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चंद्रशेखर और मायावती की लड़ाई में ही नहीं, यूपी उपचुनाव में निर्णायक भूमिका में होंगे दलित वोटर

उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव में भी दलित वोटर निर्णायक भूमिका निभाने जा रहा है, जिसकी झलक लोकसभा चुनाव में देखी जा चुकी है - और उपचुनावों में ये लड़ाई सिर्फ चंद्रशेखर आजाद और मायावती के बीच ही सिमट कर नहीं रहने वाली है.

यूपी उपचुनाव में चाहे जिसे जितनी विधानसभा सीटें मिले, निर्णायक भूमिका में तो दलित ही होंगे यूपी उपचुनाव में चाहे जिसे जितनी विधानसभा सीटें मिले, निर्णायक भूमिका में तो दलित ही होंगे
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 30 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 2:14 PM IST

उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों के लिए जल्दी ही उपचुनाव होने जा रहे हैं. यूपी से जुड़े सारे ही राजनीतिक दल उपचुनाव की तैयारियों में जुटे हुए हैं. 

बीजेपी में जारी झगड़े के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो पहले से ही 30 मंत्रियों की टीम बनाकर काम पर लगा दिया है. आपसी लड़ाई अपनी जगह है लेकिन डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य अपनी ज्यादातर सोशल मीडिया पोस्ट में एक बात जरूर कहते हैं, '2027 में 2017 दोहराना है... कमल खिला है, फिर खिलाना है.'

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बीजेपी और कांग्रेस तो अपने अपने गठबंधनों के साथ चुनाव लड़ने जा रहे हैं, लेकिन चंद्रशेखर आजाद और मायावती दोनो ने अकेले बूते मैदान में उतरने की घोषणा कर रखी है - और जिस तरह से संसद में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया है, उसके भी तार यूपी उपचुनावों से बरबस जुड़ जाते हैं. 

चंद्रशेखर आजाद की तैयारी

नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद रावण कह रहे हैं, देश हित को ध्यान में रखते हुए हमारी पार्टी ने लोकसभा की सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी नहीं उतारे, लेकिन उत्तर प्रदेश में हो रहे उपचुनाव में आजाद समाज पार्टी ने अपने कैंडिडेट उतारने का निर्णय लिया है... आजाद समाज पार्टी की प्रदेश कार्यकारिणी तैयारी कर रही है... उत्तर प्रदेश के विधानसभा उपचुनाव की 10 सीटों पर हम बड़ी मजबूती से चुनाव लड़ेंगे.

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किसी राजनीतिक दल के साथ चुनाव लड़ने की बात पर भीम आर्मी नेता चंद्रशेखर आजाद किसी से भी राजनीतिक दल से गठबंधन करने से इनकार करते हैं, और कहते हैं, मेरा गठबंधन सीधे जनता से होगा.

सवाल उठता है कि चंद्रशेखर आजाज के अकेले चुनाव लड़ने की वजह उनका खुद किसी पार्टी के साथ गठबंधन न करना है या कोई भी पार्टी उनकी आजाद समाज पार्टी से हाथ मिलाने को तैयार ही नहीं है? 

संसद पहुंच जाने के बाद लगता है, चंद्रशेखर का अपनेआप पर भरोसा बढ़ गया है. वरना, 2022 के विधानसभा चुनाव में तो समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करना चाहते ही थी, लेकिन अखिलेश यादव उनकी मांग पूरी ही नहीं कर पाये. बातचीत टूट जाने पर चंद्रशेखर आजाद ने अखिलेश यादव पर दलितों का अपमान करने का आरोप लगाया, और दोहराया कि जितनी जिसकी आबादी उतनी उसकी हिस्सेदारी. लोकसभा चुनाव से पहले हुए उपचुनावों में भी चंद्रशेखर आजाद ने गठबंधन की कोशिश की थी. वो आरएलडी नेता जयंत चौधरी तक तो पहुंच भी गये, लेकिन अखिलेश यादव ने पास नहीं फटकने दिया. 

लोकसभा चुनाव में तो अखिलेश यादव का पीडीए फॉर्मूला सफल ही रहा है, और अब राहुल गांधी भी उसी फॉर्मूले पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन चंद्रशेखर आजाद और मायावती अपने अलग रास्ते ही चल रहे हैं. 

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चंद्रशेखर आजाद भी दलितों और मुसलमानों को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहे हैं. दलितों में भी चंद्रशेखर आजाद खुद को बीएसपी के संस्थापक कांशीराम के सिद्धांतों पर चलने और उनकी राजनीतिक विरासत पर दावा जताने लगे हैं. चंद्रशेखर आजाद का आरोप है कि मायावती, कांशीराम के सिद्धांतों को छोड़ चुकी हैं, क्योंकि उनको दलितों के हितों की कोई फिक्र नहीं है.   

और इसी मकसद से चंद्रशेखर आजाद ने लोकसभा में प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया है, साफ है चंद्रशेखर संसद पहुंच जाने के बाद मौके का हर संभव फायदा उठाने में जुट गये हैं. ये विधेयक है निजी क्षेत्र में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण अधिनियम, 2024.

चंद्रशेखर आजाद के विधेयक में निजी क्षेत्र, शैक्षणिक संस्थानों और ऐसे अन्य प्रतिष्ठानों में आरक्षण की मांग की गई है, जिनमें कम से कम 20 लोगों को रोजगार मिलता है और सरकार का कोई वित्तीय हित नहीं होता है. विधेयक का जो मकसद बताया गया है, उसके मुताबिक, मौजूदा दौर में सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र के लिए उपलब्ध आरक्षण के लाभ को निजी क्षेत्र तक बढ़ाना है.

विधेयक का संसद से पास होना न होना अलग मसला है, लेकिन इससे कम से कम निजी क्षेत्र में आरक्षण पर बहस तो आगे बढ़ ही जाएगी - और मामला ऐसा है जिसका विरोध करना किसी के वश की बात नहीं होगी. चाहे वे चंद्रशेखर आजाद के कितने भी खिलाफ क्यों न हों.  

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चंद्रशेखर आजाद की तरफ से प्रस्तावित कानून में कहा गया है कि केंद्र सरकार को विशेष रियायतों के माध्यम से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू करने के लिए निजी क्षेत्र की संस्थाओं को प्रोत्साहित करना चाहिये - और राष्ट्रीयकृत बैंकों के माध्यम से कम ब्याज दर पर कर्ज उपलब्ध कराने की व्यवस्था सुनिश्चित करना चाहिये.

सपा-कांग्रेस और बीजेपी की तैयारी

ये चंद्रशेखर आजाद की ही चुनौती है जो मायावती भी हरकत में आ गई हैं. लोकसभा चुनाव के नतीजे आते ही मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को फिर से बीएसपी का नेशनल कोऑर्डिनेटर और अपना उत्तराधिकारी बना दिया. लोकसभा चुनाव के दौरान मायावती ने आकाश आनंद को अपरिपक्व मानते हुए दोनों जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया था, लेकिन चंद्रशेखर आजाद के नगीना से सांसद बनते हुए आकाश आनंद  को फटाफट मैच्योर भी मान लिया. 

अब मायावती के साथ साथ अखिलेश यादव और राहुल गांधी भी चंद्रशेखर आजाद को लेकर चिंतित दिखाई पड़ रहे हैं. तभी तो संसद में बजट पर चर्चा के दौरान भी जातिगत जनगणना का मुद्दा उठा देते हैं. 

कहने को तो राहुल गांधी के निशाने पर बीजेपी ही होती है, लेकिन बजट के बहाने वो सीधे वोट बैंक पर आ जाते हैं. लोकसभा में राहुल गांधी ने कहा, मैं फोटो दिखाना चाहता हूं... बजट का हलवा बंट रहा है, इसमें एक ओबीसी, आदिवासी, दलित अफसर नहीं दिखाई दे रहा है... देश का हलवा खा रहे हो, और बाकी लोगों को हलवा नहीं मिल रहा है. 

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बाद में राहुल गांधी ने सोशल साइट X पर भी लिखा है, मैं भाजपा को बता देना चाहता हूं कि हम हर कीमत पर जातिगत जनगणना को हकीकत बना कर वंचितों को न्याय दिलाएंगे. राहुल गांधी ने लिखते हैं, संसद में जब मैंने जातिगत जनगणना की बात उठाई तो वित्त मंत्री ने हंस कर इस गंभीर विषय का उपहास किया.

असल में राहुल गांधी की बात सुनकर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने माधा पकड़ लिया था. राहुल बोले, 20 अफसरों ने बजट तैयार किया... हमने पता लगाया, उनके नाम मेरे पास हैं. देश का हलवा 20 लोगों ने बांटने का काम किया है... 90 फीसदी लोगों में से सिर्फ दो हैं... एक अल्पसंख्यक और एक ओबीसी... और फोटो में तो आपने आने ही नहीं दिया.

समाजवादी पार्टी को साथ लेकर विपक्ष की लड़ाई लड़ रहे राहुल गांधी ने गठबंधन की बात करते हुए लिखा है, INDIA देश का X-Ray सामने ला कर रहेगा. ये बात अलग है कि यूपी में उपचुनाव के लिए सीटों के बंटवारे पर बात अभी तक फाइनल नहीं हो पाई है.

दलित वोट बैंक का चमत्कार लोकसभा चुनाव में तो देखा ही जा चुका है, यूपी के उपचुनावों में भी नजर आने वाला है - और दलित वोटर की भूमिका सिर्फ चंद्रशेखर और मायावती तक ही सीमित नहीं रहने वाला है, बल्कि अखिलेश यादव और राहुल गांधी भी उसी दायरे में हैं. 

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