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जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव और फिर सूबे में सियासत लेगी नई करवट

देखते देखते दस साल बीत गये, जब जम्मू-कश्मीर के लोगों ने सूबे में अपनी सरकार के लिए वोट डाले थे. नये प्रयोगों के साथ सरकार बनी, लेकिन चली नहीं. धारा 370 के साथ पूर्ण राज्य का दर्जा भी खत्म हो गया. बहरहाल, विधानसभा चुनाव हो जाने के बाद पूर्ण राज्य का दर्जा भी बहाल होने की बारी आने वाली है.

आम चुनाव में जम्मू-कश्मीर के लोगों की दिलचस्पी बता रही है कि विधानसभा चुनाव का कितना इंतजार है आम चुनाव में जम्मू-कश्मीर के लोगों की दिलचस्पी बता रही है कि विधानसभा चुनाव का कितना इंतजार है
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 27 मई 2024,
  • अपडेटेड 8:58 PM IST

आखिरकार वो घड़ी आ ही गई. तारीख तो अब भी नहीं आई है, डेडलाइन तो साल भर पहले ही आ गई थी. डेडलाइन सुप्रीम कोर्ट से आई थी, लिहाजा समय पर काम भी पूरा होना भी पक्का ही था, और हो भी रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर, 2023 को चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वो हर हाल में सितंबर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव करा ले - और लोकसभा चुनाव 2024 के छठे चरण के मतदान की पूर्वसंध्या पर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने इस बाबत घोषणा भी कर दी है. मुख्य चुनाव आयुक्त ने ऐसे संकेत तो मार्च, 2024 में भी दिये ही थे. 

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और इसके साथ ही, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ये भी कंफर्म कर दिया है कि वादे के मुताबिक एक बार विधानसभा चुनाव हो जाये, उसके बाद जम्मू और कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा भी बहाल कर दिया जाएगा.

चुनाव होने की घोषणा तो हुई, तारीख बताई जानी बाकी है

सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर, 2023 को 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव करा लेने का निर्देश दिया था. मार्च में जब चुनाव आयोग की तरफ से लोकसभा चुनाव 2024 की घोषणा की जा रही थी, ये भी बताया गया था कि  विधानसभा और संसदीय चुनाव एक साथ कराना साजो-सामान और सुरक्षा वजहों से व्यावहारिक नहीं है.

लेकिन लोकसभा चुनाव के पूरा होने से पहले ही चुनाव आयोग ने घोषणा कर दी है कि जम्मू-कश्मीर में जल्दी ही चुनाव प्रक्रिया शुरू की जाएगी. मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार का कहना है कि जम्मू-कश्मीर के लोग अपनी सरकार पाने के हकदार हैं.

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चुनाव आयोग, असल में, लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर के लोगों के बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने से खासा उत्साहित है, और मुख्य चुनाव आयुक्त की बातों से साफ है कि सुप्रीम कोर्ट की निर्धारित समय सीमा के भीतर जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव करा लिये जाएंगे. 

मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि युवा, महिलाएं सभी खुशी-खुशी बड़ी संख्या में वोट डालने के लिए निकल रहे हैं. लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत हो रही हैं, लोग चुनाव में भाग ले रहे हैं. जाहिर है अब तो उका हक बनता है. 

जम्मू-कश्मीर की पांच लोकसभा सीटों पर 58.46 फीसदी वोटिंग हुई है, और इस तरह का भारी मात्रा में मतदान 35 साल पहले देखा गया था - वाकई ये लोकतंत्र के लिए सबसे अच्छी बात है. 

10 साल बाद होंगे विधानसभा चुनाव

विधानसभा के चुनाव तो 10 साल बाद होंगे, लेकिन केंद्र शासित क्षेत्र बनने के बाद पहला चुनाव होगा. जम्मू-कश्मीर में आखिरी विधानसभा चुनाव 2014 में लोकसभा चुनावों के बाद हुए थे. 

चुनावों के बाद केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी और क्षेत्रीय राजनीतिक दल पीडीपी गठबंधन के लिए आगे आये, और सरकार भी बनी. महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन गठबंधन सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई - और बीजेपी के समर्थन वापस लेते ही महबूबा सरकार गिर गई. 

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2019 में नरेंद्र मोदी सरकार की सत्ता में वापसी के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म करने का प्रस्ताव पेश किया - और 5 अगस्त, 2019 को संसद ने ये पास भी कर दिया. 

और फिर पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म करने के साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग अलग केंद्र शासित क्षेत्र बना दिया गया. अब लोकसभा चुनाव तो पहले की ही तरह हुआ है, लेकिन विधानसभा चुनाव पहली बार बदले हुए हालात में होने जा रहा है.  

जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के प्रयास तो काफी दिनों से हो रहे हैं. केंद्र शासित क्षेत्र की घोषणा के साल भर बाद जब बीजेपी नेता मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का उप राज्यपाल बनाया गया तो मकसद यही था कि चुनाव के लायक राजनीतिक माहौल तैयार किया जाये. ये बात अलग है कि धीरे धीरे चार साल बीत गये. 

चुनाव के लिए माकूल हालात की जरूरत तो थी ही, परिसीमन की प्रक्रिया चल रही थी, इसलिए भी इंतजार लंबा हो गया. परिसीमन पूरा हो जाने के बाद पीओके को आवंटित सीट छोड़ कर विधानसभा सीट की संख्या 83 से बढ़कर अब 90 पहुंच गई है.  

अब तो मान कर चलना चाहिये, केंद्र में नई सरकार बनने के बाद, जल्दी ही जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की भी घोषणा कर दी जाएगी - जिसका घाटी के लोगों को शिद्दत से इंतजार है. 

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सूबे की पुरानी स्थिति बहाल होगी 

जम्मू और कश्मीर की संवैधानिक स्थिति में तब्दीली का ज्यादा असर तो वहां के क्षेत्रीय नेताओं पर पड़ा है. आईएएस टॉपर शाह फैसल ने जो राजनीतिक पार्टी बनाई थी, सब छोड़ कर फिर से प्रशासनिक सेवा में लौट गये. शाह फैसल के साथ पार्टी की संस्थापक रहीं जेएनयू छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष शेहला रशीद ने भी एजुकेशन फील्ड अख्तियार कर लिया, और अब तो बहसों में वो बीजेपी के सपोर्ट में दलीलें पेश करने लगी हैं. 

पुराने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला तो पहले की तरह सूबे की बहाली होने तक चुनाव न लड़ने का ही ऐलान कर रखा है, और कह रहे हैं कि अब भी वो उसी बात पर कायम हैं. 

उमर अब्दुल्ला ने हाल ही में कहा है, मैं किसी भी चीज के लिए संभावनाओं की कल्पना नहीं करता... मैं मुख्यमंत्री पद की आकांक्षा नहीं रखता... और मैं निश्चित रूप से केंद्र शासित प्रदेश का नेतृत्व करने की इच्छा तो नहीं ही रखता.

कहते हैं, मैंने ये स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर जिस स्थिति में अभी है, उसमें मैं विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहा हूं... मैं ये बात 2020 से ही कह रहा हूं - और मेरे रुख में कोई बदलाव नहीं आया है.

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फिर तो लगता है, उमर अब्दुल्ला को चुनाव लड़ने के लिए पांच साल और इंतजार करना पड़ेगा. न्यूज एजेंसी PTI को दिये एक इंटरव्यू में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है, मैंने संसद में कहा है कि हम विधानसभा चुनावों के बाद राज्य का दर्जा बहाल करेंगे... चुनाव खत्म होने के बाद सरकार केंद्र शासित प्रदेश का राज्य का दर्जा बहाल करने की प्रक्रिया शुरू करेगी.

अव्वल तो अभी आम चुनाव के नतीजे नहीं आये हैं, लेकिन अमित शाह का कहना है कि मोदी सरकार के अगले टर्म में वन-नेशन-वन-इलेक्शन भी लागू कर दिया जाएगा, क्योंकि अब वो समय आ गया है कि देश में सभी चुनाव एक साथ कराए जायें.

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