
हरियाणा विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के लिए कई मुश्किलें सामने खड़ी हैं. पर उसके लिए राहत की बात यह है कि विपक्ष भी एकजुट होते नहीं दिख रहा है.लोकसभा चुनाव परिणामों में बहुत अच्छा प्रदर्शन न कर सकने के बावजूद भी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को यह लगता है कि बीजेपी को अकेले हराने में सक्षम हैं. तो ये सिवा मुगालता के और कुछ नहीं है. फिलहाल तो हरियाणा में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन की बातचीत टूट गई है. आम आदमी पार्टी ने राज्य की 29 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. यह देखना दिलचस्प होगा कि गठबंधन न हो सकने के पीछे दोनों ही पार्टियों में खलनायक कौन बन रहा है? अगर ये समझ में आ गया तो अभी भी गठबंधन हो सकता है. फिलहाल कांग्रेस प्रवक्ता की मानें तो उम्मीद अभी बाकी है. जाहिर है कि गठबंधन में दोनों ही पार्टियों की भलाई है. इसलिए दोनों ही पार्टियां चाहेंगी कि अगले 2 दिनों में किसी नतीजें पर पहुंच जाएं.
1-क्यों भूपेंद्र सिंह हुड्डा नहीं हैं खलनायक
इस बीच रिपोर्ट आई कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा गठबंधन के पक्ष में बिल्कुल नहीं हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि हुड्डा इस बात पर डटे हुए थे कि राज्य में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़े तो बेहतर है. उनका कहना था कि आप अगर अकेले चुनाव लड़ती है तो भी वह कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाएगी. हुड्डा का यह कहना भी ठीक है कि जहां से कांग्रेस उम्मीदवारों के जीतने की संभावना ज्यादा है वही सीट आम आदमी पार्टी मांग रही है. इस कारण गठबंधन का कोई मतलब नहीं है. पर हुड्डा को इस गठबंधन के न होने के लिए इसलिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि पार्टी के अंदर उनके घोर विरोधी समझे जाने वाले रणदीप सुरजेवाला और अन्य नेता भी गठबंधन के मुद्दे पर एक राय रखते हैं. इतना ही नहीं आप के साथ बातचीत के लिए बनाई गई कमेटी के सदस्य और दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री अजय माकन ने भी हुड्डा का साथ दिया. इस तरह हुड्डा ने राज्य में पार्टी के भीतर के अपने प्रतिद्वंद्वियों को भी इस मसले पर अपने साथ कर लिया है.
2-आम आदमी पार्टी की अति महत्वाकांक्षा
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि हरियाणा में अभी आम आदमी पार्टी की स्थिति बहुत कमजोर है. पर पार्टी की महत्वाकांक्षाएं इतनी अधिक है कि वो 90 सीटें यानि कि कुल सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रही है. लोकसभा चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि केवल 4 विधानसभा सीटें ऐसी थीं जहां आम आदमी पार्टी को बढ़त हासिल होती दिख रही थी. इस हिसाब से अगर कांग्रेस केवल 5 सीटें ही आम आदमी पार्टी को देने को तैयार है तो इसे सही ही कहा जा सकता है. पर कांग्रेस को अपने बारे में भी सोचना चाहिए कि वो लोकसभा चुनावों में किस आधार पर यूपी में समाजवादी पार्टी से 21 सीटें मांग रही थीं और अंत में 17 सीटें हासिल भी कर लीं. जिस तरह अखिलेश ने गठबंधन धर्म निभाने के लिए कांग्रेस के साथ दरियादिली दिखाई उसी तरह कांग्रेस को भी आम आदमी पार्टी के साथ दिखानी चाहिए. जिस तरह आम आदमी पार्टी 90 सीटों पर प्रत्याशी घोषित करने की बात कर रही है , जिस तरह सोमवार को आप ने 15 प्रत्याशियों की घोषणा कर दी उससे यही लगता है कि आप नेता कांग्रेस पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.
3-कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का असली डर
कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का यह सोचना भी सही है कि हरियाणा विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी गठबंधन के नाम पर अगर कुछ सीटें जीत गईं तो कांग्रेस पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी. क्योंकि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के समर्थक एक ही कैटेगरी के हैं. अब तक रिकॉर्ड रहा है कि जहां जहां आम आदमी पार्टी एक्टिव हुई है वहां से कांग्रेस की छुट्टी हो गई है. दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के सारे वोट आम आदमी पार्टी को ट्रांसफर हो चुके हैं. हरियाणा कांग्रेस नेताओं का सोचना गलत नहीं है.