Advertisement

JDU टूटेगी या नीतीश फिर बनेंगे NDA के सारथी, 5 बिंदुओं में समझिए बिहार में क्या होने वाला है

आखिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक ललन सिंह के इस्तीफे की बात तैरने लगी. यह सही है कि ललन सिंह और लालू यादव की नजदीकियों से नीतीश नाराज हैं पर यह आज की बात नहीं है. दूसरी बात राजनीति में सब कुछ अचानक नहीं होता है. आइये देखते हैं कि बिहार में क्या चल रहा है?

ललन सिंह के इस्तीफे के चर्चे, नीतीश कुमार उठा सकते हैं कोई बड़ा कदम ललन सिंह के इस्तीफे के चर्चे, नीतीश कुमार उठा सकते हैं कोई बड़ा कदम
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 27 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 3:56 PM IST

जब से बिहार की राजनीति में जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के इस्तीफे की खबरें तैर रही हैं तबसे राज्य के सीएम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर एक बार फिर अटकलों का बाजार गर्म हो गया है. हालांकि जेडीयू नेता और मंत्री विजय कुमार चौधरी और कई अन्य लोगों ने आगे बढ़कर इस तरह के खबरों का खंडन किया है. पर राजनीति में हर उस खबर का खंडन होता है जो जरूर होने वाला होता है.जेडीयू में सब कुछ ठीक होता तो 29 दिसंबर को दिल्ली में होने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के ठीक पहले 25 दिसंबर को पटना में पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत कर्पूरी ठाकुर के नाम पर होने वाला पार्टी का एक बड़ा कार्यक्रम रद्द नहीं किया जाता. वह भी सर्दी का बहाना बनाकर जो इस बार बिल्कुल भी नहीं है.  इस बीच आरएलजेडी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने यह बयान देकर कि माहौल को और गरम बना दिया  कि वो नीतीश कुमार की पैरवी एनडीए से करने के लिए तैयार हैं. पर उन्होंने शर्त रख दी कि इसके लिए नीतीश कुमार पहले सार्वजनिक रूप से यह घोषणा करें कि आरजेडी से उनका संबंध टूट गया है.

Advertisement

आखिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक ललन सिंह के इस्तीफे की बात तैरने लगी .यह सही है कि ललन सिंह की लालू यादव से नजदीकियों के चलते नीतीश नाराज हैं पर यह आज की बात नहीं है. राजनीति में सब कुछ अचानक नहीं होता है. विशेषकर इस लेवल पर तो सब कुछ स्क्रिप्टेड ही होता है. ये अलग बात है कि ड्रामे की स्क्रिप्ट में क्लाइमेक्स और एंड हमेशा वैसा नहीं होता है जैसा लिखते हुए सोचा गया हो. बिहार में जेडीयू और आरजेडी की इस कहानी का क्लाइमेक्स चल रहा है. कहानी किस ओर मोड़ लेगी यही देखना है. तमाम राजनीतिक विश्लेषकों से बातचीत के आधार पर जो बातें निकल कर आईं हैं उसमें पांच बातें महत्वपूर्ण हो जाती हैं.

1- खरगे को पीएम कैंडिडेट बनाने का विरोध न करके लालू यादव ने दिल तोड़ दिया

Advertisement

19 दिसंबर को दिल्ली में हुई इंडिया गठबंधन की चौथी मीटिंग में कुछ ऐसा हुआ जो लालू-नीतीश के बीच कुछ दिनों से घट रही अविश्वसनियता पर मुहर लगा दिया.दरअसल मीटिंग के दौरान जिस तरह ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के नाम को पीएम कैंडिडेट के लिए प्रस्तावित किया वो नीतीश कुमार को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया. नीतीश कुमार को यह बात और बुरी लगी कि लालू यादव ने इस बात का विरोध भी नहीं किया. ये बात सभी जानते हैं कि जेडीयू और आरजेडी के बीच जो समझौता हुआ था वो यही था कि नीतीश को केंद्र की राजनीति में स्थापित करने में आरजेडी सपोर्ट करेगी और नीतीश कुमार इसके बदले में तेजस्वी को बिहार की गद्दी सौंप देंगे. मीटिंग से पहले जेडीयू आफिशियली कई बार नीतीश कुमार को पीएम कैंडिडेट बनाने की मांग भी कर चुकी थी.

नीतीश कुमार को दुख इस बात का भी हुआ होगा कि उन्हें इंडिया गठबंधन में उनका वाजिब हक भी नहीं मिल रहा है. इंडिया गठबंधन का जो रूप आज दिख रहा है वो नीतीश के प्रयासों का ही फल है. इसके बावजूद भी किसी की ओर से उन्हें संयोजक बनाने का भी प्रस्ताव नहीं आया. लालू यादव चाहते तो कम से कम इंडिया गठबंधन के लिए संयोजक का प्रस्ताव तो ला ही सकते थे.

Advertisement

2- जेडीयू के खिलाफ जाते सर्वे

हाल ही में सी वोटर्स के एक सर्वे में देखने को मिला कि बिहार में 2024 के लोकसभा चुनावों में जनता दल यूनाइटेड को मात्र 5 या 6 सीटें मिलती दिख रही हैं. इसमें हैरानी जैसी कोई बात नहीं है. बिहार में आम लोग हों या कोई राजनीतिक विश्वेषक वो यही कहेगा कि 2019 में ही जेडीयू को मिली लोकसभा सीटों में बीजेपी का योगदान था. आरजेडी खुद बिहार में अकेले एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सकी थी.  
नीतीश कुमार को यह भी जानकारी है कि उनके कोर वोटर कुर्मी, कोयरी और अति पिछड़ों को आरजेडी का साथ पसंद नहीं है. और बीजेपी जिस तरह अतिपिछड़ों की आक्रामक राजनीति कर रही है उसका मुकाबला आरजेडी के साथ रहकर तो बिल्कुल नहीं किया जा सकता. खेला न हो जाए इसलिए समय रहते आरजेडी को छोड़ देने में ही भलाई है.

3- एनडीए के साथ बहुत कुछ मिलने की उम्मीद, आरजेडी से तो नाउम्मीदी मिली

इंडिया गठबंधन में आरजेडी और कांग्रेस की तरफ से मिली निराशा ने नीतीश कुमार को यह सोचने को मजबूर कर दिया है कि अब उनका अगला कदम क्या होना चाहिए.नीतीश कुमार करीब 3 दशक से सत्ता में हैं. उन्हें अब बिना कुर्सी के एक पल भी अच्छा नहीं लगता होगा .यह स्वभाविक भी है. नीतीश कुमार जानते हैं कि अगर वो एनडीए के साथ जाते हैं तो मुख्यमंत्री नहीं भी बन पाए तो एनडीए का संयोजक, केंद्र में मंत्री से लेकर राज्यपाल तक बनने के चांसेस हैं. दूसरी ओर इंडिया गठबंधन से तो अब कोई उम्मीद नहीं रह गई है. आरजेडी के साथ रहने पर भी उन्हें 2024 में विधानसभा चुनावों के बाद तेजस्वी को सत्ता देनी ही पड़ेगी. एनडीए के साथ रहने पर कम से कम कुछ तो मिलने की उम्मीद रहेगी.  

Advertisement

जिस तरह से बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी को अचानक दिल्ली बुलाया गया है उससे तो यही लगता है कि नीतीश कुमार की वापसी को लेकर उनसे राय ली जा रही है.क्योंकि बिहार के अन्य नेताओं जैसे नित्यानंद राय और सुशील मोदी पर यह आरोप लगता रहा है कि ये लोग बिहार में बीजेपी के लिए हमेशा से नीतीश कुमार को जरूरी समझते रहे हैं. इसके विपरीत सम्राट चौधरी को लगता है कि बिहार में बीजेपी एनडीए के अन्य साथियों के साथ बिना नीतीश कुमार के भी जनता का विश्वास हासिल करने में सक्षम है.हाल फिलहाल के दिनों में जिस तरह बीजेपी नेता नीतीश कुमार पर बिलो द बेल्ट हमले करने से बच रहे हैं उससे भी यही लगता है कि शायद गृहमंत्री अमित शाह के घर पर नीतीश कुमार के लिए लगा नो एंट्री का बोर्ड हटा लिया गया है.

4- एनडीए को भी एक मजबूत साथी की दरकार

बीजेपी इस बार लोकसभा चुनावों को लेकर बहुत सेफ गेम खेल रही है. जहां भी पार्टी को थोड़ी भी आशंका है वहां पर हर तरह की तैयारी की जा रही है. पार्टी को पता है कि उत्तर भारत से अगर अधिकतम सीटें नहीं मिलीं तो खेला हो सकता है.  2019 में बिहार की सफलता में नीतीश कुमार के अहम रोल से इनकार नहीं किया जा सकता. कहा जा रहा है कि बीजेपी के अंदरूनी सर्वे में भी लोकसभा चुनावों में स्थिति ठीक नहीं बताई जा रही है.पार्टी अगर बिहार में कमजोर होती है तो उसका प्रभाव पूर्वी यूपी में भी पड़ेगा. 

Advertisement

बीजेपी की लाख कोशिशों के बाद भी बिहार में कद्दावर नेतृत्व नहीं तैयार हो सका है. सम्राट चौधरी अभी भी अपनी जाति के ही नेता हैं. मध्यप्रदेश- राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा था और सफल भी हुए. पर इन तीनों राज्यों में बीजेपी का आधार बहुत पुराना है. बिहार में ऐसा नहीं है. बिहार की राजनीति भी अलग तरह की है.यही कारण है कि बीजेपी का कोई भी नेता आज यह कहता हुआ नहीं दिख रहा है कि नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के दरवाजे बंद हैं.दूसरे शब्दों में पार्टी में कोई भी नेता नीतीश कुमार की एंट्री का विरोध करते नहीं दिख रहा है.

5- जेडीयू के टूटने का खतरा

नीतीश कुमार के कुल राजनीतिक करियर का करीब तीन चौथाई हिस्सा आरजेडी विरोध पर टिका रहा है. वे जंगल राज को खत्म करने की बात करके ही सत्ता में इतने दिनों से बने हुए हैं. आरजेडी के साथ महागठबंधन सरकार में भी आए दिन नीतीश कुमार जंगल राज के दिनों की चर्चा कर देते हैं.नीतीश कुमार के सभी विधायक और सांसद आरजेडी के जंगल राज का भय दिखाकर सत्ता में आए हैं. अब वह किस मुंह से जनता के सामने जाएंगे. नीतीश कुमार को यह भी पता है कि इसमें अधिकतर लोग आज भी दिल से बीजेपी के साथ हैं. नीतीश कुमार की मंडली में ललन सिंह ही एक मात्र ऐसे शख्स रहे हैं जो आरजेडी के साथ गठबंधन के पक्षधर रहे हैं जबकि अधिकतर लोग जैसे संजय झा, अशोक चौधरी, विजय चौधरी आदि एनडीए के साथ जाने की वकालत करते रहे हैं. नीतीश कुमार का कोर वोटर लव कुश समीकरण को भी आरजेडी के बजाय एनडीए का साथ सूट करता है. इसलिए पार्टी को बचाने के लिए नीतीश कुमार एक बार पलटी मार सकते हैं.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement