
हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी ने बहुत कठिन लड़ाई बड़े पैमाने पर जीत ली है. बीजेपी अपनी जीत को लेकर यहां खुद आश्वस्त नहीं थी. शायद यही कारण था कि चुनाव प्रचार के अंतिम दिन तक जान लड़ा देने वाली पार्टी वोटिंग से 2 दिन पहले अपने हाथ खड़े कर लिए थे. पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह आदि ने भी हरियाणा में 2 दिन पहले पैकअप कर लिया. फिर भी भारतीय जनता पार्टी ने जैसा प्रदर्शन हरियाणा में किया वो अपने आप में मिसाल है. पार्टी की जीत के कई कारण हो सकते हैं. और कांग्रेस की हार के भी कई कारण हो सकते हैं. सबके अपने-अपने तर्क हो सकते हैं पर भारतीय जनता पार्टी की यह जीत पार्टी में कई बदलावों को ला सकती है.
1-क्या पीएम मोदी की चुनावी रैलियां अब भविष्य में कम हो सकती हैं?
भारतीय जनता पार्टी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक कुशल प्रशासक ही नहीं, एक कुशल कार्यकर्ता, संगठनकर्ता और चुनाव प्रचारक की भूमिका भी उतनी ही कुशलता और तल्लीनता से निभाते रहे हैं. चुनाव प्रचार के अंतिम दिन तक लगातार भाषण देना और रैलियां करना उनके नियमित कार्यक्रमों में शामिल रहा है. अपनी इसी शैली के बल पर उन्होंने बीजेपी को देश के कोने-कोने में पहुंचा दिया है. पर हरियाणा चुनावों में उनकी बेहद कम रैलिया इस ओर इशारा कर रही हैं कि मोदी ने पार्टी को ऑटो मोड में ला दिया है. अब हर चीजें अपने तरीके से अपने-आप होने लगीं हैं.
2014 के विधानसभा चुनाव से पहले मोदी की 10 रैलियों ने भाजपा को हरियाणा में जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. और 90 सदस्यीय विधानसभा में 47 सीटों के साथ पहली बार अपने दम पर सरकार बनाने वाली पार्टी बना दिया. 2019 में मोदी की रैलियों की संख्या घटकर छह रह गईं. हालांकि तब भाजपा ने 40 विधानसभा सीटें ही जीत सकीं. 5 अक्टूबर को हरियाणा में चुनाव होने से पहले, मोदी ने केवल चार रैलियां ही करके पार्टी को 48 सीटें दिलाने में कामयाबी हासिल कर ली. जाहिर है कि इसका प्रभाव पार्टी में नई परंपरा शुरू करने के लिए काफी होगा.आगामी विधानसभा चुनावों में हो सकता है कि पीएम मोदी अपनी तूफानी यात्राओं को विराम दें.
2- महाराष्ट्र-झारखंड के चुनाव में सहयोगियों से सख्त मोलभाव कर सकती है बीजेपी
लोकसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता न मिलने के चलते पार्टी बैकफुट पर थी. अगर पार्टी को हरियाणा और जम्मू में अपेक्षित सफलता न मिलती तो पार्टी को अपने सहयोगियों के ब्लेकमेलिंग का शिकार होना पड़ता. पर हरियाणा की जीत बताती है कि पार्टी और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बरकरार है.इसलिए दूसरी महाराष्ट्र और झारखंड में दूसरी पार्टियां अधिक मोलभाव की स्थिति में नहीं होंगी. अगले कुछ दिनों में महाराष्ट्र के चुनाव घोषित हो सकते हैं.महाराष्ट्र में लगातार सीट शेयरिंग को लेकर बैठकें हो रही हैं. जाहिर है कि पार्टी फिर से एक बार कॉन्फिंडेंस में होगी. केंद्र में सरकार जिन पार्टियों के सहयोग से चल रही हैं उनको भी पार्टी ठेंगे पर रखने की हिम्मत दिखा सकेगी.
3- संघ का हस्तक्षेप अब पार्टी में बढ़ सकता है
हरियाणा विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भूमिक महत्वपूर्ण रही है. संघ और बीजेपी के बीच कोऑर्डिनेशन बनाए रखने के लिए लगातार बैठकें हो रही थीं. ये बैठकें ऊपर के लेवल पर ही नहीं स्थानीय स्तर पर भी हो रहीं थीं. अगर आप गूगल पर संघ और बीजेपी की समन्वय बैठक लिखकर सर्च करेंगे तो हरियाणा के हर जिले में होने वाली बैठकों की डिटेल मिल जाएगी. यही नहीं संघ के दबाव में ही बीजेपी ने इस बार हरियाणा विधानसभा चुनावों में वंशवाद, परिवारवाद के अपने सिद्धांत से थोड़ा नरम रुख रखा. प्रदेश के कई बड़े नेता जो ऑलरेडी सांसद और विधायक और मंत्री हैं उनके परिवार वालों को खुलकर टिकट बांटे गए हैं. हरियाणा में टिकट वितरण में भी संघ की खूब चली . संघ और बीजेपी के समन्वय का ये प्रयोग इस बार सफल रहा है.जाहिर है कि आने वाले दिनों में इसे फिर से दोहराया जाएगा. इतना ही नहीं ये भी हो सकता कि समन्वय के नाम पर संघ एक बार फिर पार्टी पर हॉवी होने की कोशिश करे.