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पवार परिवार में चाचा-भतीजे का साथ आना मुश्किल तो है, लेकिन असंभव नहीं | Opinion

अजित पवार के मन में क्या चल रहा है, ये तो नहीं मालूम. मगर, उनकी मां चाहती हैं कि नये साल में चाचा-भतीजे फिर से साथ हो जायें - क्या ये वास्तव में संभव हो सकता है?

अजित पवार और शरद पवार का फिर से साथ आ पाना नामुमकिन तो नहीं, लेकिन मुश्किल बहुत है. अजित पवार और शरद पवार का फिर से साथ आ पाना नामुमकिन तो नहीं, लेकिन मुश्किल बहुत है.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 01 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 5:44 PM IST

जब से महाराष्ट्र के मशहूर चाचा-भतीजे यानी शरद पवार और अजित पवार अलग हुए हैं, चर्चा में बार बार एक नाम जरूर आता है. और, ये नाम है, आशा पवार का - लोकसभा चुनाव और उसके बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान भी आशा पवार का नाम खबरों में आया था - और नये साल में एक बार फिर वो अपनी इच्छा को लेकर चर्चा में आई हैं. 

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आशा पवार, महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार की मां हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान वोट देने के बाद बारामती सांसद सुप्रिया सुले का आशा पवार से मिलने जाना खासा चर्चा में रहा था - और विधानसभा चुनाव के समय अजित पवार को लेकर भी आशा पवार की इच्छा खबरों में आई थी. 

अब एक बार फिर आशा पवार के बयान के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में थोड़ी हलचल देखी जा रही है - और अपनी इच्छा पूरी होने के लिए वो भगवान विट्ठल से प्रार्थना कर रही हैं. 

क्या नये साल में साथ आना चाहता है पवार परिवार?

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान अजित पवार की मां बेटे को मुख्यमंत्री बनते देखना चाहती थीं. 

चुनावों के दौरान आशा पवार का कहना था, ‘एक मां होने के कारण मुझे ऐसा लगता है कि मेरे बेटे अजित को मुख्यमंत्री होना चाहिये. लोगों की तरह मैं भी अजित पवार को मुख्यमंत्री बनते हुए देखना चाहती हूं… आगे क्या होगा, ये तो मैं नहीं बता सकती… देखते हैं… बारामती के सभी लोग हमारे अपने हैं. हर कोई अजित से प्यार करता है.’

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बेशक अजित पवार भी ऐसा ही चाहते होंगे. अजित पवार अपने लिए डिप्टी सीएम की कुर्सी का इंतजाम तो कर लेते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री बन पाने के संयोग अभी तक नहीं महसूस किये गये हैं. फिलहाल अजित पवार महाराष्ट्र की महायुति सरकार में एकनाथ शिंदे के साथ ही डिप्टी सीएम हैं. 

और अब आशा पवार के नये साल का रिजॉल्यूशन भी सामने आ गया है. नववर्ष की बधाई देते हुए आशा पवार ने कहा है, नया साल सभी के लिए अच्छा हो… सभी पारिवारिक विवाद खत्म हो जाएं, और अजित पवार के पीछे लगी हर आपदा खत्म हो जाए. 

बेटे के साथ साथ आशा पवार ने परिवार और पार्टी को लेकर भी नये साल में अपनी इच्छा बताई है, जिसमें वो शरद पवार और अजित पवार के फिर से साथ आने की कामना कर रही हैं. कहती हैं, मैंने भगवान विट्ठल से यही प्रार्थना की है.

शरद पवार और अजित पवार का साथ आना क्या संभव है?

लोकसभा चुनाव के दौरान सुप्रिया सुले ने अपनी आशा ताई से मिल कर सबको चौंका दिया था. वोट देने के बाद सुप्रिया सुले अजित पवार के घर पहुंची तो हर तरह इस बात की काफी चर्चा होने लगी. 

जब मीडिया ने सुप्रिया सुले से अजित पवार के घर जाने के बारे में पूछा तो उनका कहना था, ये अजित पवार का नहीं… बल्कि, मेरे चाचा का घर है… ये हमारे सभी भाई-बहनों का घर है.

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वो आगे बोलीं, मैं आशा मौसी से मिलने आई थी… उनका आशीर्वाद लेने आई थी. हम हर वक्त आते-जाते रहते हैं… आंटी के हाथ का बना खाना सबसे अच्छा होता है… मैंने अपना बचपन अपनी मौसी के साथ बिताया है, जितना मेरी मां ने मेरे लिए नहीं किया, उतना आशा काकी ने किया है.

लोकसभा चुनाव के दौरान शरद पवार के हिस्से में बेहतर नतीजे आये, जिसमें बारामती लोकसभा सीट पर सुप्रिया सुले की जीत भी शामिल रही. सुप्रिया सुले ने अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार को शिकस्त देकर जीत हासिल की थी. 

कुछ दिनों बाद अजित पवार ने बारामती के मैदान में परिवार के खिलाफ खड़े होने और सुनेत्रा पवार को चुनाव लड़ाने के लिए अफसोस भी जताया था, लेकिन बात उससे आगे नहीं बढ़ सकी. 

उस दौरान भी परिवार के साथ आने की चर्चा होती रही, लेकिन किसी भी तरफ से कोई सार्वजनिक पहल नहीं दिखाई पड़ी - और सुप्रिया सुले ने ऐसी संभावनाओं को ही खारिज कर दिया था.  

पूछे जाने पर सुप्रिया सुले का कहना था, ये कहना मुश्किल है कि पवार परिवार, अजित पवार के साथ राजनीतिक रूप से फिर से एकजुट हो सकता है या नहीं… जब तक वो (अजित पवार) बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं, ये आसान नहीं होगा… हमारी विचारधाराएं अब भी राजनीतिक तौर पर चुनौती बनी हुई हैं.

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विधानसभा चुनाव भी हो गये, और नई सरकार भी बन गई. अजित पवार ने विधानसभा चुनाव में शरद पवार से बेहतर प्रदर्शन करके थोड़ा बहुत बदला भी ले लिया. 

सुप्रिया सुले ठीक ही कह रही हैं. विचारधारा तो आड़े आ ही रही होगी, लेकिन बात बस उतनी ही नहीं है. 


विधानसभा चुनाव से पहले जब बीजेपी में ही अजित पवार के साथ गठजोड़ का विरोध हो रहा था, तो उनको भी लगा होगा कि परिवार के पास लौट जायें. 

अजित पवार अब काफी मजबूत स्थिति में हो गये हैं. बल्कि, एकनाथ शिंदे से भी बेहतर स्थिति में अजित पवार हैं. नई सरकार में भी उनके पास वित्त मंत्रालय का होना सबसे बड़ा सबूत है. 

अब एक ही चीज परिवार को फिर से जोड़ सकती है, और वो है दोनो पक्षों का अपना अपना राजनीतिक स्वार्थ - लेकिन अब तो शरद पवार को अजित पवार की सारी शर्तें भी माननी पड़ेंगी. लेकिन, ये सब काफी मुश्किल लगता है.
 

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