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एकनाथ शिंदे के लिए महाराष्‍ट्र सीएम बने रहना जरूरी नहीं, मजबूरी है | Opinion

महाराष्ट्र में सत्ताधारी महायुति में शामिल बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी सभी दलों के विधायक अपने अपने नेता को मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं. दावेदारी अपनी जगह है, लेकिन अब तक कुछ भी फाइनल नहीं हुआ है - कुछ मसले ऐसे हैं जो एकनाथ शिंदे के इर्द-गिर्द देखे और समझे जा सकते हैं.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे कुछ अपने काम बाकी हैं, और कुछ बीजेपी के हिस्से के. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे कुछ अपने काम बाकी हैं, और कुछ बीजेपी के हिस्से के.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 25 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 12:18 PM IST

महाराष्ट्र की राजनीतिक तस्वीर काफी हद तक साफ हो चुकी है. कुछ शेड्स अब भी साफ होने से रह गये हैं. और, मौजूदा राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से वे काफी अहम हैं.  

ये बात समझने की कोशिश करें, तो मुख्यमंत्री होने के नाते एकनाथ शिंदे की भूमिका अभी बहुत हद तक बाकी है. महायुति की तरफ से जो टास्क तय किये गये होंगे, वो पूरा तो नहीं ही हुआ है - और मुख्यमंत्री पद पर नये सिरे से दावेदारी शुरू हो गई है. 

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शिवसेना के विधायकों ने एकनाथ शिंदे को, और एनसीपी के विधायकों ने अजित पवार को अपना नेता चुना लिया है, लेकिन बीजेपी में ये काम अभी आगे नहीं बढ़ा है. हां, बीजेपी विधायकों और नेताओं का मानना है कि देवेंद्र फडणवीस को ही अब महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिये - क्योंकि, बीजेपी नेताओं का दावा है, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति की शानदार जीत के सूत्रधार देवेंद्र फडणवीस ही हैं. महायुति की तीनों पार्टियों के विधायक चाहते हैं कि उनके नेता को ही महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री बनाया जाये. 

एक खास अपडेट ये भी है कि एनसीपी का नेता चुने जाने के बाद अजित पवार ने मुख्यमंत्री के तौर पर देवेंद्र फडणवीस को खुलेआम समर्थन दे दिया है. मतलब, अजित पवार नहीं चाहते हैं कि एकनाथ शिंदे फिर से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनें. ये कदम एक तरह से अजित पवार के मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी मजबूत करने का तरीका भी लगता है. 

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ठाकरे परिवार के साये से पूरी तरह मुक्त नहीं हुई है शिवसेना

महाराष्ट्र में शिवसेना के तेवर तो पहले ही बदल चुके थे. पहले बदलाव का क्रेडिट तो उद्धव ठाकरे को ही जाता है, और बाद में तोड़ फोड़ के साथ एकनाथ शिंदे ने सब कुछ बदल दिया. 

लोकसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे के हिस्से वाली शिवसेना का प्रदर्शन एकनाथ शिंदे से बेहतर रहा, लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में तो सब तहस नहस की हो गया है. 

उद्धव ठाकरे के पास तो कुछ बचा भी है, लेकिन राज ठाकरे को तो एकनाथ शिंदे के साथ होकर भी कुछ हासिल नहीं हुआ - उनके बेटे अमित ठाकरे भी चुनाव हार गये. 

आदित्य ठाकरे ने वर्ली में अपनी जमीन जरूर बचा ली, लेकिन माहिम में अमित ठाकरे तो जैसे जीरो पर ही आउट हो गये. पिछली बार तो राज ठाकरे के पास एमएनएस का एक विधायक भी था, लेकिन इस बार तो कुछ भी हाथ नहीं लगा. 

और इस तरह देखा जाये तो एकनाथ शिंदे का शिवसेना पर पूरी तरह नियंत्रण होना बाकी है.

महाराष्ट्र सीरीज में आखिरी मैच तो अभी बचा ही है- BMC चुनाव

बीएमसी का चुनाव 2022 में ही हो जाना चाहिये था, लेकिन अब तक नहीं हो सका है. स्थिति ये हो गई कि कार्यकाल पूरा हो जाने के कारण वहां प्रशासक नियुक्त करना पड़ा है.

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जो समीकरण विधानसभा चुनाव के बाद देखने को मिल रहे हैं, ये तो बीएमसी का चुनाव होने से पहले ही सामने आ गया होता. 

लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बाद अब बीएमसी के चुनाव में आखिरी फैसला होना है. देखा जाये वो शिवसेना की विरासत को लेकर जनता का आखिरी फैसला होगा - और एकनाथ शिंदे के लिए भी वो फाइनल एग्जाम होगा.

मराठा प्राइड का मुद्दा भी महत्वपूर्ण है

मराठी अस्मिता का मुद्दा ऐसा है, जहां बीजेपी को बहुत सोच समझ कर कदम बढ़ाना पड़ता है. आपको याद होगा जब बीजेपी सांसद कंगना रनौत मुंबई को PoK बोलकर तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर हमला बोलती थीं, तो देवेंद्र फडणवीस और महाराष्ट्र बीजेपी के नेताओं को नाप तौल कर बयान देना पड़ता था. 

महाराष्ट्र में 70 फीसदी लोग मराठीभाषी हैं, और बाल ठाकरे की राजनीति भी मराठी अस्मिता के ही इर्द-गिर्द घूमती रही है. राज ठाकरे अब जरूर शांत हो गये हैं, लेकिन उनकी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ता मराठी अस्मिता के नाम पर ही उत्पात मचाते थे, और पूर्वांचल के लोगों को निशाना बनाया जाता था.  

उद्धव ठाकरे की तरफ से अब तक यही समझाने की कोशिश होती रही है कि बीजेपी एजेंडे में महाराष्ट्र नही बल्कि गुजरात है. उद्धव ठाकरे का आरोप है कि एकनाथ शिंदे बीजेपी के इशारे पर काम करते हैं, और वो मराठी अस्मिता के खिलाफ है. 

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विधानसभा चुनाव के नतीजों ने एकनाथ शिंदे की कुछ मुश्किलें तो कम कर दी है, लेकिन अभी इस मामले में बहुत काम बाकी है. 

बाल ठाकरे और हिंदुत्‍व की विरासत पर पूरी तरह काबिज होना बाकी है

एकनाथ शिंदे ने खुद को बाला साहेब ठाकरे की विरासत का असली हकदार तो साबित कर दिया है, लेकिन शिवसेना संस्थापक के हिंदुत्‍व की विरासत पर एकनाथ शिंदे का पूरी तरह काबिज होना बाकी है.

सबसे बड़ी वजह ये है कि शिवसेना ठाकरे परिवार मुक्त लगती जरूर है, लेकिन बीजेपी और एकनाथ शिंदे का ये ज्वाइंट मिशन अंजाम तक नहीं पहुंच सका है.  

शिंदे के हाथों होने वाले कुछ काम अभी बाकी हैं

एकनाथ शिंदे के हिसाब से देखा जाये तो एक कामयाब मुख्‍यमंत्री के रूप में निजी तौर पर एकनाथ शिंदे को सफर जारी रखना है, और कई ऐसे काम बचे हैं जो उनके बाल ठाकरे का असली उत्तराधिकारी बनने के लिए बेहद जरूरी है. 

राज ठाकरे भी ऐसा ही चाहते थे, लेकिन उनके पक्ष में जरूरी चीजें न होने के कारण मुमकिन नहीं हो सका. उद्धव ठाकरे को तो संपत्ति के साथ बाल ठाकरे खुद ही सब कुछ हैंडओवर कर चुके थे, लेकिन वो संभाल नहीं सके - और ये सब एकनाथ शिंदे के हाथों में है, लेकिन उनके हाथों में सुरक्षित भी है ये गारंटी तो है नहीं.

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क्या मालूम कल एक और एकनाथ शिंदे पैदा हो जायें. एकनाथ शिंदे को ये काम अपने लिए भी अंजाम तक पहुंचाना है, और बीजेपी के लिए भी. जैसे केंद्र की सत्ता पर काबिज बीजेपी एक एक करके नेहरू की निशानियां मिटाती जा रही है, एकनाथ शिंदे के जिम्मे भी वैसे ही काम बचे हुए हैं - और तब तक एकनाथ शिंदे का मुख्यमंत्री बने रहना जरूरी है, लेकिन गारंटी तो इस बात की भी नहीं है कि ऐसा होगा ही. 

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