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एकनाथ शिंदे फैक्टर की वो बातें, जिन्होंने महाराष्ट्र में महायुति को बना दिया महाबली! | Opinion

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में महायुति गठबंधन बंपर लीड लेता दिख रहा है. वैसे तो किसी भी पार्टी के जीतने के कई कारण होते हैं. महायुति की जीत के कई फैक्टर हैं पर एकनाथ शिंदे का फैक्टर क्यों सबसे महत्वपूर्ण हो गया है. जानिये...

Maharashtra Chunav Results Maharashtra Chunav Results
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 23 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:57 AM IST

महाराष्ट्र में चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार खबर लिखे जाने तक 149 सीटों पर महायुति गठबंधन आगे चल रही है. मतलब अभी तक के रुझानों के मुताबिक महाराष्ट्र में महायुति को सरकार बनाने का चांस मिलते दिख रहा है. जाहिर है कि अब महायुति की उन रणनीतियों की चर्चा होगी कि आखिर वो कौन से कारण हैं जिसके चलते गठबंधन एक बार फिर सरकार में आता दिख रहा है.जबकि एंटी इंकंबेंसी के साथ बीजेपी पर शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने का भी आरोप लगा. मराठा आंदोलन ने भी महायुति का काम खराब किया. पर इन सब झंझावतों से निपटने में ये गठबंधन कैसे सफल रहा? आइये देखते हैं.

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1-शिंदे को सीएम बनाए रखना काम कर गया

भारतीय जनता पार्टी ने एकनाथ शिंदे को सीएम बनाकर ऐसी गुगली फेंकी थी कि एमवीए चारों खानों चित होती नजर आ रही थी. इसका कारण था शिंदे मराठा क्षत्रप हैं.मराठा प्राइड को कैश करने की बीजेपी की रणनीति काम कर गई. बीजेपी बीच बीच में ये संदेश भी देती रही कि एकनाथ शिंदे फिर से मुख्यमंत्री बन सकते हैं. जरांगेर पाटील के मराठा आंदोलन से एमवीए बहुत खुश था पर बीजेपी की इस रणनीति के चलते उसे फायदा नहीं हो पाया. दूसरे शिवसेना (यूबीटी) को कमजोर करने में भी शिंदे का बहुत रोल रहा. आम मुंबइया ने शिंदे को ही मराठा सम्मान का प्रतीक माना. उनके लिए ठाकरे परिवार बाहरी हो गया.

2- लड़की बहिन योजना और कल्याणकारी योजनाएं

लड़की बहिन योजना लागू करने की रणनीति काम कर गई. आम जनता को लगता है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के चलते उनके खातों में हर महीने रुपये आने शुरू हुए हैं. अगर वो दुबारा सीएम बनते हैं तो और भी अधिक रुपये आएंगे. एमवीए के कई कोर वोटर्स के घरों की महिलाओं ने महायुति को वोट दिया क्योंकि उनके खातों में पैसा पहुंचने लगा था. इसी तरह चुनाव की घोषणा के कुछ दिन पहले ही कई टोल प्लाजा से टोल हटाए जाना भी कारगर साबित हुआ.

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3-हिंदू- मुस्लिम दोनों को साधने में सफल हुई

गठबंधन ने हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के बंटेंगे तो कटेंगे और एक हैं तो साथ हैं का सहारा लिया .तो दूसरी ओर एनसीपी के मुस्लिम कैंडिडेट को सपोर्ट करके यह भी जता दिया वो मुसलमानों की विरोधी नहीं है. चुनावों के ठीक पहले एकनाथ शिंद सरकार ने मदरसों के शिक्षकों की सैलरी बढ़ाकर गठबंधन ने यह संदेश दे दिया था. इस तरह एनसीपी और शिंदे शिवसेना को मुस्लिम वोट भी भर-भर कर मिलते दिख रहा है.

4-बीजेपी की नई रणनीति

भारतीय जनता पार्टी ने शुरू से ही अपनी रणनीति में स्थानीय राजनीति को महत्व दिया. हरियाणा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बहुत ज्यादा प्रचार प्रसार नहीं कराया गया था यही रणनीति यहां भी दोहराई गई. लोकल नेताओं को प्रचार में आगे रखा गया. इस बार महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा रैलियां और सभाएं डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस से करवाई गई.

5-संघ और बीजेपी का मिलकर काम करना एमवीए के लिए डेडली हो गया

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध सुधरना भी बीजेपी के लिए काम कर गया. संघ के कार्यकर्ता भाजपा का संदेश घर धर तक ले गए.संघ के लोग घर घर पहुंचकर जनता से अपील कर रहे थे कि लोकसभा चुनावों के परिणामों से सीख लें और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में एकजुट होकर भाजपा की अगुवाई वाली गठबंधन को वोट दें. पंफलेट में लोगों को भूमि जिहाद, लव जिहाद, धर्मांतरण, पत्थरबाजी और दंगे आदि के बारे में बताया जा रहा था.
 

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