
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में विपक्ष को बहुत कम सीट मिलती है तो इस हार के कारणों में एक कारण उसकी करनी भी रहेगी. एक कहावत है कि जैसी करनी वैसी भरनी. कुछ ऐसा ही हाल यहां इडिया गठबंधन में साथ चुनाव लड़ रहे समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का है. कहा जाता है कि जब जंग में मुकाबला तगड़े पहलवान से हो तो तैयारी के लिए मेहनत और बढ़ा दी जाती है पर यहां ऐसा नहीं है. उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी तो है ही साथ में सीएम योगी आदित्यनाथ भी हैं फिर भी विपक्ष हाथ पर हाथ धरे बैठा है. इन पार्टियों को भरोसा है कि जनता हमें यूं ही कुर्सी सौंप ही देगी.लोकसभा चुनावों में एनडीए गठबंधन की ओर से ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार, रैलियां , सभाएं शुरू हो चुकी हैं. पीएम मोदी से लेकर सीएम योगी तक लगातार रैलियां और सभाएं कर रहे हैं पर इंडिया गठबंधन के नेताओं का कहीं अता पता नहीं है. आइये देखते हैं उत्तर प्रदेश में विपक्ष की तैयारियों का स्तर क्या है?
1-किसी भी हाल में जंग जीतने का जज्बा अभी तक नहीं दिखा विपक्ष में
लोकसभा में प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए या देश में सरकार बनाने के लिए यूपी का जीतना बहुत जरूरी होता है. संयोग से यूपी में इस बार विपक्ष के लिए विशेषकर इंडिया गठबंधन के लिए बहुत संभवनाएं हैं. क्योंकि बहुजन समाज पार्टी ने जिस तरह अपने कैंडिडेट खड़े किए हैं उससे यही लगता है इंडिया की बजाय एनडीए गठबंधन को नुकसान होने वाला है. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के एक साथ चुनाव लड़ने के चलते मुस्लिम वोट के बंटने का खतरा भी नहीं है. पर चुनावी तैयारियों और लड़ाई के जज्बे की जहां तक बात है वो बिल्कुल भी नहीं दिख रहा विपक्ष में. रायबरेली और अमेठी से जिस तरह गांधी परिवार मुंह चुरा रहा है वह दिखाता है कि वह जंग में उतरने से भी घबरा रहा है. रायबरेली और अमेठी में थोड़ी मेहनत कर के गांधी परिवार यह सीट जीत सकता था.वरुण गांधी भी यहां से इच्छुक थे पर कांग्रेस ने उन्हें भी गले नहीं लगाया. यही हाल अखिलेश यादव का है . अखिलेश ने अभी तक अपनी सीट कन्फर्म नहीं की है. ऐसा लग रहा है कि वो खुद चुनावी जंग में उम्मीदवार बनकर नहीं उतरना चाहते हैं. कुल मिलाकर विपक्ष की ओर से किसी भी हाल में जंग जीतने का जज्बा नहीं दिख रहा है. इसके ठीक उलट बीजेपी साम-दाम-दंड-भेद सब लगाने को तैयार है. जिन नेताओं ने अपमान किया उनको भी माफ कर साथ लेने को तैयार है.
2- केवल दो हफ्ते यानी 14 दिन बचे हैं, लेकिन इंडिया गुट की यूपी में एक भी रैली नहीं हुई
चुनावों की अधिसूचना जारी होने के बाद उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली मेरठ में हो चुकी है. सीएम योगी की ताबड़तोड़ रैली पूरे प्रदेश में हो रही है.दूसरी ओर इंडिया गठबंधन के नेता चुनाव प्रचार में कहीं दिखाई ही नहीं दे रहे हैं. उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की तो बात ही न करिए , अखिलेश यादव भी नहीं दिखाई दे रहे हैं. जबकि दोनों पार्टियां साथ चुनाव लड़ रही हैं पर आम वोटर्स को यह पता टीवी और अखबारों से ही पता चल पा रहा है. क्योंकि दोनों पार्टियों की अभी तक कोई संयुक्त रैली तक नहीं हो सकी है.यही हाल बीएसपी का है. अभी तक पार्टी सुप्रीमो मायावती ने कहीं भी कोई सभा नहीं की हैं.
3-कई सीटों पर लगातार प्रत्य़ाशी बदल रही है सपा
समाजवादी पार्टी के चुनावी तैयारी की गंभीरता देखिए , अब तक करीब 10 लोकसभा क्षेत्र के उम्मीदवारों के टिकट बदल चुके हैं. बीच में तो ये स्थिति हो गई थी कि मुरादाबाद और रामपुर में एक साथ 2-2 प्रत्याशियों को सिंबल मिल चुका था. आज की तारीख में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं से अगर पूछा जाए कि मुरादाबाद और रामपुर में पार्टी के उम्मीदवारों का नाम बताएं , तो हो सकता है वो भी कन्फ्यूज हो जाएं. मेरठ में आज तीसरे प्रत्याशी के नाम की घोषणा हुई है. क्या कोई भी समाजवादी पार्टी के लेवल की पार्टी से इस तरह के व्यवहार की उम्मीद कर सकता है. इस तरह के व्यवहार से आम जनता तो नाराज होती ही है पार्टी के नेता और समर्थकों में भी नेता के प्रति गुस्सा बढ़ता है. अभी बदायूं को लेकर सस्पेंस है कि चाचा शिवपाल लड़ेंगे या उनका बेटा.कहा जा रहा है कि कुछ और सीटों पर उम्मीदवारों को बदलने की बात पार्टी में चल रही है.
4- कांग्रेस तो अब तक अमेठी-रायबरेली को लेकर ही कॉन्फिडेंट नहीं
समाजवादी पार्टी ही नहीं कांग्रेस का भी यही हाल है. कुल जमा 17 सीटों पर ही पार्टी चुनाव लड़ रही है पर अभी तक सभी उम्मीदवारों के नाम फाइनल नहीं हो सके हैं. रायबरेली और अमेठी सीट पर अभी तक नाम फाइनल नहीं होना पार्टी की चुनाव को लेकर गंभीरता को ही दिखाता है. रायबरेली और अमेठी ऐसी सीटें हैं जहां से कांग्रेस थोड़ी मेहनत करके भी अपनी सीटें निकाल सकती है. अगर गांधी परिवार के लोग चुनाव लड़ते हैं तो जीत और भी आसान हो सकती है. पर अभी तक पार्टी में मंथन ही चल रहा है.
5- इंडिया गुट की लापरवाही से एक और गठबंधन खड़ा हो गया
इंडिया गुट के नेताओं विशेषकर समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कोशिश की होती तो एक और गठबंधन नहीं सामने आया होता. रविवार को एआईएमआईएम और अपना दल (कमेरावादी) और कुछ अति छोटी पार्टियों ने मिलकर एक नए गठबंधन की घोषणा कर दी है.अपना दल (कमेरावादी) की नेता पल्लवी पटेल अभी कुछ दिनों पहले तक समाजवादी पार्टी के ही साथ थीं. सपा के सिंबल पर ही सिराथु से उन्होंने यूपी डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को हराया था. पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की आपसी खींचतान या राजनीति में वो अखिलेश के विरोध पर उतर आईं. राज्यसभा चुनावों में उन्होंने समाजवादी पार्टी का साथ नहीं दिया. इसमें गलतियां तीनों तरफ से हुईं. पर नुकसान तो इंडिया गठबंधन को ही होगा.
6- मायावती और उनकी पार्टी बसपा की उदासीनता समझ से परे
उत्तर प्रदेश में एनडीए को हराने का हुंकार बीएसपी भी सोशल मीडिया पर करती रहती है. क्योंकि बीएसपी में केवल एक ही स्टार प्रचारक हैं वो खुद मायावती हैं और उन्होंने अभी तक एक रैली की कौन कहे एक सभा तक नहीं की है. हालांकि अब मायावती अपने उत्तराधिकारी की घोषणा कर चुकी हैं. अपने भतीजे आकाश आनंद को वो औपचारिक तरीके से उत्तराधिकारी बना चुकी हैं. पर अभी तक आकाश आनंद भी मैदान में नजर नहीं आ सके हैं. अभी एक दो दिन पहले खबर आई थी कि उनकी पहली सभा नगीना लोकसभा में होने वाली है. गौरतलब है कि नगीना से आाजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण चुनाव लड़ रहे हैं. जैसा कि सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में दलित नेताओं की जहां तक बात है उसमें मायावती के बाद चंद्रशेखर ही सबसे अधिक लोकप्रिय हैं.