Advertisement

कड़ी टक्‍कर में फंसी पंजाब की दो वीआईपी महिला नेता, क्या अपनी विरासत बचा पाएंगी?

परिनीत कौर और हरसिमरत कौर बादल पंजाब के 2 बेहद महत्वपूर्ण घरानों की महिलाएं हैं. दोनों का ही बीजेपी से महत्वपूर्ण रिश्ता है. हरसिमरत कौर का बीजेपी से 2 दशकों का नाता रहा है पर अब छत्तीस का आंकड़ा है. परिणीत कौर अब बीजेपी के साथ हैं पर उनकी कांग्रेस के साथ रही पहचान नहीं खत्म हो रही है.

परिणीत कौर और हरसिमरत कौर बादल परिणीत कौर और हरसिमरत कौर बादल
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 31 मई 2024,
  • अपडेटेड 3:34 PM IST

पंजाब की ये दो महिलाएं वीवीआईपी रही हैं. पंजाब की राजनीति में इन महिलाओं का काफी दखल रहा है. इनके एक कदम और एक बयान से राज्य और केंद्र की नीतियां बदलती रही हैं. एक समय इनके पतियों का होल्ड पूरे राज्य पर होता था और ये खुद केंद्र में कोई महत्वपूर्ण प्रोफाइल वाली कैबिनेट मंत्री होती थीं. पर आजकल इन महिलाओं के सितारे गर्दिश में हैं. दोनों के पति सत्ता में नहीं हैं इसलिए इनके पास सार्वजिनक जीवन में कोई महत्वपूर्ण प्रोफाइल नहीं है. दोनों कई बार सांसद रह चुकी हैं पर इस बार संसद पहुंचने के भी लाले पड़ गए हैं. जी हां बात हो रही है पूर्व कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर और पूर्व कैबिनेट मंत्री परिनीत कौर की.

Advertisement

हरिसिमरत कौर प्रदेश के 2 बार डिप्टी सीएम रहे सुखबीर बादल की पत्नी हैं तो परिणीत कौर प्रदेश के 2 बार सीएम रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी हैं. दोनों को इस बार अपने संसदीय क्षेत्रों में अपनी पार्टी के अंतर्विरोधों के साथ विपक्ष की पार्टियों से भी जबरदस्त लोहा लेना पड़ रहा है. इन दोनों महिलाओं में एक बात और भी कॉमन है वो है बीजेपी से संबंधों का. हरसिमरत कौर और बीजेपी का वास्ता करीब 23 वर्षों का है पर अब दोनों के बीच दूरियां हो चुकी हैं. दूसरी ओर परिणीत कौर बीजेपी का बहुत दूर का रिश्ता रहा है पर अब दोनों साथ हैं.  बेहद टफ फाइट में फंसी इन बेगमों के संसदीय क्षेत्रों का हाल जानने की कोशिश करते हैं.

परिनीत कौर 

पटियाला लोकसभा सीट पर पांचवीं बार कब्ज़ा करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहीं परिणीत कौर के लिए यहां की लड़ाई अपना घर बचाने की है. यह संसदीय सीट परिणीत और उनके पति पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्ववर्ती पटियाला शाही परिवार के मुखिया कैप्टन अमरिंदर सिंह का लंबे समय से गढ़ रहा है. परिनीत कौर पटियाला से कांग्रेस की सांसद हैं, लेकिन इस चुनाव में वह भाजपा के टिकट पर उतरी हैं. वो इस सीट से 4 बार कांग्रेस के लिए सांसद चुनी जा चुकी हैं. उनके पति कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में कांग्रेस के पर्याय के रूप में देखे जाते रहे हैं. सितंबर 2021 में सीएम पद से हटाए जाने के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी. फिर उन्होंने अपनी पार्टी बनाई पर विधानसभा चुनावों में सफलता न मिलने के चलते बाद में भाजपा में विलय कर दिया.

Advertisement

कैप्टन अमरिंदर कांग्रेस पार्टी में रहते हुए कई बार देश के महत्वपूर्ण मसलों पर बीजेपी का स्टैंड लेते देखे जाते थे. दरअसल उनकी रणनीति थी कि पंजाब में हिंदू वोटों को किसी भी कीमत पर बीजेपी में नहीं जाने देने की. इसमें वो लगातार सफल भी रहे. अब अमरिंदर बीजेपी के साथ हैं तो जाहिर है कि उन्हें सिख वोटों के साथ हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण भी अपने पक्ष में होने की उम्मीद है. पर इस बीच स्वास्थ्य कारणों से कैप्टन अमरिंदर अपनी पत्नी के प्रचार के लिए भी बाहर नहीं निकले हैं. यहां तक की पीएम नरेंद्र मोदी की पटियाला में हुई सभा में भी वो शामिल नहीं हुए. इसके चलते कई तरह की अटकलबाजियों को बल मिला है. हालांकि चुनावों के अंतिम मौके पर कैप्टन ने पंजाब के मतदाताओं के नाम पत्र लिखा है और बीजेपी को जिताने की अपील की है.

कांग्रेस ने डॉ. धर्मवीर गांधी को अपना उम्मीदवार बनाया है, जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) के टिकट पर पटियाला से परणीत को हराया था.कांग्रेस पटियाला सीट के लिए कितनी गंभीर है यह इस बात से समझ में आता है कि केवल इसी सीट पर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों प्रचार करने आए.राहुल और प्रियंका के अलावा, एआईसीसी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, हिमाचल प्रदेश के सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू और पंजाब कांग्रेस प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वडिंग, जो खुद लुधियाना में कड़ी टक्कर लड़ रहे हैं, प्रचार करने के लिए पटियाला आए.

Advertisement

पटियाला में सांसदी की दौड़ में परनीत कौर और डॉ. गांधी के अलावा आप के डॉ. बलबीर सिंह, जो 2014 के लोकसभा चुनावों में डॉ. गांधी के चुनाव एजेंट थे, और अकाली दल के एनके शर्मा का नाम भी शामिल हैं. परिणीत के लिए सबसे दुविधा यह है कि इतने दिन तक कांग्रेस के साथ रहने के चलते क्षेत्र की आम जनता उन्हें अब भी कांग्रेस का उम्मीदवार ही समझती है. शायद यही कारण है कि उनके जनसंपर्क के दौरान एक कार्यकर्ता कमल चुनाव चिह्न को साथ में लेकर आगे-आगे चलता है.

हरिसिमरत कौर

बठिंडा से चौथी बार चुनाव मैदान में उतरीं हरसिमरत के लिए इस बार राह आसान नहीं हैं. अकाली राजनीति के पितामह पुरुष प्रकाश सिंह बादल की अनुपस्थिति में पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) पहला लोकसभा चुनाव लड़ रहा है. जाहिर है कि यह चुनाव अकाली दल का अस्तित्व बचाने का भी सवाल है. 2015 में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के कारण पंजाब की सत्ता के हाशिये पर गई पार्टी को तो अपना वर्चस्व बहाल करना ही है. शायद यही कारण है कि पार्टी पंथिक मुद्दों पर खुलकर खेलने के मूड में है. ऑपरेशन ब्लू स्टार की 40वीं एनिवर्सरी पर पार्टी पंजाब की जनता को कांग्रेस से सावधान कर रही है. सुखबीर बादल पर अपनी पार्टी को फिर रिवाइव करने की जितनी जिम्मेदारी है उतनी ही उन पर अपनी पत्नी हरसिमरत कौर बादल की सीट को भी बचाने का भी दबाव है. सुखबीर खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं इसलिए बठिंडा की हार भी उन्ही की हार मानी जाएगी. हरसिमरत अपने हर भाषण में प्रकाश सिंह बादल को पंजाब और सिखों के लिए किए गए काम को याद करती हैं. 

Advertisement

2009 से लगातार जीत रहीं ​हरसिमरत के लिए इस बार चुनौती इसलिए बढ़ गई है क्योंकि बीजेपी और अकाली दल इस बार साथ चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. जिन प्रोजेक्ट्स को हरसिमरत अपनी उपलब्धि बताती हैं उनपर बीजेपी भी दावे कर रही है. बीजेपी का कहना है कि वे प्रोजेक्‍ट पूरे ही केवल इसलिए हुए हैं, क्योंकि उनके केंद्र में रहते ही एनडीए सरकार ने उसमें रुचि दिखाई. शहरी वोटों को साधने वाली भाजपा अब अकालियों के साथ नहीं है. भाजपा की प्रत्याशी परमपाल कौर को मिलने वाला एक-एक हरसिमरत बादल के खाते से ही जाएंगे. परमपाल कौर के ससुर सिकंदर सिंह मलूका, जो वर्षों से अकाली दल के जिलाध्यक्ष रहे हैं,संसदीय सीट की विधानसभा सीटों के प्रभारी दर्शन सिंह कोटफत्ता, जीत मोहिंदर सिंह सिद्धू आदि अब अकाली दल छोड़ चुके हैं. इसका नुकसान निश्चित तौर पर हरसिमरत के कैंपेन पर पड़ा है.

सबसे बड़ी चुनौती आप की ओर से है. बादल को उनका अंतिम चुनाव हराने वाले आप के गुरमीत सिंह खुड्डियां, जो राज्य की आप सरकार में मंत्री भी हैं, अब हरसिमरत कौर के खिलाफ मैदान में हैं.पर मुख्यमंत्री भगवंत मान व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के रोड शो के बाद भी आप की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. अकाली दल को अपने  पंथक वोट जो टूटकर आप में चले गए थे उसे फिर से मिलने की उम्मीद दिख रही है. आम आदमी पार्टी भाजपा से नाराज किसान मतदाताओं को अपने पाले में नहीं कर पा रही है. इसके अलावा गैंग्स्टर की दुनिया से राजनीति में आए लक्खा सिधाना भी आम आदमी पार्टी का ही वोट काट रहा है. इन सबके मुकाबले सबसे मजे में हैं कांग्रेस के जीत मोहिंदर सिंह सिद्धू जिनके सामने इस तरह की कोई ऐसी दिक्कत सामने नहीं आ रही है. 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement