Advertisement

उद्धव ठाकरे को एकनाथ शिंदे का करारा जवाब, 'गद्दार' ही शिवसेना की विरासत का असली हकदार । Opinion

Maharashtra Vidhan Sabha Chunav Results 2024: महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों से एक बात तो साफ है, उद्धव ठाकरे विरासत में मिली राजनीति को नहीं संभाल सके - वो छोटी छोटी चीजों में उलझे रहे, और एकनाथ शिंदे ने पैरों के नीचे की सारी जमीन खींच कर महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार को पैदल कर दिया है.

शिवसेना और बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत की आखिरी लड़ाई में भी एकनाथ शिंदे से उद्धव ठाकरे को मिली शिकस्त. शिवसेना और बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत की आखिरी लड़ाई में भी एकनाथ शिंदे से उद्धव ठाकरे को मिली शिकस्त.
मृगांक शेखर
  • नई दिल्ली,
  • 23 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 2:54 PM IST

ये ठीक है कि उद्धव ठाकरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी एकनाथ शिंदे को बीजेपी का सपोर्ट मिला, लेकिन महाविकास अघाड़ी में शरद पवार की एनसीपी और लोकसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस भी तो साथ थी - और झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे भी तो मिसाल ही हैं. 

परिस्थितियां तो हेमंत सोरेन के भी खिलाफ थीं, लेकिन उद्धव ठाकरे ने पूरा वक्त एकनाथ शिंदे और बीजेपी को भला बुरा बोलने में ही बिता दिया - और न हेमंत सोरेन की तरह सहानुभूति हासिल सके, न एकनाथ शिंदे को शिवसेना की विरासत की हिस्सेदारी से ही हटा सके - और सारी बातों के बावजूद महाराष्ट्र के लोगों ने ‘गद्दार’ को ही असली हकदार मान लिया. एकनाथ शिंदे को उद्धव हमेशा गद्दार कहते आए हैं. और चुनाव के दौरान मंचों से उन्‍होंने यह बात बार-बार दोहराई.

Advertisement

हिंदुत्व के एजेंडे वाले खांचे में उद्धव की राजनीति खत्म

क्या उद्धव ठाकरे की राजनीति खत्म हो गई है? सवाल तो बनता है, लेकिन जवाब अभी नहीं मिल सकता. और, अभी ऐसे जवाब की अपेक्षा भी नहीं होनी चाहिये. ऐसा इसलिए भी क्योंकि बीजेपी के लगातार कैंपेन के बावजूद कांग्रेस मुक्त भारत का सपना पूरा नहीं हो सका है - लेकिन, एक बात तो पक्की है कि अगर ठाकरे परिवार ने बाउंस-बैक के प्रयास नहीं किये तो मान कर चलना होगा कि ठाकरे परिवार मुक्त महाराष्ट्र हो चुका है. माहिम में अमित ठाकरे भी तीसरे नंबर पर पहुंच चुके हैं. 

उद्धव ठाकरे को हिंदुत्व का एजेंडा विरासत में मिला था, लेकिन अभी तो लगता है जैसे सब कुछ गवां दिया हो. कुछ समय के लिए शिवसेना कोे कट्टर हिंदुत्व की राजनीति से उदार बनाने के लिए उद्धव ठाकरे ने तारीफ जरूर बटोरी थी, लेकिन शरद पवार और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने के साथ ही अति-उदारवादी बनना उद्धव ठाकरे की राजनीति के लिए मौत का कुआं साबित हुआ है. 

Advertisement

मातोश्री में बैठे रह कर भी उद्धव ठाकरे को मालूम होना चाहिये था कि महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना पार्टी विद डिफरेंस कट्टर हिंदुत्व की राजनीति के बूते ही हुआ करती थी, प्रगतिवादी इन्नोवेशन और मॉडिफिकेशन उनके हिस्से की पार्टी के ताबूत के आखिरी कील साबित होते लग रहे हैं - अब तो बीजेपी के साथ जाने जैसी बातें भी खत्म हो गई लगती हैं, जो चुनावों के दौरान काफी चर्चा में थीं.

बाल ठाकरे की विरासत का असली हकदार

एकनाथ शिंदे से पहले शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की राजनीतिक विरासत के दावेदार राज ठाकरे भी थे, लेकिन बेटा होने की वजह से संपत्ति के साथ साथ उद्धव ठाकरे राजनीतिक वारिस भी बना दिये गये. 

राज ठाकरे में सभी राजनीतिक खूबियां होने के बावजूद खून का रिश्ता वजनदार साबित हुआ, और उद्धव ठाकरे बाजी मार ले गये. उद्धव ठाकरे मातोश्री से चुनाव मैदान में उतरने वाले पहले नेता तो नहीं बने, लेकिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का रिकॉर्ड जरूर बनाया - उद्धव ठाकरे की मुश्किलें उनके शिवसेना का सर्वेसर्वा और मुख्यमंत्री बनने के बाद शुरू हुईं.
मौके की ताक में बैठे एकनाथ शिंदे को जैसे ही बीजेपी से सपोर्ट का इशारा मिला, खेल कर दिया. उद्धव ठाकरे न तो शिवसेना बचा सके, न चुनाव निशान. 

Advertisement

एकनाथ शिंदे ने खुद को बाला साहेब ठाकरे का असली वारिस होने का दावा किया, लेकिन उद्धव ठाकरे की हिकारत भरी भाषा के बावजूद कोई असर नहीं पड़ा. लाल रंग के सोफे पर बाल ठाकरे की तस्वीर रख, चरणों में घुटनों के बल बैठकर एकनाथ शिंदे देवता की तरह पूजते रहे, और असर इतना ज्यादा हुआ कि लोग एकनाथ शिंदे के साथ हो गये, और उद्धव ठाकरे मन मसोस कर रह गये.
 
निश्चित तौर पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नेता राज ठाकरे आज सबसे ज्यादा खुश नजर आते, बशर्ते अमित ठाकरे भी चुनाव जीत जाते. माहिम विधानसभा सीट पर उनके बेटे अमित ठाकरे तीसरे पायदान पर पहुंच गये हैं. 

अकेले शिंदे पूरी महाविकास अघाड़ी पर भारी पड़े

माहिम सीट भले ही अलग कहानी कह रही हो, जहां एकनाथ शिंदे की शिवसेना को सीधे मुकाबले में  उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने पछाड़ दिया है - लेकिन महाराष्ट्र की जिन 38 सीटों पर दोनो सेनाएं आमने सामने थीं, एकनाथ शिंदे ने 68 फीसदी यानी 26 सीटों पर जीत रहे हैं, और उद्धव ठाकरे के हिस्से में सिर्फ 9 सीटें यानी 32 फीसदी सीटें आने का अनुमान है. 

लगता है महाराष्ट्र के लोग दोनो नेताओं को उनकी भाषा और छवि की कसौटी पर भी कस रहे थे, और वहां उद्धव ठाकरे नकली और एकनाथ शिंदे असली साबित हुए. गद्दार, रावण और तलवे चाटने वाले से लेकर उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे को न जाने क्या क्या कहा, लेकिन एकनाथ शिंदे उतना ही बोले जितना जवाब देना जरूरी लगता था. 

Advertisement

उद्धव ठाकरे ने कहा था, मैं उन्हें गद्दार कहता हूं… वो सब गद्दार ही हैं… ये मंत्री पद कुछ दिनों के लिए है, लेकिन गद्दार होने का ठप्पा जीवनभर लगा रहेगा.

और इस पर एकनाथ शिंदे की प्रतिक्रिया थी, आप हमें गद्दार कह रहे हो... हमने जो किया वो गद्दारी नहीं, वो गदर है… गदर. गदर का मतलब होता है क्रांति… हमने क्रांति की है. एकनाथ शिंदे को अकेले दम पर जितनी सीटें मिलती नजर आ रही हैं, वो पूरी महाविकास अघाड़ी से ज्यादा हैं.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement