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घोसी उपचुनाव: योगी-मोदी के गढ़ में एक चुनाव का नतीजा तय करेगा इन 5 सवालों के जवाब

पूर्वांचल मतलब मोदी और योगी का गढ़. बीजपी को केंद्र या राज्य की सत्ता में पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है यह इलाका. पर इसी पूर्वांचल में मऊ-गाजीपुर-आजमगढ जिले हैं जो बीजेपी के लिए रेगिस्तान की तरह हैं. यहां कमल खिलाने की हर कोशिश नाकाम होती रही है. घोसी उपचुनाव इस बार बहुत कुछ तय करने वाला है.

घोसी उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान घोसी उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान
संयम श्रीवास्तव
  • ,
  • 29 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 6:24 PM IST

उत्तर प्रदेश में घोसी उपचुनाव रोचक मोड़ पर पहुंच गया है. पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से घनघोर कनवेसिंग हो रही है. बीजेपी की ओर से स्वयं मुख्यमंत्री आदित्यनाथ अपने करीब 2 दर्जन मंत्रियों के साथ लगातार घोसी में नजर बनाए हुए हैं. समाजवादी पार्टी की ओर से पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने मोर्चा संभाल रखा है. मंगलवार को अखिलेश घोसी में रैली कर रहे थे तो शनिवार को सीएम योगी आदित्यनाथ को करनी है. आमतौर पर उपचुनावों में अखिलेश यादव खुद को प्रचार से दूर रखते थे. लेकिन इस बार उनके एक्टिव होने से यह उप चुनाव महत्वपूर्ण हो गया है. 

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दूसरी बात ये है कि यह सीट गोरखपुर और बनारस को जोड़ने वाले हाइवे पर स्थित है. गोरखपुर सीएम योगी आदित्यनाथ का होम डिस्ट्रिक्ट है तो बनारस पीएम नरेंद्र मोदी का लोकसभा क्षेत्र है. घोसी सीट मऊ जिले में स्थित है जो गोरखपुर का पड़ोसी जिला है. वाराणसी भी यहां से ज्यादा दूर नहीं है. इसके बावजूद इस इलाके और आसपास के जिलों में बीजेपी सफलता के लिए तरस जाती रही है. घोसी चुनावों में जीत हार से केवल सपा और भाजपा या इंडिया बनाम एनडीए का ही भविष्य नहीं जुड़ा है बल्कि यहां के चुनाव परिणाम और कई संदेश छोड़ने वाला है.

इंडिया का भविष्य तय करेगा यह चुनाव

घोसी में बीजेपी के प्रत्याशी दारा सिंह चौहान हैं जो पिछली बार सपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचे थे. उनके मुकाबले में समाजवादी पार्टी से सुधाकर सिंह चुनाव लड़ रहे हैं. पर यह चुनाव अब न व्यक्तिगत रहा और न ही पार्टियों का. दरअसल समाजवादी पार्टी के पक्ष में कांग्रेस और वामपंथी दलों समेत समूचा विपक्ष खड़ा हो गया है तो बीजेपी के पक्ष में एनडीए के दल रात दिन लगे हुए हैं. इस तरह यह चुनाव इंडिया बनाम एनडीए का लिटमस टेस्ट भी साबित होने वाला है.

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अगर यह उपचुनाव समाजवादी पार्टी जीतती है तो इसे इंडिया की जीत माना जाएगा. इसी तरह समाजवादी पार्टी अगर यह चुनाव हारती है तो भविष्य में होने वाले गठबंधनों को लेकर पार्टी सावधान हो जाएगी. अखिलेश यादव घोसी की जनसभाओं में यह बताना नहीं भूलते कि हम इंडिया एलायंस से हैं. मंगलवार को एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जो दल कभी हमारे खिलाफ थे, आज वो सभी दल हमारा समर्थन दे रहे हैं. ये बड़ी लड़ाई है. ये बड़ा फैसला होगा. जो देश की राजनीति में भी बदलाव लाएगा. जब से हम एक हुए हैं ये घबरा गए है INDIA ALLIANCE से.

इंडिया गठबंधन के 26 दलों में से एक समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को कांग्रेस और वामपंदी दलों ने सपोर्ट किया है. इसके साथ ही अपना दल ( कमेरावादी) और आरएलडी ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे समाजवादी पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह लग जाएं.खुद अखिलेश यादव अपने चाचाओं राम गोपाल यादव और शिवपाल यादव आदि के साथ चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं. दूसरी ओर बीजेपी के लिए एनडीए के घटक दल सुभासपा, निषाद पार्टी , अपना दल के लोग लगातार क्षेत्र में जमे हुए हैं. 8 सितंबर को परिणाम चाहे जो हो एनडीए और विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. दोनों के लिए महत्वपूर्ण होगा. एनडीए की जीत से सुभासपा , अपना दल और निषाद पार्टी जैसे पार्टियों का डिमांड बढ़ जाएगी. दूसरी ओर इंडिया गठबंधन की अगर जीत होती है तो कई और दलों की एंट्री संभावित हो जाएगी.

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अखिलेश का पीडीए फॉर्मूला

अखिलेश यादव ने इस उपचुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. अखिलेश का जोर अपने नए फॉर्मूले पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) के वोटों पर है. यही कारण है कि अखिलेश ने स्वामी प्रसाद मौर्य को हिंदू धर्म के खिलाफ दिए जा रहे बयानों को लेकर कभी एतराज नहीं जताया है. जबकि मौर्य लगातार ऐसी बयानबाजी कर रहे हैं. अखिलेश अपनी सभाओं में जातिगत जनगणना के मुद्दे भी जरूर उठाते हैं. मंगलवार को एक जनसभा में उन्होंने कहा कि ये लोग सिर्फ बात करते है सबका साथ सबका विकास की, लेकिन जाति जनगणना के खिलाफ है ये लोग.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार घोसी विधानसा में करीब 4 लाख 37 हजार वोट हैं. जिसमें 90 हजार के करीब मुस्लिम, 60 हजार दलित,77 हजार ऊंची जातियों के लोग हैं. जिसमें 45 हजार भूमिहार , 16 हजार राजपूत और 6 हजार ब्राह्मण वोटर्स हैं. बाकी बचे वोट सभी ओबीसी जातियां हैं. कांग्रेस और बीएसपी के चुनाव में शिरकत न करने के कारण मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी को मिलने की उम्मीद की जा रही है. 2019 के उप चुनाव में बीएसपी के मुस्लिम कैंडिडेट को करीब 50775 वोट मिले थे. मजेदार यह है कि इस बार समाजवादी पार्टी से सवर्ण कैंडिडेट है जबकि बीजेपी से ओबीसी कैंडिडेट. अब देखना है ओबीसी वोट किसके हिस्से जाते हैं.

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अखिलेश का पीडीए फार्मूले के लिए यहां का जातीय समीकरण बिल्कुल फिट बैठता है. अगर यहां से अखिलेश की पार्टी जीत नहीं हासिल करती है तो इसका मतलब यही होगा कि उनका यह फार्मूला कारगर नहीं है.

पता चलेगा कि बीजेपी के लिए कितना समर्थित है पिछड़ा वर्ग

यूपी में घोसी विधानसभा क्षेत्र वाराणसी और गोरखपुर राजमार्ग के बीच में स्थित है. गोरखपुर से यहां की दूरी कम है पर इलाके के लोगों के लिए वाराणसी आना जाना नजदीक लगता है. गोरखपुर सीएम योगी आदित्यनाथ का होम डिस्ट्रिक्ट है तो वाराणसी देश के पीएम नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है. पर दुर्भाग्य यह है कि बीजेपी को यह इलाका पिछले विधानसभा चुनावों में बहुत दर्द दे गया था. मऊ , आजमगढ , बलिया और गाजिपुर से बीजेपी साफ हो गई थी. मऊ में 4 में से एक और बलिया की 7 सीटों में बीजेपी को सिर्फ दो विधानसभा में ही जीत मिली थी. यही हाल लोकसभा चुनावों में भी था. आजमगढ़, लालगंज और मऊ जिले की घोसी और गाजीपुर लोकसभा सीट भी बीजेपी 2019 में हार गई थी. बलिया और चंदौली से भाजपा के प्रत्याशी बेहद ही कम अंतर से चुनाव जीत पाए थे. बलिया से भाजपा के वीरेंद्र सिंह मस्त ने सपा के सनातन पांडेय को महज 13276 वोटों से तो चंदौली से भाजपा प्रत्याशी डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने सपा के संजय चौहान को 13959 मतों के अंतराल से हराया था. 

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पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ के जिलों के आसपास बीजेपी की ऐसी दुर्गति से बीजेपी के रणनीतिकार भी परेशान थे. दरअसल इस पूरे इलाके में अतिपिछड़ा लोगों का बहुमत है. बीजेपी लगातार अपने को ओबीसी पार्टी के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रही है. दूसरी ओर समाजवादी पार्टी और इंडिया गठबंधन का जोर भी पिछड़े वोटों को लेकर है. विपक्ष कास्ट सेंसस की डिमांड लगातार कर रहा है. यही कारण है कि बीजेपी के लिए यह एसिड टेस्ट है. अगर बीजेपी यहां चुनाव जीतने में कामयाब होती है तो यह तय हो जाएगा कि उसे पूरे यूपी में कोई रोक नहीं पाएगा.

ओपी राजभर और अरविंद शर्मा सहित इन नेताओं का तय करेगा भविष्य

ब्यूरोक्रेसी से राजनीति में आए मंत्री अरविंद शर्मा घोसी के ही रहने वाले हैं. शर्मा योगी कैबिनेट में बिजली और शहरी विकास जैसे महत्वपूर्ण महकमें देखते हैं. घोसी में करीब 45 हजार भूमिहार वोटर हैं, और 6 हजार से ज्यादा ब्राह्मण हैं. शर्मा चूंकि खुद भूमिहार हैं इसलिए उम्मीद की जा रही है कि भूमिहार और ब्राह्मणों के वोट वो कटने नहीं देंगे. शर्मा को बिजली कटौती के मुद्दे से जूझना पड़ेगा. सपा इसे उपचुनाव में बड़ा मुद्दा बना रही है. 

दूसरे नेता जिनका भविष्य इस उपचुनाव से जुड़ा हुआ है वो हैं ओम प्रकाश राजभर. सुहेलदेव समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर पिछले कई दिनों से घोसी में लगातार प्रचार कर रहे हैं. राजभर अभी हाल ही में अखिलेश यादव से नाता तोड़कर एनडीए में आए हैं. घोसी में राजभर वोटों ( करीब 55 हजार) की हैसियत इस तरह समझ सकते हैं कि 2019 के उपचुनाव में बीजेपी ने विजय राजभर को टिकट दिया था जिन्होंने सपा के सुधाकर सिंह को हराया था. 

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ओपी राजभर का दावा रहा है कि 2022 में घोसी सीट पर सपा की जीत में राजभर वोटों की अहम भूमिका रही है. ओमप्रकाश राजभर को लोकसभा चुनावों में कितनी सीटें मिलती है यह इस पर निर्भर करेगा कि वो राजभर वोटों को बीजेपी की ओर कितना शिफ्ट करा पाते हैं. बीजेपी की बड़ी जीत से उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार में कोई बढ़िया मंत्रालय भी दिला सकती है. समाजवादी पार्टी के नेता राम अचल राजभार मुख्तार अंसारी परिवार की हैसियत भी कितनी रह गई है इस उपचुनाव से स्पष्ट होगी. 

शिवपाल की परीक्षा

इस उपचुनाव में समाजवादी पार्टी में पारिवारिक एका देखने को मिल रही है. मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव के दौरान शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के लिए जमकर प्रचार किए थे. इसका नतीजा यह हुआ कि मैनपुरी में पार्टी को विशाल जीत मिली. मुलायम के निधन से खाली हुई सीट पर अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव जीतकर लोकसभा पहुंची. शिवपाल को इनाम के तौर पर सपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया. इसके पहले तक शिवपाल का भविष्य बहुत अस्थिर लग रहा था. शिवपाल अभी अखिलेश के काफी नजदीक हैं पर समाजवादी पार्टी में उनकी राजनीतिक जमीन अभी भी जम नहीं पाई है. घोसी के चुनाव में अगर समाजवादी पार्टी कमाल करती है शिवपाल के पैर पार्टी में अंगद के पांव की तरह जम सकेंगे.
 

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