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ट्रंप टैरिफ बढ़ाकर देख लें, भारत को फायदा और सिर्फ फायदा ही होने वाला है

यह कितनी हास्यास्पद बात है कि फ्रांस जैसे यूरोपीय देश से भारत न्यूक्लियर डील कर रहा है. एयर बस और लड़ाकू विमानों का सौदा कर रहा है. वहीं दूसरी ओर दुनिया का सबसे महान देश अमेरिका अभी भी कार और बाइक पर टैरिफ बढ़ाने पर ही अटका हुआ है.

पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप (फाइल फोटो) पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप (फाइल फोटो)
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 13 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 7:45 PM IST

अमेरिका में जब से राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने हैं, दुनिया भर में उनके टैरिफ वॉर को लेकर विकासशील ही नहीं विकसित देशों में भय व्याप्त है. पर आंकलन ये भी है कि भारत के लिए यह टैरिफ वॉर फायदे लेकर आ सकता है. भारत एक ऐसा देश है जहां अभी भी जीवन एडजेस्टमेंट के बल पर चलता है. अमेरिका के मुकबले यहां की लाइफ फ्लेक्सिबल भी है. अगर कोई चीज महंगी हो गई है तो उसे लोग खरीदना ही बंद कर देते हैं. और उसकी जगह कोई और विकल्प ले लेता है. दूसरे अमेरिका से व्यापार पर भारत आज निर्भर भी नहीं है. भारत की सैन्य आपूर्ति फ्रांस और रूस जैसे देशों से पूरी हो रही है. यह कितनी हास्यास्पद बात है कि भारत फ्रांस से न्यूक्लियर डील कर रहा है, एयर बस और लड़ाकू विमानों का सौदा फ्रांस से हो रहा है. जबकिअमेरिका अभी भी कार और बाइक के टैरिफ पर ही अटका हुआ है.

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भारत ने हाल के वर्षों में 1.5 अरब डॉलर से 4 अरब डॉलर के बीच अमेरिकी रक्षा उपकरणों की खरीद की है. हालांकि, नए लड़ाकू विमान (फाइटर जेट्स) जैसी महंगी खरीददारी करना भारत के लिए मुश्किल होगा, क्योंकि उसकी पहले से ही रूस और फ्रांस के साथ रक्षा अनुबंध लंबित हैं. फिर भी भारत प्राकृतिक गैस व्यापार असंतुलन को कम कर सकता है. अमेरिका को समझना चाहिए कि भारतीय लोगों के पास महंगी कार और बाइक जैसी चीजें खरीदने की ताकत भी और उसे नकारने के लिए हमारे पास विकल्प भी मौजूद हैं. पर अमेरिका के लोग भारत से जाने वाले चावल, मांस आदि का महंगा होना बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे. कोरोना और रूस-यूक्रेन वॉर के बाद से अमेरिका वैसे भी महंगाई की मार झेल रहा है. आज रात जब ट्रंप वाशिंगटन डीसी में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे, तो उम्मीद है कि टैरिफ (आयात शुल्क) फिर से चर्चा का एक महत्वपूर्ण विषय होगा. आइए समझते हैं कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों की वास्तविकता क्या है?

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अमेरिका के साथ व्यापार करने वाले लगभग सभी देशों की तरह, भारत भी एक व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) रखता है. पिछले वर्ष, भारत ने अमेरिका को लगभग 87 अरब डॉलर मूल्य का सामान निर्यात किया और 42 अरब डॉलर मूल्य का सामान आयात किया, जिससे अमेरिका के व्यापार घाटे में 46 अरब डॉलर का इजाफा हुआ.जाहिर है कि ट्रंप इस असंतुलन को खत्म करना चाहते हैं. इसी नीति के तहत उन्होंने कई सहयोगी और विरोधी देशों पर भारी टैरिफ (आयात शुल्क) लगाए, जिससे व्यापारिक प्रतिशोध (रिटेलिएशन) की धमकियां मिलने लगीं और वैश्विक व्यापार अस्थिर हो गया है.

ट्रंप को सोचना चाहिए कि उनके पिछले कार्यकाल में भारतीय आयात शुल्क की आलोचना करने का नुकसान किसे हुआ? वे विशेष रूप से हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिलों पर लगाए गए शुल्क से नाराज थे. जब भारत के व्यापार अधिकारियों ने इस टैरिफ को कम किया. हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिलों को भारत में 50% आयात शुल्क चुकाना पड़ता था, जिसे मोदी सरकार ने हाल ही में 30% तक घटाने का फैसला किया. 2020 से पहले, हार्ले-डेविडसन ने भारत में केवल कुछ सैकड़ों मोटरसाइकिलें बेची थीं. लेकिन पिछले साल, कंपनी ने एक स्थानीय भारतीय निर्माता के साथ साझेदारी की, जिससे $3,000 (लगभग 2.5 लाख) में एक नया मॉडल पेश किया गया. इस मॉडल की 14,000 से अधिक यूनिट्स बिकीं. लेकिन चूंकि ये भारत में बने थे, इसलिए इन्हें आयात नहीं माना गया. भारत में अमेरिका की बड़ी कार कंपनियों फोर्ड और शेवर्ले ने अतीत में एंट्री की थी. लेकिन, वे भारतीय बाजार की डिमांड को समझ न सकीं. और अपना बोरिया बिस्‍तर समेटना पड़ा. और उनकी कारों से रिक्‍त हुआ स्‍थान टाटा और महिंद्रा जैसी भारतीय कार कंपनियों ने भर दिया.

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इन दोनों देशों के बीच व्यापार का बड़ा हिस्सा तेल (पेट्रोकेमिकल्स), रत्न और आभूषण (जेम्स एंड ज्वेलरी) से जुड़ा है. इन दोनों मामलों में, अमेरिका बड़ी मात्रा में सेमी-प्रोसेस्ड पदार्थ भारत भेजता है, जहां उन्हें रिफाइनरियों या जेम-कटिंग वर्कशॉप्स में प्रोसेस किया जाता है. कुछ मामलों में, तैयार उत्पाद वापस अमेरिका को निर्यात किए जाते हैं. जाहिर है कि ये सब अब तक अमेरिकी लोगों को सस्ते पड़ते थे. अगर ट्रंप टैरिफ बढ़ाते हैं तो इसका नुकसान उन्हें भी होने वाला है.

अमेरिकी बॉर्बन व्हिस्की और पेकान नट्स के उत्पादकों को उम्मीद है कि ट्रंप उनके लिए भारतीय बाजार में प्रवेश आसान बना सकते हैं. इसी तरह, पोल्ट्री और कैलिफोर्निया बादाम पर लगे कुछ प्रतिबंध पहले ही हटा दिए गए हैं.आप समझ सकते हैं कि इन वस्तुओं की भारतीय बाजार में कितनी सीमित मांग है.

इनके अलावा, वित्तीय निवेश और पेशेवर सेवाओं में भी भारत-अमेरिका के बीच गहरा आर्थिक संबंध है. अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत में बैठे कर्मचारियों द्वारा हाई-एंड पेशेवर कार्य किए जाते हैं. खुशी की बात यह है कि ट्रंप का ध्यान मुख्य रूप से माल के व्यापार पर ही केंद्रित है. जाहिर है कि ये काम भी भारत में इसलिए हो रहा है कि आम अमेरिकी को यह सस्ता पड़ रहा है.

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