
कन्हैया कुमार के लिए बेगूसराय चैप्टर बंद हो गया है. मुश्किल ये है कि दिल्ली का मामला भी अभी साफ नहीं है - क्योंकि कन्हैया कुमार का बीता हुआ कल पीछा नहीं छोड़ रहा है.
बिहार में तो लालू यादव और तेजस्वी यादव ने कन्हैया कुमार और पप्पू यादव दोनों के मामले में कांग्रेस के साथ एक ही जैसा 'खेला' कर दिया - अब कांग्रेस नेतृत्व को मजबूरन दिल्ली में कन्हैया कुमार के लिए ऑप्शन की तलाश करनी पड़ रही है.
दिल्ली में कांग्रेस इस बार आम आदमी पार्टी के साथ मिल कर लोकसभा चुनाव लड़ रही है, और हिस्से में तीन सीटें मिली हैं. आम आदमी पार्टी ने तो अपनी चार सीटों पर पहले ही उम्मीदवार घोषित कर दिया था, लेकिन कांग्रेस अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही है. सबसे ज्यादा मुश्किल कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी को लेकर है.
कांग्रेस की एक बैठक को लेकर सूत्रों के हवाले खबर है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से उम्मीदवार के रूप में कन्हैया कुमार के नाम की चर्चा भी हुई. कहते हैं कि पैनल में कन्हैया कुमार का नाम होने के बावजूद उनकी उम्मीदवारी पर चर्चा हुई.
और तभी कांग्रेस के कुछ नेताओं ने ये राय जाहिर की कि अगर बीजेपी ने कन्हैया कुमार के खिलाफ टुकड़े टुकड़े गैंग वाला नैरेटिव चला दिया तो क्या होगा? फिर तो लेने के देने ही पड़ जाएंगे.
कन्हैया कुमार के खिलाफ देशद्रोह का केस अब भी कोर्ट में पेंडिंग है, और खास बात ये भी है कि कुछ दिन लटकाने के बाद दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने कन्हैया कुमार के खिलाफ केस चलाने को लेकर मंजूरी दे दी थी.
दिल्ली में कन्हैया कुमार के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन के कारण अब आम आदमी पार्टी की तरफ से कोई मुश्किल तो नहीं खड़ी की जाएगी, लेकिन बीजेपी को दोनों ही दलों से सवाल पूछने का मौका मिल जाएगा - और तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि कन्हैया कुमार की मुश्किल कहीं मनोज तिवारी की राह आसान न कर दे.
फिर भी, अगर बीजेपी अपने एजेंडे में सफल न हो पाये तो बेगूसराय की तुलना में दिल्ली का मैदान कन्हैया कुमार के लिए कैसा होगा?
बेगूसराय के हाथ से फिसल जाने का मलाल
2019 में कन्हैया कुमार बेगूसराय लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे, लेकिन बीजेपी के गिरिराज सिंह से हार गये थे. तब कन्हैया कुमार सीपीआई के टिकट पर चुनाव मैदान में थे, लेकिन 2021 में वो कांग्रेस में आ गये - और तभी से वो कांग्रेस की विचारधारा के प्रचार प्रसार में जुट गये.
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा के दौरान भी कन्हैया कुमार को काफी सक्रिय देखा गया. और भारत जोड़ो यात्रा के दौरान तो एक बार कांग्रेस की तरफ से कन्हैया कुमार को राहुल गांधी के बाद सबसे लोकप्रिय चेहरा तक बताया गया था.
2019 में कन्हैया कुमार के लिए सीपीआई बेगूसराय लोकसभा सीट चाहती थी, और ठीक वैसे ही इस बार कांग्रेस. लेकिन कन्हैया कुमार के कारण भी आरजेडी ने तब सीपीआई को बेगूसराय सीट नहीं दी, और इस बार कांग्रेस को. पिछली बार कन्हैया कुमार के कारण ही आरजेडी ने सीपीआई को महागठबंधन में एक भी सीट नहीं दी, और उसे अकेले चुनाव मैदान में उतरना पड़ा था - तब कन्हैया को चुनाव हराने के लिए आरजेडी ने अपना उम्मीदवार भी उतार दिया था.
लालू यादव तो कन्हैया कुमार को कांग्रेस में भी लिये जाने के पक्ष में नहीं थे. बल्कि, विरोध भी जताया था, और बिहार में दो विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों के दौरान जब कन्हैया कुमार को कांग्रेस की तरफ से बिहार भेजा गया तो लालू यादव आपे से बाहर हो गये थे. असल में पटना के सदाकत आश्रम में पहुंचते ही कन्हैया कुमार ने लालू यादव और नीतीश कुमार दोनों को एक जगह खड़ा कर खूब खरी खोटी सुनाई थी.
तब तो लालू यादव ने सोनिया गांधी से बात कर मामला शांत करा लिया, लेकिन जब कन्हैया कुमार के लिए बेगूसराय सीट की बात आई तो अपनी चाल चल दिये. बिलकुल वैसे ही जैसे पूर्णिया के मामले में पप्पू यादव के खिलाफ स्टैंड लिया.
कन्हैया कुमार अच्छा भाषण भी देते हैं, और सवालों के मजेदार जवाब भी. बेगूसराय लोकसभा सीट से फिर से चुनाव लड़ पाने का मौका न मिलने को लेकर पूछे जाने पर कन्हैया कुमार कहते तो कुछ और हैं, लेकिन मन की बात जबान पर आ ही जाती है. कन्हैया कुमार कहते हैं, राजनीतिक संघर्ष के लिए मैं अपने आप को किसी एक जगह सीमित करके नहीं देखता... पार्टी कहेगी कि चुनाव लड़ना है तो 543 सीटों में से कहीं से भी लड़ेंगे - लेकिन ये स्वाभाविक है कि जिस जगह को आप जानते हैं, वहां सहज महसूस करते हैं.
बेगूसराय और दिल्ली के मिजाज में फर्क
बेगूसराय और दिल्ली के वोटर में बहुत सी कॉमन चीजें भी हैं, और काफी फर्क भी है. जिस इलाके से कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी की चर्चा है, उस इलाके के वोटर भी पूर्वांचल के अलग अलग जगहों से आते हैं. यूपी से भी और बिहार से भी - बीजेपी ने भोजपुरी सिंगर और एक्टर मनोज तिवारी को पूर्वांचल के लोगों पर उनकी पकड़ को समझ कर ही दिल्ली से मौका दिया, और वो सिलसिला कायम है.
अब इससे बड़ा बात क्या होगी कि दिल्ली 7 में से 6 सीटों पर बीजेपी ने उम्मीदवार बदल डाले, लेकिन मनोज तिवारी तीसरी बार भरोसा जताया है - जाहिर है, मनोज तिवारी के बारे में बेहतर फीडबैक के बाद ही ये फैसला हुआ होगा. वरना, 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में तो अमित शाह उनको फ्रंट पर पेश भी नहीं कर रहे थे, और चुनाव खत्म होते ही दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष पद से हटा दिये गये.
बेगूसराय या यूपी-बिहार की ज्यादातर सीटों पर जहां चुनावों में सबसे ज्यादा जाति और धर्म हावी रहता है, दिल्ली में ऐसी बातों का उतना असर नहीं है. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के सफल होने की बड़ी वजह भी यही है, क्योंकि हरियाणा में तो आम आदमी पार्टी का कोई प्रभाव देखने को नहीं मिलता. अरविंद केजरीवाल हरियाणा से ही आते हैं.
2019 के चुनाव की बात करें तो कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह की जाति एक ही है, लेकिन बीजेपी नेता भारी पड़े. एक खास वजह तो ये भी रही कि कन्हैया कुमार को लेकर उनकी भूमिहार बिरादरी में भी वही धारणा बनी हुई थी, जितनी दूसरी जातियों में या देश के दूसरे हिस्से के लोगों में - एक ऐसा उम्मीदवार जो देशद्रोह के केस में आरोपी हो.
ऐसे देखें तो दिल्ली में कन्हैया कुमार का चुनावी प्रदर्शन बेगूसराय से बेहतर हो सकता है, लेकिन अगर बीजेपी 'टुकडे़ टुकड़े गैंग' को अच्छी तरह प्रचारित करने में सफल नहीं हो पाई तभी - वरना, मनोज तिवारी के लिए तो मुंहमांगी मुराद ही मिल सकती है.