
पहले वसुधैव कुटुंबकम जैसे साधारण से मुद्दे पर भारत का विरोध करके चीन ने जी-20 के बारे में इरादे जता दिए थे. अब शी जिनपिंग ने जी-20 समिट में न आकर यह जता दिया है कि वे भारत में इस आयोजन की सफलता को लेकर कितने चिढ़े हुए हैं. 'वसुधैव कुटुंबकम' महा उपनिषद से लिया गया है, जिसका अर्थ है कि पूरी दुनिया एक परिवार है.
भारत ने इसे जी-20 सम्मेलन की थीम बनाया हुआ है. चीन ने अपने विरोध का जो कारण बताया वो निहायत ही सतही है. इस विरोध को देखकर कोई भी कह सकता है कि यह चीन की जलन ही है जो भारत में जी-20 के सफल आयोजन को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है.
दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्था का तगमा हासिल कर चुके चीन की अर्थव्यवस्था इस समय गंभीर संकट में है. बेरोजगारी दर 20 प्रतिशत से ज्यादा हो चुकी है. लोगों की कमाई इतनी घट गई है कि महंगाई घटने के बाद भी शॉपिंग की कूवत लोगों में नहीं बची है.
इनवेस्टमेंट लगातार कम हो रहा है, एक्सपोर्ट घट रहा है.अब इस साल बमुश्किल सवा 3 फीसदी ग्रोथ का अनुमान लगाया जा रहा है. पर चीन के सर्वे-सर्वा बन चुके शी जिनपिंग अपने अहंकार में चूर हैं. उन्हें भारत को नीचा दिखाने के लिए जी 20 में शामिल होना मंजूर नहीं है.
जबकि यह एक ऐसा मौका था, जिससे उनके देश की आंतरिक दशा सुधारने कुछ पहल हुई होती. ऐसे समय में जब दुनिया भर के देशों के प्रमुख नई दिल्ली में इकट्ठा हो रहे थे, ऐसे में अपने देश की खराब होती माली हालत के लिए कुछ इंतजाम किए होते.
शी के न आने से चीन में घरेलू अशांति बढ़ने का संदेश
हालांकि, उनकी अनुपस्थिति से भारत को कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है. उल्टे दुनिया में यह संदेश जा रहा है कि चीन की घरेलू अर्थव्यवस्था में गंभीर गिरावट, आर्थिक अवसरों में कमी होने के कारण युवाओं में अशांति फैल रही है. इसके चलते चीन में अस्थिरता बढ़ रही है.
घरेलू सुरक्षा की स्थिति की गंभीरता को देखते हुए शी को घर पर रहने और बाहर न निकलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. दूसरे यह भी कहा जा रहा है कि शी जिनपिंग महान शक्ति का दर्जा पाने के लिए अमेरिका से प्रतिस्पर्धा तो कर रहे हैं, लेकिन शिखर सम्मेलन में विचार-विमर्श और निर्णयों में योगदान को लेकर अपनी वैश्विक जिम्मेदारियों को संभालने के बारे में गंभीर नहीं हैं.
भारत के लिए अवसर
भारत के लिए तो शी अगर नई दिल्ली शिखर सम्मेलन से दूर रहते हैं, तो यह भारत के लिए एक अवसर है. जी-20 की अध्यक्षता मिलने की शुरुआत से ही भारत अपनी सारी ऊर्जा व्यापार, आर्थिक और वित्तीय चुनौतियों पर केंद्रित करने की कोशिश कर रहा है, जो विशेषकर 100 से अधिक विकासशील देशों को प्रभावित कर रही हैं.
बाइडेन के साथ दुनिया की नजरों में आने का मौका गंवाया
यदि शी शिखर सम्मेलन में भाग लेते, तो निश्चित तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के बाद सबसे अधिक आकर्षण के केंद्र में वही होते. मेजबानों के साथ-साथ राष्ट्रीय और ग्लोबल मीडिया का अधिकांश ध्यान उनकी गतिविधियों, बैठकों के साथ ही वह किससे मिल रहे हैं से अधिक किससे किस तरह मिल रहे हैं पर होता. बाइडेन और शी के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी और शी के बीच द्विपक्षीय बैठकों पर दुनिया की नजर रहती.
जिनपिंग की अकड़ में कैसे चौपट हुई चाइनीज इकॉनमी
- कोविड महामारी के बाद जब दुनिया के तमाम देश प्रतिबंधों में ढील देने लगे थे, चीन में सख्ती कम नहीं की गई. जिनपिंग ने जीरो कोविड पॉलिसी का जबरदस्त विरोध हुआ, जिसे कड़ाई से दबा दिया गया. आर्थिक गतिविधियों पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा. अधिकतर लोगों का वैक्सिनेशन नहीं होने से बड़ी संख्या में लोगों की जान गई. कब सख्ती करनी है और कब ढील देनी है, इसे समझने में जिनपिंग का अहंकारी और जिद्दी रवैया आड़े आ गया.
- चीन में आर्थिक असमानता बहुत ज्यादा है. इसे दूर करने के लिए जिनपिंग ने साल 2021 में ‘कॉमन प्रॉस्पैरिटी’ यानी सबकी खुशहाली का लक्ष्य रखा. इसके लिए जिनपिंग ने उद्योगपतियों और टेक सेक्टर के लोगों पर शिकंजा कसा. इसका उलटा असर पड़ गया. प्राइवेट सेक्टर डर गया और बेरोजगारी बढ़ी. मल्टीनेशनल कंपनियां दुनिया का माहौल भांपकर पहले ही चाइना प्लस वन पॉलिसी पर चलने लगी थीं.
- यह दुनिया देख रही है कि जिनपिंग की नजर विश्व शक्ति बनने पर है. इसके लिए वे शॉर्ट टर्म ग्रोथ की बजाय लॉन्ग टर्म ग्रोथ पर काम कर रहे हैं. उनकी नजर प्रॉपर्टी सेक्टर में कर्ज घटाने के साथ एडवांस्ड टेक्नॉलजी में विश्व का नेता बनने की है.
- कहा जा रहा है कि सत्ता के सख्त केंद्रीकरण के कारण जिनपिंग फेल हो रहे हैं. सरकार में जिनपिंग से वफादारी सबसे बड़ी योग्यता बन गई है, जो हर तानाशाह के जीवन में एक बार ऐसा मौका जरूर आता है. सवाल उठाने वालों की जगह जेल में होती है.
- कम्युनिस्ट पार्टी अपने सैद्धांतिक डर के चलते कैपिटलिजम को पूर्ण रूप रे छूट देने के मूड में नहीं है. उसे लगता है कि अगर छूट दे दी गई, तो सत्ता पर नियंत्रण कमजोर हो जाएगा, जो बाद में उनके लिए दिक्कत बढ़ा सकती है.
-चीन के जीडीपी में प्राइवेट सेक्टर का योगदान पब्लिक सेक्टर से ज्यादा हो गया है. लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सख्त निगरानी जैसे बढ़ रही है, उससे बिजनेसमैन घबराए हुए हैं. अलीबाबा से लेकर टेनसेंट तक कई कंपनियां सख्त निगरानी का शिकार बन चुकी हैं.