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लोकसभा में दिखा राहुल गांधी का अलग अंदाज, इन 6 बिंदुओं में समझिए

जिस तरह की संजीदगी, वाकपटुता और आक्रामकता का समावेश एक विपक्ष के नेता में होनी चाहिए आज वह सब राहुल गांधी में दिखा. उनकी रणनीति बदली हुई थी. भाषण की शुरूआत से ही उन्होंने सत्ता पक्ष को ट्रोल करने के बजाए कई तार्किक बातें देश के सामने रखीं. हालांकि स्पीच के दूसरे हिस्से में उन्होंने सरकार को जमकर घेरा भी.

राहुल गांधी ने लोकसभा में राष्ट्रुपति के अभिभाषण पर चर्चा की शुरूआत करते हुए. राहुल गांधी ने लोकसभा में राष्ट्रुपति के अभिभाषण पर चर्चा की शुरूआत करते हुए.
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 03 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 6:37 PM IST

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी सोमवार को पूरे फॉर्म में दिखे. वो लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा की शुरुआत कर रहे थे. जिन लोगों ने इसके पहले राहुल गांधी को संसद में स्पीच देते हुए सुना होगा उन्हें इस बार वे पहले से कहीं अधिक परिपक्व लगे होंगे. वो आज सही मायने में विपक्ष के नेता की भूमिका में थे. जरूरत पड़ने पर उन्होंने सरकार की तारीफ की और मौका आने पर उन्होंने यूपीए वन और यूपीए टू सरकार को भी निशाने पर भी लिया. उनके भाषण में सहृदयता थी तो आक्रामकता भी थी. सत्ता पक्ष के साथ उनकी चुहलबाजी भी आज अच्छी लगी. जिस तरह की संजीदगी, वाकपटुता और आक्रामकता का समावेश एक विपक्ष के नेता में होना चाहिए आज वह सब उनमें दिखी. आज उनकी रणनीति भी बदली हुई दिखी. भाषण की शुरूआत से ही उन्होंने सत्ता पक्ष को ट्रॉल करने के बजाए कई तार्किक बातें देश के सामने रखीं. हालांकि सत्ता पक्ष की आलोचना में कहे गए उनके कई तर्क गले से नहीं उतरे . पर एक विपक्ष के नेता का सबसे पहला काम सत्ता पक्ष को घेरना ही होता है जो उन्होंने भली भांति किया . 

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1-कांन्स्ट्रक्टिव दिखने की कोशिश

राहुल गांधी ने भाषण की शुरूआत में ही अपने इरादे जता दिए थे. उन्होंने बोलने का मौका देने के लिए लोकसभा अध्यक्ष को धन्यवाद बोलते ही और कैमरे के लिए भी डबल थैंक्यू बोला. उन्होंने कहा ,मैंने राष्ट्रपति का भाषण सुना. वे पिछले कई सालों से यही बातें सुन रहा हूं. हमने ये किया, हमने वो किया. मैं संसद में बैठकर उन्हें सुन रहा था, मैंने सिर्फ उसके खिलाफ बोला जो उन्होंने बोला. आज मैं वो बताऊंगा कि उनका संबोधन कैसा हो सकता था. राष्ट्रपति के अभिभाषण को लेकर उन्होंने कहा कि इसमें कुछ भी नया नहीं है. हम यह सोच रहे थे कि इंडिया ब्लॉक की सरकार होती तो राष्ट्रपति का अभिभाषण कैसा होता. इसमें बेरोजगारी का कोई जिक्र नहीं है. ना तो यूपीए, ना ही एनडीए ने युवाओं के रोजगार के सवाल का क्लियर कट जवाब दिया. इस तरह राहुल ने न केवल एनडीए सरकार को टार्गेट किया बल्कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को  भी निशाने पर लिया.राहुल ने मेक इन इंडिया की बात करते हुए पीएम मोदी के आइडिया की तारीफ भी की. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने मेक इन इंडिया की जो बात की, वह अच्छा आइडिया है. लेकिन मैन्यूफैक्चरिंग फेल रही है. हम प्रधानमंत्री पर दोषारोपण नहीं कर रहे, पीएम ने कोशिश की, ये आइडिया सही था लेकिन वे फेल रहे हैं. इस तरह राहुल गांधी के भाषण की शुरूआत एक दार्शनिक नेता के रूप में हुई जिसके सामने न कोई अपना था और न ही कोई गैर था.

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2- डैमेज कंट्रोल: राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद सत्ता पक्ष के निशाने पर थे सोनिया और राहुल

संसद के बजट सत्र की शुरूआत के पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के संबोधन के तुरंत बाद संसद परिसर में सोनिया गांधी, लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को अभिभाषण पर एक वीडियो में आपसी चर्चा करते हुए देखा गया. इसमें सोनिया गांधी को यह कहते हुए सुना गया, 'बेचारी महिला, राष्ट्रपति, अंत में बहुत थक गई थीं. वह मुश्किल से बोल पा रही थीं, बेचारी' राहुल गांधी को सोनिया गांधी से पूछते हुए सुना गया कि क्या राष्ट्रपति का भाषण 'उबाऊ' था? इस बात को बीजेपी ने मुद्दा बना दिया . पीएम मोदी ने दिल्ली की एक चुनावी सभा में गांधी परिवार पर हमला बोला. जेपी नड्डा से लेकर देश भर के बीजेपी कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रपति मुर्मू का इसे अपमान बताया था. राहुल गांधी के सामने यह चैलेंज था कि उस दिन जो हुआ उसमें अपने आपको पाक साफ दिखा सकें. इसलिए ही उन्होंने अपने भाषण की शुरूआत में ही बता दिया कि भाषण में क्या होना चाहिए था. ये भी बता दिया कि वो इस तरह की बातें एनडीए ही नहीं यूपीए सरकार के दौरान भी नहीं सुना.

3-मुद्दों में एकरूपता आ गई थी

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पिछले कुछ बार से यह देखा जा रहा था कि राहुल गांधी अपने भाषणों में लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर ले रहे थे.लोगों को यही उम्मीद थी कि इस बार भी राहुल गांधी अडानी और अंबानी को निशाना बनाते हुए मोदी को टार्गेट करेंगे. देश में बढ़ती महंगाई, गिरते विकास दर पर बात करेंगे. पर राहुल गांधी आज एक दार्शनिक नेता के अंदाज में थे. वे एक नेता के बजाय एक विशेषज्ञ की तरह बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि पिछले 60 सालों में सबसे कम इंफ्रास्टक्चर पर काम हुआ... कोई भी देश दो चीजों पर चलता है कंजम्प्शन और प्रोडक्शन... 1990 से सभी सरकारों ने कंज्प्शन पर अच्छा काम किया. रिलायंस, अडाणी, टाटा, महिंद्रा सभी तेजी से बढ़े लेकिन ओवरऑल देश का विकास नहीं हुआ. मैं इस देश के युवाओं को बताना चाहता हूं कि देश में रिवोल्यूशन आने वाला है. हम पेट्रोल से इलेक्ट्रिक मोटर पर जा रहे हैं. वॉरफेयर, मेडिकल ट्रीटमेंट, एजुकेशन सभी में बदलाव आ रहा है...हम एक देश के रूप में उत्पादन को व्यवस्थित करने में विफल रहे और इसे चीनियों को सौंप दिया. हम चाइनीज फोन चलाते हैं, बांग्लादेशी शर्ट पहनते हैं इसका सारा पैसा चीन में जाता है. इसलिए मुझे राष्ट्रपति के भाषण में यह लगा कि भारत को कंज्प्शन पर फोकस करना चाहिए. राहुल गांधी के भाषण की सबसे अच्छी बात यह रही कि वो इसके लिए किसी एक सरकार को दोष नहीं दे रहे थे.बिल्कुल कांस्ट्रक्टिव भाषण दे रहे थे.

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4-पिछड़ों के मसीहा बनकर रहेंगे राहुल गांधी

राहुल गांधी ने यह तय कर लिया है कि उन्हें देश में पिछड़ों का मसीहा बनकर रहना है. शायद ही कोई मंच या सभा हो जहां वो जाति जनगणना और पिछड़ों-अति पिछड़ों-वंचितों के हिस्सेदारी की बात न दुहराते हों.उन्होंने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि पिछले बजट में हलवा बांटने वाली फोटो थी, इस बार वह भी नहीं दिखाई. इस बार हलवा खाया लेकिन दिखाया नहीं. राहुल गांधी के अंदाज में तंज के साथ चुहलबाजी थी. जो ऐसे लंबे भाषण को रोचक बनाता है.  

राहुल ने कहा कि हमने तेलंगाना में जातिगत सर्वेक्षण कराया है. हमने पाया कि राज्य की लगभग 90 प्रतिशत आबादी दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की है.इस देश में कोई भी सबसे बड़ी कॉर्पोरेट कंपनी ओबीसी, दलित या आदिवासी के स्वामित्व में नहीं है...उन्होंने कहा कि बीजेपी के ओबीसी सांसद मुंह नहीं खोल सकते. बीजेपी के ओबीसी, एससी-एसटी सांसदों को कोई पावर नहीं है... एक तरफ दलित, ओबीसी और आदिवासी संस्थानों और सत्ता में पार्टिसिपेट करें और दूसरी तरफ आधुनिक चीजों में पार्टिसिपेट करके चीन को हराएं. हालांकि राहुल गांधी से सवाल हो सकता है कि क्या वो तेलंगाना का नेतृत्व किसी दलित या पिछड़े को सौंपने का काम करेंगे?

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5-खुद को इंडिया गठबंधन से अलग नहीं किया

तमाम विरोधाभासों के बावजूद राहुल गांधी अपनी स्पीच के दौरान खुद को इंडिया गठबंधन का ही प्रतिनिधि बताया न कि अपनी पार्टी कांग्रेस का. जबकि इंडिया गठबंधन के तमाम दलों ने कांग्रेस और राहुल गांधी को टार्गेट पर रखा है. टीएमसी , समाजवादी पार्टी और शिवसेना यूबीटी तो दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ ताल ठोककर आम आदमी पार्टी का प्रचार कर रही हैं. पर राहुल गांधी पर इन बातों का असर न के बराबर दिखा.

6-सत्ता पक्ष को घेरने में रहे सफल

एक विपक्ष के नेता रूप में राहुल गांधी ने सत्ता पक्ष को कई मुद्दों पर जमकर घेरा. राहुल गांधी ने चीन के भारतीय जमीन पर कब्जा करने का आरोप लगाते हुए कहा कि पीएम ने इसे खारिज किया लेकिन सेना ने कहा कि चार हजार स्क्वॉयर किलोमीटर जमीन पर चीन काबिज है. इस पर आपत्ति जताते हुए सत्ता पक्ष के सांसदों ने कहा ये गंभीर विषय है. आप ऐसा मत बोलिए, ये देश के लिए ठीक नहीं है. उन्होंने महाराष्ट्र के नतीजों का जिक्र करते हुए कहा कि चुनाव आयोग पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच 70 लाख नए वोटर जोड़े गए. महाराष्ट्र में जितने पांच साल में ऐड हुए, उससे ज्यादा आखिरी पांच महीने में जोड़े गए. शिर्डी की एक बिल्डिंग में सात हजार नए वोटर ऐड हुए हैं. मैं कोई आरोप नहीं लगा रहा हूं. सिर्फ ये कह रहा हूं कि कुछ ना कुछ दिक्कत है.उन्होंने ये भी सवाल उठाया कि चुनाव आयुक्त का चयन प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश की कमेटी को करना था. मुख्य न्यायाधीश को क्यों हटाया गया.

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