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कद-काठी के हिसाब से पुरुषों की थाली में ज्यादा कैलोरी परोसी जाती है, यही गणित सैलरी पर भी लगा दिया गया

कुछ बरस पहले स्वीडन में एक स्टडी हुई, जिसमें पहली-पहली नौकरी कर रहे ग्रेजुएट्स को टटोला गया. इस दौरान पता लगा कि बराबरी की डिग्री और पैनी समझ के बाद भी युवतियों की सैलरी पुरुषों से कम है. जब कंपनियों से दरयाफ्त हुई तो उन्होंने कंधे उचकाते हुए जवाब दिया- क्योंकि औरतें मांगती नहीं! स्टडी को नाम मिला- ‘वीमन डोन्ट आस्क’.

महिला को उसकी काबिलियत जितनी सैलरी शायद ही कहीं मिलती हो. सांकेतिक फोटो (Getty Images) महिला को उसकी काबिलियत जितनी सैलरी शायद ही कहीं मिलती हो. सांकेतिक फोटो (Getty Images)
मृदुलिका झा
  • नई दिल्ली,
  • 26 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 10:27 AM IST

महिलाएं क्योंकि सही कीमत नहीं मांगतीं, तो चाहे उनका दिमाग चाकू-सा धारदार और काम के घंटे इजरायल-हमास विवाद की तरह पसर जाएं, लेकिन पैसे कम ही मिलेंगे. स्टडी पर एक किताब भी छपकर आ गई. इधर हम यही सोच-सोचकर मगन होते रहे कि जिस भी रोज ज्यादा की डिमांड करेंगे, अलादीन का चिराग भक्क से रोशन हो जाएगा. 

इस खुशफहम खुलासे के ऐन बाद एक और स्टडी आई. 

अमेरिकन पब्लिशिंग कंपनी विली ने दुनिया के तमाम अमीर मुल्कों में औरतों-मर्दों से बात की. ह्यमन रिसोर्सेज को भी इंटरव्यू किया गया. अबकी एक नई बात पता लगी.

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औरतें जितना भी कम मांगे, कंपनियां उसमें काटछांट कर ही देती हैं. साथ ही फ्री के धनिए-पुदीने की तरह थोड़ा काम भी बढ़ा देती हैं. 

इधर नौकरी खोज रही कुछ ऐसी महिलाएं भी होती हैं, जो अपनी कीमत जानती हैं. इंटरव्यू पर जाने से पहले वे मार्केट रेट पढ़ेंगी. अगर सोने का बाजार भाव 7 हजार रुपए प्रति ग्राम चल रहा हो तो वे उतना ही मांगेगी. लेकिन लीजिए साहब, उन्हें तो नौकरी पर ही नहीं रखा जाएगा. वजह? 'फलां कैंडिडेट तो बड़ी जिद्दी और बदमिजाज थी. पैसे ऐसे मांग रही थीं, जैसे आजादी मांग रही हों!' 



करीब साढ़े 4 हजार वेस्टर्न महिलाओं ने माना कि तनख्वाह नेगोशिएट करने पर उन्हें जॉब ही नहीं मिला, बल्कि इंटरव्यू के दौरान भद्दे कमेंट्स भी सुनने पड़े, मसलन, ताबूत में जेब नहीं होती मैडम, या फिर घर तो आपके मियां जी चलाते होंगे, फिर इतने पैसों का आप करेंगी क्या! 

संस्थानों की ये हैरानी वाजिब भी है. 

- औरतें लिपस्टिक-पावडर खरीदेंगी लेकिन वॉशिंग पावडर के पैसे तो पति की जेब से ही जाएंगे. 

- औरतें सेल से कपड़े लेंगी. पुरुष अपनी कमाई से स्कूल की फीस भरेगा. 

- औरतें दिवाली-होली तोहफे ले आएंगी, लेकिन सालभर का खर्च तो पुरुष ही उठाएगा. 

जैसे कद-काठी के हिसाब से मर्दों को ज्यादा कैलोरी-प्रोटीन चाहिए होता है, वैसा ही गणित तनख्वाह के मामले में भी लागू हो चुका है. 

खुद इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) ने माना कि नौकरी लेने से पहले जितना भाव-ताव आदमी करते हैं, उसका आठवां हिस्सा ही महिलाएं कर पाती हैं. 

नेगोशिएशन के दौरान वे हकलाती हैं. यहां तक कि पसीना-पसीना हो जाती हैं. कई महिलाओं ने माना कि उन्हें अपने सिंगल मदर होने, या फैमिली का बोझ ढोने का ‘सच बताना’ पड़ा, जबकि पुरुषों के मामले में ऐसा कुछ नहीं. वे काबिल भी हैं और कुदरती तौर पर उनपर जिम्मेदारी तो है ही. लिहाजा कंपनियों को उनपर पैसे खर्चने से कोई एतराज नहीं.

इस नए सर्वे को नाम मिला- ‘डू वीमन आस्क’?

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दुनिया में ऐसा कोई मुल्क या पेशा नहीं, जहां औरतें, मर्दों के बराबर कमाती हों. भारत इस मामले में थोड़ा आगे ही है. ILO के मुताबिक, जहां दुनिया की ज्यादातर जगहों पर समान काम के लिए वेतन में फर्क 20 फीसदी है, वहीं हमारे यहां ये बढ़कर 34 प्रतिशत हो जाता है. ओहदा बढ़ने के साथ-साथ फर्क बढ़ता ही चला जाता है. 

कंपनियों के पास इस कतरब्योंत के लिए ऐसी-ऐसी दलीलें हैं, जिनकी कोई काट नहीं. 

- औरतों की शादी होगी, शहर बदलेगा, काम छूट जाएगा. इनपर ज्यादा खर्च करने का क्या फायदा. 

- अजी, आए-दिन ये तीज-त्योहार की छुट्टियां लेती हैं. फिर हारी-बीमारी के बहाने अलग.
 
- बच्चे होंगे तो महीनों बिना काम रोटियां तोड़ेंगी. इसके बाद ऑफिस आएंगी भी तो जल्दी भागने के बहाने खोजेंगी. 

- अंधेरा ढलते ही रुकने में हील-हुज्जत करती हैं, लेकिन पैसों के लिए इन्हें बराबरी चाहिए!

गलती से अगर किसी महिला को ऊंची पगार मिल भी जाए तो मसालेदार कहानियों की देग पुरुषों के बीच खदबदाने लगती है.

मैगी से भी फटाफट और उतने ही रसीले किस्से बन जाते हैं कि किन-किन तरीकों से अमुक औरत को इतनी बड़ी तनख्वाह मिली होगी. हर मुंह से गुजरते हुए कहानी में थोड़ा और तड़का लग जाता है. 

अरे, उसे आता ही क्या है, बालों का छल्ला बनाकर आंय-बांय बुदबुदाने के, जैसी बातें कॉमन हो जाती हैं. ये बातें छुट्टन की शॉप पर जूते सिलने वाले नहीं, बल्कि तथाकथित पढ़े-लिखे लोग करते हैं.

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धीरे से ये यशोगान घर तक पहुंच आएगा. पत्नी कद में तो कम चाहिए ही, ओहदे और ताकत में भी जरा दबकर रहे तो ठीक.

जैसे-जैसे फासला घटेगा, क्लेश बढ़ता जाएगा. शोध तो ये तक साबित कर चुके कि ज्यादा कामयाब या कमाऊ औरत का तलाक भी ज्यादा होता है.

कारण बहुत साफ है. पैसों से औरत का दिमाग बिगड़ जाता है. साल 2020 में स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च आई- ऑल द सिंगल लेडीज: जॉब प्रमोशन्स एंड ड्यूरेबिलिटी ऑफ मैरिज. इसमें पाया गया कि बड़े प्रमोशन के तीसरे ही साल में महिलाओं का तलाक होने की संभावना उनके पुरुष साथियों से कई गुना ज्यादा होती है. 

पति कमतर हो तो पत्नी का प्रमोशन उसके पुराने लापता प्रेमी जितना खतरनाक हो सकता है. जैसे ही मुठभेड़ हुई, रिश्ता टूटना तय. ऐसे में बराबरी की तो बात ही कौन करे. 

जाते-जाते ताजा खबर...आइसलैंड वो देश है, जहां औरत-आदमी में कोई फर्क नहीं किया जाता. दोनों ही बराबरी से आजाद हैं. अब तक सारे इंडेक्स यही दावा करते रहे. हालांकि इसी मंगलवार को ये भरम टूट गया. 

वहां की प्रधानमंत्री कैटरीन जैकब्सडाटिर स्ट्राइक पर चली गईं.

बकौल कैटरीन, महिला-पुरुष में फर्क भले न दिखे, लेकिन ईश्वर की तरह वो हर जगह मौजूद है. यहां तक कि वर्कप्लेस पर भी महिलाएं समान काम के बदले कम वेतन पा रही हैं. लगभग साढ़े 3 लाख की आबादी वाला ये देश बीते 14 सालों से जेंडर इक्वेलिटी में नंबर 1 है. वहां भी ये हाल हैं कि खुद पीएम को बोलना पड़ गया.

आज से कुछ 7 दशक पुरानी बात है, जब मोनेको देश की राजकुमारी ग्रेस कैली गर्भवती थीं. घूमने-फिरने की खासी शौकीन लेकिन शरीर का आकार आड़े आने लगा. वे नहीं चाहती थीं कि दुनिया उनकी प्रेग्नेंसी के बारे में पहले से खुसुर-पुसुर करने लगे. ग्रेस ने लिहाजा इसकी तोड़ खोज निकाली. उन्होंने एक बड़ा-सा बैग तैयार करवाया, जिसे वे पेट की तरफ लेकर चलतीं. 

ये कैली हैंड बैग था जो कुछ ही समय में ढेरों औरतों के पास दिखने लगा. ये अलग बात है कि इसमें पैसों के अलावा बाकी सबकुछ रहता. साल 2023 ढलने को है, लेकिन हाल कमोबेश वही रहा. बैग तो है, लेकिन रखने के लिए न तो पैसे हैं, न हिम्मत. 

फर्क का ये ढर्रा अगले डेढ़ सौ सालों, यानी साल 2154 तक चल सकता है, या फिर उसके बाद भी. ये बात खुद वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम भी मान चुका.

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