
दिल्ली में मंगलवार को पंजाब के मुख्यमंत्री समेत आम आदमी पार्टी के सभी विधायकों, सांसदों और मंत्रियों ने पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के सामने परेड की. इस परेड के बाद दो तरह की बातें सामने आ रही हैं. कुछ लोगों का मानना है कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की कुर्सी कुछ दिनों के लिए बच गई है. पर कुछ लोगों का यह भी मानना है कि खतरा टला नहीं है और पंजाब में पार्टी को बिखरने से रोकने के लिए भगवंत मान को हटाया जाना तय है. हालांकि आम आदमी पार्टी की सरकार पर कोई खतरा नहीं है. संख्या के मामले में AAP के लिए बिल्कुल चिंता की बात नहीं है. पर जब पार्टी के अंदर से ही मान के लिए आवाज उठनी शुरू हो जाए तो वो क्या कर सकते हैं? इसके साथ ही क्या क्रिया के प्रतिक्रिया स्वरूप खुद भगवंत मान महाराष्ट्र के पूर्व सीएम एकनाथ शिंदे के रास्ते पर जा सकते हैं? दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में इस तरह की बातें आज खूब हो रही हैं.
1-दिल्ली की बैठक का बहुत जल्दी खत्म होना
जैसा कि उम्मीद की जा रही थी कि पंजाब के सारे विधायक-मंत्री और सांसद दिल्ली आ रहे हैं तो कम से कम शाम तक तो ये मीटिंग चलेगी ही. पर मीटिंग जैसे ही शुरू हुई एक घंटे के अंदर ही खत्म होने की सूचना भी आ गई. बैठक के बाद आप संयोजक अरविंद केजरीवाल बिना मीडिया से बातचीत किए कपूरथला हाउस से निकल लिए. हालांकि दिल्ली चुनाव हारने के बाद उनका मीडिया से अभी मुखातिब न होना समझ में आता है. पर इतनी बड़ी मीटिंग को लेकर थोड़ी देर के लिए ही सही उन्हें मीडिया के सामने आना चाहिए था. इतना ही नहीं कुछ देर में ही बैठक में शामिल होने आए पंजाब के तमाम नेता और विधायक भी निकल गए.
जाहिर तौर पर दिल्ली चुनाव नतीजे के बाद आम आदमी पार्टी के सामने अब पंजाब में अपने कुनबे को एकजुट रखना सबसे बड़ी चुनौती है. 2027 में पंजाब में विधानसभा चुनाव हैं. ऐसे में भगवंत मान सरकार के सामने अब परफॉरमेंस दिखाने के लिए मीडिया के सामने आए और यही संदेश दिया कि आम आदमी पार्टी में सब कुछ ठीक है. जब सब कुछ ठीक कहने की नौबत आ जाती है तो समझा जाता है कि जरूर कुछ न कुछ गड़बड़ है तभी ऐसा कहा जा रहा है.
2-भगवंत मान कभी केजरीवाल की नेचुरल पसंद नहीं थे
भगवंत मान पंजाब में सीएम पद के लिए केजरीवाल की पहली पसंद कभी नहीं थे. पार्टी में कोई जट सिख का स्कोप नहीं था इसलिए CM की कुर्सी भगवंत मान को मिल गई . उस समय राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा बहुत हुई थी. अरविंद केजरीवाल की बड़ी इच्छा थी पूर्व क्रिकेटर और कांग्रेस नेता नवजोत सिद्धू को पार्टी में लाकर पंजाब की कमान सौंपी जाए. पर कई कारणों से इस विचार की भ्रूण हत्या हो गई. फिलहाल भगवंत मान सीएम बन गए पर उन्हें अरविंद केजरीवाल ने हमेशा अपने कंट्रोल में रखने के लिए कुछ प्यादे लगाए रखे. कुछ दिन राघव चड्ढा रहे, फिर बाद में अपने बेहद करीबी विभव कुमार को अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री का चीफ एडवाइजर बनाकर भेज दिया. विभव को जेड प्लस की सुरक्षा मिली हुई है. दैनिक भास्कर अपनी 4 महीने पुरानी एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से लिखता है कि केजरीवाल और भगवंत मान के रिश्ते अरविंद केजरीवाल के जेल जाने और लोकसभा चुनाव के लिए फंड न मिल पाने से ज्यादा बिगड़ गए. लोकसभा चुनाव के बाद इसका असर दिखने भी लगा था. केजरीवाल ने भगवंत मान पर लगाम कसनी शुरू कर दी. हो सकता है कि दिल्ली विधानसभा चुनावों को देखते हुए अरविंद केजरीवाल ने मान से छुटकारा पाने का प्लान एग्जिक्यूट करना कुछ दिनों के लिए मुल्तवी कर दिया हो. पर अब शायद एक्शन लेने के बारे में सोच रहे हों.
3-पंजाब प्रदेश अध्यक्ष का बयान ऐसे ही नहीं आया
कुछ दिनों पहले AAP की पंजाब इकाई के अध्यक्ष अमन अरोड़ा ने कहा था कि हिंदू भी पंजाब का मुख्यमंत्री हो सकता है, वह केवल योग्य होना चाहिए. अरोड़ा के इस बयान के बाद से ही कुछ राजनीतिक विश्वेषकों को ऐसा लगने लगा कि हो सकता है कि कहीं ये अरविंद केजरीवाल के लिए बैटिंग तो नहीं हो रही है. इस विचार को तब और बल मिल गया जब दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आए. अरविंद केजरीवाल के लिए अब दिल्ली का मुख्यमंत्री बनना फिलहाल 5 साल तक संभव नहीं है. दूसरे आज की भारतीय जनता पार्टी का रिकॉर्ड बन रहा है कि एक बार सत्ता में आने के बाद कम से कम तीन टर्म तो उसे रिपीट तो करना ही है. हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश , महाराष्ट्र आदि को देखकर तो ऐसा ही लग रहा है. शायद यही कारण है कि सोशल मीडिया पर एक चर्चा खूब ज़ोर-शोर से चली कि चुनाव केजरीवाल हारेंगे पर इस्तीफा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान का होगा. इस बीच कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने भी दावा किया है कि केजरीवाल अब पंजाब के मुख्यमंत्री बन सकते हैं. पिछले महीने लुधियाना पश्चिम से AAP के विधायक गुरप्रीत गोगी का निधन हो गया था और वह सीट फिलहाल खाली है. तमाम मीडिया रिपोर्ट्स में ये कयास लगाए कि केजरीवाल इसी सीट से उप-चुनाव लड़ सकते हैं.
4-मान के खराब परफार्मेस के चलते दिल्ली की हार और पंजाब में वापसी का संकट
आम आदमी पार्टी ऐसा जरूर सोच रही होगी कि पंजाब में अगर 2022 में किया गया वादा पूरा कर दिया गया होता तो दिल्ली में पार्टी का भद नहीं पिटा होता. दरअसल पंजाब में आम आदमी पार्टी ने हर महीने महिलाओं को एक हजार रुपये देना का वादा किया था . जैसा कि सभी जानते हैं कि पूरे देश में जिन सरकारों ने महिलाओं को कैश आर्थिक मदद की योजनाएं चलाईं उनकी सरकार जरूर वापस आई. महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार और झारखंड में हेमंत सोरेन की वापसी का यही आधार रहा . दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने हर महीने 2100 रुपये हर महिला को देने का वादा 2025 के विधानसभा चुनावों में किया. पर विपक्ष ने आरोप लगाया कि पंजाब में पिछले 3 साल से पार्टी ने अपना वादा पूरा नहीं किया आखिर किस तरीके से दिल्ली में पूरा कर सकेंगे.
इतना ही नहीं राज्य में खराब कानून-व्यवस्था, आतंकी-गैंगस्टर नेटवर्क, पुलिस स्टेशनों पर एक दर्जन ग्रेनेड हमले, सड़कों का बुरा हाल,अर्थव्यवस्था का खस्ताहाल, अवैध खनन रोकने में फेल, बेअदबी मामलों में न्याय, राज्य के किसानों को एमएसपी न दे पाना आदि ऐसे कारण है जिसके चलते अरविंद केजरीवाल को लगता है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में वापसी करनी है तो कुछ करना ही होगा.
5-सुपर सीएम वाले कॉन्सेप्ट से भगवंत मान परेशान
ऐसा नहीं है कि भगवंत हटाने की प्लानिंग सिर्फ अरविंद केजरीवाल की तरफ से ही हो रही हो.यह भी हो सकता है कि पार्टी में कलह इस कारण भी हो कि भगवंत मान सुपर सीएम टाइप के लोगों से परेशान हो गए हो. मान जबसे सीएम बने हैं उन्हें किसी न किसी के गाइडेंस में काम करना पड़ रहा है. हो सकता है कि वह अब खुलकर खेलना चाह रहे हों. उन्हें भी तो लगता होगा कि अब पार्टी सुप्रीमो कमजोर हुए हैं तो उसका लाभ उठा लिया जाए. आखिर कौन शख्स ऐसा होगा जो पंजाब जैसे राज्य का सीएम हो पर उसे अपने पार्टी सुप्रीमो के पीछे-पीछे चलने से फुरसत नहीं मिले. जिस भी स्टेट में चुनाव होता है, इंडिया गठबंधन की बैठक में कहीं जाना होता है तो स्टेट प्लेन में यात्रा करने के लिए अरविंद केजरीवाल के पीछे-पीछे भगवंत मान को भी जाना होता है. हो सकता है कि भगवंत मान एकनाथ शिंदे की तरीके से पार्टी का दो हिस्सा करके पंजाब पर राज करने की सोच रहे हों. जाहिर है कि इस काम में उनका साथ देने के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही तैयार हों. बीजेपी का राज्य में कोई स्टेक तो नहीं है पर यह समझा जा सकता है कि आप को कमजोर करने के लिए बीजेपी जरूर मान का साथ दे सकती है.