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कन्हैया कुमार को मनोज तिवारी के खिलाफ उतारना कांग्रेस के लिए जितना जोखिमभरा, उतना फायदेमंद भी

कन्हैया कुमार की राजनीतिक छवि कांग्रेस के लिए दोधारी तलवार की तरह है. अगर लोकसभा चुनाव में सही तरीके से हैंडल कर लिया जाये तो सिर्फ उत्तर पूर्वी दिल्ली ही नहीं, सभी सीटों पर फायदा ही फायदा है - लेकिन मामला मिसहैंडल हो गया तो लेने के देने भी पड़ सकते हैं.

कन्हैया कुमार के नाम पर राहुल गांधी ने राजनीतिक जुआ खेला है - और जुए में तो फायदा और नुकसान दोनों होता है कन्हैया कुमार के नाम पर राहुल गांधी ने राजनीतिक जुआ खेला है - और जुए में तो फायदा और नुकसान दोनों होता है
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 16 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 3:11 PM IST

कन्हैया कुमार को उत्तर पूर्वी दिल्ली से करीब करीब वैसे ही टिकट मिला है, जैसे कभी महाराष्ट्र में नाना पटोले और तेलंगाना में रेवंत रेड्डी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था - स्थानीय नेताओं के मन की बात और विरोध को दरकिनार करके. 

वो भी अब राहुल गांधी के फेवरिट नेताओं की लिस्ट में शामिल हो चुके हैं. तभी तो कन्हैया कुमार को दिल्ली के अरविंदर सिंह लवली और संदीप दीक्षित जैसे नेताओं पर तरजीह देते हुए टिकट दिया गया है - राहुल गांधी के वीटो के चलते. 

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और जैसी कि खबरें भी आ रही हैं, कन्हैया कुमार को भविष्य में कांग्रेस में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दिये जाने की भी जोरदार चर्चा है. भारत जोड़ो यात्राओं के दौरान कन्हैया कुमार ने राहुल गांधी पर अपनी छाप छोड़ दी है. कांग्रेस को, और राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्राओं से जो भी फायदा हुआ हो, कन्हैया कुमार के लिए ये सबसे ज्यादा फायदेमंद रहा है.

राहुल गांधी के पास भी कन्हैया कुमार के लिए बड़े ही कम विकल्प बचे थे. बिहार में तो लालू यादव और तेजस्वी यादव ने कन्हैया कुमार के लिए रास्ते ही बंद कर दिये थे, और कन्हैया कुमार ऐसे भी नेता नहीं हैं कि उनको कांग्रेस अमेठी या रायबरेली जैसी महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों से चुनाव मैदान में उतार दे. दिल्ली के अलावा कन्हैया कुमार के लिए कांग्रेस के पास दक्षिण भारत की किसी लोकसभा सीट का ही विकल्प बचा था, यानी उन सीटों में से किसी एक पर उम्मीदवार बनाया जा सकता था जहां से कांग्रेस कार्यकर्ता और नेता राहुल गांधी या गांधी परिवार के किसी सदस्य को चुनाव लड़ाने की मांग कर रहे थे.

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चाहे जिन परिस्थितियों में राहुल गांधी ने कन्हैया कुमार को दिल्ली से चुनाव लड़ाने का निर्णय लिया हो, लेकिन ये फैसला काफी जोखिमभरा लगता है. और इसकी सबसे बड़ी वजह है कन्हैया कुमार की राजनीतिक छवि. उनके खिलाफ अदालत में देशद्रोह का पेंडिंग केस. 

कुल मिलाकर देखा जाये तो कांग्रेस के लिए कन्हैया कुमार किसी दोधारी तलवार की तरह ही हैं, जिसे अच्छे से हैंडल किया जाये तो बड़े काम के हैं - वरना, कितना नुकसान हो सकता है, पहले से पैमाइश मुश्किल है. 

1. कन्हैया की वजह से रिवर्स पोलराइजेशन का खतरा

फरवरी, 2016 में जेएनयू की एक घटना के कारण तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार सुर्खियों में छा गये थे - और देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किये जाने के बाद कुछ दिन तिहाड़ जेल में भी गुजारने पड़े थे. जेल से छूटने के बाद कन्हैया कुमार की एक किताब भी आई थी, बिहार से तिहाड़ तक. किताब में कन्हैया कुमार ने जेल बिताये अपने समय को लेकर अपनी बात रखी है. 

2019 के चुनाव में कन्हैया कुमार सीपीआई के उम्मीदवार थे, चुनाव अच्छे से लड़े लेकिन उनके खिलाफ लगे आरोप उन पर भारी पड़े. बेगूसराय के चुनाव मैदान में बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह और कन्हैया कुमार दोनों ही एक कास्ट से आते हैं, लेकिन कन्हैया कुमार को उसका बिलकुल भी फायदा नहीं मिला - क्योंकि बीजेपी ने तब भी उनके खिलाफ टुकड़े-टुकड़े गैंग उम्मीदवार बता कर खूब चुनाव प्रचार किया था. 

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अभी तक कन्हैया को उस आरोप से निजात नहीं मिली है, और उत्तर पूर्वी दिल्ली से उनके कांग्रेस उम्मीदवार घोषित होते ही, बीजेपी उनको टुकड़े-टुकड़े गैंग का नेता बताने लगी है - और ऐसा सिर्फ उनके प्रतिद्वंद्वी बीजेपी उम्मीदवार मनोज तिवारी ही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से भी हमला बोला जाने लगा है. 

ऐसे में कन्हैया कुमार के खिलाफ रिवर्स-पोलराइजेशन का खतरा मंडराने लगा है. अगर कन्हैया कुमार के खिलाफ गैर-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हुआ तो सब कुछ बीजेपी के पक्ष में चला जाएगा - और बीजेपी को अपेक्षा से ज्यादा फायदा भी हो सकता है.

2. वोटों का ध्रुवीकरण तो होगा

उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट पर मुस्लिम वोट का खासा प्रभाव है.  21 फीसदी मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका भी निभा सकते हैं, बशर्ते मुकाबला कड़ा हो जाये. यानी हार जीत का अंतर काफी कम हो, तो कांग्रेस को निश्चित तौर पर फायदा मिलेगा. 

उत्तर पूर्वी दिल्ली के इलाकों में ही 2020 में दंगा हुआ था, जिसमें 50 से ज्यादा लोग मारे गये थे. इलाके के लोग दंगे की घटना से अब तक उबर नहीं पाये हैं - बीजेपी की तरफ से कन्हैया कुमार को टारगेट किये जाने का फायदा उत्तर पूर्वी दिल्ली सीट पर तो मिल ही सकता है, बाकी जगह मिले न मिले. 

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और ध्रुवीकरण की सूरत में ये फायदा सिर्फ कन्हैया कुमार को ही नहीं, कांग्रेस और आम आदमी  पार्टी के चुनाव गठबंधन के पक्ष में भी वोट बटोर सकता है. विशेष रूप से उन इलाकों में जहां आम आदमी पार्टी का प्रभाव है.

3. कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ेगा

कन्हैया कुमार को लेकर बीजेपी का वोटर जो भी सोचे, लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हौसला तो बढ़ ही सकता है. जैसे राहुल गांधी जब फील्ड में उतरते हैं तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मन में एक उम्मीद जगती है. उनको लगता है, अब कुछ अच्छा हो सकता है. ऐन उसी वक्त कुछ और हो जाता है, जिससे फायदा दूर छिटक जाता है. ये सब वक्त के साथ साथ राजनीतिक फैसलों पर भी निर्भर करता है. 

कन्हैया कुमार के भाषण मजेदार और विपक्षी पर आक्रामक और धारदार होते हैं. राहुल गांधी को कन्हैया कुमार का तेवर भी इसीलिए पसंद आता है, जाहिर है ये कार्यकर्ताओं का भी हौसला बढ़ाने वाला साबित हो सकता है. 

उत्तर पूर्वी दिल्ली से कन्हैया कुमार के चुनाव लड़ने से दिल्ली की बाकी सीटों पर भी कांग्रेस उम्मीदवारों के साथ साथ कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा रहेगा - और इसका सीधा फायदा आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को भी मिलेगा.

4. कांग्रेस-AAP गठबंधन के लिए फिट कैंडिडेट

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देखा जाये तो दिल्ली में कन्हैया कुमार कांग्रेस-AAP गठबंधन के लिए सबसे फिट कैंडिडेट हैं. कन्हैया कुमार सीपीआई के छात्र विंग से स्टूडेंट पॉलिटिक्स में शामिल हुए थे, और बाद में सीपीआई के टिकट पर ही लोकसभा का पहला चुनाव भी लड़े - ये वो पॉलिटिकल लाइन है जिसकी वजह से बीजेपी और संघ हमेशा ही कन्हैया कुमार के निशाने पर रही, और वो खुद भी शिकार हुए.

9 फरवरी की घटना के कुछ ही दिन बाद राहुल गांधी जेएनयू में प्रदर्शन कर रहे छात्रों से मिलने और उनको सपोर्ट देने गये थे. वे छात्र कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे थे, और राहुल गांधी ये जानते हुए भी कि छात्रसंघ अध्यक्ष कांग्रेस के स्टूडेंट विंग एनएसयूआई का नहीं है, खुल कर सपोर्ट किया. 

और कालांतर में जब कन्हैया कुमार के खिलाफ केस चलाने के लिए दिल्ली पुलिस ने मंजूरी के लिए फाइल भेजी तो अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने काफी दिनों तक लटकाये रखा. हालांकि, बाद में सिफारिश भेज दी थी, क्योंकि दिल्ली सरकार बीजेपी नेताओं के निशाने पर आ गई थी, और काफी बवाल होने लगा था. 

ऐसे में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के गठबंधन के लिए कन्हैया कुमार की वजह से फायदा और नुकसान 50-50 है - बाकी दिल्लीवालों की मर्जी. क्या पता अरविंद केजरीवाल के जेल जाने के बाद आम आदमी पार्टी के कैंपन 'जेल का जवाब वोट से' कैंपेन का भी असर हो जाये. 

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