
गली मुहल्लों की राजनीतिक बहसों में उन्हें एक मात्र ऐसे शख्स के रूप में देखा जाता है जो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधी चुनौती देने की कूवत रखता है. उनका कद टीवी चैनलों- अखबारों और वेबसाइटों के लिए किसी भी राष्ट्रीय नेता से कम नहीं होता है. हो सकता है कि कुछ लोग उन्हें राजनीतिक तमाशे का मास्टर कहते हों या उनकी राजनीतिक चालाकी से ईर्ष्या करते हों पर इतना तो तय है कि भारतीय जनता पार्टी भी उनकी गुगली समझने में अकसर नाकाम रही है. फिर चाहे वो 2013 की पहली सरकार में कांग्रेस से गठबंधन करना हो या देशभर में अकेले चुनाव लड़ जाना. उन्होंने रविवार को एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से 48 घंटों के भीतर इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया. जाहिर है कि केजरीवाल के इस फैसले से सबसे अधिक कोई चौंका होगा तो वह बीजेपी ही होगी.
1-केजरीवाल पद नहीं छोड़ेंगे, बीजेपी के ऐसा समझने के कई कारण थे
भारतीय जनता पार्टी यह सोचती रही है कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री का पद कभी नहीं छोड़ेंगे. पार्टी के ऐसा सोचने के पीछे कई कारण हैं. अरविंद केजरीवाल ने अब तक इस्तीफा नहीं दिया तो अब चुनाव के कुछ महीने पहले रिजाइन करने का कोई सवाल नहीं उठ रहा था. मुख्यमंत्री बने रहने के अपने कई फायदे होते हैं. इसके साथ ही आम आदमी पार्टी को नजदीक से देखने वाले जानते हैं कि अरविंद केजरीवाल किसी पर भरोसा नहीं करते हैं. यही कारण रहा कि आम आदमी पार्टी से केजरीवाल के कितने दोस्त विदा होते चले गए. अभी भी जो केजरीवाल की मंडली है उसमें कई ऐसे दोस्त हैं जो साथ में तो हैं पर उन पर भरोसा कितना है यह कोई नहीं जानता है. राघव चड्ढा और संजय सिंह अब थोड़ी दूरी बन चुकी है. कैलाश गहलोत भी जबसे एलजी वीके सक्सेना के करीबी हुए हैं अरविंद उनपर भी भरोसा नहीं कर सकते हैं. आतिशी को अगर केजरीवाल सीएम बनाते हैं तो फिर उन्हें हटाने में मुश्किल आ सकती है क्योंकि एक महिला को पद से हटाना उचित नहीं लगेगा. पत्नी सुनीता केजरीवाल को सीएम बनाने पर परिवारवाद का ठप्पा लगने का आरोप लगता. इसलिए ऐसा लग रहा था कि केजरीवाल कभी भी किसी दूसरे को सीएम नहीं बनाएंगे. पर केजरीवाल ने सबको चौंका दिया
2-बीजेपी हरियाणा में अपना फायदा देख रही थी
बीजेपी इस समय हरियाणा चुनाव को फोकस बनाए हुए थी. उसे अभी दूर-दूर तक दिल्ली विधानसभा के चुनाव की चिंता नहीं है. यही कारण रहा कि वह अरविंद केजरीवाल के अगले स्टेप के बारे में आंकलन नहीं कर पाई. बीजेपी को ऐसा लग रहा था कि अरविंद केजरीवाल के आने से हरियाणा में चुनाव चतुष्कोणीय हो जाएगा. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि अरविंद केजरीवाल के आने से हरियाणा में आम आदमी पार्टी की उम्मीदें जवां हो गईं हैं. केजरीवाल अगर हरियाणा चुनाव में जमकर प्रचार करते हैं तो जाहिर है कि कांग्रेस और बीजेपी को दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. पर हरियाणा में अभी की जो स्थिति है उसमें अगर बीजेपी विरोधी वोटों का बंटवारा होता है तो जाहिर है कि भारतीय जनता पार्टी को जबरदस्त फायदा मिल सकता है. हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार अजयदीप लाठर कहते हैं कि आम आदमी पार्टी का कॉडर यहां काग्रेस से कई गुना बेहतर है. यदि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी साथ मिलकर चुनाव लड़े होते तो बीजेपी की बहुत बुरी हार होती . लाठर कहते हैं कि कांग्रेस की हवा जरूर चल रही है. पर कांग्रेस के पास अपने वोटर्स को मतदान स्थल तक ले जाने वाले लोग नहीं है.
3- बीजेपी यह नहीं समझ पाई कि वे इस्तीफा देकर 'शहीद' बन जाएंगे
कुर्सी छोड़ना भारतीय राजनीति में त्याग का परिचय माना जाता है. चाहे वह 2004 में सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री न बनना हो, या फिर नैतिकता का हवाला देकर नेताओं का कुर्सी से हट जाना. शराब घोटाले में गिरफ्तार होने के बाद से ही केजरीवाल खुद को पीडि़त साबित करने में जुट हुए थे. सीएम के तमाम अधिकार छीन लिये जाने के बावजूद वे पद पर बने रहे. बीजेपी को लगा कि ऐसा आगे भी चलता रहेगा, और वह केजरीवाल को भ्रष्टाचार के आरोप पर घेरती रहेगी. लेकिन, केजरीवाल ने बीजेपी से ये मौका छीन लिया. यानी एक पंथ, दो काज. इस्तीफा देकर वे खुद को वनवासी राम बता रहे हैं, वहीं भ्रष्टाचार के आरोप से परे भी जाने की कोशिश कर रहे हैं. उनका यह पैंतरा कितना काम करेगा, यह अपनी जगह है. लेकिन बीजेपी के लिए केजरीवाल को घेरना अब थोड़ा कठिन हो जाएगा. क्योंकि वे कुर्सी पर तो होंगे नहीं.
4-शीशमहल वाले आरोपों से मुक्त होने का भी रास्ता
बीजेपी शायद यह समझ नहीं सकी कि अरविंद केजरीवाल के सामने रिजाइन करके जनता के सामने जाने का ऑप्शन है. अरविंद केजरीवाल पर एक बहुत बड़ा आरोप यह लगाया जाता है कि उन्होंने जिस सादगीपूर्ण राजनीति का जनता से वादा किया था उसे निभाया नहीं. उन पर दिल्ली में अपने आवास की साज सज्जा के लिए करोड़ों खर्च का आरोप लगाया जाता है. चूंकि अरविंद केजरीवाल ने जब दिल्ली में पहली बार सीएम बने थे तो उन्होंने जनता के बीच सादगी की छवि को धक्का नहीं लगे इसलिए अपनी पुरानी नीली वैगन आर कार और एक साधारण किस्म के फ्लैट में रहना उचित समझा था. पर बाद में केवल उनका शर्ट ही पुराना रह गया. घर उनका शीशमहल बन गया , नीली वैगन आर की जगह फॉर्च्युनर के काफिलों ने लिया. अब उम्मीद की जा रही है कि अरविंद केजरीवाल फिर से किसी पुरानी कार में दिखेंगे. शीशमहल भी छोड़कर आम लोगों के बीच में जाएंगे.
5-बीजेपी ने शायद इसलिए ही राष्ट्रपति शासन की पहल नहीं की
अभी पिछले ही हफ्ते की बात है जब दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में ऐसी खबरें फैल गईं कि केंद्र सरकार दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा सकती है. दरअसल दिल्ली बीजेपी के नेताओं ने देश की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू से मिलकर दिल्ली की दुर्दशा का जिक्र करते हुए यहां राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की थी. राष्ट्रपति ने बीजेपी नेताओं की डिमांड की चिट्ठी गृहमंत्रालय को भेज दी थी. उसके बाद ऐसी खबरें जंगल में आग की तरह फैल गईं कि बस अब कभी भी दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लग सकता है. पर ऐसा नहीं हुआ. अगर भारतीय जनता पार्टी की नियत खराब होती तो अरविंद केजरीवाल को कभी बर्खास्त हो चुके होते. इस तरह केजरीवाल के शहीद होने की प्लानिंग पर पानी फिर चुका होता.