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अमेठी चुनाव में उतरना राहुल गांधी के लिए ही नहीं, कांग्रेस-इंडिया गुट के लिए भी फायदेमंद है

पहले चर्चा थी कि यूपी से गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ेगा. बल्कि मल्लिकार्जुन खरगे जैसा प्रयोग हो सकता है, यानी गांधी परिवार से बाहर का कोई उम्मीदवार होगा, लेकिन अब फिर से राहुल गांधी के मैदान में उतरने की चर्चा होने लगी है - क्या राहुल गांधी को अमेठी से चुनाव लड़ना चाहिये?

राहुल गांधी का अमेठी का मैदान छोड़ देना खुद के साथ नाइंसाफी होगी - फिर लोगों को न्याय कैसे दिलाएंगे? राहुल गांधी का अमेठी का मैदान छोड़ देना खुद के साथ नाइंसाफी होगी - फिर लोगों को न्याय कैसे दिलाएंगे?
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 06 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 11:22 PM IST

लोक सभा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस की भी सूची आने वाली है. बीजेपी अपने 195 उम्मीदवारों की पहली सूची पहले ही जारी कर चुकी है. बीजेपी की पहली सूची में वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गांधीनगर से अमित शाह उम्मीदवार बनाये गये हैं.

और बिलकुल वैसे ही कांग्रेस की पहली सूची में राहुल गांधी के साथ साथ प्रियंका गांधी का भी नाम होने के कयास लगाये जाने शुरू हो गये हैं. कांग्रेस की पहली सूची में खास नजर होगी अमेठी और रायबरेली लोक सभा सीट पर.

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अमेठी बरसों से गांधी परिवार का गढ़ रहा है, लेकिन कुछ दिनों पहले सूत्रों के हवाले से कहा जाने लगा था कि अमेठी ही नहीं बल्कि रायबरेली से भी गांधी परिवार का कोई सदस्य मैदान में नहीं होगा. ये चर्चा सोनिया गांधी के राज्यसभा चले जाने के बाद होने लगी थी. चर्चा की शुरुआत तो रायबरेली से प्रियंका गांधी वाड्रा को लेकर शुरू हुई थी, लेकिन आगे बढ़ कर वो गैर गांधी परिवार उम्मीदवार पर जाकर रुक गई. ठीक वैसे ही जैसे राहुल गांधी की पहल पर गांधी परिवार से बाहर का कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के रूप मैं चुना गया है.

लेकिन अब फिर से राहुल गांधी के ही अमेठी से चुनाव लड़ने की खबर आ रही है. असल में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की तरफ से मांग की गई है कि राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ें. अमेठी के जिला कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप सिंघल ने दावा किया है कि राहुल गांधी अमेठी से ही चुनाव लड़ेंगे. मालूम हुआ है कि प्रदीप सिंघल ने ये बात दिल्ली से लौटने के बाद कही है, और ये भी बताया है कि जल्दी ही इस बात की घोषणा कर दी जाएगी.

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राहुल गांधी को स्मृति ईरानी की चुनौती

2004 से अमेठी लोक सभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे राहुल गांधी 2019 में बीजेपी की स्मृति ईरानी से चुनाव हार गये थे. तब वो दो सीटों से चुनाव लड़े थे, और फिलहाल केरल की वायनाड सीट से सांसद हैं. कुछ दिन पहले 'मोदी सरनेम' वाले मानहानि केस में सजा होने पर उनकी सदस्यता रद्द हो गई थी, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट से सजा पर रोक लगा दिये जाने के बाद राहुल गांधी की सदस्यता बहाल हो गई. 

बतौर बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को 2014 में भी अमेठी चुनाव क्षेत्र से चुनौती दी थी, लेकिन वो अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे. तभी से स्मृति ईरानी लगातार कांग्रेस नेता को चैलेंज करती रही हैं - और अब अमेठी में अपने नये घर में गृह प्रवेश के बाद स्मृति ईरानी ने नये सिरे से राहुल गांधी को बहस की चुनौती दी है. 

2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस की प्रभारी महासचिव रहीं प्रियंका गांधी ने एक नारा दिया था, लड़की हूं... लड़ सकती हूं. प्रियंका गांधी का ये नारा चुनावों के दौरान काफी चर्चित रहा, लेकिन नतीजे आये तो कांग्रेस के सिर्फ दो उम्मीदवार चुनाव जीत सके थे. 

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अब राहुल गांधी को एनडीए बनाम यूपीए के दस साल के शासन पर बहस करने की खुली चुनौती दे डाली है. नागपुर में नमो युवा महासम्मेलन के दौरान स्मृति ईरानी ने बड़े ही आवेश में कहा था - राहुल गांधी मैदान तुम चुनो, कार्यकर्ता हम चुनेंगे. स्मृति ईरानी का ये भी दावा था कि अगर युवा मोर्चा के किसी कार्यकर्ता ने राहुल गांधी के सामने बोलना शुरू कर दिया तो वो बोलना भूल जाएंगे.

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हाल ही में राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के साथ अमेठी पहुंचे थे, और उनके पहले से ही स्मृति ईरानी ने डेरा डाल दिया था. ऐसा अक्सर देखा जाता है कि जब भी राहुल गांधी के अमेठी जाने का कोई प्रोग्राम बनता है, स्मृति ईरानी खुला मैदान नहीं छोड़तीं. वैसे तो केंद्रीय मंत्री के रूप में विकास कार्यों की समीक्षा के लिए वो वायनाड तक जा चुकी हैं. 

तभी स्मृति ईरानी ने कहा था, मैं राहुल गांधी को चुनौती देती हूं... वो केवल अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर दिखायें. 

राहुल गांधी के चुनाव क्षेत्र वायनाड से सीपीआई ने डी. राजा की पत्नी एनी राजा को उम्मीदवार बनाया है - और एनी राजा का कहना है कि राहुल गांधी को कहीं और से चुनाव लड़ना चाहिये, क्योंकि मकसद बीजेपी को हराने का होना चाहिये. 

लेटेस्ट अपडेट तो यही है कि राहुल गांधी लोकसभा चुनाव 2024 में अमेठी के साथ साथ वायनाड से भी लड़ सकते हैं. 


राहुल गांधी को अमेठी से क्यों लड़ना ही चाहिये?

काउंटडाउन शुरू हो चुका है, कांग्रेस की तरफ से उम्मीदवारों की लिस्ट आने के संकेत तो ऐसे ही मिल रहे हैं - और ये भी तय है कि राहुल गांधी को अगर चुनाव लड़ना होगा तो नाम तो पहली ही सूची में होगा. 

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2019 की चुनावी हार के बाद राहुल गांधी का गुस्सा और दुखी होना बिलकुल स्वाभाविक था. जिस माहौल में वो पले बढ़े हैं, और जैसी परविरश रही है, ऐसी बातें सोच पाना भी मुश्किल होता है. बर्दाश्त करना तो दूर की बात होती है - लेकिन बर्दाश्त तो राहुल गांदी की दादी इंदिरा गांधी को भी करना पड़ा था. 1977 में समाजवादी नेता राज नारायण ने रायबरेली सीट पर इंदिरा गांधी को शिकस्त दे डाली थी. हालांकि, अगले ही चुनाव में इंदिरा गांधी चुनाव जीत कर अमेठी सीट पर फिर से काबिज हो गई थीं - सवाल है कि क्या राहुल गांधी भी अपनी दादी के रास्ते पर चलेंगे?

राहुल गांधी चाहें तो फिर से दो सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं. ऑफर तो सोनिया गांधी के लिए था, लेकिन राहुल गांधी भी चाहें तो वायनाड न सही, तेलंगाना की किसी भी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. कर्नाटक में भी किसी सेफ सीट से राहुल गांधी के लिए चुनाव लड़ने का विकल्प मौजूद है, अगर वायनाड में सहयोगी दलों से आपसी लड़ाई से परहेज हो तो. 

राहुल गांधी के लिए चुनाव लड़ कर हार जाना ज्यादा फायदेमंद हो सकता है, बनिस्बत न लड़ने के. राहुल गांधी अगर अमेठी से नाता तोड़ लेते हैं, तो उसका बिलकुल उलटा असर पड़ेगा. लोग मानने लगेंगे कि वो सिर्फ भाषणों में गुस्से का इजहार करते हैं, मैदान में नहीं. 

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जैसा आक्रामक रुख राहुल गांधी पूरे साल रखते हैं, नुमाइश तो उसकी अमेठी में भी होनी चाहिये. लोगों को लगना चाहिये कि राहुल गांधी लड़ते हैं, मैदान छोड़ कर भागते नहीं हैं. वरना, सोशल मीडिया पर कांग्रेस का 'जननायक' कैंपेन जमीन पर नहीं पहुंच पाएगा. 

और अगर राहुल गांधी हार-जीत की परवाह किये बगैर अमेठी के मैदान में खुद भी कूद पड़ते हैं तो चारों तरफ बड़ा संदेश जाएगा - और ये संदेश सिर्फ कांग्रेस के लिए ही नहीं, पूरे INDIA ब्लॉक के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. 2013 में अरविंद केजरीवाल अपना पहला चुनाव ही नहीं लड़ रहे थे, राजनीति में भी बिलकुल कच्चे खिलाड़ी थे, लेकिन कांग्रेस की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ मैदान में कूद पड़े, और हरा भी दिया. तबसे पहले अरविंद केजरीवाल के पास आंदोलन का ही अनुभव था, और उसी की बदौलत उनमें लड़ने का जज्बा भी आया - हालांकि, 2014 में वो बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी सीट पर भी ताल ठोक दिये थे, लेकिन हार भी गये. 

ममता बनर्जी की मिसाल राहुल गांधी के लिए ज्यादा सही लगेगी. 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव में बीजेपी ने ममता बनर्जी के ही एक मजबूत साथी शुभेंदु अधिकारी को झटक लिया. और  नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की चुनौती दी जाने लगी. सच तो ये था कि नंदीग्राम में तृणमूल कांग्रेस की पकड़ की वजह शुभेंदु अधिकारी ही थे, लेकिन उनको साथ लेकर बीजेपी बाजी पलटने में जुट गई थी. 

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मुमकिन है, ममता बनर्जी को भी नंदीग्राम में हार की आशंका रही होगी. फिर भी वो दो सीटों से चुनाव नहीं लड़ीं - क्योंकि उनको पश्चिम बंगाल के लोगों को मैसेज देना था. 

और बंगाल के अपने हर वोटर तक अपना संदेश पहुंचाने में ममता बनर्जी पूरी तरह सफल भी रहीं. खुद चुनाव हार कर ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस की जीत पक्की कर दी - और सत्ता पर फिर से काबिज हो गईं. 

राहुल गांधी के पास भी करीब करीब वैसा ही मौका है. भावनाओं की बात और है, लेकिन राजनीति में चुनाव सिर्फ जीतने के लिए ही नहीं लड़े जाते. चुनाव लड़ना सत्ता की राजनीति का प्रमुख पार्ट है. फैसला राहुल गांधी को ही लेना है, मल्लिकार्जुन खरगे तो बस दस्तखत करके मुहर लगा देंगे.

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