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शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी को आरोपी बनाने के मायने कम खतरनाक नहीं हैं?

अब यह तय हो चुका है कि अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया और संजय सिंह की तरह आम आदमी पार्टी का नाम भी शराब घोटाले में एक आरोपी की तरह शामिल किया जाएगा. सवाल उठता है कि राजनीतिक दलों को प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों की तरह ट्रीट करने से कौन से संकट खड़े होंगे?

शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी पर भी ईडी का शिकंजा शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी पर भी ईडी का शिकंजा
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 15 मई 2024,
  • अपडेटेड 2:53 PM IST

दिल्ली शराब घोटाले के मामले में एक साल से अधिक समय पहले गिरफ्तार किए गए वरिष्ठ आप नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया की जमानत याचिका का विरोध करते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एक बड़ा फैसला लिया है. मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को निदेशालय ने बताया कि वह इस मामले में आम आदमी पार्टी को भी आरोपी बनाएगी. यह पिछले साल ही तय हो गया था कि ईडी आगे चलकर आम आदमी पार्टी को भी आरोपी बनाएगी. 4 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने सिसौदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए ईडी के साथ-साथ सीबीआई से भी पूछा था कि उस पार्टी को आरोपी क्यों नहीं बनाया जिसने कथित तौर पर अपराध की आय प्राप्त की थी. कोर्ट का इशारा आम आदमी पार्टी की ओर था. इसी आधार पर ED के वकील ने जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा से कहा कि मामले की अगली चार्जशीट में हम आम आदमी पार्टी को सह आरोपी बनाएंगे. जाहिर है कि यह देश के इतिहास में पहली बार होगा कि भ्रष्टाचार के मामले में पूरी पार्टी को ही आरोपी बनाया जाएगा. तय है कि इसके परिणाम दूरगामी होंगे. 

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1- क्या खत्म हो सकता है राजनीतिक दल

अब जबकि यह तय हो चुका है कि ईडी की चार्जशीट में अरविंद केरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह की तरह आरोपियों की सूची में आम आदमी पार्टी का नाम भी शामिल होने वाला है तो सवाल उठता है कि राजनीतिक दलों को सजा किस तरह दी जाएगी. मतलब यह है कि अगर सिसौदिया या केजरीवाल को गुनहगार मानकर जेल भेजा जा सकता है तो पार्टी को भी गुनाह की सजा मिलनी चाहिए. पर बात यह भी है कि पार्टी के गुनाहों की सजा उन लोगों को क्यों मिले जो इमानदारी से पार्टी में लगे हुए हैं. पार्टी को सीज किया जाता है या पार्टी को कई फ्रंट पर प्रतिबंधित किया जाता है तो नुकसान तो उन इमानदार लोगों को भी भुगतना पड़ता है जो तन मन धन से लगे होते हैं.

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अरविंद केजरीवाल के केस की अदालतों में पैरवी कर रहे सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने ईडी के संभवित एक्शन को जांच एजेंसी के इरादे पर बहुत पहले ही सवाल उठाया था. सिंघवी ने यह भी कहा था कि अगर प्रवर्तन निदेशालय ऐसा करता है, तो उसका मकसद प्रॉपर्टी सीज करना, बैंक खाते फ्रीज करना जिसका मकसद सीधा किसी राजनीतिक दल को खत्म करना होगा. एक अन्य सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने भी ईडी के ऐसे कदम को अनुचित माना था. जिससे कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है. कपिल सिब्बल ने इसे PMLA की धारा 70 के प्रावधानों का बेजा इस्तेमाल बताया है, और बदनाम करने की कोशिश बताई है. 

2- बहुत सारी पार्टियां फंस सकती हैं

आम आदमी पार्टी के आरोपी बन जाने के बाद सिर्फ अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ही नहीं, ऐसे बहुत सारे नेता जो किसी न किसी रूप में पार्टी से जुड़े फैसलों से संबंधित हैं, बारी बारी सभी जांच के दायरे में आ सकते हैं. अभिषेक मनु सिंघवी ने आशंका जताई थी कि इस तरह से चुनावों के दौरान ऐसी चीजों का रणनीतिक तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, और राजनीतिक गतिविधियों को वित्तीय गड़बड़ियों के नाम पर कमजोर किया जा सकता है. 

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दरअसल PMLA की धारा 70 में किसी कंपनी के किये अपराधों के लिए सजा का प्रावधान किया गया है. धारा 70 के अनुसार, जब कोई कंपनी मनी लॉन्ड्रिंग करती है, तो हर व्यक्ति जो अपराध के समय उस कंपनी का प्रभारी या जिम्मेदार था, उसे भी दोषी माना जाएगा, और उसके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की जाएगी. ऐसी आशंका होने में कोई दो राय नहीं हो सकती कि  एक बार आम आदमी पार्टी पर एक्शन होने के बाद आगे चलकर अन्य राजनीतिक दल, खासकर क्षेत्रीय पार्टियों के सामने एक जैसी मुसीबत सामने आने लगे. 

3- राजनीतिक दल और प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में क्या अंतर रह जाएगा?

राजनीतिक दलों की स्थापना और प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों की स्थापना में एक मूलभूत अंतर रहा है. राजनीतिक दलों की स्थापना का मूल आधार जनसेवा रहा है जबकि प्राइवेट कंपनियों की स्थापना का उद्दैश्य हमेशा से लाभ कमाना रहा है.आम आदमी पार्टी पर एक्शन के बाद राजनीतिक दल भी कंपनी की तरह ही ट्रीट किए जाने लगेंगे. कंपनियां कारोबार के लिए बनाई जाती हैं, पर राजनीतिक दल सत्ता में आने के बाद उन कंपनियों के कामकाज के लिए कानून बनाने का काम करते रहे हैं.पर अब कंपनियों की तरह राजनीतिक दलों के लेन देन की भी ऑडिट होने लगेगी, जैस कोई बिजनेस हो. इसमें कोई बुराई नहीं है. राजनीतिक दलों में आय और खर्च की पारदर्शिता बढ़नी जरूरी है . पर जब कंपनियों की तरह राजनीतिक दलों को भी ट्रीट किया जाएगा तो यह आशंका बनेगी कि जिस तरह कंपनियां सरकार के रहमोकरम पर निर्भर हो जाती हैं उसी तरह राजनीतिक दल भी हो जाएंगे.
 

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