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कपिल मिश्रा मंत्री तो बन गए लेकिन 2020 की हेट स्पीच से पीछा नहीं छूट रहा

कपिल मिश्रा को हेट स्पीच केस में फिर से झटका लगा है. दिल्ली हाई कोर्ट से पहले दिल्ली की अदालत में पुनर्विचार की याचिका भी खारिज हो गई थी - दिल्ली सरकार में मंत्री तो वो फिर से बन गये हैं, लेकिन मुसीबतें खत्म नहीं हो रही हैं.

कपिल मिश्रा पर जो इल्जाम है, उस अपराध के लिए तीन साल की सजा का प्रावधान है. कपिल मिश्रा पर जो इल्जाम है, उस अपराध के लिए तीन साल की सजा का प्रावधान है.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 19 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 4:05 PM IST

कपिल मिश्रा दिल्ली के एकमात्र ऐसे नेता हैं जो बीजेपी से पहले आम आदमी पार्टी की सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं. जो AAP नेता अरविंद केजरीवाल के खिलाफ अब वैसी ही भाषा बोलते हैं, जैसी उनकी जबान कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हुआ करती थी - और अब उनकी बयानबाजी ने ही कपिल मिश्रा को कानून के कठघरे में लाकर खड़ा कर दिया है.  

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बीजेपी नेता कपिल मिश्रा चाहते थे कि दिल्ली हाई कोर्ट उनके खिलाफ हेट स्पीच केस में ट्रायल की कार्यवाही रोक दे, लेकिन अदालत ने स्टे ऑर्डर देने से इनकार कर दिया. अभी 10 दिन पहले ही निचली अदालत में कपिल मिश्रा की पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो गई थी.

आरोप लगा है कि कपिल मिश्रा ने 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान सांप्रदायिक बयान दिये थे. हाई कोर्ट ने कपिल मिश्रा की याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है.

हेट स्पीच का ये मामला 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान कपिल मिश्रा के सोशल साइट X (तब ट्विटर) पर उनकी एक पोस्ट के आधार पर दर्ज FIR का है. कपिल मिश्रा को एडिशनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने पेश होने का आदेश दिया था. कपिल मिश्रा का दावा है कि अपने बयानों में उनकी तरफ से किसी जाति, समुदाय या धर्म को निशाना नहीं बनाया था.

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 और हेट स्पीच का मामला

2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में हेट स्पीच को लेकर कपिल मिश्रा, प्रवेश वर्मा और तब केंद्रीय मंत्री रहे अनुराग ठाकुर होड़ ले रहे थे. तब हाई कोर्ट के जस्टिस मुरलीधर के तबादले पर भी सवाल उठाया गया था. क्योंकि, जस्टिस एस. मुरलीधर ने ही हेट स्पीच से जुड़े मामले की सुनवाई की थी, और ऐसे नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज न किये जाने पर दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी. अगली सुनवाई से पहले ही जस्टिस मुरलीधर का पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में तबादला कर दिया गया. 

जिन नेताओं के खिलाफ हेट स्पीच के लिए एफआईआर न दर्ज करने के लिए दिल्ली पुलिस को फटकार सुननी पड़ी थी, उनमें एक नाम कपिल मिश्रा का भी था.

कपिल मिश्रा के साथ साथ प्रवेश वर्मा तो पूर्व सांसद से दिल्ली सरकार में मंत्री बन गये, लेकिन अनुराग ठाकुर को केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर ही रखे गये हैं. कपिल मिश्रा बीजेपी से पहले आम आदमी पार्टी की सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं. 2020 में तो तमाम तिकड़मों के बावजूद कपिल मिश्रा अपना भी चुनाव हार गये थे. 

मार्च, 2025 के शुरू में ही दिल्ली की अदालत ने कपिल मिश्रा की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी, और दिल्ली हाई कोर्ट ने भी करीब करीब वैसा ही किया है. याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा था कि कपिल मिश्रा ने बड़ी होशियारी से अपने बयानों में नफरत फैलाने, और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए 'पाकिस्तान' शब्द का इस्तेमाल किया, ताकि चुनाव में वोट मिल सके.

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कपिल मिश्रा की तरफ से अदालत को बताया गया कि बयानों में उनकी ओर से किसी भी जाति, समुदाय या धर्म को टार्गेट नहीं किया गया था, लेकिन अदालत को कोई सच्चाई नहीं नजर आई.

कोर्ट का कहना था, ये दलील बेतुकी है और पूरी तरह से अस्वीकार्य है, बयान में एक देश विशेष की तरफ इशारा करते हुए संदर्भ दिया गया था… वो एक खास समुदाय के लोगों की तरफ साफ संकेत था, जो साफ तौर पर धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी पैदा करने के लिए था. कोर्ट ने कहा, समझदार व्यक्ति की बात छोड़ दें तो आम आदमी भी ये इशारा आसानी से समझ सकता है.

अदालत में ट्रायल पर रोक लगाने के लिए कपिल मिश्रा की छवि की दुहाई दी जा रही थी. कपिल मिश्रा के वकील ने दिल्ली हाई कोर्ट से गुजारिश की कि ट्रायल कोर्ट कार्यवाही को रोक दिया जाये, क्योंकि अगर इस दौरान आरोप तय करने की कार्यवाही अदालत ने पूरी कर ली, तो उससे कपिल मिश्रा की छवि को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है.

कपिल मिश्रा को फायदा या नुकसान

कपिल मिश्रा के कानूनी पचड़े में फंसने से दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के सामने चुनौती खड़ी हो सकती है. क्योंकि, जिस लाइन की राजनीति कपिल मिश्रा करते हैं, प्रवेश वर्मा भी तो मैदान में वैसे ही शॉट खेलते हैं. फर्क बस ये है कि प्रवेश वर्मा काजल की उस कोठरी से बच कर निकल गये, और कपिल मिश्रा फंस गये हैं.  

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एकबारगी तो कपिल मिश्रा के लिए ये सब फायदेमंद ही लगता है. लेकिन, जिस तरह का गंभीर इल्जाम लगा है, अगर अपराध साबित हुआ तो उसके लिए तीन साल तक की सजा का प्रावधान है - और ऐसा हुआ तो विधानसभा की सदस्यता और मंत्री पद जाने के साथ ही चुनाव लड़ने पर भी पाबंदी लग सकती है.

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