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J&K election: कांग्रेस ने जम्‍मू-कश्‍मीर में यूपी से बेहतर डील जुटा ली है

दिल्ली में राहुल गांधी का दबदबा तो उत्तर प्रदेश की वजह से बढ़ा है, लेकिन कांग्रेस ज्यादा प्रभावी जम्मू-कश्मीर में लग रही है. क्योंकि विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के साथ समाजवादी पार्टी से कहीं बेहतर डील पक्की कर ली है - क्या कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में बेहतर नतीजे भी ला सकेगी?

राहुल गांधी के लिए उमर अब्दुल्ला से डील फाइनल करना आसान रहा या अखिलेश यादव से? राहुल गांधी के लिए उमर अब्दुल्ला से डील फाइनल करना आसान रहा या अखिलेश यादव से?
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 27 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 2:23 PM IST

जम्मू कश्मीर में राहुल गांधी ने नेशनल कांफ्रेंस के साथ डील तो पहले ही पक्की कर ली थी, सीटों का बंटवारा भी वक्त रहते फाइनल कर लिया है - जब राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे को लेकर  श्रीनगर पहुंचे तभी से ऐसे रुझान आने लगे थे. 

जिस रफ्तार से जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के साथ सारी बातें समय रहते तय हुई हैं, अगर लोकसभा चुनाव में भी राहुल गांधी और अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में ऐसे नतीजे पर पहुंच गये होते तो थोड़े बेहतर नतीजे आ सकते थे. बल्कि वक्त रहते INDIA गठबंधन की डील पक्की हो गई होती तो और लोकसभा चुनाव में एनडीए के मुकाबले सीटों में फासला भी कम हो सकता था.

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जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव को लेकर सीटों के बंटवारे पर बातचीत के लिए कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे के साथ हुई बैठक में उमर अब्दुल्ला और नेशनल कांफ्रेंस के सबसे सीनियर नेता फारूक अब्दुल्ला भी शामिल थे.

कांग्रेस के हिस्से में सूबे की एक तिहाई सीटें

जैसा कि बताया गया है, केंद्र शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 90 सीटों में से कांग्रेस 32 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है, और 5 सीटें ऐसी भी हैं जिन पर नेशनल कांफ्रेस के साथ वो फ्रेंडली मैच भी खेलेगी. नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन के तहत 51 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि दो सीटें सीपीएम और पैंथर्स पार्टी के लिए छोड़ी गई हैं.  

नेशनल कॉन्फ्रेंस अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला के मुताबिक, एकता के सिद्धांतों को कायम रखने के लिए ही दोनो दलों में आम सहमति बनी है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ साथ कांग्रेस नेताओं की तरफ से ये समझाने की कोशिश हो रही है कि सहमति सिर्फ बड़े नेताओं की बातचीत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जम्मू-कश्मीर के हर निर्वाचन क्षेत्र पर पूरी बातचीत के बाद ही आम सहमति बनी है. और बताते हैं कि ये सब कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल और सलमान खुर्शीद की स्थानीय नेताओं के साथ फारूक अब्दुल्ला के गुपकार निवास पर काफी लंबी बातचीत के बाद ही अंतिम रूप ले पाया. 

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चुनावी गठबंधन की घोषणा एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में की गई जिसमें जम्मू-कश्मीर कांग्रेस प्रमुख तारिक हमीद कर्रा, कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल और नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला शामिल थे. मीडिया से बात करते हुए केसी वेणुगोपाल ने केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी पर जम्मू-कश्मीर की आत्मा को खत्म करने का आरोप लगाया, और दावा किया कि INDIA ब्लॉक का मकसद उसे हर हाल में बचाना है. 

असल में, केसी वेणुगोपाल अपनी तरफ से चुनाव पूर्व गठबंधन पर सफाई दे रहे थे. हाल ही में नेशनल कांफ्रेस के चुनाव मैनिफेस्टो को आधार बनाकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस से 10 सवाल पूछे थे. 

कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए अपने 9   उम्मीदवारों की पहली लिस्ट भी जारी कर दी है. बीजेपी की पहली लिस्ट तो पहले ही आ चुकी है, और उसका संशोधित रूप में सामने आ चुका है. और वैसे ही नेशनल कांफ्रेंस ने भी अपनी पहली सूची जारी कर दी है, जिसमें 18 उम्मीदवारों के नाम हैं. 

कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन की एक खास बात और भी है. जम्मू-कश्मीर की 5 ऐसी सीटें भी होंगी जहां दोनो दलों के बीच फ्रेंडली मैच देखने को मिलेगा. ये सीटें हैं, सोपोर, बनिहाल, भद्रवाह, डोडा और नगरोटा.

जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का इतना प्रभाव कैसे? 

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हर चुनाव की अपनी परिस्थितियां होती हैं. आम चुनाव और विधानसभा चुनाव में तो वैसे भी कई बुनियादी फर्क होते हैं, लेकिन हर राज्य की क्षेत्रीय राजनीति भी अलग होती है. जाहिर है कांग्रेस के सामने जम्मू-कश्मीर में अलग और उत्तर प्रदेश में अलग चुनौतियां और परिस्थितियां रही होंगी. 

कांग्रेस ने 2017 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले 2024 के आम चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर बेहतर प्रदर्शन किया है, इसलिए भी क्योंकि इस बार वोटों का ट्रांसफर भी ठीक ठाक हो पाया है. 

आम चुनाव से पहले राहुल गांधी अपनी न्याय यात्रा के साथ निकले थे तो असम से लेकर पश्चिम बंगाल और बिहार में जो तो खट्टे मीठे अनुभव हुए ही, उत्तर प्रदेश में  में भी अखिलेश यादव ने कम नहीं छकाया था. हालांकि, राहुल गांधी ने भी पहले विचारधारा के नाम पर अखिलेश यादव की राजनीति को कमतर बताने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी. 

2017 और 2019 के चुनावों से सबक लेते हुए कांग्रेस ने अजय राय के रूप में एक मजबूत नेता को यूपी की कमान सौंप दी थी, लेकिन उनके लिए राहुल गांधी, अखिलेश यादव से बलिया की सीट नहीं ले पाये. नतीजे देखें तो अजय राय ने वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़ते हुए जहां फासला कम किया, वहीं बलिया से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सनातन पांडेय ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे और बीजेपी उम्मीदवार नीरज शेखर को भी शिकस्त दे डाली - ऐसे में अखिलेश यादव के फैसले को खराब भी नहीं कह सकते.  

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अगर दोनो राज्यों में कांग्रेस की हैसियत की बात करें तो जम्मू-कश्मीर में भी उसके सबसे कद्दावर नेता गुलाम नबी आजाद साथ छोड़ कर चले गये. जाते जाते राहुल गांधी को खूब खरी खोटी भी सुनाते गये. जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई गई थी,  तब गुलामनबी आजाद कांग्रेस की कश्मीर पॉलिसी के कर्ताधर्ता हुआ करते थे, जिससे नाराज कई नेताओं को कांग्रेस को गंवाना भी पड़ा. 

आगे का तो नहीं पता की चुनावों में गुलाम नबी आजाद कोई करिश्मा दिखा भी पाएंगे या नहीं, लेकिन अभी तो वो नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के मुकाबले में काफी दूर दिखाई पड़ रहे हैं - और ऐसी स्थिति में कांग्रेस का नेशनल कांफ्रेंस से केंद्र शासित क्षेत्र का करीब एक तिहाई सीटें झटक लेना खास तो लगता ही है.

महबूबा मुफ्ती की पार्टी PDP के साथ कांग्रेस का चुनावी गठबंधन भले न हो पाया हो, लेकिन उसी पार्टी के नेता नईम अख्तर का कहना था कि राहुल गांधी जम्मू-कश्मीर के लोगों की आवाज को दिल्ली में ज्यादा असरदार तरीके से उठा सकते हैं.  

क्या नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला भी राहुल गांधी के बारे में कुछ ऐसा ही सोचते हैं? और क्या इसी वजह से नेशनल कांफ्रेंस ने कांग्रेस को मुंहमांगी सीटें दे डाली हैं?

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