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महाकुंभ में भगदड़: आखिर तैयारियों में कहां कमी रह गई, इन 6 सवालों के जवाब कौन देगा?

महाकुंभ स्नान में सारी व्यवस्था झोंकने के बाद भी इस तरह का हादस क्यों हुआ? बारह से पंद्रह किलोमीटर पैदल चलते-चलते जनता परेशान क्यों हो रही थी. क्या इसी व्यवस्था के लिए 7500 करोड़ रुपये खर्च किए गए?

प्रयागराज महाकुंभ में रात 2 बजे जब भगदड़ मची तो लोगों ने इस तरह अपनी जान बचाई. (Photo:Agency) प्रयागराज महाकुंभ में रात 2 बजे जब भगदड़ मची तो लोगों ने इस तरह अपनी जान बचाई. (Photo:Agency)
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 29 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 2:57 PM IST

प्रयागराज में 144 साल बाद लग रहे महाकुंभ को भी इतनी तैयारियों के बाद भी दुखद हादसे से बचाया नहीं जा सका. संगम तट पर बुधवार को उस वक्त बड़ा हादसा हो गया जब मौनी अमावस्या के मौके पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ स्नान के लिए पहुंची थी. देर रात संगम नोज पर भगदड़ मच गई और 10 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई ( हालांकि प्रशासन ने अभी इसकी पुष्टि नहीं की है). कई लोग घायल बताए जा रहे हैं. कहने को तो महाकुंभ में भगदड़ मचती ही है, जहां करोड़ों लोग जुटेंगे तो हादसे होंगे ही. बहुत आसान है ये बात कहना. भारत की जनता वैसे भी नियति को मानती रही है. बहुत से लोग यह भी मान सकते हैं कि महाकुंभ में मौत होना भी सौभाग्य है. पर यह धर्मभीरुता ही कहा जा सकता है. जीवन अमूल्य निधि है. सरकार का कर्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों के जीवन की रक्षा किसी भी कीमत पर करे. आश्चर्य यह है कि दुर्घटना को बीते कम से कम 10 घंटे बीच चुके हैं पर प्रशासन ने अब तक हताहतों की संख्या के बारे में कोई बात नहीं की है. यह भी नहीं कह रही है कि किसी भी शख्स की मौत नहीं हुई है. सवाल तो खूब उठ रहे हैं और आगे अभी और उठेंगे भी. पर देश और सरकार के ऊपर जो धब्बा लगा है वो जल्दी मिटाया नहीं जा सकेगा. आखिर क्या कारण रहे कि 7500 करोड़ खर्च के बाद भी सरकार लोगों की जान बचाने में सफल नहीं हो सकी . आइये देखते हैं...

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1-तीन दिन पहले ही स्थिति आउट ऑफ कंट्रोल थी तो ऑर्मी क्यों नहीं बुलाई गई?

जिस तरह पिछले दो-तीन दिन से देखा जा रहा था कि भीड़ आउट ऑफ कंट्रोल हो रही थी. प्रशासन भीड़ को संभाल नहीं पा रहा था. तो उसके लिए क्या तैयारी की गई. लगातार ऐसी खबरें आ रही थीं कि बस किसी तरह से मेला सकुशल निबट जाए. प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ पांव कई दिन से फूले हुए थे. कई पत्रकारों ने ऐसे ट्वीट किए कि जिसका मतलब था कि अब मेला क्षेत्र भगवान भरोसे है. क्या लाखों लोगों का जीवन इस तरह भगवान भरोसे छोड़ा जाता है. तीन दिन पहले ही पता चल गया था कि मौनी अमावस्या पर इतनी भीड़ आ रही हैं जो संभाले नहीं संभलने वाली है तो क्यों नहीं ऑर्मी के जिम्मे मेले को सौंप दिया गया?

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क्या कोई भी प्रशासन करोड़ों की संख्या को संभाल सकता है. जो लोग कुंभ स्नान कर लौटे हैं, वे बताते हैं कि लगभग 10 से 20 किमी पैदल चलना पड़ता है.अधिकारी भी आदमी हैं वो लगातार डेढ़ महीने दिन रात मेहनत नहीं कर सकते. 

2-मेले को राजनीतिक इवेंट क्‍यों बनाया गया?

कुंभ के धार्मिक पर्व की जगह राजनीतिक इवेंट में बदलना भी भारी पड़ गया.कभी उत्तर प्रदेश की कैबिनेट बैठक कर रही है तो कभी देश के गृहमंत्री पहुच रहे हैं. पीएम की भी विजिट होने वाली है. जाहिर है कि प्रशासन का पूरा ध्यान उनकी सुरक्षा में लग जाता है. जब एक पार्टी करती है तो दूसरी पार्टी के नेताओं को भी पब्लिक में दिखाना जरूरी हो जाता है. इस तरह मेले पर राजनीति भी होने लगी. मीडिया, प्रशासन का काम जनता के लिए सुविधा जुटाना होता है पर लेकिन सभी VIP की कवरेज में जुट गए. अख़बारों और चैनलों से ही समस्याओं की ख़बरें नहीं ग़ायब थीं बल्कि यू ट्यूबर भी अध्यात्म में डूबे नजर आए.

3- VVIP कल्चर भारी पड़ा?

स्नान में सारी व्यवस्था झोंकने के बाद भी इस तरह का हादसा क्यों हुआ? बारह से पंद्रह किलोमीटर पैदल चलते-चलते जनता परेशान हो रही थी. ग्लोबल कुंभ के चक्कर में देश में  लाखों लोग वीआईपी बन रहे थे. केवल सरकार और प्रशासन ही वीआईपी नहीं थे पूरे देश में वीआईपी पास लेने की होड़ थी. स्थानीय जिले स्तर के नेता वीआईपी पास लिए महाकुंभ में पहुंच रहे थे. ये जांच होनी चाहिए कि इतने बड़े लेवल पर वीआईपी पास कहां से जारी हो रहे थे. हालत यह हो गई थी कि कुंभ एरिया में वीआईपी कारों को निकलने की जगह नहीं मिल रही थी. केवल वीवीआईपी लोगों के लिए आसानी थी.

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4- 30 पीपा पुल बने लेकिन लोगों के लिए केवल 2 ही उपलब्‍ध क्‍यों?

महाकुंभ के प्रमुख स्नान पर्व मौनी अमावस्या से एक दिन पहले ही पूरा मेला क्षेत्र श्रद्धालुओं से खचाखच भर चुका था. प्रयागराज की सड़कों पर ही नहीं आस पास के शहर काशी, लखनऊ , अयोध्या सभी जगहों पर लोगों का रेला लगा हुआ था. मेला क्षेत्र में श्रद्धालुओं की भीड़ को देखकर प्रशासन के भी हाथ-पांव फूल गए थे. संगम नोज पर भीड़ को कंट्रोल करने के लिए मेला विकास प्राधिकरण ने सोमवार को सभी पांटून पुलों को बंद कर रखा था.  तमाम मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि विकास प्राधिकरण ने 30 पीपा पुलों में से केवल 3 को ही खोल रखा है. श्रद्धालुओं में इस बात को लेकर आक्रोश है कि 8 से 10 किमी तक चलकर संगम पहुंचने के बाद उन्हें लौटा दिया जा रहा था.

झूंसी से अरैल साइड जाने के लिए केवल 27 नंबर का पीपा पुल ही खोला गया था. इसी तरह झूंसी से संगम की ओर आने के लिए केवल 15 व 16 नंबर का ही पीपापुल खोला गया था. जाहिर है कि ये इसलिए किया गया होगा कि लोग संगम नोज तक न पहुंचे. पर हुआ इसका उल्टा लोगों को पैदल चलकर थक गए और गुस्से में आकर पुलिस से लड़ने भिड़ने लगे.

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सोमवार को पीपा पुल नंबर 7 पर न जाने देने से लोगों का गुस्सा फूट पड़ा था और एसडीएम की गाड़ी में तोड़फोड़ कर दी थी. इसका बवाल का वीडियो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ट्वीट भी किया था. अगर पीपा पुल सभी खुले रहते तो लोग जहां मिलता वहीं स्नान करके वापस चले जाते. शायद समझने में भूल हुई. 

5-कहां खर्च हुए 7500 करोड़?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि महाकुंभ 2025 में करीब 7,500 करोड़ रुपये का खर्च होने का अनुमान है. इसमें केंद्र सरकार का योगदान भी शामिल है. उत्तर प्रदेश सरकार ने इस आयोजन के लिए 5,435.68 करोड़ रुपये का बजट रखा था. वहीं, केंद्र सरकार ने इस आयोजन के लिए 2,100 करोड़ रुपये का आवंटन किया था. इतने रुपये में तो 40 करोड़ लोगों को टेंट में सुलाया जा सकता था. इतना खर्च करके तो हर तीर्थयात्री की मैपिंग की जा सकती थी. हर तीर्थयात्री को बार कोड वाले पास, टाइम के साथ मेला क्षेत्र में एंटर करने और स्नान के बाद बाहर करने की व्यवस्था हो सकती थी. पूरी व्यवस्था दशकों पुराने तौर तरीके से ही संचालित हो रही थी. केवल कच्ची सड़कें, पीपा पुल, 24 घंटे चलने वाले भंडारे आदि पर इतना रुपया कैसे खर्च हो गया? उत्तराखंड तक में चार धाम यात्रा के दौरान हर यात्री का रजिस्ट्रेशन होता है. कुंभ में कोई रजिस्ट्रेशन नहीं था. 

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