
आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में लगे यूपी में अखिलेश यादव और बिहार में तेजस्वी यादव को एक और झटका लगा है. उत्तर प्रदेश में सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर, महान दल अध्यक्ष केशवचंद्र मौर्य और नोनिया समाज के नेता दारा सिंह चौहान के बाद अब यादव महासभा पर भी उनका एकाधिकार खत्म होता दिख रहा है.सालों से मुलायम सिंह यादव को नेता मानती रही अखिल भारतीय यादव महासभा दो फाड़ हो गई है. यादव महासभा में टूट के बाद टूटे धड़े की बड़ी बैठक आज लखनऊ के एक होटल में हो रही है.
उत्तरप्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक भी यादव महासभा के कार्यक्रम में शिरकत किए हैं. हो सकता है कि यादव महासभा आज श्रीकृष्ण जन्मभूमि के संबंध में बड़ा ऐलान कर सकती है. यूपी में यादव तबके ने यादव मंच बना कर सपा की सियासत की छाया से खुद को अलग कर लिया है.
दूसरी ओर मध्यप्रदेश के नवनिर्वाचित सीएम मोहन यादव का बिहार दौरा होने जा रहा है. यादवों के वोटों पर बिहार में कई बार चुनाव जीत चुकी आरजेडी के लिए चिंता होना स्वभाविक है. बीजेपी को अगड़ों की पार्टी कहने वाली पार्टियों को बीजेपी ने मोहन यादव को मध्यप्रदेश का सीएम बनाकर यह संदेश दिया है कि वो सबकी पार्टी हैं.
यादव महासभा में 2 फाड़
अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव की तरह अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा की कमान संभाल नहीं पा रहे हैं. यही कारण है कि यूपी में बीजेपी से जुड़े अरुण यादव के हाथों में इस गैरराजनीतिक संगठन की प्रदेश कमान है. हाल ही में अरुण यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर अहीर रेजीमेंट की मांग पर समर्थन मांगा था. यादव का दावा है कि योगी ने इस संबंध में यादव समाज की मांग का समर्थन करने का वादा किया है. अखिल भारतीय यादव महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष का बसपा के सांसद श्याम सिंह यादव हैं. जिनके बारे में कहा जाता रहा है कि वे बीजेपी के साथ कभी भी जा सकते हैं. पिछले साल शाहजहांपुर में हुए यादव महासभा के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर योगी सरकार के मंत्री सुरेश खन्ना शामिल हुए थे. आज 15 जनवरी को लखनऊ के एक होटल में यादव महासभा के एक गुट की बैठक हो रही है . यह गुट खुद को यादव महासभा से अलग होकर अलग गुट बनाने का दावा कर रहा है. इस गुठ की बैठक में बीजेपी नेता और प्रदेश के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के पहुंचने का सीधा मतलब है कि यह गुट बीजेपी का समर्थन करेगा.
हालांकि इसकी शुरुआत 2022 में ही हो गई थी. कानपुर के मेहरबान सिंह पुरवा गांव से ताल्लुक रखने वाले प्रदेश के सबसे प्रतिष्ठित यादव परिवारों में से एक के भाजपा में चले जाने के बाद से ही यादव महासभा को भाजपामय बनाने का काम चल रहा था. मेहरबान सिंह पुरवा के चौधरी हरमोहन सिंह यादव खांटी समाजवादी नेता माने जाते थे. कभी मुलायम सिंह यादव से उनकी नजदीकियां थीं. 25 जुलाई 2022 को जब हरमोहन सिंह यादव की पुण्यतिथि पर जब मेहरबान सिंह पुरवा में गोष्ठी हुई तो पीएम नरेंद्र मोदी ने आयोजन को वर्चुअली संबोधित करके अपने इरादे जता दिए थे. हरमोहन सिंह यादव के बेटे, पूर्व सपा सांसद सुखराम यादव ने तो कार्यक्रम में अपने बेटे मोहित यादव को भाजपा को सौंपने का ऐलान तक कर दिया था. इसके बाद से ही यह कयास लगाए जाने लगे थे कि अब भाजपा समाजवादी पार्टी के कोर वोटर्स यादवों के वोट भी हथियाने की फिराक में है. शायद यही कारण था कि कार सेवकों पर गोली चलाने वाले मुलायम सिंह यादव को पद्मविभूषण दिया गया था. इस तरह बीजेपी यादव वोटों को अपना बनाने के लिए लगातार कई सालों से काम कर रही है. इसी क्रम में मध्यप्रदेश में मोहन सिंह यादव को चीफ मिनिस्टर बनाया गया है.
2023 में जब मेहरबान सिंह पुरवा में चौधरी हरमोहन सिंह यादव की पुण्यतिथि पर कार्यक्रम हुआ तो समाजवादी पार्टी के तमाम लोगों ने इससे दूरी बना ली थी. उसके बाद से ही यह तय माना जा रहा था कि यादव महासभा में अब 2 फाड़ होकर ही रहेगा.
मप्र सीएम मोहन यादव का बिहार दौरा
उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में यादव वोटों का बड़ा महत्व रहा है.इन दोनों राज्यों में एक तो संख्या में यादव ज्यादा हैं ही दूसरे राजनीतिक रूप से प्रभावी होने के चलते अन्य पिछ़ड़ों वोटों पर भी ये जाति सियासी असर रखती है.बिहार में जहां 14 फीसदी के करीब यादव हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में 10 फीसदी के करीब यादवों की आबादी है.बीजेपी मुख्यमंत्री मोहन यादव के जरिए बिहार में यादवों को साधने की तैयारी कर रही है. कृष्ण चेतना मंच के एक कार्यक्रम के सिलसिले में मोहन यादव 18 और 19 जनवरी को बिहार के दौरे पर जाएंगे. कृष्ण चेतना मंच के इस कार्यक्रम में यादव समुदाय से जुड़े सभी लोग शिरकत करने पहुंच रहे हैं. उन्होंने बताया कि यदुवंशियों को जोड़ने के लिहाज से यह एक गैर राजनीतिक कार्यक्रम है. पर मोहन यादव के शरीक होने और बीजेपी के सक्रिय होने के चलते राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि बिहार के यादवों को बीजेपी से जोड़ने की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है.
बताया जा रहा है कि बिहार की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी मोहन यादव की एंट्री होनी है. यूपी भाजपा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यादव महासभा के कार्यक्रम में मोहन यादव बहुत जल्दी आ सकते हैं. दरअसल अखिलेश यादव हों या तेजस्वी यादव , इन लोगों के जरिए यादव समाज में यह संदेश जाता रहा है कि बीजेपी में यादवों को महत्व नहीं मिलता है. पर मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह धारणा टूटी है.
यूपी में 2022 के चुनावों में यादवों पर भी चला था बीजेपी का मैजिक
उत्तर प्रदेश में 54 जिले हैं और इनमें से 12 जिलों में यादवों की आबादी लगभग 20 प्रतिशत है, जिसमें आज़मगढ़, देवरिया, गोरखपुर, बलिया, ग़ाज़ीपुर, बनारस, जौनपुर, बदायूं, मैनपुरी, एटा, इटावा और फर्रुखाबाद और कुछ अन्य जिलों में यादवों का दबदबा है. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज द्वारा किए गए एक चुनावी अध्ययन में कहा गया है कि 2022 के विधानसभा चुनावों में 83% यादवों ने एसपी को वोट दिया. इन चुनावों में भाजपा ने आठ जिलों-मैनपुरी, इटावा, एटा, कासगंज, फिरोजाबाद, औरिया, कन्नौज और फर्रुखाबाद में यादव बहुल एरिया की सीटों में से 18 सीटें जीतीं थी. समाजवादी पार्टी को सिर्फ 10 सीटों से संतोष करना पड़ा. 2017 में ही भाजपा ने यादव गढ़ को ध्वस्त कर दिया और 29 में से 23 सीटें जीत ली थी. जबकि समाजवादी पार्टी केवल छह सीटें हासिल कर सकी थी.
यह तो तब था जब अखिलेश यादव कई मौकों पर बीजेपी की आलोचना करते हुए कहते थे कि बीजेपी सवर्णों की पार्टी है. अब जब बीजेपी ने मध्य प्रदेश में मोहन यादव को सीएम बना दिया है तो इसका भी प्रभाव अवश्य पड़ेगा. लोकसभा चुनावों में यादव वोटों का बीजेपी की ओर जाना इसलिए भी तय है क्योंकि वोटर्स जानते हैं कि वोट नरेंद्र मोदी के लिए पड़ रहा है.
बिहार में बीजेपी की सभी लोकसभा सीटों पर नजर
बिहार में हाल ही में जारी जाति-आधारित सर्वेक्षण आंकड़ों के अनुसार, राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग में यादवों की आबादी सबसे बड़ी है. बिहार की कुल आबादी में यादव जाति की आबादी 14.26% है. भारतीय जनता पार्टी की बिहार इकाई ने लगभग 21,000 से अधिक यादव समुदाय के लोगों को पार्टी में शामिल कराया है. 2013 में भाजपा ने नंद किशोर यादव को बीजेपी ने विपक्ष का नेता बनाया था.केंद्र में बिहार से नित्यानंद राय को मंत्री बनाया गया जो यादव समुदाय से ही हैं. अब मोहन यादव के दौरे से बिहार में यह संदेश देने की कोशिश है कि अगर यादव समुदाय बिहार में बीजेपी को सपोर्ट करता है तो भविष्य में बिहार में बीजेपी किसी यादव को भी सीएम बना सकती है.
पिछले लोकसभा चुनावों में यादव वोट के बल पर बिहार में 15 साल राज करने वाली पार्टी आरजेडी को पिछले लोकसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं मिली थी.लोकसभा चुनाव में बीजेपी यादवों के बीच पैठ बनाने में कामयाब रही, लेकिन पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बिहार में हार का सामना करना पड़ा.