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शिवशक्ति प्वाइंट - क्या चंद्रयान-3 के लैंडिंग स्थल के लिए हिंदू नामों का उपयोग करना ठीक है?

शिव-शक्ति को अपने भीतर समझना और अनुभव करना ही योग का मूल पहलू है. यह महत्वपूर्ण है कि आधुनिक विज्ञान की बदौलत, दुनिया भर में मानव समझ दुनिया के इस हिस्से के इन गहराई से जुड़े सभ्यतागत पहलुओं को पहचान रही है. आधुनिक विज्ञान धीरे-धीरे, टुकड़े-दर-टुकड़े, उन चीज़ों के हर पहलू की पुष्टि कर रहा है जो कई सहस्राब्दियों पहले यहां कही गई थीं और अच्छी तरह से स्थापित थीं.

सद्गुरु सद्गुरु
सद्गुरु
  • नई दिल्ली,
  • 02 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:49 PM IST

सद्गुरु: हाल ही में, किसी ने मुझसे पूछा, "क्या यह उचित है कि चंद्रमा पर किसी स्थान का नाम किसी विशेष संस्कृति के देवता या देवी के नाम पर रखा जाए?" वह शिवशक्ति बिंदु का जिक्र कर रहा था जहां चंद्रयान-3 लैंडर चंद्रमा पर उतरा था. मैंने उनसे पूछा, “अपोलो, लूना, सैटर्न, मर्करी, नेपच्यून, वीनस – ये सब क्या हैं? वे सभी यूनानी देवी-देवता हैं. क्या इसका मतलब यह है कि ग्रह प्रणाली यूनानियों की है?”

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लेकिन हम धर्मनिरपेक्ष होकर इसे AB क्यों नहीं कह सकते? अगर आप चाहें तो कह सकते हैं. फिर कोई दूसरा पूछेगा, "अंग्रेजी भाषा क्यों? हम इसे कई भारतीय भाषाओं की तरह 'अह-आह' क्यों नहीं कह सकते?" यह एक मूर्खतापूर्ण तर्क है. मानव जीवन केवल तथ्यात्मक सत्य पर नहीं चल सकता. मानव जीवन को सौंदर्यबोध की जरूरत होती है. यदि यह सिर्फ तथ्यात्मक सत्य पर आधारित होता, तो मैं पूछ रहा हूं, "आप आखिर हैं कौन? आप किस लायक हैं? आपके बारे में सच्चाई क्या है?" आप बस एक छोटा सा जीवन हैं जो उभरता और मिटता रहता है - जीवन के बारे में यही एकमात्र सच्चाई है. आप जो हैं उसकी कई चीजों का सौंदर्य मायने रखता है - आप कैसे बैठते हैं, आप कैसा महसूस करते हैं, आप कैसे बोलते हैं और आप क्या करते हैं. 

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पहली बात जो आपको समझने की ज़रूरत है वह यह कि शिव और शक्ति किसी देवी-देवता के नाम नहीं हैं. हम दो मूलभूत शक्तियों के बारे में बात कर रहे हैं: दक्षिणावर्त और वामावर्त, पौरुष और स्त्रैण, सूर्य और चंद्रमा, इडा और पिंगला.

इस सृष्टि में सारी भौतिक अभिव्यक्ति दो ध्रुवों के बीच होती है. भारत सभ्यता इसके बारे में बात करने वाली पहली थी लेकिन यह इस सभ्यता से आया हुआ सिर्फ एक विचार नहीं है. आज, आधुनिक विज्ञान ने बिना किसी संदेह के यह स्थापित कर दिया है कि जो कुछ भी भौतिक है, उसका अपना ही किसी न किसी प्रकार का घूर्णन या परिक्रमण होता है. उन सब की ‘स्पिन’ है या वे सभी घूम रहे हैं. कोई भी चीज़ केवल दो ही तरीकों से घूम सकती है - दक्षिणावर्त और वामावर्त. इन दोनों को हम शिव और शक्ति कहते हैं. यह अच्छी बात है कि चंद्रयान-3 के लैंडिंग स्थल को लोगों के नामों से पुकारने के बजाय, जैसा कि वे अतीत में करते थे, हम इसे ऐसे शब्दों से पुकार रहे हैं जो पूरे जगत के लिए मायने रखेंगे. 

इस शिव-शक्ति को अपने भीतर समझना और अनुभव करना ही योग का मूल पहलू है. यह महत्वपूर्ण है कि आधुनिक विज्ञान की बदौलत, दुनिया भर में मानव समझ दुनिया के इस हिस्से के इन गहराई से जुड़े सभ्यतागत पहलुओं को पहचान रही है. आधुनिक विज्ञान धीरे-धीरे, टुकड़े-दर-टुकड़े, उन चीज़ों के हर पहलू की पुष्टि कर रहा है जो कई सहस्राब्दियों पहले यहां कही गई थीं और अच्छी तरह से स्थापित थीं.

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लगभग 2700 से 3000 साल पहले, जब दुनिया में हर कोई इस बात पर बहस कर रहा था कि पृथ्वी चपटी है या गोल, इस सभ्यता में ग्रह के अध्ययन को "भूगोल" कहा जाता था, जिसका अर्थ है "एक गोल ग्रह." जब धर्मग्रंथ, धर्म, संस्कृतियां और बाकी दुनिया का अज्ञान यह कह रहा था कि पृथ्वी जगत का केंद्र है, तो यहां, हमने स्पष्ट रूप से पृथ्वी को एक गोल गेंद के रूप में दर्शाया था जो एक कछुए की पीठ पर सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रही है. कछुआ ही क्यों? क्योंकि कछुआ सदैव स्थिर गति से चलता रहता है. इसी प्रकार, ग्रह की गति न तो बढ़ रही है और न ही धीमी हो रही है. यह स्थिर गति से घूम रहा है. इसीलिए हमारा जीवन यथोचित रूप से संतुलित है.

तो यह सचमुच शानदार बात है कि चंद्रमा पर शिवशक्ति नाम का एक स्थान है. शिव-शक्ति के बारे में आपकी समझ जितनी गहरी होगी और आप इडा-पिंगला प्रणाली के भीतर जितने अधिक समन्वित होंगे, उतने ही अधिक आप संतुलित और समदर्शी बनेंगे और आपका बोध उतना ही अधिक उन्नत होगा.

एक दूसरा पहलू यह है कि मानव जीवन पर चंद्रमा का सीधा प्रभाव पड़ता है. चंद्रमा और हमारा जन्म बहुत अधिक जुड़े हुए हैं क्योंकि एक तरह से वह शिव-शक्ति का मिलन है. हमारी मां के शरीर में होने वाले जैविक चक्रों के कारण ही हमारा जन्म होता है. चंद्रमा का घूमना और 29.5 दिनों की मानव शारीरिक प्रणाली एक ही गति से होती है. इसीलिए आदियोगी ने बहुत पहले कहा था, कि मनुष्य शारीरिक विकास के शिखर पर पहुंच गया है. यहां से, वे शारीरिक रूप से विकसित नहीं हो सकते. वे केवल सचेतन रूप से विकास कर सकते हैं. इसका मतलब है, आप सींग या कुछ और नहीं उगाएंगे क्योंकि इस ग्रह पर जैविक विकास अपने चरम पर आ गया है. यदि आप जाकर किसी दूसरे ग्रह पर रहेंगे तो हम नहीं जानते कि इस शरीर का क्या होगा. यह बढ़ या घट सकता है; कुछ भी हो सकता है. लेकिन इस ग्रह पर यह अपने चरम पर पहुंच चुका है. कई मायनों में चंद्रमा यही सुझाव देता है. यही कारण है कि आदियोगी सोमशेखर या सोमनाथ हैं.

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बोध और विकास के शिखर तक पहुंचने की दृष्टि से, उस स्थान को शिवशक्ति नाम देना एक महत्वपूर्ण पहचान देना है. मुझे लगता है कि यह अविश्वसनीय है कि राजनीतिक नेतृत्व जागरूकता और बुद्धिमत्ता के इस स्तर तक बढ़ रहा है. 

भारत में पचास सर्वाधिक प्रभावशाली गिने जाने वाले लोगों में, सद्गुरु एक योगी, दिव्यदर्शी, और युगदृष्टा हैं और न्यूयार्क टाइम्स ने उन्हें सबसे प्रचलित लेखक बताया है. 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को उनके अनूठे और विशिष्ट कार्यों के लिए पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है. वे दुनिया के सबसे बड़े जन-अभियान, जागरूक धरती- मिट्टी बचाओ के प्रणेता हैं, जिसने चारअरब लोगों को छुआ है.

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