
भाजपा सांसद वरुण गांधी के हालिया बयानों ने नई अटकलों को हवा दे दी है. दरअसल, बीते दिनों वरुण गांधी ने जिस तरह से अपनी ही पार्टी की नीतियों की खुले तौर पर आलोचना की है, उसके बाद लोग हैरान हैं. साथ ही ये भी कयास लगने शुरू हो गए हैं कि क्या वह कांग्रेस में एंट्री करने के लिए अपना मार्ग प्रशस्त करने में लगे हुए हैं. भाजपा के साथ उनका मोहभंग गाहे-बगाहे नजर आ रहा है. पिछले 2 साल से अधिक समय से जिस तरह के उनके लेख प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं. साथ ही पिछले महीने एक जनसभा में उनका संबोधन हतप्रभ करने वाला था.
इस जनसभा में वरुण गांधी ने कहा था कि ना तो मैं नेहरू जी के खिलाफ हूं, ना ही कांग्रेस के खिलाफ हूं. हमारी राजनीति देश को आगे बढ़ाने के लिए होनी चाहिए ना कि गृह युद्ध पैदा करने के लिए. आज जो लोग केवल धर्म और जाति के नाम पर वोट मांग रहे हैं, हमें उनसे ये पूछना चाहिए कि रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा का क्या हाल है.
वरुण गांधी ने जनसभा में कहा था कि हमें ऐसी राजनीति नहीं करनी है, जो लोगों को दबाए, बल्कि हमें वो राजनीति करनी है जो लोगों को उठाए. धर्म और जाति के नाम पर वोट लेने वालों से हमें ये पूछने की जरूरत है कि वे रोजगार, शिक्षा या स्वास्थ्य जैसे गंभीर मुद्दों पर वह क्या कर रहे हैं. हमें ऐसी राजनीति नहीं करनी चाहिए जो लोगों को भड़काने या उनका दमन करने में विश्वास करती हो. हमें ऐसी राजनीति करनी चाहिए जो लोगों का उत्थान करे.
वरुण गांधी का भाषण इस बात की ओर इशारा कर रहा था कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सत्तारूढ़ बीजेपी और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की नीतियों के प्रति आलोचनात्मक हो गए थे. दरअसल, वरुण की असहमति के पहले संकेत उनकी मां मेनका गांधी को 2019 में नरेंद्र मोदी कैबिनेट में शामिल नहीं किए जाने के बाद सामने आए थे, जब उन्हें उनके हक से भी वंचित कर दिया गया था. हालांकि एक समय ऐसा भी था, जब उन्हें यूपी के मुख्यमंत्री के पद के लिए संभावित माना जाता था. तब से वरुण गांधी ने भाजपा शासन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर सवाल उठाने का एक भी मौका नहीं छोड़ा. प्रमुख राष्ट्रीय अखबारों में उनके प्रमुख लेखों ने देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, शिक्षा या स्वास्थ्य जैसे प्रमुख क्षेत्रों में मोदी सरकार की कमियों और विफलताओं को खुलकर उजागर किया.
हालांकि पहले वरुण गांधी की आलोचनाएं इतनी तीखी कभी नहीं रहीं, जितनी अब हो गई हैं. इसलिए ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि वह लंबे समय से उस पार्टी से बाहर निकलने का मन बना रहे थे, जिसे उनकी मां ने सींचा था. भारत के पहले राजनीतिक परिवार के रूप में पहचान रखने वाले गांधी परिवार से आने के बावजूद मेनका बीजेपी से जुड़ीं. मेनका की शादी संजय गांधी से हुई थी, जिनका 1980 में एक हवाई दुर्घटना में असामयिक निधन हो गया था.
मेनका गांधी अपनी सास इंदिरा गांधी के प्रति जुझारूपन की कहानियों को लेकर सुर्खियों में रहीं. इसलिए पारंपरिक गांधी छत्रछाया के बाहर पले-बढ़े वरुण गांधी के लिए भाजपा और उसकी नीतियों को स्वीकार करना काफी स्वाभाविक था. इतना ही नहीं, जब उन पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था, तो इससे भी वह बहुत आश्चर्यचकित नहीं थे. हालांकि बाद में उन्हें क्लीन चिट मिल गई थी.
वहीं वरुण गांधी के हालिया भाषण ने राजनीतिक विश्लेषकों को यह विश्वास दिला दिया है कि वरुण अब अपने राजनीतिक भविष्य पर अंतिम निर्णय लेने की ओर बढ़ सकते हैं. हालांकि कई क्षेत्रीय दल ऐसे हैं जो गांधी टैग वाले और एक आक्रामक नेता के रूप में पहचान रखने वाले वरुण को अपनी पार्टी में शामिल करने के लिए तैयार थे. इसमें शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP), ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) या अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (SP) शामिल हैं.
इस सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिल सका है कि वह अपने फैसले को लेकर टालमटोल क्यों कर रहे हैं. जबकि सत्ताधारी पार्टी में उनकी 'घुटन' साफ तौर पर झलक रही है. विश्लेषकों का मानना है कि शायद वह पार्टी के दिग्गजों द्वारा अपने खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की प्रतीक्षा कर रहे हैं. लेकिन अंतिम कदम वरुण गांधी को ही उठाना होगा. अगर वह इसके लिए एक उपयुक्त समय की तलाश कर रहे थे, तो उस दिशा में कदम बढ़ाने के लिए उनका हालिया भाषण इसकी शुरुआत माना जा सकता है.
अगर वरुण गांधी कांग्रेस की ओर रुख करते हैं तो उनका पार्टी में क्या स्थान होगा, ये बहुत हद तक राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर निर्भर करेगा. हालांकि वरुण गांधी की चचेरी बहन प्रियंका गांधी उनके प्रति काफी उदार मानी जाती हैं. लेकिन वरुण की कांग्रेस में एंट्री पर राहुल और सोनिया गांधी की फाइनल मुहर लगना भी जरूरी है.
(वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान का लेख)
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