
India Today-Axis my India के Exit Poll की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में लोकसभा चुनाव 2024 में जबरदस्त प्रो-इनकम्बेंसी दर्ज की गई है - और बीजेपी के स्लोगन 'अबकी बार 400 पार' की संभावित कामयाबी में सबसे बड़ा योगदान इसी चीज का लग रहा है.
सरकार से कोई शिकायत न हो, तब भी किसी भी राजनीतिक दल के लिए सत्ता में वापसी संभव हो सकती है. ये तो मामला ही अलग लग रहा है, जब सरकार के पक्ष में लोग ही लामबंद हो जायें चुनाव नतीजे तो ऐसे एकतरफा टाइप ही आएंगे.
भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में जहां अलग अलग बोली, भाषा और कल्चर के लोग रहते हैं, चुनाव जीतना भी लोगों के दिल जीतने से कम नहीं होता. एग्जिट पोल के नतीजों से मालूम होता है कि विपक्षी दल लोगों का दिल जीतने में असफल रहे - और उसी बात का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
चुनावों में बीजेपी को शिकस्त देने के लिए विपक्ष को मोदी के मुकाबले मोदी जैसा ही नहीं, बल्कि मोदी से बेहतर चेहरा पेश करना चाहिये था, लेकिन आखिर तक इतनी ही सहमति बन पाई कि चुनाव नतीजे आने के 48 घंटे के भीतर इंडिया ब्लॉक अपने प्रधानमंत्री की घोषणा कर देगा.
देखा जाये तो बीजेपी के मुकाबले विपक्ष देश की जनता को न तो लोक कल्याण से जुड़ा कोई बेहतर कार्यक्रम बता सका, न ही ऐसा कोई नैरेटिव पेश कर सका जिसमें लोगों को अपने भविष्य का कोई खाका नजर आता हो.
2014 और 2019 की मोदी लहर को कैसे बीजेपी ने सुनामी में बदल डाला?
1. अगर लोक सभा चुनाव को 2019 के आम चुनाव से तुलना करें तो बीजेपी को महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान, कर्नाटक, झारखंड और हरियाणा जैसे राज्यों में 33 सीटों का नुकसान जरूर हो रहा है, लेकिन ऐन उसी वक्त आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में 66 सीटों का फायदा भी हो रहा है - और इन राज्यों में बीजेपी का वोट शेयर भी 2 फीसदी बढ़ ही रहा है.
2. देश में कोई भी राज्य ऐसा नहीं है जहां 2019 के विपरीत इस चुनाव किसी तरह की उलटफेर देखी जा रही हो, या कोई भी विपक्षी पार्टी बीजेपी के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करती हुई नजर आ रही हो.
3. केंद्र सरकार की तमाम कल्याणकारी योजनाओं की बदौलत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एनडीए के पक्ष में वोट जुटाने वाले 'कमाऊ पूत' साबित हो रहे हैं. कोविड के दौरान उनके कुशल नेतृत्व को भी वोटरों ने मतदान के समय याद रखा है. महत्वपूर्ण बात ये है कि प्रधानमंत्री मोदी को देश ने 24x7 काम करते महसूस किया, और जिसके पीछे किसी तरह का पारिवारिक दबाव नहीं था.
4. अब तो बीजेपी उन राज्यों में भी पांव पसारती हुई नजर आ रही है, जहां पहले उसका कोई नामलेवा तक न था - और अब तो आलम ये है कि तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों में उसका वोट शेयर दहाई की संख्या में तब्दील होता लग रहा है.
5. एग्जिट पोल के नतीजे बता रहे हैं कि बीजेपी के ज्यादातर वोटर 35 साल से ज्यादा उम्र वाले हैं, क्योंकि 18-25 और 25-35 उम्र वर्ग के वोटर बदलाव और जल्द रिजल्ट चाहते हैं - जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है, वहां तो उसे युवाओं का ज्यादा समर्थन मिल रहा है, लेकिन जहां बीजेपी सत्ता में नहीं है वहां सीन बिलकुल उलटा है.
6. एग्जिट पोल सर्वे के मुताबिक एनडीए की जीत में सबसे अहम रोल निभाने का काम महिलाएं करने जा रही हैं. जहां 46 फीसदी पुरुषों ने एनडीए को और 42 फीसदी ने इंडिया गुट को वोट दिये हैं. यानी फासला 6 फीसदी का है. जबकि 48 फीसदी महिलाओं एनडीए को, जबकि महज 38 फीसदी महिलाओं ने ही इंडिया गुट को वोट दिये. यानी महिलाओं के इस 10 फीसदी के फासले ने हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभाई है.
हर मोड़, हर पायदान पर चूक गया INDIA ब्लॉक
1. उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, पंजाब, कर्नाटक, असम, हरियाणा सहित देश भर में, जहां अलग अलग राज्यों में अलग राजनीतिक परिस्थितियां पाई गईं, विपक्ष हर जगह बिखरा हुआ नजर आया.
केरल में जहां कांग्रेस की अगुवाई वाले यूडीएफ और लेफ्ट के नेतृत्व वाले एलडीएफ के बीच मुख्य मुकाबला है - वहां भी बीजेपी अपनी अलग जगह बनाने कामयाब होती नजर आ रही है.
2. बीते पांच साल में विपक्षी दल उन लोगों का भी सपोर्ट हासिल नहीं कर सके जो असंतुष्ट तबका माना जाता है - मुश्किल ये है कि न तो विपक्ष ऐसे लोगों के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज करा पाया है, न ही लोगों को भरोसा ही जीत पाया है.
3. तमिलनाडु, राजस्थान, झारखंड और दिल्ली में इंडिया ब्लॉक के तहत विपक्षी दलों ने 85 सीटों पर तो एकजुटता दिखाई, लेकिन देश भर की 358 सीटों पर विपक्ष पूरी तरह बिखरा नजर आया है - और ये बात बीजेपी के पक्ष में जानी ही थी.
4. हकीकत ये है कि अपने इलाके में मजबूत देश का कोई भी क्षेत्रीय दल कांग्रेस के लिए न तो कोई कुर्बानी देने को तैयार था, न ही अपनी पसंद की सीटों से समझौते के लिए ही राजी हुआ. जिसके साथ पहले से गठबंधन था, उसे छोड़ दें तो किसी भी नये गठबंधन साथी ने कांग्रेस को मनमाफिक सीटें नहीं दी. उत्तर प्रदेश और दिल्ली मिसाल हैं.
और सबसे बड़ी बात आखिर तक यूपी, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सीटों का बंटवारा फाइनल नहीं हो सका था, लिहाजा उम्मीदवारों की घोषणा भी नहीं हुई - ऊपर से महाराष्ट्र जैसे राज्य में शरद पवार के हिस्से वाली एनसीपी और उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना को नये चुनाव निशान मिल जाने से भी लोगों के बीच भारी कन्फ्यूजन रहा, और विपक्ष को इस बात की कीमत भी चुकानी पड़ी.
5. विपक्षी दलों ने INDIA के रूप में एक गठबंधन तो खड़ा कर लिया, लेकिन ऐसा कोई ऐसा चेहरा नहीं पेश कर सका जिस पर लोग भरोसा कर सकें, और पूरे पांच साल यूं ही बीत गये. सिर्फ चुनाव लड़ना और जीतना ही काफी नहीं होता - लोगों को सपने भी दिखाने होते हैं.
6. एग्जिट पोल के मुताबिक, INDIA ब्लॉक को सबसे ज्यादा वोट मुस्लिम समुदाय से मिल रहा है. बताते हैं कि यादव वोटर भी साथ है, और थोड़ा SC वोटर भी - जबकि एनडीए को आम वोटर के साथ साथ एसटी और ओबीसी वोटर का पूरा साथ मिल रहा है.