
खाने-पीने की चीजें अपने स्वाद के लिए जानी जाती हैं. स्वाद हाइजीन का भी मोहताज नहीं होता. स्ट्रीट फूड के सबसे पसंदीदा होने की वजह भी स्वाद ही है. स्वाद निहायत ही निजी मामला होता है, लेकिन कभी मान्यता या धर्म, तो कभी राजनीति की भी उसमें घुसपैठ हो जाती है - जैसे कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश में विवाद हो गया था.
तब मुजफ्फरनगर पुलिस ने एक आदेश जारी कर दुकानों पर मालिक का नाम लिखने को कहा था. और तभी पूरे प्रदेश के लिए ऐसा फरमान आ गया. कांवड़ यात्रा के रास्ते में आने वाली दुकानों पर ये व्यवस्था अनिवार्य कर दी गई. दबाव में आकर फटाफट कुछ दुकानदारों ने आदेश पर अमल भी कर लिया.
देखते ही देखते सियासत भी तेज हो गई. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसी पार्टियां बीजेपी की यूपी सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ बयानबाजी करने लगीं. जैसे ही मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तत्काल प्रभाव से रोक लग गई. बात आई गई हो गई. कांवड़ यात्रा के साथ ही विवाद भी खत्म हो गया. गनीमत रही, अगले बरस तू जल्दी आ किसी ने नहीं कहा.
जबान तक पहुंचने से पहले खाने की किसी भी चीज का स्वाद आंखों और नाक के जरिये महसूस होने लगता है. खूशबू और टेक्स्चर, असल में स्वाद के वेलकम नोट प्रदर्शित करते हैं. लेकिन अगर कोई पूर्वाग्रहग्रस्त हो या फिर किसी को कोई गलतफहमी हो जाये तो ये सारी चीजें पीछे छूट जाती हैं.
अभी अभी एक मामले में गलतफहमी की वजह से खाने के सामान को लेकर सवाल-जवाब का सिलसिला चल पड़ा है. ये मामला फ्लाइट के दौरान परोसे जाने वाले फूड से जुड़ा है, जिसमें कई ऐसी बातें सामने आई हैं जिसके बारे में फ्रीक्वेंट-फ्लायर माने जाने वाले लोग भी कम ही जानते हैं. ये बात सोशल साइट X की एक पोस्ट पर लोगों के रिएक्शन से मालूम होता है.
एयरलाइन में परोसे जा रहे 'हिंदू भोज' और 'मुस्लिम भोज' से किसे फर्क पड़ता है?
जवाब हां या ना में जानने से पहले आपको सवाल ही ठीक से समझना पड़ेगा. ये सवाल एक पत्रकार की तरफ से उठाया गया है, जिसके जवाब भी विस्तार से मिल चुके हैं - और ये सवाल जबाव दोनो ही काफी दिलचस्प हैं.
सोशल साइट एक्स पर विस्तारा एयरलाइन को टैग करते हुए पूछे गये सवाल के साथ गंभीर आरोप भी था - 'क्या आप लोग सब्जियों, चिकन और यात्रियों को फ्लाइट के दौरान सांप्रदायिक बनाने जा रहे हैं?
पोस्ट के साथ ही टिकट का स्कीनशॉट भी शेयर किया गया है. ये श्रीनगर से जम्मू के लिए है, जिस पर चुना हुआ फूड चॉयस भी देखा जा सकता है - 'हिंदू भोज' (Hindu Meal) और 'मुस्लिम भोजन' (Moslem Meal).
साथ ही, विस्तारा एयरलाइन से पूछा गया है, 'ये क्या भसड़ मचा रखा है कि आपकी फ्लाइट में वेज खाना हिंदू मील होता है, और चिकन मुस्लिम मील. आपको ये किसने बताया कि सभी हिंदू शाकाहारी होते हैं, और सभी मुस्लिम मांसाहारी होते हैं. आप लोगों पर फूड आइटम की पसंद नापसंद थोप क्यों रहे हैं? ये अधिकार आपको किसने दिया?'
अपनी पोस्ट में पत्रकार लिखती हैं, इस व्यवहार से मुझे तो इतनी हैरानी हुई है कि मैंने इसे चलन को तोड़ने के लिए दोनो ही ऑर्डर कर दिया. इसके साथ ही पोस्ट में नागरिक उड्डयन मंत्रालय को टैग कर जांच की मांग की गई है.
सवाल उठाये जाने पर ही सवाल उठता है कि क्या वास्तव में फ्लाइट में सांप्रदायिकता परोसी जाने लगी है? जवाब है, बिलकुल नहीं. सरकार से पहले ही कुछ एक्सपर्ट और आम लोगों ने भी जवाब दे दिया है. कुछ लोगों का लहजा तो सवालिया ही है, जैसे ये तो सवाल उठना ही नहीं चाहिये. क्योंकि ये सवाल जानकारी के अभाव में उठाया गया है.
'हिंदू भोज' और 'मुस्लिम भोज' नाम रखने के पीछे ये हैं कारण:
असल में, एयरलाइन के लिए IATA यानी इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन की तरफ से खाने की चीजों के लिए खास कोड निर्धारित किये जाते हैं, और हिंदू मील या मुस्लिम मील जैसे नाम विस्तारा या किसी भी अन्य एयरलाइन की तरफ से नहीं दिये जाते हैं. रेलवे में खान-पान के इंतजाम करने वाली IRCTC भी ऐसे ही कुछ इंतजाम कर रहा है जिनमें जैन-फूड शामिल है.
IATA एयरलाइन और कैटरिंग सेवाओं के लिए ऐसे कोड तैयार करता है, और ग्राउंड स्टाफ उसका प्रबंधन और उसे आगे उसी हिसाब से बढ़ा देता है. और ऐसी करीब दो दर्जन कैटेगरी बनाई गई हैं, ताकि एयरलाइन सेवाओं में एकरूपता बनी रहे.
सोशल मीडिया पर ही एविलाज कंसल्टैंट्स के सीईओ संजय लाजर ने बताया है कि हिंदू मील के लिए निर्धारित कोड है HNML, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि ये अनिवार्य रूप से वेज खाना ही होगा. ये नॉन-वेज आइटम भी हो सकता है - हां, ये हलाल आइटम नहीं है.
और उसी तरह, MOML कोड वाले मुस्लिम मील (Moslem Meal) के भी नॉन-वेज होने की गारंटी मान कर नहीं चलना चाहिये, लेकिन वो हलाल होगा ही, ये पक्का मान कर चलना चाहिये.
ऐसे ही जेट एयरवेज के अधिकारी रहे संजीव कपूर ने भी अपनी तरफ से तस्वीर साफ करते हुए बताया है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यही प्रैक्टिस चली आ रही है. हालांकि, वो इसे आउटडेटेड भी मानते हैं, और उनकी सलाह है कि ये चीजें अपडेट करके आधुनिक बनाई जानी चाहिये.
सवाल जवाब के क्रम में एक लिस्ट भी शेयर की गई है जिसमें खाने की 24 कैटेगरी के कोड दिये गये हैं. मसलन, VGML का मतलब होता है शाकाहारी वीगन खाना, जिसमें न तो कोई एनिमल प्रोडक्ट होता है, न अंडे न ही डेरी प्रोडक्ट. ऐसे ही VJML कोड वेजीटेरियन जैन मील के लिए निर्धारित है, जिसमें न तो कोई एनिमल प्रोडक्ट या बाय-प्रोडक्ट होता है, न जड़ों वाली सब्जियां. अंडे और डेरी को लेकर बनाये गये खाद्य पदार्थों के लिए एक कोड है VLML यानी वेजीटेरियन लैक्टो-ओवो मील.
वैसे हलाल कैटेगरी वाले खाद्य पदार्थ भी कुछ दिन पहले चर्चा में काफी थे. उत्तर प्रदेश सरकार ने हलाल सर्टिफिकेट से जुड़े फूड प्रोडक्ट पर पाबंदी लगा दी है. राज्य सरकार के आदेश के मुताबिक, हलाल सर्टिफिकेट फूड प्रोडक्ट के निर्माण, भंडारण, वितरण और बिक्री पर पाबंदी लगा दी गई है. हां, दवाइयों और कॉस्मेटिक्स को प्रतिबंधन के दायरे से बिलकुल बाहर रखा गया है.