Advertisement

क्या हरियाणा-महाराष्ट्र के मुकाबले दिल्‍ली में केजरीवाल के सामने ज्यादा बड़ी है एंटी इनकंबेंसी की चुनौती? | Opinion

दिल्ली में मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जाने से पूरी तरह साफ हो गया है कि आम आदमी पार्टी अपनी सरकार के खिलाफ जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर महसूस कर रही है - हरियाणा और महाराष्ट्र में तो बीजेपी ने अपने मनमाफिक परिस्थतियां बना ली थी, अरविंद केजरीवाल के साथ क्या होगा?

अरविंद केजरीवाल की सत्ता में वापसी की राह में बहुत रोड़े हैं. अरविंद केजरीवाल की सत्ता में वापसी की राह में बहुत रोड़े हैं.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 12 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 3:11 PM IST

ये बोलकर कि 'दिल्ली की सभी 70 सीटों पर समझो अरविंद केजरीवाल ही चुनाव लड़ रहा है', आम आदमी पार्टी नेतृत्व ने स्पष्ट संकेत दे दिया था कि हालात कैसे हैं - और अब जारी उम्मीदवारों की दोनो सूची में भी सबूत सामने नजर आ रहा है. 

आम आदमी पार्टी ने अब तक 31 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं, जिनमें 24 विधायकों के टिकट काट दिये गये हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में इनमें से 27 सीटों पर आम आदमी पार्टी और चार पर बीजेपी के विधायक बने थे. 

Advertisement

आम आदमी पार्टी ने अपने तीन विधायकों की सीटें भी बदल दी है, जिनमें मनीष सिसोदिया भी शामिल हैं. आम आदमी पार्टी ने मनीष सिसोदिया को इस बार पटपड़गंज से जंगपुरा शिफ्ट कर दिया है, और वैसे ही राखी बिडलान को मंगोलपुरी से मादीपुर, प्रवीण कुमार को जंगपुरा से जनकपुरीके मैदान में भेज दिया गया है. जो सीटें बीजेपी के हिस्से में चली गई थीं, उन पर आम आदमी पार्टी ने हारे हुए नेताओं को ही दोबारा उम्मीदवार बनाया है. 

लोकसभा चुनाव के ठीक बाद हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के सामने सत्ता विरोधी फैक्टर की चुनौती थी, जिसे काउंटर करने के लिए पार्टी ने कई विधायकों के टिकट काट दिये थे. ऐसे नेताओं में मंत्री भी शामिल थे - और कई तो कैमरे पर रोते हुए भी पाये गये थे. 

Advertisement

हरियाणा की जीत से बीजेपी का जोश बढ़ा जरूर था, लेकिन शुरू में काफी डरी हुई थी. डरने की वजह भी थी. लोकसभा चुनाव में न तो बीजेपी, न ही सहयोगी दलों में से किसी का भी प्रदर्शन संतोषजनक था, जिसके लिए बीजेपी को सहयोगी से सीटों की अदलाबदली और अन्य उपाय करने पड़े थे - अब वैसी ही मुश्किल अरविंद केजरीवाल के सामने दिल्ली में खड़ी हो गई है. 

हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी के मुकाबले आम आदमी पार्टी की चुनौती ज्यादा बड़ी है, क्योंकि अरविंद केजरीवाल सहित बड़े नेता भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके हैं, और इस कारण चुनावी तैयारियों के लिए समय भी काफी कम मिला है. 

AAP की दिल्ली सरकार के सामने चुनावी चुनौतियां

जहां तक दिल्ली में सत्ताधारी पार्टी की बात है, आम आदमी पार्टी के सीनियर नेता भी मानते हैं कि सरकार और विधायकों, दोनो के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर तो निश्चित रूप से है. 

अरविंद केजरीवाल ने जेल से आते ही ये चीज महसूस की होगी, और मौजूदा विधायकों की जगह नये चेहरे उतारने का फैसला कर लिया होगा. बताते हैं कि 2020 में आम आदमी पार्टी ने एक दर्जन से ज्यादा विधानसभा सीटों पर नये चेहरे उतारे थे - लेकिन, आने वाले चुनाव में ये नंबर बढ़ सकता है.

Advertisement

नये नेताओं को टिकट दिये जाने का मतलब फ्रेश चेहरों से नहीं है, अरविंद केजरीवाल की नजर उन सभी नेताओं पर है जो आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दे चुके हैं और 2020 में रनर अप रहे. 

हाल फिलहाल कांग्रेस और बीजेपी से कई नेता आम आदमी पार्टी में शामिल हुए हैं, और अब तक घोषित किये गये उम्मीदवारों में उनका भी नाम शामिल है. 

केजरीवाल के उपाय दिल्ली में कितने कारगर

न्यूज एजेंसी ANI की एक खबर पर आम आदमी पार्टी की तरफ से सीधे अरविंद केजरीवाल का रिएक्शन आया  है. अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ दिल्ली में चुनाव पूर्व गठबंधन की बातों को पूरी तरह खारिज कर दिया है. 
सूत्रों के हवाले से एएनआई ने खबर दी है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच समझौते की बात करीब करीब फाइनल स्थिति में हैं. एनएनआई के मुताबिक, आम आदमी पार्टी कांग्रेस को 15 और INDIA ब्लॉक के दूसरे सदस्यों को भी 1-2 सीटें दे सकती है. 

लेकिन, अरविंद केजरीवाल ने एनएनआई की खबर को टैग करते हुए सोशल साइट एक्स पर लिखा है, आम आदमी पार्टी दिल्ली में अपने बूते चुनाव लड़ेगी. कांग्रेस के साथ गठबंधन की कोई संभावना नहीं है. 

जब तक कोई और खबर नहीं आती, तब तक तो यही फाइनल माना जाएगा. 

Advertisement

हो सकता है ये सब भी अरविंद केजरीवाल की रणनीति का कोई हिस्सा हो. क्योंकि, हरियाणा चुनाव के दौरान भी गठबंधन को लेकर गंभीर चर्चा हुई थी, लेकिन बाद में बातचीत अंजाम तक नहीं पहुुंच पाई.

अरविंद केजरीवाल ने मौजूदा विधायकों के टिकट काटने जैसे कदम उठाने से पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर आतिशी के रूप में नया मुख्यमंत्री दे दिया, और सफाईकर्मियों से लेकर ऑटोवालों तक संवाद का जो सिलसिला चल रहा है, वो भी तो बातचीत के जरिये लोगों के मन में अगर कोई गुस्सा है तो उसे न्यूट्रलाइज करने की कोशिश ही है. 

बड़ा सवाल ये है कि क्या अरविंद केजरीवाल की तरफ से किये जा रहे ये उपाय कारगर भी साबित हो पाएंगे?

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement