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हरियाणा, महाराष्ट्र के बाद BJP अगर दिल्ली जीतती है तो राष्ट्रीय राजनीति में ये 5 बदलाव होंगे ही

अरविंद केजरीवाल की परिस्थितियों में ही झारखंड में हेमंत सोरेन ने पिछले साल बीजेपी को पटखनी दी थी. लेकिन दिल्ली में बीजेपी जीतती है तो पत्थर पर लकीर खींचने जैसा ही होगा. बीजेपी के खाते में आने वाली यह जीत कई मायनों में महाराष्ट्र और हरियाणा से बड़ी जीत मानी जाएगी.

दिल्ली विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत के बहुत से मायने हैं. दिल्ली विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत के बहुत से मायने हैं.
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 06 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 4:27 PM IST

भारतीय जनता पार्टी को 2024 लोकसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद कई बार ऐसा लग रहा था कि अब बीजेपी के पराभव का समय आ गया है. कुछ लोग दशा दस साल जैसे मुहावरे भी बीजेपी और नरेंद्र मोदी पर फिट करने लगे थे. अधिकतर एग्जिट पोल बता रहे हैं कि दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने  जा रही है. हरियाणा फिर महाराष्ट्र में भारी विजय के बाद अगर दिल्ली में भी भारतीय जनता पार्टी अपनी विजय गाथा जारी रखती है तो यह मिसाल होगा. दिल्ली का चुनाव हरियाणा और महाराष्ट्र से बहुत जटिल था. यहां बीजेपी लोकप्रिय होकर भी हार रही थी. पिछले तीन लोकसभा चुनावों में भाजपा दिल्ली के दिल में राज करती रही. इसका उदाहरण तीनों लोकसभा चुनावों में क्लीन स्वीप करना रहा. इन चुनावों में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक साथ लड़कर और अलग-अलग लड़कर भी देख लिया पर बीजेपी के करीब पहुंचना भी दूर रहा. पर वहीं विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी का झाड़ू पिछले तीन विधानसभा चुनावों में कमल की सफाई कर रहा था. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के फ्रीबीज के आगे बीजेपी का आगे निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन लग रहा था. परिस्थितियां बिल्कुल भी बीजेपी के लिए पॉजिटिव नहीं थीं . अरविंद केजरीवाल की परिस्थितियों में ही झारखंड में हेमंत सोरेन ने पिछले साल बीजेपी को पटखनी दी है. फिर भी अगर दिल्ली में बीजेपी जीतती है तो पत्थर पर लकीर खींचने जैसा ही होगा. आइये देखते हैं कि राष्ट्रीय राजनीति में दिल्ली में बीजेपी की जीत के क्या प्रभाव होंगे? 

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1-पीएम नरेंद्र मोदी का पुराना फॉर्म वापस लौटेगा

लोकसभा चुनावों में हार के बाद रानजीतिक गलियारों में माना जा रहा था कि पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में गिरावट का दौर शुरू हो गया है. कई बार कांग्रेस और राहुल गांधी को लेकर लोग कुछ ज्यादा ही आशान्वित होने लगे हैं. हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद अगर दिल्ली में भी बीजेपी झंडे गाड़ने में सफल होती है तो तय है कि नरेंद्र मोदी को एक बार फिर से मान लिया जाएगा कि उनका कोई विकल्प नहीं बन सकता है. अभी दो दिन पहले लोकसभा में बोलते हुए पीएम मोदी ने इशारा किया था अभी उन्हें देश सेवा कई साल करनी है. उन्होंने कहा था कि अभी तो उनका तीसरा टर्म है जरूरत हुई तो आगे भी वो देश की सेवा करते रहेंगे. जाहिर है कि उनके इस वक्तव्य से इशारा मिलता है कि 2029 के लोकसभा चुनावों में भी वो भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं. दिल्ली के चुनाव जीत लेने पर भारतीय जनता पार्टी में उन्हें कोई चैलेंज करने की भी हिम्मत भी नहीं करेगा. बल्कि पार्टी की मजबूरी हो जाएगी कि मोदी जैसे चुनाव जिताऊ नेता को अभी रिटायर करने की जरूरत नहीं है. पिछले दिनों कई बार ऐसा लग रहा था कि आरएसएस और बीजेपी के बीच कुछ दूरियां बढ़ गईं हैं. या आरएसएस का हस्तक्षेप सरकार पर बढ़ सकता है, पर दिल्ली की जीत नरेंद्र मोदी को एक बार फिर से इतना मजबूत कर देगी कि उन्हें चैलेंज करना किसी भी संगठन के लिए मुश्किल होगा. 

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2-कांग्रेस को हाशिये पर रखकर बिखरा इंडिया गठबंधन एकजुट हो सकता है

2024 के इलेक्शन में बीजेपी के कमजोर प्रदर्शन के बाद कांग्रेस को ऐसा लगने लगा था कि वो अकेले ही मोदी सरकार को निपटाने में कामयाब हो सकेगी. यही कारण रहा कि इंडिया गठबंधन के विघटन का साया मंडराना लगा था. कांग्रेस के अति उत्साह का परिणाम यह हुआ कि क्षेत्रीय दलों में अपने अस्तित्व को लेकर चिंता बढ़ गई. समाजवादी पार्टी. तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना यूबीटी, आम आदमी पार्टी जैसे दलों ने कांग्रेस से अलग अपने अस्तित्व को लेकर सजग हो गए. पर दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार के बाद एक बार फिर से विपक्ष को लगेगा कि बीजेपी को अलग थलग होकर हराना असंभव है. इसलिए एक बार फिर इंडिया गुट को मजबूत करने की कवायद शुरू हो सकती है. लेकिन हो सकता है कि इस बार कांग्रेस का पहले जैसा वर्चस्‍व न रहे.

3- कांग्रेस के मजबूत होने के आसार बनेंगे

एक संभावना यह भी हो सकती है कि कांग्रेस को दिल्ली में आठ से 10 प्रतिशत वोट मिलें. अगर ऐसा होता है तो आम आदमी पार्टी की हार तो तय होगी ही दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में एक बार फिर कांग्रेस के मजबूत होने का रास्ता खुल सकता है. अगर दलित और मुसलमानों का कुछ वोट भी कांग्रेस हासिल करने में सफल होती है तो भविष्य में पिछड़ों के वोट भी कांग्रेस से जुड़ सकते हैं. इस तरह कांग्रसे के मजबूत होने से कई क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बिहार राष्ट्रीय जनता दल के लिए भी खतरा बढेगा. 

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4-एक देश -एक चुनाव, वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को लेकर बीजेपी का आत्‍मविश्‍वास बढ़ेगा

देश की संसद में कई बिल ऐसे हैं जो पास होने का इंतजार कर रहे हैं. पर बीजेपी बेवजह का पंगा मोल नहीं लेना चाहती है इसलिए उन विधेयकों को संसदीय समितियों के पास भेज दिया जा रहा है. दूसरे शब्दों में जानबूझकर टाइम पास किया जा रहा है. पर जब जनता में पार्टी की लोकप्रियता चरम पर होगी तो बीजेपी इन विधेयकों को पास कराने का साहस जुटा सकेगी. सहयोगी दलों को भी लगना चाहिए कि हम जिसके साथ हैं उसके साथ जनता है. दिल्ली की जीत के बाद एक देश -एक चुनाव और वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के जल्द ही पास कराने के लिए पार्टी सक्रिय हो सकती है. 

5-संघ शक्ति की फिर समीक्षा होगी 

लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बीजेपी के चुनाव प्रचार से खुद की दूरी बना ली थी. दरअसल बीजेपी प्रेसिडेंट जेपी नड्डा की वह बात संघ को चुभ गई थी जिसमें नड्डा ने इशारा किया था कि अब बीजेपी को संघ के सहारे की जरूरत नहीं है. लोकसभा चुनावों में बीजेपी को अपेक्षित सफलता न मिलने के पीछे यही कारण निकल कर सामने आया था कि संघ ने बीजेपी के प्रचार से दूरी बना ली थी. इसके बाद हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावों में आरएसएस पूरी तरह सक्रिय रही है. दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए भी संघ जी जान से जुटा हुआ था. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बाताती है कि दिल्ली में संघ ने ऐन वोटिंग के पहले करीब 50 हजार ड्राइंग रूम चर्चा को अंजाम दिया. इस चर्चा में मध्य वर्ग के लोगों के घरों में जाकर उन्हें समझाया गया कि क्यों बीजेपी को फिर से जिताना जरूरी है. इन लोगों को इसके लिए तैयार किया गया कि वो खुद तो वोट देने जाएं ही दूसरों को भी बूथ तक ले जाएं. जाहिर है कि संघ शक्ति की समीक्षा होगी कि पार्टी और इस संघटन के बीच कितनी नजदीकियां या कितनी दूरियां होनी चाहिए? 

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