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राजस्थान का गणित... BJP के कैलकुलेशन में सीएम पद के लिए OBC पर ऐसे भारी पड़ गया ब्राह्मण

राजस्थान के सीएम के लिए भजनलाल शर्मा का नाम प्रस्तावित करने के पीछे भारतीय जनता पार्टी की क्या गणित रही ? आखिर किस तरह बीजेपी उन्हें राजस्थान के जातिगत ढांचे में फिट मानती है?

पीएम नरेंद्र मोदी और राजस्थान के भावी सीएम भजनलाल शर्मा पीएम नरेंद्र मोदी और राजस्थान के भावी सीएम भजनलाल शर्मा
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 13 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 1:27 PM IST

राजस्थान में बीजेपी के नए सीएम की घोषणा हो चुकी है. भजनलाल शर्मा को सर्वसम्मत से पार्टी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए नामित किया है. पार्टी के इस चयन पर चौतरफा सवाल हो रहे हैं कि आखिर भजनलाल के चुनाव से किस तरह पार्टी का हित हो रहा है? बड़े धुरंधरों के नाम के बजाय भजनलाल शर्मा के नाम पर पार्टी आलाकमान को क्या ऐसा दिखा? कुछ का कहना है कि जातिगत आधार पर भी देखा जाए तो भजनलाल की जाति ब्राह्मण राजस्थान की राजनीति में उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि अन्य जातियां. पर भारतीय जनता पार्टी में यह समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का है जिनके पिछले 10 सालों में लिए गए कोई भी राजनीतिक निर्णय असफलता की भेंट नहीं चढ़ें हैं. तो आइये देखते हैं कि बीजेपी के राजनीतिक कैलकुलेशन में किस तरह भजनलाल ही फिट बैठे जबकि अन्य लोग मिसफिट हो गए.

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राजस्थान में जातियों की विविधता

राजस्थान में किसी एक या 2 जाति को डॉमिनेंट कास्ट के रूप में नहीं मान सकते हैं. यहां पर राजपूत, जाट , गुर्जर और मीणा सभी डॉमिनेंट जातियां हैं. स्वभाविक है कि इन चारों का एक दूसरे को लेकर भयंकर प्रतिस्पर्धा का भाव रहता है. राजपूत सीएम बन जाए तो जाट की नाराजगी, गुर्जर सीएम बन जाए मीणा की नाराजगी तय है. यहां तक की अगर एक पार्टी को एक डॉमिनेंट जाति वोट दे रही है तो निश्चित रूप से दूसरी प्रतिस्पर्धी जाति का वोट उस पार्टी को नहीं मिलना है. इस तरह बीजेपी ने ब्राह्मण का चुनाव कर सेफ गेम खेला है. क्योंकि ब्राह्मणों की प्रतिस्पर्धा कम से कम राजस्थान में किसी दूसरी जाति से तो बिल्कुल भी नहीं है. 

राजस्थान में अल्पसंख्या वाली जातियों के मुख्यमंत्रियों की परंपरा रही है

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राजस्थान में अल्पसंख्या वाली जातियों को भी सीएम बनाने की परंपरा रही है. राजस्थान की जनता उन्हें स्वीकार करती रही है. मोहन लाल सुखाड़िया ( वैश्य), शिवचरण माथुर ( कायस्थ),  जगन्नाथ पहाड़िया (एससी), बरकतुल्ला खान ( मुस्लिम) और अशोक गहलोत ( माली ). इन  सभी मुख्यमंत्रियों को जनता का प्यार मिला. जबकि ये ऐसी जातियों से थे जिनकी .संख्या मुट्ठी भर नहीं है.या यूं कहिए कि इन मुख्यमंत्रियों की जाति की राजनीतिक ताकत शून्य रही है.

इसके पहले राजस्थान के सीएम हरिदेव जोशी ( ब्राह्मण) , भैरोसिंह शेखावत ( राजपूत) और वसुंधरा राजे (मराठा- शादी जाट में) की तरह ही अल्प संख्या वाली जातियों ने बिना किसी विरोध और असंतोष के कार्य किया. ब्राह्मण भी राजस्थान में इन अल्प संख्या वाली जातियों से बस थोड़ा ही बेहतर पोजिशन में हैं. पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि राजस्थान में राजघराने के लोगों को सभी जातियां अपना नेता मान लेती हैं.उनके प्रति जातिगत विद्रोह की स्थिति नहीं रहती है. दूसरी ओर अल्प संख्या वाली अधिकतर सवर्ण जातियों के नेता स्वभाविक रूप से ब्राह्मण हो जाते हैं. इस तरह भजनलाल शर्मा उन सभी सवर्ण जातियों को रिप्रजेंट करने वाले बन जाते हैं. 

क्यों ओबीसी पर भारी पड़ गया ब्राह्मण

बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में 34 परसेंट ( शिड्यूल ट्राइब) जनता को रिप्रजेंट कर रहे विष्णु देब सई को सीएम बनाया है तो दूसरी ओर मध्यप्रदेश में करीब 40  प्रतिशत से अधिक जनता (ओबीसी ) का प्रतिनिधित्व कर रहे मोहन यादव को सीएम बनाया है. बीजेपी का यही फार्मूला राजस्थान में भी काम किया है. एक्सिस माई इंडिया के हेड प्रदीप गुप्ता का कहना है कि राजस्थान में भी सबसे अधिक जनसंख्या को रिप्रिजेंट करने वाले को ही सीएम नियुक्त किया जा रहा है.

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राजस्थान में ओबीसी जातियों का अलग कैलकुलेशन है. वैसे तो राज्य में ओबीसी जनता करीब 35 प्रतिशत है पर जाट और गुर्जर दोनों एक साथ नहीं आते हैं. दोनों की अलग स्वतंत्र लीडरशिप है और वोटिंग पैटर्न भी एक जैसा नहीं होता है. जाट और गुर्जर मिलाकर करीब 14 प्रतिशत की जनसंख्या है. इस तरह ओबीसी केवल 21 परसेंट ही बचते हैं.  दूसरी ओर राजपूत, ब्राह्मण,सिख , बनिया,कायस्थ आदि मिलकर करीब 23 परसेंट हो जाते हैं. यही कारण रहा कि यहां भजनलाल शर्मा के नाम पर पार्टी ने मुहर लगा दी.
 

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