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आतिशी के बहाने केजरीवाल को घेरने के लिए BJP के काम आएंगी ये 'चार देवियां' | Opinion

आतिशी को दिल्ली की मुख्यमंत्री बनाकर अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक चतुराई दिखाई तो है, लेकिन ये भी ध्यान रहे, बीजेपी का महिला मोर्चा भी एक्शन में आ चुका है.

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी को कोई ठोस रणनीति बनानी होगी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी को कोई ठोस रणनीति बनानी होगी
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 18 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 4:47 PM IST

आतिशी को दिल्ली के मोर्चे पर उतार कर अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी को नई मुश्किल में डाल दिया है. जाहिर है, बीजेपी को भी अब आम आदमी पार्टी के खिलाफ नई रणनीति बनानी होगी.

बीजेपी ने तैयारी तो पहले से ही शुरू कर दी थी. दिल्ली बीजेपी के नेता तो दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार को बर्खास्त करने की मांग कर रहे थे. केंद्र सरकार ने बीजेपी नेताओं की मांग पर कोई कदम नहीं उठाया, और जेल से आते ही अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफे की घोषणा कर दी. फिर तो रणनीति बदलने के अलावा बीजेपी के सामने कोई चारा भी न था. 

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अरविंद केजरीवाल को घेरने के जो संकेत लोकसभा चुनाव 2024 में मिले थे, अब उसके लक्षण भी सामने आने लगे हैं - और जिस तरीके से बीजेपी दिल्ली में काम कर रही है, धीरे धीरे साफ होता जा रहा है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बाहर बीजेपी का महिला ब्रिगेड धावा बोलने की तैयारी कर रहा है. 


केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी की रणनीति बदली

अब दिल्ली में डबल इंजन की सरकार बनाने के लिए बीजेपी को स्ट्रैटेजी भी ऐसी बनानी होगी, जिसमें डबल निशाने भी एक ही तीर से साधे जा सकें. डबल निशाना इसलिए क्योंकि न तो आतिशी को अकेले टारगेट करने से कुछ होने वाला है, और न ही अरविंद केजरीवाल को.

लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने दिल्ली में मनोज तिवारी को छोड़ कर सारे ही सांसद बदल डाले हैं. मनोज तिवारी के अलावा सभी के टिकट काट दिये गये थे. वैसे तो बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव में दिल्ली में खतरे वाली कोई बात नहीं लग रही थी, लेकिन बीजेपी ने एहतियाती उपाय कर लिये थे. 

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अब तो बांसुरी स्वराज सांसद बन चुकी हैं, लेकिन उनको चुनावों से पहले से ही अरविंद केजरीवाल के खिलाफ काफी आक्रामक अंदाज में देखा गया था - और ऐसा लग रहा था कि आने वाले दिनों में बीजेपी बांसुरी स्वराज को अरविंद केजरीवाल के खिलाफ आगे करने वाली है. 

तब तो बीजेपी को भी अंदाजा नहीं होगा कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मोर्चे पर आतिशी को उतार देंगे, और नई चुनौती खड़ी हो जाएगी. 

बांसुरी स्वराज के अलावा दिल्ली की राजनीति में स्मृति ईरानी की भी एंट्री हो चुकी है - बीजेपी सदस्यता अभियान के साथ. स्मृति ईरानी को बीजेपी के सदस्यता अभियान के दौरान दिल्ली के सात जिलों की कमान थमाया जाना, एक बड़ा संकेत तो है ही.


बीजेपी के लिए ये 'महिला मोर्चा' कितना असरदार

आतिशी को दिल्ली की मुख्यमंत्री बनाये जाने के बाद देखा गया कि पहला हमला बोला स्वाति मालीवाल ने. और तभी ये भी चर्चा होने लगी कि आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद होने के बावजूद स्वाति मालीवाल बीजेपी की स्क्रिप्ट बांच रही हैं - और तभी आप नेताओं ने आगे बढ़ कर स्वाति मालीवाल का इस्तीफा भी मांग लिया. 

बाकी राजनीति अपनी जगह है, लेकिन स्वाति मालीवाल भी तो स्मृति ईरानी वाले मोर्चे का ही हिस्सा लग रही हैं. और उसी महिला ब्रिगेड में एक और नाम चल रहा है, मीनाक्षी लेखी का. 

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और इस तरह अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी के महिला ब्रिगेड में चार नाम अब तक सामने आ चुके हैं - बांसुरी स्वराज, स्मृति ईरानी, स्वाति मालीवाल और मीनाक्षी लेखी. 

स्मृति ईरानी और मीनाक्षी लेखी पहले राहुल गांधी को घेरने की भूमिका निभाती रही हैं. ये मीनाक्षी लेखी ही हैं जिनके सुप्रीम कोर्ट चले जाने के बाद राहुल गांधी को 2019 के चुनाव के दौरान राफेल के मुद्दे पर माफी तक मांगनी पड़ी थी. 

दिल्ली मेें बीजेपी पहले भी ऐसे मिलते जुलते प्रयोग कर चुकी है, पहले सुषमा स्वराज और फिर किरण बेदी का नाम इस प्रसंग में लिया जा सकता है - और ये भी याद कर लेना चाहिये कि अलग अलग दौर और अलग अलग राजनीतिक हालात में किये गये दोनो ही प्रयोग बेकार साबित हुए हैं. 

ऐसे में सवाल यही उठता है कि अगर बीजेपी फिर से ऐसे प्रयोग को लेकर वाकई गंभीर है तो क्या वास्तव में ये सफल भी हो पाएगा?

दिल्ली में लीडरशिप तैयार क्यों नहीं कर रही बीजेपी

बीते ढाई दशक से बीजेपी दिल्ली की सत्ता से बाहर है, ये बात अलग है कि पिछले तीन बार से लगातार बीजेपी दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटें भी जीतती आ रही है. 

कांग्रेस के 15 साल के शासन के बाद आम आदमी पार्टी को भी सत्ता में आये 10 साल होने जा रहे हैं - लेकिन अभी तक बीजेपी अरविंद केजरीवाल के कद के बराबर कोई नेता नहीं खड़ा कर पाई है. 

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अरविंद केजरीवाल के पहले चुनाव में दिल्ली में बीजेपी का नेतृत्व डॉक्टर हर्षवर्धन कर रहे थे, और 2013 में बीजेपी की सबसे ज्यादा सीटें भी आई थीं, लेकिन उसके बाद से तो दहाई का आंकड़ा छूना भी दूभर साबित हो रहा है. 

दिल्ली में बीजेपी की लगातार चुनावी हार को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के एक लेख में सख्त लहजे में सवाल खड़े किये गये थे - आखिर कब तक बीजेपी मोदी-शाह के भरोसे बैठी रहेगी. 

सलाहियत ये थी कि बीजेपी को दिल्ली में स्थानीय नेतृत्व तैयार करना चाहिये, क्योंकि मोदी-शाह हर चुनाव में जीत की गारंटी नहीं हो सकते. बात तो सही है. 

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