
विपक्षी गठबंधन INDIA की तीसरी बैठक मुंबई में होने जा रही है. पहली बैठक पटना और दूसरी बेंगलुरू में हुई थी, जिसके बाद ही गठबंधन का नाम INDIA सामने आया था. अब मुंबई में INDIA का लोगो रिलीज हो सकता है. साथ ही ये भी माना जा रहा है कि 26 राजनीतिक दलों के बीच सामन्जस्य बिठाने के मकसद से कोई समन्वय समिति बनाने और सीट शेयरिंग पर भी सहमति बनाने की कोशिश हो सकती है.
पटना मीटिंग का न्योता तो नीतीश कुमार ने भेजा था, लेकिन जल्दी ही समझ में आया कि वो तो महज एक चेहरा भर हैं. कांग्रेस के कहने पर असली खेल तो लालू यादव खेल रहे हैं. और मुंबई रवाना होने से पहले लालू यादव ने पटना एयरपोर्ट से ही गठबंधन का इरादा जता दिया, 'हम लोग नरेंद्र मोदी का नरेटी पकड़े हुए हैं... नरेटी पर चढ़ने जा रहे हैं.'
कांग्रेस ही INDIA गठबंधन का नेतृत्व कर रही है. देश के राजनीतिक हालात भी कुछ ऐसे बन पड़े हैं कि आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के नेता भी कांग्रेस को फॉलो करने लगे हैं, लेकिन ऐन उसी वक्त मैदान में बीएसपी जैसे राजनीतिक दल भी हैं जिन पर INDIA का बिलकुल भी प्रभाव नहीं देखने को मिला है. तब भी जबकि बीएसपी केंद्र में सत्ताधारी गठबंधन एनडीए से भी खुद के दूर होने की बात कहती है. बाकी बातें तो राजनीति में यूं भी चलती रहती हैं.
और इस तरह बीएसपी सहित चार राजनीतिक दल ऐसे हैं जो निर्गुट होकर भी एकतरफा अभियान ही चला रहे हैं, जिससे एनडीए को कम भी फायदा हो तो INDIA को ज्यादा नुकसान हो रहा है.
विपक्षी खेमे के नेता भी INDIA गठबंधन से दूरी क्यों बना रहे हैं
कहां INDIA में NDA खेमे के कई दलों के शामिल होने के दावे किये जा रहे थे, और कहां उलटी गंगा बहती नजर आने लगी है. बीएसपी और शेतकारी संगठन सहित कुछ दलों के INDIA से जुड़ने की संभावना जतायी गयी थी, लेकिन मायावती ने तो ऐसे दावों की हवा ही निकाल दी है.
माना जा रहा है कि कुनबा बड़ा हो सकता है। तीन-चार दलों के और जुड़ जाने से कुल संख्या 26 से बढ़कर 30 हो सकती है। मायावती के स्टैंड का भी इंतजार है, लेकिन अभी तक कुछ स्पष्ट नहीं है। हालांकि, महाराष्ट्र के शेतकरी संगठन के अलावा कुछ और दलों का इंतजार किया जा रहा है।
लेकिन चुनावी मैदान, टीवी डिबेट और सोशल मीडिया पर छाये रहने के बावजूद ओवैसी मुसलमानों के वोट बटोरने वाले नेता अब तक नहीं बन पाये हैं. बावजूद इसके ओवैसी अगर INDIA गठबंधन के साथ होते तो दोनों फायदे में रहते - चूंकि ऐसा नहीं हो पा रहा है, लिहाजा उतनी ही मात्रा में विपक्षी गठबंधन INDIA का नुकसान होना तय है.
बाकी नेताओं की बात करें तो मजबूरी में ही सही, लेकिन अभी तो ऐसा ही लगता है कि अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी को बीजेपी से लड़ने के लिए INDIA में शामिल होना फायदेमंद लग रहा है, लेकिन गठबंधन की बैठक के ठीक पहले मायावती ने सामने आकर ऐलान किया है कि वो किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं होने जा रही हैं.
अरसे से विपक्षी खेमे में एक राय ये रही है कि बीजेपी से लड़ने के लिए एक ही गठबंधन होना चाहिये. चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी इसी थ्योरी के पक्षधर रहे हैं. चाहे जैसे भी तीसरा मोर्चा तो नहीं बना है, लेकिन मायावती जैसे नेताओं का एक अघोषित समूह काफी हद तक तीसरे मोर्चे की भूमिका में ही खड़ा नजर आ रहा है.
कहने को तो ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और आंध्र प्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी भी NDA या INDIA दोनों में से किसी भी गठबंधन में नहीं हैं, लेकिन घुमा फिरा कर दोनों का ही झुकाव बीजेपी की तरफ ही देखने को मिला है. दोनों नेताओं का कहना है कि वे केंद्र की बीजेपी सरकार को मुद्दों के आधार पर सपोर्ट करते हैं.
ऐसे देखें तो BJP और YSRCP का स्टैंड साफ साफ नजर आता है, लेकिन BSP की तरह कुछ राजनीतिक दल ऐसे भी हैं जो अलग अलग निर्गुट आंदोलन चला रहे हैं, जैसे - शिरोमणि अकाली दल, तेलुगु देशम पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM.
अकाली दल की तरफ से तो यही कहा गया था कि विपक्षी दलों की पटना मीटिंग में उसे बुलाया ही नहीं गया था, लेकिन जब एनडीए की बैठक हुई तो बादल परिवार का कोई सदस्य वहां भी नजर नहीं आया. यहां तक कि 38 दलों की दावत में जगनमोहन रेड्डी भी नदारद दिखे.
बीएसपी को लेकर मायावती किस राह पर चल रही हैं
2007 में अपने बल पर सरकार बनाने वाली मायावती डेढ़ दशक बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा में एक सीट पर सिमट कर रह गयी हैं. ये सही है कि 2019 के आम चुनाव में मायावती ने बीएसपी को 10 सीटें दिला दी थी, लेकिन अगली बार यानी 2024 में ये भी मुश्किल लगता है. वे 10 सीटें भी मायावती को सपा-बसपा गठबंधन की बदौलत मिली थीं. वरना, 2014 में तो ममला जीरो बैलेंस पर ही पहुंच गया था.
जो भी, विधानसभा चुनाव में बीएसपी का प्रदर्शन तो यही बता रहा है कि अगले लोक सभा चुनाव में सरवाइवल के लिए भी संघर्ष करना होगा.
बीजेपी का साथ देकर तो मायावती को कुछ खास मिलने से रहा. अपना दल, निषाद पार्टी और ओम प्रकाश राजभर की एनडीए में हैसियत तो यही बता रही है. फिर भी मायावती INDIA ग्रुप से दूरी बना कर चल रही हैं.
मायावती अभी भले ही अपने पत्ते नहीं खोल रही हों, लेकिन कांग्रेस के बुलावे को खारिज करने के लिए न सिर्फ बयान जारी करती हैं, बल्कि ये जताने के लिए कि वो इस मुद्दे पर गंभीर हैं - इमरान मसूद को भी बाहर का रास्ता दिखा देती हैं.
बेशक मायावती दलितों की निर्विवाद नेता हैं, लेकिन उनका सपोर्ट बेस भी उनकी अपनी बिरादरी जाटव या थोड़ा आगे चलें तो वाल्मीकि तक सिमट कर रह गया है, बाकी सभी बीजेपी की तरफ काफी आगे बढ़ चुके हैं.
विपक्षी गठबंधन में शामिल होने की सूरत में मायावती की दावेदारी बड़ी होगी, लेकिन अखिलेश यादव आखिर कितनी सीटें शेयर करने को राजी होंगे? कांग्रेस की भी तो दावेदारी होगी. बात भला कैसे बनेगी?
NDA और INDIA में मायावती अपने हिसाब से फर्क और नफे नुकसान का आकलन कर रही होंगी, लेकिन विपक्ष के साथ जाना ही उनके लिए ज्यादा फायदेमंद हो सकता है - हां, सत्ता पक्ष के साथ खड़े होने के फायदे तो अलग ही होते हैं.
बादल परिवार के अकाली दल के आगे कुआं पीछे खाई है
अव्वल तो शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी के रिश्ते में फंसा कांटा पहले ही निकल चुका है. जिन कृषि कानूनों के विरोध में हरसिमरत कौर ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा और एनडीए से नाता तोड़ा था, वो तो सरकार की तरफ से बहुत पहले ही वापस लिया जा चुका है.
INDIA ग्रुप से अकाली दल के दूरी बनाने की कम से कम दो कारण तो साफ हैं. एक तो वो अपने वोटर को कैसे समझा पाएगी कि कांग्रेस के साथ आने के लिए उसने ऑपरेशन ब्लू स्टार का मुद्दा पीछे छोड़ दिया. दूसरा कारण आम आदमी पार्टी है, अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के बाद पंजाब में अगर किसी को बर्बाद किया है, वो अकाली दल ही तो है.
अकाली दल का INDIA ग्रुप से दूरी बनाना तो यही बताता है कि उसे पूरी उम्मीद है कि एक न एक दिन बीजेपी उसे एनडीए में फिर से शामिल कर लेगी.
चंद्रबाबू नायडू भी टीडीपी के लिए ठिकाना ढूंढ रहे हैं
आपको याद होगा, चंद्रबाबू नायडू 2019 में एग्जिट पोल के बाद भी चुनाव नतीजे आने तक खासे एक्टिव थे. वो राहुल गांधी और ममता बनर्जी की मीटिंग कराना चाहते थे, लेकिन दोनों नहीं माने.
2018 तक एनडीए का हिस्सा रहे चंद्रबाबू नायडू थक हार कर फिर से घर वापसी की कोशिश में जुट गये हैं. बताते हैं कि अमित शाह से उनकी इस सिलसिले में मुलाकात भी हो चुकी है, लेकिन बीजेपी को जल्दी भला किस बात की है. आंध्र प्रदेश से काम लायक सपोर्ट तो जगनमोहन रेड्डी से मिल ही रहा है.
अगर चंद्रबाबू नायडू INDIA खेमे में शामिल हो जायें तो कांग्रेस भी आगे बढ़ कर सपोर्ट करेगी. ममता बनर्जी भी साथ हैं ही.
चंद्रबाबू नायडू के एनडीए में लौटने पर उनको या बीजेपी को बहुत फायदा हो न हो, आंध्र प्रदेश में INDIA ग्रुप को काफी नुकसान हो सकता है - क्योंकि जगनमोहन रेड्डी तो पहले से ही मोर्चे पर डटे हुए हैं.
असदुद्दीन ओवैसी AIMIM के लिए मुकाम तलाश रहे हैं
AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी का हाल भी करीब करीब मायावती जैसा ही है. वो भी बीजेपी और कांग्रेस को सांपनाथ और नागनाथ जैसा ही पेश करते हैं, लेकिन लाख कोशिश करके भी वो एक इल्जाम से नहीं बच पाते कि AIMIM भी BSP की तरह बीजेपी की राह आसान करती है.
कहने को तो ओवैसी बीजेपी को भी खरी खोटी सुनाते हैं, लेकिन कांग्रेस सहित बीजेपी के विरोधियों के खिलाफ ज्यादा ही आक्रामक नजर आते हैं.