकसान होना था वो हो चुका है.पर अभी भी 5 चरण के चुनाव बाकी हैं. आखिर वो कौन से कारण हैं जिनके चलते बीजेपी को राजपूतों से नाराजगी मंजूर है पर रुपाला पर ऐक्शन नहीं ले रही बीजेपी.  

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दोनों समुदायों के मतदाता भाजपा के पारंपरिक वोट बैंक

भाजपा के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि क्षत्रियों और पुरुषोत्तम रुपाला का समुदाय पाटीदार हमेशा से बीजेपी के हार्डकोर वोटर्स रहे हैं.हालांकि यह भी सत्य है कि सौराष्ट्र की राजनीति में पाटीदार और क्षत्रिय समुदाय के बीच सालों से शीत युद्ध चल रहा है. आज हालात काफी बदल गए हैं लेकिन आज भी पुरानी कहानियां लोगों के दिलों को चुभाती रहती हैं. बीजेपी दोनों समुदाय के वोटरों को अपना पारंपरिक वोट बैंक मानती रही है और उसे भरोसा है कि इस बार भी दोनों समुदयों का वोट उसे ही मिलने वाला है.यही कारण है कि बीजेपी कोई फैसला नहीं ले पा रही है. क्षत्रिय समुदाय के समर्थन में कोई फैसला लेती है तो बहुत संभव है कि पाटीदार समुदाय उससे नाराज हो जाए, जिसका बीजेपी पर बड़ा असर पड़ सकता है.

सौराष्ट्र की सात लोकसभा सीटें- राजकोट, जामनगर, जूनागढ़, भावनगर, सुरेंद्र नगर, अमरेली और कच्छ हैं. सौराष्ट्र की राजनीति में जाति हमेशा से धर्म पर हॉवी रहा है. यही वजह है कि सौराष्ट्र की सातों सीटों पर उम्मीदवार जाति के पैमाने पर चुने जाते हैं.

क्षत्रिय वोटर्स जीत हार में निर्णायक नहीं

सौराष्ट्र के सभी जिलों में क्षत्रिय वोटर्स की संख्या पाटीदारों से काफी कम हैं. गुजरात में बमुश्किल क्षत्रिय वोटर्स की संख्या पाटीदारों के मुकाबले आधे के करीब है. राजपूत अकेले चाहें तो भी सौराष्ट्र या गुजरात की किसी सीट पर जीत-हार तय नहीं कर सकते हैं. हो सकता है कि कुछ पर्सेंट वोट राजपूत संगठनों के कहने पर निगेटिव वोट पड़ते हैं, तो हो सकता है कि कई सीटों पर भाजपा की जीत का अंतर काफी कम हो जाए पर हारने जैसी स्थिति नहीं होने वाली है. इसमें कोई दो राय नहीं कि गुजरात के बाहर वेस्ट यूपी, हिमाचल और मप्र-राजस्थान में राजपूतों की नाराजगी बीजेपी पर भारी पड़े.पर वेस्ट यूपी की कुछ सीटों की छोडकर कहीं भी जीत-हार जैसा प्रभाव यह विरोध नहीं छोड़ने वाला है. 

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राजकोट में भाजपा ने कड़वा व कांग्रेस ने लेवा पटेल को टिकट दिया है. चूंकि इस एरिया में लेवा और कड़वा पाटीदारों में अच्छी खासी प्रतिस्पर्धा है. इसलिए अगर क्षत्रिय व लेवा एक हुए या क्षत्रिय और कड़वा एक हुए तो भाजपा को खतरा हो सकता है. सुरेंद्र नगर में कोली वोटर ज्यादा हैं. वहां कोली में दो बंटवारा है, तड़पदा और चुआड़िया. भाजपा ने वहां चुआड़िया कोली को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने तड़पदा को और तड़पदा वोटर ज्यादा हैं. यहां भी ऐसा है अगर क्षत्रिय चुआडि़या या तड़पदा में से किसी एक से मिल जाते हैं तो भाजपा के लिए संकट पैदा हो सकता है. 

गुजरात में सबसे ताकतवर हैं पाटीदार

इसमें कोई दो राय नहीं रख सकता कि गुजरात में सबसे मजबूत लोग पाटीदार समाज के ही हैं. सबसे बड़ी बात यह भी है कि गुजरात में राजनीतिक तौर पर सबसे ताकतर यही लोग हैं. हार्दिक पटेल को भाजपा इसलिए ही पार्टी में लाई थी. सरदार बल्लभ भाई पटेल से लेकर केशुभाई पटेल, चिमनभाई पटेल, आनंदीबेन पटेल जैसे तमाम पटेलनाम धारी लोग गुजरात की राजनीति में बड़े चेहरे हैं.पटेल नाराज न हों इसलिए ही विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक एक साल पहले भाजपा ने पाटीदार नेता भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया. 

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गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनाव में पाटीदार आंदोलन के चलते बीजेपी के लिए समुदाय की नाराजगी भारी पड़ गई और पार्टी को केवल 99 सीट ही मिल सकी थी. बाद में बीजेपी ने एक पाटीदार को सीएम बनाया और ईड्ब्लूएस कोटे के आरक्षण ने रंग दिखाया . 2022 के विधानसभा चुनावों में इस समुदाय के समर्थन के चलते ही कुल 48 पाटीदार उम्मीदवारों में से 41 ने जीत हासिल की थी.यह पाटीदारों का प्रभाव ही है कि कांग्रेस ने भी 41 पाटीदारों को मैदान में उतारा था.कुल मिलाकर, पाटीदार गुजरात की कुल 6.90 करोड़ की आबादी में लगभग 1.5 करोड़ हैं और माना जाता है कि वे करीब 55-60 सीटों पर जीत हार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

पाटीदार समाज का विरोध महंगा पड़ेगा बीजेपी को

सौराष्ट्र, मध्य गुजरात और उत्तरी गुजरात में कड़वा पाटीदार और सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात और मध्य गुजरात में लेउवा पाटीदारों की बड़ी आबादी है. गुजरात में पाटीदारों और राजपूतों के बीच हिंसक संघर्ष का इतिहास रहा है.सौराष्ट्र में पाटीदार और क्षत्रिय समुदाय के बीच सामाजिक लड़ाई दो दशक पुरानी है. अगर उनकी जगह पुरुषोत्तम रूपाला को लिया गया तो ये लड़ाई बढ़ सकती है. बीजेपी की मुश्किल क्षत्रियों की तुलना में पाटीदार नतीजों को लेकर अधिक निर्णायक होते हैं.

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अगर रूपाला को बीजेपी ने हटा दिया तो इसका संदेश जाएगा कि पाटीदार समाज की ये पार्टी विरोधी है. राजकोट लोक सभा सीट पर क्षत्रिय समाज के मतदाताओं की संख्या 1.80 लाख होने का अनुमान है, जबकि पाटीदार समाज के वोट 7 लाख से ज्यादा हैं. क्षत्रिय समुदाय का दावा है कि अगर बीजेपी ने रुपाला को चुनाव लड़ाने का फैसला वापस नहीं लिया तो वे गुजरात की 8 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाएंगे. पर अगर रूपाला का टिकट कटता है और पाटीदार समुदाय नाराज होता है तो बीजेपी के लिए पूरे प्रदेश में नुकसान हो सकता है.

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