
महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष ने शिवसेना विधायकों की अयोग्यता को लेकर जो फैसला दिया है वो अपेक्षित था. स्पीकर राहुल नार्वेकर एकनाथ शिंदे या उनके विधायकों को दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य करार देंगे ऐसा राजनीतिक दृष्टिकोण से संभव ही नहीं था. शिंदे अयोग्य करार दिए जाते तो सरकार गिर जाती. ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले ही महाराष्ट्र में बीजेपी ने जितनी मेहनत से तोड़मरोड़ कर जो महायुती बनाई थी उसका विघटन हो जाता.
राजनीतिक हलकों में लोग मानकर चल रहे थे कि राहुल नार्वेकर उद्धव ठाकरे के खिलाफ ही फैसला देंगे. विडंबना ये है कि इस अयोग्यता मामले के सारे पात्र एक जमाने में उद्धव ठाकरे के साथ हुआ करते थे. एकनाथ शिंदे, उनके विधायक और खुद राहुल नार्वेकर 2013 तक शिवसेना में ही थे और आदित्य ठाकरे के करीबी माने जाते थे. बाहरहाल राजनीतिक रूप से ना सही लेकिन संवैधानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस फैसले ने सभी को चौंका दिया.
महाराष्ट्र में नई राजनीति की शुरुआत
संविधान की 10वीं अनुसूची के मुताबिक, राजनीतिक पार्टी के नेतृत्व के खिलाफ बगावत करने वाले विधायक या तो अयोग्य करार दिए जाते हैं या अगर उनके पास दो-तिहाई संख्या है तो उन्हें किसी और पार्टी में शामिल होना पडता है. इस पार्टी में फूट या विधायक दल में बहुमत के कोई मायने नहीं हैं. लेकिन विधानसभा अध्यक्ष का फैसला इन्हीं दो आधार पर लिया गया है. महाराष्ट्र में जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली राजनीति की ये एक शुरुआत है.
बीजेपी ने इसलिए नहीं मनाया जश्न
ध्यान देने वाली बात ये थी कि इस फैसले के बाद एकनाथ शिंदे और उनके साथी जश्न मनाते नजर आए और ये स्वाभाविक भी था लेकिन बीजेपी और अजीत पवार पूरी तरह से खामोश थे. फरवरी 2023 में चुनाव आयोग ने शिवसेना पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह शिंदे को सौंपने के बाद बीजेपी नेता लगातार प्रतिक्रिया दे रहे थे. खुद अमित शाह ने इसे लेकर उद्धव ठाकरे पर चुटकी ली थी. एकनाथ शिंदे से ज्यादा बीजेपी खुश नजर आई थी, लेकिन इस बार देवेंद्र फडणवीस ने एक्स पर एक पोस्ट की और वो भी फैसला आने के कुछ घंटे बाद.
पिछली बार बीजेपी नेताओं के उत्साह ने उद्धव ठाकरे को सहानुभूति दिलवाई. बीजेपी सोच रही थी कि शिंदे के साथ आने और उन्हें पार्टी का नाम एवं चिन्ह मिलने के बाद उद्धव का समर्थन पूरा टूट जाएगा लेकिन ये सोच उद्धव के प्रति सहानुभूति पैदा होने से कारगर साबित होती नजर नहीं आई. इसलिए इस बार स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि सिर्फ अधिकृत प्रतिक्रिया होगी. बाकी कोई नेता किसी भी तरीके से जश्न नहीं मनाएगा. यही वजह रही कि बीजेपी का खेमा शांत रहा.
यहां तक कि राहुल नार्वेकर ने भले ही एकनाथ शिंदे के हक में फैसला दिया लेकिन शिंदे की तरफ से उद्धव गुट के विधायकों के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं को ठुकराते हुए ठाकरे गुट के विधायकों को भी अयोग्य करार नहीं दिया और तर्क दिया कि उन विधायकों को शिंदे का व्हिप मिला ही नहीं था.
अब पवार को लेकर आने वाले फैसले पर है नजर
कुल मिलाकर चर्चा ये थी कि बीजेपी इस बात का पूरा ध्यान दे रही थी कि किसी भी हालत में उद्धव ठाकरे को मिल रही सहानुभूति में इजाफा ना हो सके. कुछ दिन में शरद पवार बनाम अजित पवार मामले में चुनाव आयोग और विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर अजित पवार के पक्ष में ही फैसला देंगे, ऐसी अटकलें खुलकर लग रही हैं.
ऐसे में 84 वर्षीय शरद पवार को सहानुभूति ना मिले इसके लिए भी बीजेपी को जूझना पड़ेगा. इसके अलावा उद्धव ठाकरे को और सहानुभूति ना मिले और साथ ही दिल्ली बनाम महाराष्ट्र सेंटिमेंट को बढ़ावा ना मिले इसके लिए बीजेपी अपने नेताओं की बयानबाजी पर लगाम लगाए हुए है. चुनावी माहौल में ये बयानबाजी कितना रुकेगी ये देखने वाली बात होगी.