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उत्तर प्रदेश में कांग्रेस क्या सचमुच बन रही 'परजीवी'? अखिलेश यादव इसे कैसे समझते हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में कांग्रेस को परजीवी पार्टी की संज्ञा दी थी. कांग्रेस यूपी में जिस तरह मजबूत होने की कोशिश कर रही है उससे समाजवादी पार्टी के पीडीए वोटों पर ग्रहण का संकट तैयार हो रहा है. 2027 के विधानसभा चुनावों तक कांग्रेस खुद को इतना मजबूत कर सकती है कि समाजवादी पार्टी के मर्जी पर निर्भर नहीं रहेगी.

उत्तर प्रदेश के पुूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और लोकसभा में प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के पुूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और लोकसभा में प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 10 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 12:58 PM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस पर हमला बोलते हुए उसके सहयोगी दलों को एक नसीहत दी थी कि मुझे नहीं पता कि कांग्रेस के साथी दलों ने इस चुनाव का विश्लेषण किया है या नहीं, पर ये चुनाव कांग्रेस के साथियों के लिए भी संदेश है. कांग्रेस पार्टी 2024 से एक परजीवी कांग्रेस पार्टी के रूप में जानी जाएगी. परजीवी वो होता है जो जिस शरीर पर रहता है उसी को खाता है. कांग्रेस भी जिस पार्टी के साथ गठबंधन करती है उसी के वोट खा जाती है. प्रधानमंत्री ने यह नसीहत क्यों दी ये तो बेहतर वो ही जानते होंगे पर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का दलित वोटों के लिए सक्रिय होने से ऐसा लगता है कि जल्द ही समाजवादी पार्टी का पीडीए ( पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) कांग्रेस के साथ होगा. वैसे तो समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इंडिया गठबंधन के साथ हैं पर जिस तरह कांग्रेस दलितों-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के बीच मजबूत हो रही है उससे अखिलेश को सावधान होने की जरूरत है.

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दलित वोट के लिए कांग्रेस का विशेष अभियान

यूपी कांग्रेस इन दिनों दलित बस्तियों में सहभोज कर रही है. देश के चौथे उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम की पुण्यतिथि के अवसर पर लखनऊ के खुर्रम नगर में एक दलित परिवार के यहां भोज करके प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय इस कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत कर चुके हैं. दरअसल 2024 के लोकसभा चुनावों में मिले दलित वोटों से कांग्रेस उत्साहित है. दलित परंपरागत तौर पर कभी कांग्रेस का वोटर हुआ करता था. बहुजन समाज पार्टी के उदय के बाद दलित वोटर यूपी में कांग्रेस से छिटक गया. कांग्रेस को लगता है कि उत्तर प्रदेश में दलित वोटर इंडिया गठबंधन के साथ उसकी वजह से आए हैं. समाजवादी पार्टी को दलित वोट मिलने का श्रेय भी खुद कांग्रेस ही लेना चाहती है. दरअसल इसका कारण बीते लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन करने के बाद भी समाजवादी पार्टी को दलित वोट उतने नहीं मिले थे जितना 2024 के लोकसभा चुनावों में मिले हैं. बहुजन समाज पार्टी लगातार कमजोर हो रही है. कांग्रेस इस फिराक में है कि दलित एक बार अगर उसके साथ आ गए तो फिर कुछ दशक तक वो कहीं नहीं जाने वाले हैं. 

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दलितों को पार्टी से जोड़ने की मुहिम इतने तक ही सीमित नहीं है. आने वाले समय में इस तरह के और भी आयोजन होंगे. प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से चर्चा करने के बाद पार्टी के अनुसूचित जाति विभाग के अध्यक्ष राजेश लिलोठिया ने एक एक्शन प्लान तैयार किया है.राजेश लिलोठिया के एक्शन प्लान के मुताबिक कांग्रेस इस मुहिम को देश के दूर-दराज के गांवों तक पहुंचाने की पुरजोर कोशिश करेगी. इस अभियान के तहत अभी तक गांवों में करीब 4 लाख संविधान रक्षक नियुक्त किए गए हैं. जिसमें हर गांव में एक महिला और एक पुरुष को जिम्मेदारी दी गई है. कांग्रेस जल्द ही हर गांव में संविधान रक्षक ग्राम समिति का गठन करेगी. साथ ही इसी तर्ज पर शहरी इलाकों में भी संविधान रक्षक और फिर संविधान रक्षक वार्ड समिति का गठन किया जाएगा.

अखिलेश को क्यों है सावधान रहने की जरूरत

पीएम मोदी ने कहा था कांग्रेस का स्ट्राइक रेट सिर्फ 26 प्रतिशत है.कांग्रेस पार्टी अपनी सहयोगी पार्टी की कीमत पर फलती-फूलती है. इसलिए कांग्रेस परजीवी कांग्रेस बन चुकी है. पीएम कहते हैं कि परजीवी कहने के लिए कुछ आंकड़े रख रहा हूं. जहां-जहां बीजेपी और कांग्रेस का सीधा मुकाबला था या जहां कांग्रेस बड़ी पार्टी थी वहां कांग्रेस का स्ट्राइक रेट सिर्फ 26 प्रतिशत है. लेकिन जहां किसी का पल्लू पकड़कर चले, जहां वो जूनियर पार्टनर थे और किसी दल ने उनको कुछ दे दिया, वहां कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 50 प्रतिशत है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की 99 सीटों में से ज्यादातर सीटें उनके सहयोगियों ने उनको जिताया है. इसलिए मैं कहता हूं कि ये परजीवी कांग्रेस है. उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कही ये बात सैद्धांतिक तौर पर तो नहीं पर व्यवहारिक तौर पर बिल्कुल फिट बैठती है.

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उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से उसे 6 सीटों पर सफलता मिली. लोकसभा चुनावों के पहले कांग्रेस की जो स्थिति थी उसके आधार पर देखा जाए तो अखिलेश ने कांग्रेस को 17 सीटें देकर बड़ा कलेजा दिखाया था. ये सभी जानते हैं कि रायबरेली और अमेठी जो कांग्रेस की सबसे मजबूत सीट मानी जाती है वहां से भी समाजवादी पार्टी की सबसे अधिक विधानसभा सीटें थीं. जबकि कांग्रेस इन दोनों जगहों पर अधिकतर विधानसभा सीटों पर तीसरे स्थान पर थी. मतलब साफ था कि अगर अखिलेश यादव का साथ नहीं मिलता तो कांग्रेस को यूपी में ये 5 सीट भी नहीं मिलते. दरअसल उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की पिछड़ों और मुसलमानों में जबरदस्त पैठ से कोई इनकार नहीं कर सकता. पर जिस तरह कांग्रेस फ्रंटफुट पर खेल रही है उससे बीजेपी के बजाए अखिलेश को ही चिंता करने की जरूरत है. 

पिछड़े वोटों के लिए राहुल कर रहे हैं लगातार प्रयास

कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पिछड़े वोटों के लिए तबसे लगातार बैटिंग कर रहे हैं. महिला आरक्षण वाले कानून पर बहस के दौरान राहुल ने लोकसभा में पिछड़ी जातियों के लिए जमकर बोला था.उन्होंने इस दौरान देश की टॉप नौकरशाहों में पिछड़ों को रिप्रजेंटेशन न देने पर सरकार को घेरा था. उसके बाद से चाहे अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन मुद्दा हो या कोई चुनावी रैली हर जगह राहुल गांधी लगातार पिछड़ों की आवाज बुलंद कर रहे हैं. कांग्रेस के मेनिफेस्टो में जातिगत जनगणना कराने और आरक्षण की 50 परसेंट वाली सीमारेखा को खत्म करने का वादा किया गया है. हालांकि समाजवादी पार्टी और भारतीय  जनता पार्टी दोनों ही का उत्तर प्रदेश में पिछ़ड़ी जातियों के बीच जबरदस्त पैठ है. कांग्रेस इस मामले में अभी इन दोनो ही पार्टियों से बहुत पीछे है. पर जिस तरह कांग्रेस पिछड़े वोटों के लिए मेहनत कर रही है उससे वह दिन दूर नहीं है जब अखिलेश के लिए कांग्रेस चैलेंज के रूप में सामने होगी. कम से कम इतना तो होगा ही कि विधानसभा चुनावों में सीट शेयरिंग के समय कांग्रेस अब अखिलेश की मेहरबानी पर नहीं रहेगी निर्भर. 

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