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राजस्थान के वोटर्स के दिमाग में ये 5 बातें आ गईं तो गहलोत का बनता काम जाएगा बिगड़

वोटिंग के दिन अंतिम समय में मूड बदलने वालों वोटर्स की चुनाव जितवाने में बड़ी भूमिका रहती है. वह भी राजस्थान जैसे राज्य में इनकी भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है जहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच हार जीत का अंतर एक से डेढ़ परसेंट वोटों का ही होता है.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 24 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 7:36 PM IST

राजस्थान विधासभा चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों में कांटे की टक्कर चल रही है. कल सुबह यानी कि 25 नवंबर की सुबह से वोटिंग शुरू होने वाली है. वैसे राजस्थान का इतिहास रहा है कि जनता कभी भी किसी भी सरकार को रिपीट नहीं की है. पर इस बार सीएम के रूप में अशोक गहलोत की कुछ जनहित की योजनाएं और कांग्रेस के मेनिफेस्टों में लिए गए कुछ वादे ऐसे हैं जो कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाने में काम आए हैं. 

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पर अंतिम दौर में भारतीय जनता पार्टी के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने हवा को काफी हद तक बीजेपी के पक्ष में मोड़ने का प्रयत्न किया है. यही कारण है कि फ्लोटर्स चुनाव के दिन खेला कर सकते हैं. दरअसल कांग्रेस सरकार में गहलोत का 'वन-मैन शो', सरकार में भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अक्षमता के चलते एंटी इनकंबैंसी की हवा पहले से ही थी जिसे भाजपा के अंतिम दौर के प्रचार ने फिर से जिंदा कर दिया है. कन्हैया लाल मर्डर प्रकरण और सचिन पायलट के चलते गुर्जरों की नाराजगी को हवा देने से बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल करने में कामयाबी हासिल कर ली है. प्रदेश में 5 ऐसे मुद्दे हैं जो अंतिम समय में वोटर्स का मूड बदलने का काम कर सकते हैं.

1-कांग्रेस के शासन में भ्रष्टाचार, नौकरियों की होती रही नीलामी

राजस्थान सरकार की सबसे ज्यादा किरकिरी सरकारी नौकरियों की भर्ती में भ्रष्टाचार रहा है. पेपर लीक से प्रदेश के युवा त्रस्त हो गए. शायद राजस्थान सरकार के लिए यह मुद्दा ऐसा रहा जिसका उसके पास कोई जवाब नहीं था. केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल कहते हैं कि राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार कई महत्वपूर्ण मापदंडों पर विफल रही है, जिसका कारण एक 'अस्थिर और अक्षम' सरकार रही है. गोयल अपने दावों के पक्ष में कई घोटालों को गिनाते हैं. जल जीवन मिशन की निविदा प्रक्रिया में 20,000 करोड़ रुपये का घोटाला, आईटी विभाग में 5,000 करोड़ रुपये का घोटाला और खनन और मध्याह्न भोजन योजना में भ्रष्टाचार के उदाहरणों का आरोप लगाते हैं. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि केंद्र और नीति आयोग के प्रयासों के बावजूद पर्याप्त संख्या में सरकारी अधिकारियों की कमी के कारण राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में विकास नहीं हो रहा है. 

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2-सचिन पायलट और गूर्जरों की नराजगी

प्रदेश में कांग्रेस दो क्षेत्रीय दिग्गजों, अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच बड़े लेवल पर पूरे 5 साल जूझती रही है. 2020 में, जब पायलट ने 18 विधायकों के साथ मुख्यमंत्री गहलोत के खिलाफ असंतोष का झंडा बुलंद किया तो ऐसा लगा पार्टी टूट जाएगी. हालांकि मध्य प्रदेश में अपनी सरकार खो देने के चलते गांधी परिवार ने समय पर हस्तक्षेप करके विद्रोह को शांत करा दिया, पर आग लगातार सुलगती रही. पायलट को बाद में उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और कोई पद नहीं दिया गया. इस बात की नाराजगी गुर्जरों वोटरों में जबरदस्त है. गुर्जरों को पता है कि प्रदेश में अगर फिर से कांग्रेस की सरकार बनती है तो भी सचिन को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाएगा. कांग्रेस नेतृत्व भी गुर्जरों को इस बात का भरोसा नहीं दिला सका कि कांग्रेस की सरकार बनने पर सचिन पायलट के साथ न्याय होगा.  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कैंपेन के दौरान राजेश पायलट का नाम लेकर इस मुद्दे को और हवा दे दी है. प्रदेश में कांग्रेस की जीत बहुत हद तक इस बात पर निर्भर है कि गुर्जर किसे वोट देते हैं.

3- महिलाओं की सुरक्षा में फेल रही सरकार

प्रदेश से लगातार महिलाओं के खिलाफ गंभीर अपराध की खबरें आती रही हैं. जिसके चलते महिलाओं का वोट कांग्रेस से फिसल सकता है. भाजपा लगातार यह आरोप लगाती रही है कि राजस्थान में महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने में गहलोत विफल रहे हैं. कांग्रेस के लिए सबसे अधिक शर्मिंदगी स्थित तब हो गई जब कांग्रेस विधायक राजेंद्र गुढ़ा को राज्य में महिला सुरक्षा की खराब स्थिति के बारे में बयान देने के बाद राज्य कैबिनेट मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया. गुढ़ा ने इसके बाद पलटवार करते हुए मुख्यमंत्री गहलोत पर हमला बोला और आरोप लगाया कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों में अग्रणी राज्य अब उनके नियंत्रण में नहीं है. 

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4-कन्हैया लाल के मर्डर से कांग्रेस बैकफुट पर

राजस्थान में कन्हैयालाल की हत्या पर जबरदस्त राजनीति हो रही है. बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे को हत्या के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कन्हैयालाल की हत्या के लिए कांग्रेस की राजनीति और सरकार को जिम्मेदार ठहरा कर हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश की है. अशोक गहलोत लगातार हत्या का कनेक्शन बीजेपी से जोड़ रहे हैं. उनका कहना है कि हत्यारों का कनेक्शन बीजेपी के लोगों से था. ये लोग प्रदेश में जानबूझकर दंगे भड़काना चाहते थे. उधर बीजेपी का कहना है कि जब कन्हैया लाल ने पुलिस से सुरक्षा मांगी थी तो उसे क्यों नहीं दी गई. उल्टे कन्हैया लाल को दो दिन हवालात में रखा गया.
पेशे से टेलर कन्हैया लाल की 28 जून, 2022 को बर्बर तरीके से हत्या कर दी गयी थी. हमलावर कपड़े सिलवाने के बहाने दुकान में घुसे और धारदार हथियार से कन्हैयालाल का गला काटा और वीडियो भी बनाया था. हमलावर बीजेपी की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी का सपोर्ट करने से नाराज थे. 

5-गांधी फैमिली को भी किनारे कर गहलोत का वनमैन शो कांग्रेसियों के ही गले न उतरा

गहलोत ने प्रदेश में अपने 'सुशासन' को प्रदर्शित करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान चलाया. गहलोत ने अपनी योजनाओं के बारे में प्रचार करने के लिए भारी भरकम रकम खर्च करके पीआर एजेंसी - डिज़ाइनबॉक्स्ड की सेवाएं ली हैं.कहा जाता है कि पंजाब स्थित पीआर एजेंसी की सिफारिश कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने की थी. देश भर में मुख्यधारा के मीडिया में एक बड़ा प्रचार अभियान चल रहा है. देश भर के समाचार पत्र गहलोत सरकार की उपलब्धियों वाले विज्ञापनों से भरे हुए हैं. दिलचस्प बात यह है कि इस अभियान में न तो कांग्रेस आलाकमान और न ही राज्य के मंत्रियों का कहीं जिक्र है. गहलोत के इस एकला चलो वाली नीति कांग्रेस के भीतर ही असंतोष को बढ़ा दिया है. आम वोटर को छोड़ दें तो कांग्रेस के अपने वोटर भी गहलोत के इस रवैये से खुश नहीं हैं. अब सवाल यही है कि क्‍या सुबह से वोटिंग के लिए जाते समय कांग्रेस के प्रति रुझान रखने वाले मतदाता इन बातों को नजरअंदाज करेंगे?

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