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महाराष्ट्र सीएम के रूप में देवेंद्र फडनवीस पहनेंगे कांटों का ताज, सामने होंगी ये 5 चुनौतियां |Opinion

राजनीतिक स्थिरता केवल विधायी बहुमत से नहीं आती. असुरक्षित साझेदार और एक मजबूत विपक्ष सरकार की राजनीतिक क्षमता को हर अवसर पर परखेंगे. इस तरह देवेंद्र फडणवीस के सामने बहुत सी चुनौतियां हैं, जिनसे पार पाना आसान नहीं होगा.

देवेंद्र फडणवीस आज शाम 5 बजे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे। देवेंद्र फडणवीस आज शाम 5 बजे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 05 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 1:15 PM IST

महाराष्ट्र के सीएम के रूप में आज तीसरी बार देवेंद्र फडणवीस शपथ ले रहे हैं. महायुति को प्रचंड बहुमत दिलाने में उनकी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता. राज्य में बीजेपी की ओर से सबसे अधिक रैलियां करने वाला यह मराठा पेशवा अपनी रणनीति के बदौलत बीजेपी को अब तक की सबसे बड़ी सफलता दिलाने में कामयाब हुआ है. पर चुनाव जीतने से बड़ी कामयाबी महाराष्ट्र में सरकार चलाना है. फिलहाल पिछली महायुति सरकार ने जनता से इतने वादे किए हैं कि लोगों की उम्मीदों का पहाड़ बहुत बड़ा हो गया है. जिससे पार पाना आसान नहीं होगा. यही नहीं सहयोगियों के साथ इस तरह बैलेंस बिहेवियर करना होगा जिससे वो न तो सर पर चढ़ें और न ही ब्लेकमेलिंग करने पर उतारूं हो जाएं. हमलावर सिर्फ विपक्ष ही नहीं होगा, अंदर से भी वॉर होंगे जिससे बचते हुए महाराष्ट्र को ऊंचाइयों पर ले जाना होगा. फिलहाल ताजपोशी के तुरंत बाद देवेंद्र फडणवीस को कुछ चुनौतियों से तुरंत दो चार होना होगा.

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1-लाडकी बहिन जैसी योजनाओं की राशि बढ़ाना 

विधानसभा चुनावों से पहले ही बड़ी मात्रा में रियायतें घोषित और लागू कर दी गई थीं। सरकार की पहली प्राथमिकता इन वादों को न्यूनतम रिसाव के साथ लक्षित तरीके से पूरा करना होनी चाहिए, ताकि वित्तीय स्थिति स्थिर हो सके। महायुति ने लाडकी बहन योजना के तहत पात्र महिलाओं को मिलने वाली राशि को ₹1,500 से बढ़ाकर ₹2,100 प्रति माह करने का वादा किया था. यही नहीं किसान सम्मान निधि की राशि भी 12 हजार से 15 हजार करने का वादा है. इसके अलावा किसानों की ऋण माफी , वृद्धावस्था पेंशन आदि में भी बढ़ोतरी आदि की बात है. जाहिर है कि इन वादों को पूरा करने में राज्य के जरूरी बुनियादी ढांचे के विकास के लिए धन की उपलब्धता मुश्किल हो सकती है. राज्य का कर्ज ₹7.82 लाख करोड़ तक पहुंच गया है. जबकि राजस्व वृद्धि जहां था वही है. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले महीनों में कर्मचारियों को वेतन देना भी मुश्किल हो सकता है. देश के प्रमुख विकास इंजन के रूप में, अगर महाराष्ट्र वित्तीय गैर-जिम्मेदारी का प्रतीक बन जाए, तो यह एक त्रासदी होगी. 

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2-बीएमसी चुनाव 

महाराष्ट्र में नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी बीएमसी का चुनाव जीतना.कहा जाता है कि बीएमसी को जीतना किसी राज्य के विधानसभा चुनाव जीतने जितना ही अहम होता है. एकनाथ शिंदे बीएमसी चुनावों तक खुद को सीएम बनाए रखने की मांग कर रहे थे. पर बीजेपी राजी नहीं हुई. दरअसल बीएमसी पर 3 दशक से शिवसेना (अविभाजित) का कब्जा है.अब शिवसेना बंट चुकी है. पर जिस तरह शिंदे को बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद से हटाया है उसका फायदा शिवसेना (यूबीटी) उठाने की कोशिश करेगी. हो सकता है कि अंदर ही अंदर एकनाथ शिंदे भी यही चाहें कि महायुति ये चुनाव हार जाए. इसलिए अगर सरकार पर अपनी पकड़ मजबूती से बनाए रखनी है तो हर हाल में फडणवीस को बीएमसी का चुनाव जीतकर दिखाना होगा.

3-राजनीति साझेदारों के साथ पावर शेयरिंग

राजनीतिक स्थिरता केवल विधायी बहुमत से नहीं आती. असुरक्षित साझेदार और एक मजबूत विपक्ष सरकार की राजनीतिक क्षमता को हर अवसर पर परखेंगे. इसलिए देवेंद्र फडणवीस को बहुत कुशलता से अपने सहयोगियों को डील करना होगा. क्योंकि महायुति में एक सहयोगी कुर्सी छोड़ने के चलते खार खाए हुए है तो दूसरे सहयोगी की बहुत पुरानी तमन्ना है सीएम की कुर्सी तक पहुंचना . इन दोनों सहयोगियों ने यहां तक पहुंचने के लिए जितनी बड़ी कुर्बानी दे चुके हैं वह उदाहरण है कि वह कुर्सी के लिए कुछ भी कर सकते हैं. इसलिए फडणवीस को यह सलाह है कि वे राज्य को एक एडवायजरी त्रिमूर्ति के माध्यम से चलाएं. इसका मतलब है कि दोनों कनिष्ठ साझेदार, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाला एनसीपी, नीतिगत निर्णयों में प्रमुख भूमिका निभाएं. 

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4-गुजरात जा रहे प्रोजेक्ट रोकना

विधानसभा चुनावों के दौरान महायुति सरकार सबसे बड़ा आरोप था कि महाराष्ट्र के प्रोजेक्ट गुजरात क्यों जा रहे हैं? दरअसल हाल ही में महाराष्ट्र के दो बड़े प्रोजेक्ट गुजरात चले गए. खनन क्षेत्र की दिग्गज कंपनी वेदांता ने अपने चिप फैक्ट्री प्रोजेक्ट को महाराष्ट्र के बजाय गुजरात में लगाने का फैसला किया था. यह प्रोजेक्ट 1.53 लाख करोड़ रुपये का है.यही नहीं टाटा-एयरबस सी-295 परिवहन विमान परियोजना भी गुजरात चली गई. यह परियोजना 22,000 करोड़ रुपये की है.  महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने इसके लिए विपक्ष की सरकार को जिम्मेदार ठहराया था.  केद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने एक टीवी डिबेट में कहा था कि एक प्रोजेक्ट को लेकर मैंने उनसे पूछा कि आपने महाराष्ट्र में वह प्रोजेक्ट क्यों नहीं किया. इस पर उन्होंने कहा कि वहां पर इतनी तकलीफ थी कि बिजनस करने का मजा नहीं आ रहा था. मैंने पूछा कि आप मजा किसे कहते हैं. उन्होंने कहा कि वहां उस समय राजनीतिक स्थिरता नहीं थी. भ्रष्टाचार काफी था. ईज ऑफ डूइंड बिजनस नहीं था. एक पार्टी के मंत्री से कुछ तय कर लो, तो दूसरी पार्टी का मंत्री पूछता था कि मेरा हिस्सा कहां हैं. हिस्सेदारी बांटने के चक्कर में महाराष्ट्र का जो नुकसान हुआ है, अब देवेंद्र जी को दोगुनी मेहनत करके इसका मेकअप करना पड़ेगा. जाहिर है कि देवेंद्र फडणवीस को अब यह साबित करना पड़ेगा. इस बीच अगर कोई और प्रोजेक्ट गुजरात जाता है तो जनता को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा.

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5-मराठा आरक्षण

महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा समुदाय की अपनी सियासी ताकत है.मराठे न केवल ताकतवर हैं बल्कि राजनीतिक रूप से जागरूक भी हैं. एकनाथ शिंदे को दुबारा मुख्यमंत्री न बनाए जाने के चलते विपक्ष हर कोशिश करेगा कि उन्हें सरकार के खिलाफ भड़काया जा सके. मराठा आरक्षण आंदोलन चलाने वाले जरांगे पाटील को सबसे अधिक दिक्कत देवेंद्र फडणवीस से ही रही है. जाहिर है कि एक बार फिर उन्हें देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ खड़ा करने की कोशिशें होंगी. शिंदे को सीएम न बनाने का फायदा उद्धव ठाकरे भी उठाना चाहेंगे.उद्धव ठाकरे  शिवसैनिकों को यह समझाएंगे कि बीजेपी ने शिंदे को इस्तेमाल किया. उद्धव ठाकरे इस तरह शिवसैनिकों को अपने साथ लाने में सफल हो सकते है.उद्धव ठाकरे के मजबूत होने से महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए कम देवेंद्र फडणवीस के लिए मुश्किलें काफी बढ़ जाएंगी.

इसके अलावा छोटे व्यवसायों, जो मुख्य रूप से रोजगार सृजन के इंजन हैं, के लिए नियमों को सरल और कम करना होगा.  फडणवीस के नेतृत्व वाली महायुति सरकार के सत्ता में आने के साथ उम्मीद है कि आर्थिक विकास, नौकरियों और बेहतर कानून व्यवस्था से जनता वंचित नहीं होगी.

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