
संदीप दीक्षित को अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मैदान में उतार दिया जाना बता रहा है कि कांग्रेस पूरी ताकत से दिल्ली चुनाव लड़ने जा रही है, और ये आम आदमी पार्टी के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.
नई दिल्ली विधानसभा सीट पर ही अरविंद केजरीवाल ने 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को शिकस्त दी थी, और फिर कांग्रेस के ही सपोर्ट से दिल्ली में पहली सरकार बनाई थी - 11 साल बाद शीला दीक्षित के बेटे पूर्व सांसद संदीप दीक्षित उसी नई दिल्ली सीट पर अरविंद केजरीवाल को चैलेंज करने उतर रहे हैं.
दिल्ली में कांग्रेस के चेहरे के बारे में पूछे जाने पर संदीप दीक्षित कहते हैं, अभी तो मैं कांग्रेस का चेहरा केवल नई दिल्ली में हूं... लेकिन हां, एक सीएम के खिलाफ लड़ रहा हूं, तो मुख्यमंत्री से सवाल तो पूछूंगा.
कांग्रेस की ये मजबूरी भी थी कि अरविंद केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लड़ाने के लिए कोई और चेहरा भी नहीं था, मुश्किल ये है कि कांग्रेस के लिए परिवारवाद की राजनीति के आरोपों से निकलना आसान नहीं होगा. पहली ही लिस्ट में संदीप दीक्षित के साथ ही चांदनी चौक से जेपी अग्रवाल के बेटे मुदित अग्रवाल को भी टिकट दिया गया है. जेपी अग्रवाल लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार थे.
2015 में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कांग्रेस ने किरण वालिया को टिकट दिया था, लेकिन वो तीसरे स्थान पर पाई गईं. 2020 में भी रमेश सभरवाल का हाल भी मिलता जुलता ही रहा - देखना है संदीप दीक्षित क्या कमाल दिखा पाते हैं?
संदीप दीक्षित शुरू से ही अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के खिलाफ हमलावर रहे हैं. अपनी मां शीला दीक्षित की तरह वो कभी भी अरविंद केजरीवाल के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं रहे हैं. वो क्या, दिल्ली कांग्रेस का शायद ही कोई नेता हो, जो आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन के पक्ष में होगा. देवेंद्र यादव से पहले दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे अरविंदर सिंह लवली तो लोकसभा चुनाव में गठबंधन के खिलाफ न सिर्फ इस्तीफा दिया, बल्कि कांग्रेस छोड़कर दुबारा बीजेपी में चले गये.
सुना तो ये भी जा रहा है कि बीजेपी भी अरविंद केजरीवाल के खिलाफ दिल्ली के पूर्व सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा को उतार सकती है. अगर ऐसा हुआ, तो नई दिल्ली सीट पर अरविंद केजरीवाल का मुकाबला दिल्ली के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों से होगा - और कांग्रेस के लिए ये राहत की बात होगी, क्योंकि बीजेपी परिवारवाद की राजनीति का मुद्दा नहीं उठा पाएगी.
संदीप दीक्षित के पास मां की हार के बदले का मौका
11 साल बाद संदीप दीक्षित को अपनी मां की हार का बदला लेने का मौका मिला है. संदीप दीक्षित मुखर तो हमेशा ही रहे, लेकिन कांग्रेस ने कभी उनको खास तवज्जो नहीं थी, एक वजह उनका विरोधी खेमे में और कांग्रेस की G-23 का सदस्य होना भी रहा है.
लोकसभा चुनाव से पहले संदीप दीक्षित ने भी आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का विरोध किया था, और अरविंद केजरीवाल की वफादारी पर सवाल उठाये थे. संदीप दीक्षित का कहना था, मेरी कांग्रेस को अब तो कुछ अहसास होगा... आत्म सम्मान से बड़ी कोई चीज नहीं, और अपने सम्मान को छोड़ हम इसके साथ खड़े हो रहे हैं.
संदीप दीक्षित में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे को उनके अंदर धधक रही बदले की भावना जरूर दिखी होगी. ये तो है कि अरविंद केजरीवाल को घेरने में संदीप दीक्षित जी-जान से जुटेंगे और उसके लिए उनको किसी बाहरी मोटिवेशन की जरूरत नहीं होगी, जिसका कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं में अक्सर अभाव देखने को मिलता है.
हालांकि, आम आदमी पार्टी ने नई दिल्ली सीट पर अभी अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है. ये भी चर्चा रही है कि अरविंद केजरीवाल भी अपनी सीट बदल सकते हैं. इस चर्चा को मनीष सिसोदिया की सीट बदले जाने से भी बल मिलता है. शुरू से पटपड़गंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतते आ रहे मनीष सिसोदिया को इस बार जंगपुरा भेज दिया गया है, और उनकी जगह अवध ओझा को टिकट दिया गया है.
वैसे कांग्रेस के इस कदम के बाद ऐसी संभावना कम ही है कि अरविंद केजरीवाल अपनी सीट बदलने जैसा फैसला लें. अगर दो सीटों से चुनाव लड़ने की भी कोई योजना हो, तो बात अभी सामने नहीं आई है.
कांग्रेस शीला दीक्षित मॉडल की याद दिलाएगी
2013 के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को 25,864 वोटों से हराया था. नई दिल्ली सीट पर आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को 44,269, जबकि कांग्रेस की शीला दीक्षित को 18,405 वोट मिले थे.
अरविंद केजरीवाल के खिलाफ नये सिरे से आक्रामक कांग्रेस उम्मीदवार संदीप दीक्षित का कहना है, मेरे हिसाब से ये चुनाव किसी विधायक के जीतने-हारने का चुनाव नहीं होगा... ये चुनाव इस बात का होगा कि क्या दिल्ली में इस तरह के मुख्यमंत्री को फिर आना चाहिये? ये चुनाव निर्धारित करेगा कि क्या किसी राज्य में ऐसा मुख्यमंत्री चुना जाना चाहिये?
जब संदीप दीक्षित से शीला दीक्षित के 15 साल के कामकाज से कांग्रेस को मिलने वाली संभावित फायदे के बारे में पूछा जाता है, तो कहते हैं, लोग केजरीवाल के 10 साल के काम और कांग्रेस के 15 साल के कार्यों की तुलना करेंगे... अरविंद केजरीवाल को बतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यों का भी हिसाब देना होगा.
संदीप दीक्षित की बातों से साफ है कि कांग्रेस दिल्ली के शीला दीक्षित मॉडल को ही अरविंद केजरीवाल के मुकाबले में सामने रखने जा रही है. 2014 के बाद से दिल्ली में कांग्रेस का एक भी विधायक या सांसद नहीं है, ये बात संदीप दीक्षित भी महसूस कर रहे हैं. कहते हैं, स्वाभाविक है असर रहेगा... लेकिन आज दिल्ली की स्थिति को लेकर लोगों से बात करिये तो हर जगह एक ही चर्चा मिलेगी कि दिल्ली को जिसने संवारा था वो शीला दीक्षित थीं.
केजरीवाल पर लगे आरोपों पर आक्रामक होगी कांग्रेस
2013 में शीला दीक्षित को भ्रष्टाचारी बता कर ही अरविंद केजरीवाल ने चुनाव जीता था. तब वो रामलीला आंदोलन से भ्रष्टाचार के खिलाफ नायक बनकर उभरे थे, लेकिन ये भी विडंबना ही है कि आज की तारीख में वो भ्रष्टाचार के आरोप में ही जेल से जमानत पर छूटे हुए हैं.
अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के आरोप तो देश के कई नेताओं पर लगाये थे, लेकिन बाद में कानूनी पचड़े में बुरी तरह फंस जाने पर बारी बारी सभी से माफी मांग कर मामला खत्म किया.
दिल्ली शराब नीति केस में पहली आपराधिक शिकायत करने वाले चौधरी अनिल कुमार भी कांग्रेस ने दिल्ली के मैदान में उतार दिया है. दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके अनिल कुमार को पटपड़गंज विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी के अवध ओझा के खिलाफ उम्मीदवार बनाया गया है - जाहिर है, मुकाबला काफी रोचक होगा.