
संसद में केंद्रीय बजट (Union Budget) पेश होने से दो दिन पहले, जमीनी स्तर पर एक्टवि एक सूत्र ने भविष्यवाणी की थी कि बजट पर चंद्रबाबू नायडू की मुहर लगेगी. मंगलवार को दोपहर तक यह साफ हो गया कि नायडू-नीतीश की जोड़ी ने यकीनन बजट को आंध्र प्रदेश और बिहार पर केंद्रित एक AB बजट बना दिया है.
आंध्र प्रदेश की राजधानी अमरावती, जो 4 जून तक एक भुतहा शहर थी, अब इस साल उसे 15000 करोड़ रुपये की विशेष वित्तीय सहायता मिलेगी. इसे केंद्र सरकार बहुपक्षीय विकास एजेंसियों के जरिए सुगम बनाएगी. इतना ही नहीं, आने वाले वक्त में अतिरिक्त राशि की व्यवस्था की जाएगी. पोलावरम सिंचाई प्रोजेक्ट को भी फाइनेंसिंग और जल्द पूरा करने के लिए सदन में कमिटमेंट मिला.
विशाखापत्तनम-चेन्नई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर पर कोप्पार्थी नोड और हैदराबाद-बेंगलुरु इंडस्ट्रियल कॉरिडोर पर आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में ओर्वाकल नोड में बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए फंड मुहैया कराया जाएगा. रायलसीमा (Rayalaseema) और उत्तरी तटीय आंध्र के पिछड़े इलाकों के लिए भी अनुदान का ऐलान किया गया है.
बिहार को कई क्षेत्रों के लिए फंड
बिहार में हाईवे डेवलपमेंट में 26000 करोड़ रुपये का इन्वेस्ट किया जाएगा. बजट स्पीच में बिहार का भी जिक्र किया गया और मंदिरों, बाढ़ प्रबंधन, सिंचाई और औद्योगिक नोड्स के लिए फंड आवंटित किया गया.
सियासी तौर पर यह नायडू के लिए बहुत अच्छी खबर है. वाजपेयी के दौर के उलट, जब एनडीए में नायडू की अहम भूमिका थी और वे अक्सर राष्ट्रीय राजधानी में चावल और यूनाइटेड आंध्र प्रदेश के लिए फंड जुटाने के लिए प्रचार करते देखे जाते थे. मोदी के तीसरे कार्यकाल में नायडू का कद कमजोर होता जा रहा है.
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मजबूत होगी नायडू की इमेज
बजट में लिए गए फैसले से नायडू को राहत मिली, क्योंकि टीडीपी के सांसद के लिए लोकसभा अध्यक्ष का पद या केंद्रीय मंत्रिपरिषद में ज्यादा संख्या में मंत्रालयों की मांग करने के बजाय, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपने राज्य के लिए फंड सुरक्षित कर लिया.
राजनीतिक रूप से, यह नायडू के लिए अपने घर में शेखी बघारने और पहले से ही हताश YSRCP को हतोत्साहित करने का एक मौका है. इससे नायडू की इमेज विकास-केंद्रित लीडर के रूप में भी मजबूत होगी और वह लोगों को खासकर पिछड़े रायलसीमा इलाके में नौकरियों का ख्वाब बेचने में सक्षम होंगे.
यही वजह है कि ऐलान के कुछ ही मिनटों के अंदर नायडू ने प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को सोशल मीडिया पर #APBackonTrack हैशटैग के साथ शुक्रिया अदा किया. वक्त के लिहाज से यह इससे बेहतर नहीं हो सकता था. YSRCP लीडर्स के साथ वाईएस जगनमोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश में YSRCP वर्कर्स पर हमलों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए राष्ट्रीय राजधानी में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन पर बैठे हैं, जिस पर विपक्षी पार्टी का आरोप है कि यह टीडीपी के इशारे पर राजनीति से प्रेरित है.
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जो जगन नहीं कर सके, नायडू ने कर दिया
अगर देखा जाए तो नायडू को आंध्र प्रदेश के लिए वह सब हासिल करने वाले के रूप में देखा जाएगा जो जगन, नरेंद्र मोदी के करीबी होने के बावजूद 2019 से 2024 के बीच नहीं कर सके. नायडू के 16 सांसदों का राजनीतिक प्रभाव पिछली लोकसभा में जगन के 22 सांसदों से ज्यादा है.
हालांकि, इसके बाद भी टीडीपी की आलोचना करने से YSRCP रुकी नहीं कि उसे 15000 करोड़ रुपये “सुविधाजनक” मिले जबकि बिहार के लिए 26000 करोड़ रुपये “आवंटित” किए गए. बजट प्रस्तावों को “प्रतीकात्मकता” करार देते हुए, YSRCP ने इसे एक मौका चूकने वाला बताया और कहा कि अमरावती के निर्माण के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है. टीडीपी का बचाव यह है कि फंड का नेचर चाहे वह लोन हो या ग्रांट, तब तक मायने नहीं रखती जब तक कि यह तत्काल विकास में मदद करता है.
पुख्ता होता राहुल गांधी का आरोप
YSRCP की आलोचना के बावजूद, बजट किए गए ऐलान आंध्र प्रदेश में डबल इंजन सरकार के नारे को मजबूत करते हैं, जिसमें जोर दिया गया है कि जब राज्य और केंद्र में एक ही तरह की पार्टियां शासन करती हैं, तो इससे जमीनी स्तर पर तेजी से विकास होता है. हालांकि, इस तरह के दावे से यह सवाल भी उठेगा कि पिछले दशक में ऐसा क्यों नहीं किया गया.
आखिरकार, 2014 से 2018 के बीच जब नायडू एनडीए का हिस्सा थे, तब बीजेपी को इसी तरह के उदार फायदे देने से कोई नहीं रोका था. मोदी सरकार इस उदारता से जगन शासन की मदद कर सकती थी, क्योंकि वह केंद्र में बीजेपी का काफी हद तक समर्थन करते थे, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया.
यह राहुल गांधी के इस आरोप को और पुख्ता करता है कि यह 'कुर्सी बचाओ' बजट है और 272 से नीचे की बीजेपी की राजनीतिक मजबूरी है कि वह अपने दो सबसे अहम सहयोगियों को खुश रखे.
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हालांकि, आंध्र प्रदेश और बिहार को देश के बजट का बड़ा हिस्सा मिलने से कोई भी नाराज नहीं होगा, लेकिन महाराष्ट्र जैसे अन्य राज्य खुद को उपेक्षित महसूस करेंगे. तेलंगाना, तमिलनाडु और बंगाल जैसे राज्यों से भी नाराजगी की आवाजें सुनी जा रही हैं. बीजेपी के लिए अन्य राज्यों को संतुष्ट करना एक चुनौती होगी, क्योंकि अभी ऐसा लग रहा है कि अमरावती और पटना को नई दिल्ली में दिए गए समर्थन के बदले में अपना हक मिल रहा है, जिससे बजट एक बीमा पॉलिसी जैसा लग रहा है.