
मेरठ का चुनाव रोचक होता जा रहा है. जिस तरह यहां समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी बदला है और बहुजन समाज पार्टी ने मुस्लिम कैंडिडेट की बजाय एक सवर्ण हिंदू पर दांव खेल दिया है उससे यह सीट हॉट हो गयी है. अब यहां मुकाबला निश्चित रूप से त्रिकोणीय हो गया है.
भारतीय जनता पार्टी ने मेरठ के सिटिंग एमपी राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काटकर एक ऐसे शख्स को टिकट दिया गया जिससे पार पाना किसी भी प्रत्याशी और दल के लिए आसान नहीं रहने वाला है . अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के माहौल में रामानंद सागर कृत टीवी सीरियल रामायण के राम अरुण गोविल को हराना किसी के लिए भी टेढ़ी खीर साबित हो सकती है. पर जिस तरह मेरठ में बीजेपी लगातार कमजोर हो रही है इसका इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है कि हारते हारते बची थी.बीजेपी इस सीट को लेकर कितनी डरी हुई है यह इसी से पता चलता है कि उसे नकली राम का सहारा लेना पड़ रहा है. इसलिए मेरठ की राह किसी भी दल के लिए आसान नहीं है. आइये देखते हैं कि मेरठ का चुनावी गणित क्या कहता है.
1-भानु प्रताप सिंह की जगह प्रधान के आने से कितनी मजबूत हुई है सपा
समाजवादी पार्टी के लोगों का कहना है कि अतुल प्रधान के आने से मेरठ में मुकाबला एकतरफा नहीं होगा. दरअसल मेरठ की स्थानीय इकाई बुलंदशहर के रहने वाले भानु सिंह को बाहरी मानकर उनका विरोध कर रही थी. समाजवादी पार्टी के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी पार्टी की छवि सुधारने के लिए इस बार नया प्रयोग कर रहे हैं. उनकी प्लानिंग थी कि कई सामान्य सीटों पर दलित प्रत्याशियों को खड़ा किया जाए. संभवतया इसी प्लानिंग के तहत भानु सिंह का नाम यहां से तय हुआ था. इसके पीछे अन्य कारण भी थे. मेरठ सीट पर करीब 19 प्रतिशत दलित वोट भी हैं. अखिलेश को पता था कि जाट वोट ( करीब 11 प्रतिशत) उन्हें मिलने वाले नहीं है. इसलिए उन्होंने भानु को टिकट देकर बीएसपी को चित करने के लिए यह दांव खेला था. पर शायद उन्हें स्थानीय इकाई के आगे मजबूर होना पड़ा है. वैसे अतुल प्रधान को भी कमजोर समझना भूल ही होगा. अतुल प्रधान के पास गुर्जर वोट (करीब 6 प्रतिशत) तो हैं ही इसके साथ ही समाजवादी पार्टी के पुराने कार्यकर्ता होने के नाते उनकी गांव-गांव में पकड़ भी भानु सिंह के मुकाबले बेहतर है.
प्रधान 2012 से शुरू होकर कई बार सरधना विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने फायरब्रांड भाजपा नेता संगीत सोम को 18,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया. 41 वर्षीय प्रधान चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद से ही सपा से जुड़े हुए हैं. वह पहले पार्टी की छात्र सभा (छात्र शाखा) के अध्यक्ष थे. बाद में प्रधान की पत्नी सीमा 2015 में सरधना जिला परिषद प्रमुख चुनी गईं और पिछले साल उन्होंने एसपी के समर्थन से मेरठ मेयर का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं.
भानु सिंह को मैदान में उतारने का फैसला भी बहुत सोच समझकर लिया गया फैसला था. अगर समाजवादी पार्टी की स्थानीय इकाई का सपोर्ट मिलता तो भानु हैरान करने वाला रिजल्ट दे सकते थे. हालांकि चुनाव लड़ने का जहां तक अनुभव है उसमें निश्चित रूप से वो अतुल प्रधान के सामने बहुत हल्के पड़ रहे थे. सुप्रीम कोर्ट के वकील और दिल्ली के पास साहिबाबाद के निवासी, सिंह ने 2017 के विधानसभा चुनावों में सिकंदराबाद सीट से राष्ट्रीय जनहित संघर्ष पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, और उन्हें सिर्फ 1,000 से अधिक वोट मिले थे.भानु इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के इस्तेमाल के खिलाफ मुखर रहे हैं.
2- मेरठ में माहौल क्या है अरुण गोविल के लिए
मेरठ में शुरू में अरुण गोविल का भी बाहरी कहकर विरोध हुआ है. हालांकि गोविल का जन्म मेरठ में हुआ और करीब 17 साल तक वो इसी शहर के होकर रहे. उनके पिता शहर में जलनिगम के इंजिनियर थे. अरुण गोविल ने बहुत सी फिल्मों में काम किया पर रामायण सीरियल में कामकर जो प्रसिद्धी उन्हें मिली वो हर किसी को नसीब नहीं होती. उनकी लोकप्रियता का ही आलम है कि वह जहां जाते हैं बहुत से लोग उनकी पूजा करने लगते हैं. मंगलवार को पर्चा दाखिला के समय भी उनके साथ लोग सेल्फी लेने के लिए मचल रहे थे. स्थानीय पत्रकार प्रेमदेव शर्मा कहते हैं कि बाकी सब तो अरुण गोविल को पक्ष में है पर स्थानीय जनता को लगता है कि वो चुनाव जीतने के बाद शहर छोड़कर चले जाएंगे. शर्मा कहते हैं कि मेरठ वैसे भी बीजेपी की सीट रही है और अरुण गोविल के आने के बाद निश्चित रूप से यहां बीजेपी मजबूत हुई है. पर सपा प्रत्य़ाशी अतुल प्रधान और बीएसपी के प्रत्याशी देवव्रत त्यागी को हल्के में नहीं लिया जा सकता . मेरठ में मुस्लिम वोटों की बहुत बड़ी हिस्सेदारी है. शर्मा का कहना है कि मुस्लिम वोट जिधर जाएंगे जीत उसी की होगी.
3-क्या कहता है मेरठ का जातिगत समीकरण
2011 के आंकड़ों के मुताबिक मेरठ में करीब 35 लाख आबादी है, जिसमें 36 फीसदी मुस्लिम और 65 फीसदी हिंदू आबादी शामिल हैं. ओबीसी श्रेणी में आने वाले जाट और गुज्जर क्रमशः 11% और 5% हैं. लगभग 19% मतदाताओं के साथ अनुसूचित जाति (एससी) मतदाताओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. ब्राह्मण समाज एक लाख 18 हजार, वैश्य 1 लाख 83 हजार, त्यागी समाज के लोगों की आबादी 41 हजार है. इस तरह देखा जाए तो यहां पर सबसे मजबूत स्थिति बीएसपी की होनी चाहिए. 19 परसेंट एससी वोटों के साथ अगर बीएसपी कैंडिडेट देवव्रत त्यागी अपनी बिरादरी के वोट हासिल करते दिखे तो मुस्लिम वोट उनकी ओर जा सकते हैं. क्योंकि मुस्लिम वोटर्स अंतिम समय तक देखेगा कि बीजेपी को कौन प्रत्याशी टक्कर देता दिख रहा है.
4-बीएसपी कैंडिडेट किसका खेल बिगाड़ेंगे
आम तौर पर यह समझा जा रहा था कि बीएसपी किसी मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट देगी.यह प्रेडिक्शन उन लोगों का था जो बीएसपी को बीजेपी की बी टीम बोलते हैं. पर यहां बीएसपी ने एक सवर्ण हिंदू को टिकट देकर बीजेपी का खेल बिगाड़ने का काम किया है. क्योंकि अगर देवव्रत त्यागी को अपनी बिरादरी के 41 हजार वोटों में से 10 हजार वोट भी पाने में सफल होते हैं तो बीजेपी के साथ खेला हो सकता है. सभी जानते हैं कि 2019 के चुनावों में राजेंद्र अग्रवाल मात्र 4 हजार वोटों से चुनाव जीते थे.समाजवादी पार्टी के प्रत्य़ाशी अतुल प्रधान के लिए समस्या यह हो सकती है कि सरधना भौगोलिक रूप से मेरठ जिले में स्थित होने के बावजूद मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. दूसरे उनके पहले समाजवादी पार्टी ने भानु सिंह का नाम घोषित किया था जो दलित समाज से आते थे. उनका टिकट कटने से जाहिर है कि इस समुदाय का जो वोट समाजवादी पार्टी को मिलना था अब वो भी नहीं मिलने वाला है. दूसरे- सरधना के ही एक समाजवादी नेता योगेश वर्मा ने भी भानु सिंह का टिकट कटने पर नाराजगी जताई है. जो समाजवादी पार्टी के लिए भारी पड़ने वाली है.